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Friday, 22 November, 2024
होमदेश'कानूनी तौर पर फैसला गलत है'- 'लव जिहाद' के तहत भारत की पहली सजा में फंसे हैं कई दांव-पेंच

‘कानूनी तौर पर फैसला गलत है’- ‘लव जिहाद’ के तहत भारत की पहली सजा में फंसे हैं कई दांव-पेंच

कोर्ट ने कहा कि यह एक जघन्य कृत्य है, जिससे आम आदमी में गलत संदेश जाता है. और ऐसे अपराधी महिलाओं और लड़कियों का सड़क पर निकलना मुश्किल कर देते हैं.

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मोहम्मद अफजल को उत्तर प्रदेश के लव जिहाद कानून के तहत सजा मिले एक महीने से ज्यादा हो गया है. अफजल के परिवार में सन्नाटा पसरा है. उन्होंने पड़ोसियों, पत्रकारों और संस्थानों के सामने इस केस के बारे में चुप्पी साधी हुई है. अफजल जेल में है, उसके घर से इसकी लगभग एक घंटे की दूरी है, उसका परिवार अभी तक उससे दो बार ही मिला है. उधर, अफजल ने भी खामोशी इख्तियार कर ली है.

अमरोहा जिला अदालत, की पॉक्सो कोर्ट ने 26 साल के अफजल को ‘लव जिहाद’ कानून के तहत देश की पहली सजा सुनाई है, जो आज की राजनीति के लिए एक अहम जीत है. इस केस का 17 महीने का ट्रायल दिखाता है कि कैसे ‘लव जिहाद’ जैसे विवादित राजनीतिक मुद्दे कोर्ट में लड़ना मुश्किल हैं. कानूनी खामियों से भरा यह मामला पॉक्सो, अपहरण, दुर्व्यवहार, धर्म परिवर्तन और छोटे शहरों में सोशल मीडिया पर युवाओं के व्यवहार का एक अस्थिर मेलजोल है.

अफजल पर 2020 में पारित गैरकानूनी धर्मांतरण अध्यादेश के तहत, योगी आदित्यनाथ सरकार के नए कानून ‘लव जिहाद’ पर अति-राजनीतिक माहौल में, आरोप लगे और ट्रायल चला.

उसके वकील अकरम उस्मानी ने कहा, ‘समाज को ध्यान में रखते हुए सजा दी गई है लेकिन कानून और मानवाधिकारों के को देखते हुए यह फैसला गलत है.’

कुछ लोगों का कहना है कि इस पहली सजा से दर्जनों अन्य लोगों पर कानूनी प्रभाव पड़ सकता है. यूपी में अब तक नए कानून के तहत 108 मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें से पुलिस ने 72 मामलों में चार्जशीट दाखिल की है.

वहीं, अब तक देश के 10 राज्यों ने इसी तरह के ‘लव जिहाद’ कानून लागू किया है.

पेशे से कारपेंटर अफजल के खिलाफ 16 साल की हिंदू लड़की का जबरन धर्म परिवर्तन कराने और पॉक्सो के तहत मामला दर्ज किया गया था. हालांकि, उसके पड़ोसियों का कहना है कि अफजल ने पीड़िता को अगवा नहीं किया था बल्कि दोनों एक दूसरे को प्यार किया करते थे. वहीं, उसके वकीलों ने अदालत को बताया कि अफजल अपहरण के आरोप वाली जगह अमरोहा में मौजूद ही नहीं था.

परेशान करने वाली और लंबी सुनवाई के दौरान अफजल की विधवा मां अपने घर से निकलकर एक उजाड़े पड़ोस में जा कर रहने लगी हैं, अब उनके दिन और रात दुआ करते हुए गुजरते हैं. पुलिस के डर से पड़ोसियों ने भी उनसे दूरी बना ली है.

जिला अदालत ने 17 सितंबर को अपने फैसले में कहा कि यह साबित हो गया है कि 16 वर्षीय लड़की का यौन उत्पीड़न किया गया था और इस्लाम में परिवर्तित नहीं होने पर जान से मारने की धमकी दी गई थी. इसमें कहा गया है कि ‘यौन शोषण और छेड़छाड़ की घटना को आरोपी ने अंजाम दिया है. यह एक जघन्य कृत्य है, जिससे आम आदमी में गलत संदेश जाता है. और ऐसे अपराधी महिलाओं और लड़कियों का सड़क पर निकलना मुश्किल कर देते हैं.’

कानून और अफजल की सजा ने समाज को बांट दिया है. ज्यादातर निवासी इस बारे में बात नहीं करते हैं लेकिन मोहम्मद यासीन जैसे कुछ लोग बेझिझक अपनी बातों को सामने रखते हैं.

वो कहते हैं, ‘लव जिहाद’ जैसी कोई चीज नहीं होती है. यह महज मुस्लिम लड़कों को प्रताड़ित करने के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. यासीन अफजल के एक रिश्तेदार भी हैं और आगामी नगर निगम चुनाव में वह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव भी लड़ रहे हैं.

वो आगे कहते हैं, ‘चुनाव में फायदा उठाने के लिए ‘लव जिहाद’ जैसे कानून लाए गए हैं.’

अफजल के करीबी पड़ोसी मोहम्मद बताते हैं कि वो पछतावे में है और खुद को जेल से जल्दी बाहर निकालने की विनती कर रहा है.


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कहानी की शुरूआत

अफजल की पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अमरोहा के पास संभल में कम आय वाले हैंडीक्राफ्ट मजदूरों के बीच परवरिश हुई. पीड़िता पास के एक छोटे से नर्सरी के कारोबार से सराबोर शहर, सिहाली जागीर में रहती थी. लड़की बीजेपी सदस्य के परिवार से ताल्लुक रखती है. पुलिस चार्जशीट के अनुसार दोनों की मुलाकात मार्च 2021 में हुई थी जब अफजल पीड़िता के पिता की नर्सरी से पौधे खरीदने के लिए गया था. उसने पीड़िता को अपना नाम अरमान कोहली बताया था और कहा था कि वो शिव का भक्त है. कुछ दिन बाद अफजल ने पीड़िता को अरमान कोहली नाम से स्नैपचैट पर एक रिक्वेस्ट भेजी थी जिसे तुरंत एक्सेप्ट कर लिया गया. इसके जरिए दोनों ने एक महीने तक बातचीत की.

पिछले साल दो अप्रैल को लड़की लापता हो गई.

पड़ोसियों ने उसके परिवार को बताया कि पीड़िता को उन्होंने दो पुरुषों और दो महिलाओं के साथ जाते देखा था. चार्जशीट में अफजल के मकान मलिक के बयान को भी दर्ज है जिसमें दावा किया गया है कि उन्होंने अपने घर दोनों को देखा था और उन्हें बाद में पता चला कि अफजल लड़की को जबरन धर्म परिवर्तन कराने के मकसद से लाया था.

पुलिस ने बताया कि इसके बाद दोनों दिल्ली आ गए जहां अफजल ने पीड़िता को प्रताड़ित और शादी करने के लिए मजबूर किया. पुलिस ने दो दिन बाद 04 अप्रैल को दोनों को दिल्ली के उस्मानपुर से बरामद किया.

नाबालिग लड़की ने अदालत को बताया कि अफजल ने बुर्का पहने एक महिला की मौजूदगी में उसका जबरन धर्म परिवर्तन कराने की कोशिश की और उसे जान से मारने की धमकी दी. अदालत में तीखी बहस के दौरान, अफजल के वकील अशोक कुमार ने धर्म परिवर्तन कराने के सबूत के तौर पर दस्तावेज मांगे. लेकिन विशेष लोक अभियोजक बसंत सिंह सैनी ने तर्क दिया कि लड़की ने इस बात का दावा कर दिया है तो उसके बयान के आलावा किसी और सबूत की जरूरत ही नहीं है.

कुमार ने कहा, ‘उनकी तरफ से धर्म परिवर्तन से जुड़े कोई दस्तावेज पेश नहीं किए गए हैं. अगर अफजल धर्म परिवर्तन कर रहा था तो जरूर कोई पेपर्स होंगे जिसपर पीड़िता ने साइन किए होंगे. धर्म परिवर्तन करने की भी एक प्रक्रिया होती है.’


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एक नया मोड़

हालांकि, अफजल के पड़ोसियों का दावा है कि घटना वाले दिन पीड़िता लड़की ही अफजल को ढूंढते हुए संभल के सराय तरीन (जहां अफजल रहता है) आई थी. एक शख्स ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘हमारे इलाके [बजरिया चौक] की गलियों में सुबह एक लड़की चक्कर काट रही थी. हमने पहली बार उसे यहां देखा था. उसने कई लोगों से अफजल के घर के बारे में पूछा. वह उन्हें उसकी तस्वीर दिखा रही थी और उसके बारे में पूछ रही थी.’

उसके परिवार ने भी यह दावा करते हुए कहा कि उसे ‘फंसाया’ गया है और वो ‘निर्दोष’ है. लेकिन वे भी डर और अविश्वास के कारण नाम नहीं बताना चाहते हैं.

अफजल के एक कज़िन ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, ‘आज का दौर सोसल मीडिया का है. इस पर लड़के-लड़की का मिलना और बातचीत करना आम बात है. ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती है. अफजल पर लगाए गए आरोप गलत हैं.’

उसके कज़िन के अनुसार, यह सब पारिवारिक सम्मान के मद्देनजर हुआ है. उन्होंने दावा किया कि पीड़िता का परिवार बदला लेना चाहता था क्योंकि अफजल ने उसका नाम खराब करने की कोशिश की है. उन्होंने कहा, ‘हम भी इस बारे में ज्यादा बात नहीं करना चाहते क्योंकि अब अफजल को सजा मिल गई है. अब वह बाहर नहीं आ सकता.’

कथित तौर पर अदालत की सुनवाई और पेशी से अफजल काफी परेशान हो गया था. उसकी सभी सुनवाई में मौजूद एक पड़ोसी बताते हैं, ‘वो इस पूरी घटना से गुस्से में भी था. अदालत के सजा सुनाने के बाद वह पुलिस की गाड़ी में बैठ गया, फूट-फूट कर रोने लगा.’

यासीन राजनीतिक दबाव की ओर इशारा करते हुए दावा करते हैं, ‘पीड़ित का परिवार एक बड़ा करोबारी है और सत्तारूढ़ बीजेपी के साथ भी उनके संबंध हैं.’


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खामियां

सभी कुछ नाबालिग पीड़िता के बयानों पर टिका हुआ था. अफजल के वकील रोमांस के बारे में बात नहीं कर सकते थे क्योंकि इससे पॉक्सो के आरोप और मजबूत होते और उनका मामला कमजोर हो जाता.

अफजल के दोनों वकील, उस्मानी और कुमार दावा करते हैं कि पुलिस और अदालत के सामने लड़की के बयानों में विरोधाभास था. उस्मानी ने कहा, ‘अगर अदालत ने हमारे तथ्यों पर गौर किया होता तो अफजल बाहर होता. लड़की ने ‘हम’ शब्द का इस्तेमाल किया, जिससे सहमति का आभास होता है.

पीड़िता ने अपने आईपीसी-164 बयान में कहा, ‘हम एक बस में गए थे. मुझे नहीं पता कि वो प्राइवेट थी या रोडवेज लेकिन उसमें कई सवारियां मौजूद थीं. हमने ड्राइवर, कंडक्टर या अन्य सवारियों से शिकायत नहीं की थी.’

इस बयान में उस्मानी ‘हम’ शब्द को लेकर अपनी अपत्ति दर्ज करते हुए कहते हैं, ‘पीड़िता ने अपने बयान में हम शब्द का प्रयोग किया है जिसका मतलब सहमति है. साथ ही लड़की ने बस में कहीं भी विरोध नहीं किया है.’

मेडिकल रिपोर्ट से पता चलता है कि लड़की के साथ मारपीट की गई थी. उसके शरीर पर चोट के निशान थे. अभियोजन पक्ष ने अफजल पर इसका आरोप लगाया.

उस्मानी पूछते हैं ‘लड़की ने अपने बयान में कहीं भी यह नहीं कहा है कि अफजल ने उसके साथ मार पीट की थी. फिर लड़की की मेडिकल रिपोर्ट में चोट कहां से आई?’

कोर्ट को अफजल के वकीलों ने बताया कि पीड़िता के परिवार ने उसे मारा पीटा है. उस्मानी ने अदालत में कहा, ‘उसके परिवार ने उसे पीटा है, जिससे चोट आई है.’

पीड़िता का बयान – जिसे उन्होंने विरोधाभासी बताया था – उनका एकमात्र ‘सबूत’ था. बचाव पक्ष के मुताबिक उनकी दलीलों के कारण ही अदालत ने अफजल को दो मामलों में कम सजा दी है. उन्होंने दावा किया कि आईपीसी की धारा 363 (अपहरण करने) के तहत सजा सात साल की सजा है, लेकिन उसे सिर्फ तीन साल जेल की सजा दी गई है. इसी तरह आईपीसी की धारा 366 (किसी स्त्री को विवाह के लिए विवश करने) के तहत 10 साल की सजा है लेकिन उसे पांच साल की जेल की सजा दी गई है. इसी में पांच लाख रुपए के जुर्माने की भी सजा है लेकिन उसे 25 हजार रुपए जुर्माना देने को कहा गया है.

अफजल के वकील इस कम सजा को एक छोटी सी जीत के रूप में देख रहे हैं, लेकिन पीड़ित के वकील बसंत सिंह सैनी उनके दावों से सहमत नहीं हैं. सैनी ने कहा, ‘अदालत ने कानून के मुताबिक सजा दी है. वह लड़की के बयान पर रोशनी डालते हुए कहते हैं ‘उसने कभी नहीं कहा कि उसके साथ बलात्कार किया गया था बल्कि उसने अपने साथ छेड़छाड़ का आरोप लगाया था. इसलिए सजा भी कम कर दी गई है.’

वो ‘लव जिहाद’ मामले में भारत की पहले सजा दिलाने को लेकर अपनी सफलता पर बेहद खुश हैं. वो विश्वास जताते हैं कि इससे ‘लव जिहाद’ जैसे अपराधों में कमी आएगी. सैनी ने कहते हैं, ‘यह फैसला उन लोगों के लिए मिसाल होगा जो ‘लव जिहाद’ में शामिल होने या धर्म परिवर्तन करने की कोशिश करते हैं. इससे उनके मन में कानून का डर पैदा होगा और यह निर्णय उनके लिए एक सबक साबित होगा.’

दोहरा रवैया

पुलिस जांच भी सवालों के घेरे में हैं, जिसकी हर बचाव पक्ष द्वारा पड़ताल की जाती है. उस्मानी और कुमार ने भी ठीक वैसा ही किया.

उस्मानी ने कहा, ‘अगर पुलिस ने सारे सबूत जमा किए होते तो अफजल को राहत मिल सकती थी. वकीलों का दावा है कि पुलिस ने अफजल और लड़की के मोबाइल फोन के कॉल रिकॉर्ड डिटेल्स नहीं निकाली.

हालांकि, पुलिस और अभियोजक ने इन आरोपों से इनकार किया है. अमरोहा के हसनपुर थाने के एसएचओ राजेंद्र सिंह ने कहा, ‘हमने सारे सबूत जमा किए थे. अगर सबूत पूरे नहीं होते तो क्या अफजल को सजा मिलती? इस पूरे मामले में पीड़िता का बयान अहम था.’

पूरे भारत में, वकील अफजल के मामले पर नजर बनाए हुए हैं – खासतौर से उन्होंने जिनके मुवक्किल समान आरोपों का सामना कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के वकील मसरूफ कमाल ‘उम्मीद’ जताते हैं कि हाई कोर्ट अफजल के मामले में धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत दर्ज धाराओं को खारिज कर देगा. वो भी इसी तरह के एक ‘लव जिहाद’ केस को लड़ रहे हैं और मुकदमा पहले से ही चल रहा है. उनका मुवक्किल, एक किशोर, को धर्मांतरण विरोधी कानून और पॉक्सो धाराओं के तहत गिरफ्तार किया गया था.

वो कहते हैं, ‘अफजल के खिलाफ पॉक्सो के तहत मामला बन सकता है, लेकिन धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत नहीं क्योंकि पीड़िता का धर्म बदला ही नहीं गया. पीड़िता की तरफ से अदालत को कोई हलफनामा भी नहीं दिया गया है कि उसका धर्म परिवर्तन कराया गया है.’

यासीन की तरह वो भी ‘लव जिहाद’ को ‘उत्तर प्रदेश में राजनीतिक प्रोपागेंडा’ के रूप में देखते हैं.

उन्होंने प्रशासन पर दोहरा रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा, ‘धर्मांतरण विरोधी कानून सभी के लिए है लेकिन अगर लड़की मुस्लिम है या किसी अन्य धर्म (अल्पसंख्यक) से है और लड़का हिंदू है, तो वे इसे ‘घर वापसी’ बताते हैं. वहां धर्मांतरण विरोधी कानून लागू नहीं होता. अगर आपने कानून बनाया है तो इसे सबके लिए लागू किया जाना चाहिए.’


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सबूतों का बोझ

सोशल मीडिया चैट्स स्क्रीनशॉट ने भी कोर्ट में अहम भूमिका निभाई है. तथ्य यह है कि अफजल ने एक हिंदू शख्स के रूप में प्रोफाइल बनाया था, जो अदालत को एक बदनीयत के इरादे के रूप में इंगित करता है. पीड़िता के वकील सैनी ने कहा कि पूरे मामले में लड़की का बयान बहुत अहम था.

उन्होंने बताया, ‘सोशल मीडिया चैट ने भी हमारे मामले को मजबूत बनाया है. हमने सबूत के तौर पर स्नैपचैट पर हुई बातचीत का स्क्रीनशॉट पेश किया था.’

इस मामले में कोर्ट का फैसला घटना के 17 महीने के अंदर आया है. विशेष लोक अभियोजक सैनी ने बताया कि इस दौरान ट्रायल के लिए 62 तारीखें तय की गईं.

उन्होंने अदालती कार्रवाई को ‘सामान्य’ बताया, लेकिन उस्मानी अदालत की कम समय और लगातार हो रही सुनवाई से स्तब्ध थे. उन्होंने दावा किया, ‘लगातार सुनवाई की तारीखों के कारण, अफजल को अपने लिए सबूत पेश करने का वक्त नहीं मिला.’

इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, जस्टिस गोविंद माथुर ने द क्विंट के लिए एक लेख में लिखा कि उत्तर प्रदेश के गैरकानूनी धर्मांतरण निषेध अधिनियम, 2021 की धारा 12 के तहत, सबूत का बोझ अभियोजन से आरोपी पर शिफ्ट हो जाता है.

वो लिखते हैं, ‘पुलिस को किसी भी व्यक्ति या निकाय के खिलाफ सिर्फ आरोप लगाना है, लेकिन वो इसे साबित करने के लिए बाध्य नहीं है.’

वो आगे लिखते हैं, ‘अपराध स्थापित करने के लिए इरादा एक और अहम घटक है. लेकिन, धारा 12 के तहत, पुलिस को इरादा स्थापित करने के लिए कोई सबूत जमा करने की भी जरूरत नहीं होती है.’

अफजल और उनके वकीलों ने समय की कमी को महसूस किया, हालांकि सैनी ने जोर देकर कहा कि ‘उनके पास सबूत जमा करने के लिए काफी समय था.’

मुस्लिम गवाह

इस मामले की विडंबना यह है कि अभियोजन पक्ष के तीन मुख्य गवाह मुस्लिम थे. अफजल के खिलाफ उनके बयानों ने उनके बचाव को कमजोर कर दिया.

दो गवाह सिहाली जागीर के थे जहां लड़की रहती थी. दोनों ने दावा किया कि जिस दिन वो लापता हुई थी उन्होंने ‘दो महिलाओं सहित चार लोगों को पीड़िता से बात करते हुए देखा था.’

तीसरा गवाह उस घर का मालिक है जहां अफजल और उसका परिवार बजरिया में रहता था. उसने अफजल को अपने घर में एक लड़की से बात करते हुए देखा था और जब उन्होंने उससे उसके बारे में पूछताछ की तो अफजल लड़की को लेकर घर से निकल गया.

मकान मालिक ने पुलिस को दिए अपने बयान में कहा, ‘बाद में, मुझे पता चला कि लड़की सिहाली जागीर गांव की है और अफजल उसे जबरन धर्म परिवर्तन और शादी करने के लिए लाया था.’

लेकिन बचाव पक्ष गवाहों से जिरह नहीं कर पाए क्योंकि मुस्लिम गवाहों के बयान पुलिस के सामने दर्ज किए गए थे, और उन्हें कभी अदालत में पेश नहीं किया गया.

कुमार ने कहा, ‘इस मामले में मुस्लिम गवाह हैं लेकिन उनकी गवाही अदालत में दर्ज नहीं की गई. 14 नवंबर के बाद, हम इस अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती देंगे और अनुरोध करेंगे कि इन गवाहों के बयान कोर्ट में लिए जाएं.’

उन्होंने बताया कि प्रशासन से लेकर हाईकोर्ट तक इस मामले पर नजर थी. कुमार ने कहा, ‘इस मामले को हाईकोर्ट की एक्शन प्लान में शामिल किया गया था, इसलिए इसे जल्द ही निपटाया गया है.’


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‘निर्माणाधीन’ शहर

भारत की पहली ‘लव जिहाद’ सजा ने जनता की निगाह संभल के छोटे से शहर की ओर मोड़ दी है लेकिन इसके निवासी नाराज और बेचैन हैं. साथ यह नजरअंदाजी को तरजीह दे रहे हैं.

मुस्लिम बहुल शहर में अगले महीने नगर निगम चुनाव होने हैं. स्थानीय पार्टी के नेताओं की नियमित रूप से कारों में आवाजाही लगी हुई है, और युवा उत्साह के साथ राजनीतिक आयोजनों की रौनक बने हुए हैं.

पूरा क्षेत्र, राजनीतिक बातचीत और बहस की महफिलों से सजा हुआ है. कुछ का कहना था ‘यहां कोई कॉलेज नहीं है.’ कुछ ने ‘संभल को अस्पताल की जरूरत’ पर जोर दिया. अफजल का नाम सामने आने तक मुद्दों पर जमकर बहस होती है. कुछ अनजान बनने का ढोंग करते हैं. कुछ अफजल का नाम सुनते ही एक दूसरे से फुसफुसाते हैं और चले जाते हैं. अफजल का कोई जिक्र नहीं है.

यासीन मजाक में कहते हैं ‘यहां के लोग चिकन की तरह हैं जो कटता है वही रोता है. बाकी सब तमाशा देखते हैं.’

हम सराय तरीन इलाके में भीड़भाड़ रास्तों से होकर गुजरते हुए कच्चा इलाके की संकरी और तंग गली में स्थित अफजल के घर पहुंचे. चेहरे पर एक छोटी सी मुस्कान के साथ अफजल की अम्मी ने हमारा स्वागत किया लेकिन जैसे ही उन्हें मालूम हुआ कि हम मीडिया से हैं उनके मुस्कुराते चेहरे पर उदासी छा गई और आंखों में डर साफ नजर आ रहा था. उन्होंने अपने सीने पर हाथ रखते हुए कहा, ‘हम मीडिया से बात नहीं करना चाहते. हमारे साथ जो होना था, वो हो गया है. मेरा बेटा जेल में है. अब इस बारे में बात करके हम क्या करें? हमें अकेला छोड़ दो.’

और इसके बाद उन्होंने अपना दरवाजा बंद कर दिया.

(इस फीचर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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