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Sunday, 22 December, 2024
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पश्चिमी देशों के रूस पर प्रतिबंधों से भारत को रक्षा, इंजीनियरिंग क्षेत्रों को लग सकता है बड़ा झटका

वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान रूस के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार 8.1 अरब डॉलर रहा. इसमें भारतीय निर्यात का हिस्सा कुल 2.6 अरब डॉलर था, जबकि रूस से आयात 5.5 अरब डॉलर हुआ था.

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नई दिल्ली: केंद्र सरकार से जुड़े कई सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि उसकी इस बारे में चिंताएं बढ़ रही हैं कि रूस पर पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए लगे व्यापक आर्थिक प्रतिबंधों का भारत में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों, विशेष रूप से रक्षा पर सख्त प्रभाव पड़ेगा.

कई सरकारी सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि सरकार अभी भी उन क्षेत्रों की समीक्षा करने की प्रक्रिया में है जिनके इन प्रतिबंधों से सबसे ज्यादा प्रभावित होने की संभावना है और साथ ही वह इस झटके से निपटने के लिए तंत्र भी तैयार कर रही है.

एक सूत्र ने कहा, ‘हालांकि सरकार इसके प्रभावों का आकलन करने के लिए एक अंतर-मंत्रालयी वार्ता के माध्यम से आंतरिक रूप से इस मामले पर नियमित रूप से चर्चा कर रही है; फिर भी, इसे अमेरिकी, यूरोपीय और साथ-ही-साथ संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के तहत आने वाली सभी रूसी संस्थाओं को सूचीबद्ध करने की एक कठिन प्रक्रिया को भी अलग से पूरा करना होगा.’

शनिवार को जारी किये गए संयुक्त बयान में, संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस), यूरोपीय संघ (ईयू), यूनाइटेड किंगडम (यूके), इटली, जर्मनी, फ्रांस और कनाडा उन प्रतिबंधात्मक उपायों पर सहमत हुए जो रूसी केंद्रीय बैंक को प्रतिबंधों के प्रभाव को कम करने के लिए अपने विदेशी मुद्रा भंडार (फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व्स) का उपयोग करने से रोकेंगे.

उन्होंने रूस को वैश्विक व्यापार से अलग-थलग करने के लिए उठाये गए एक कदम के रूप में कुछ रूसी बैंकों को स्विफ्ट इंटर-बैंकिंग सिस्टम से काटने का भी फैसला किया.

सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन या स्विफ्ट एक ऐसा मैसेजिंग सिस्टम है जो समय पर अंतराष्ट्रीय लेन-देन की सुविधा प्रदान करता है और यह अंतरराष्ट्रीय वित्तीय व्यापार की रीढ़ बन गया है.

सूत्रों ने यह भी कहा कि रूस पर अमेरिका सहित अन्य देशों द्वारा और अधिक प्रतिबंध लगाए जाने की भी संभावना है.


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भारत और रूस के बीच का द्विपक्षीय व्यापार

वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान रूस के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार 8.1 अरब डॉलर रहा. इसमें भारतीय निर्यात का हिस्सा कुल 2.6 अरब डॉलर था, जबकि रूस से आयात 5.5 अरब डॉलर हुआ था.

एक ओर जहां भारत रूस को इलेक्ट्रिकल मशीनरी, फार्मास्यूटिकल्स (दवाइयां), कार्बनिक रसायन, लौह-इस्पात, परिधान, चाय, कॉफी और वेहिकल स्पेयर पार्ट्स (वाहनों के कलपुर्जे) का निर्यात करता है, वहीं यह इस देश से रक्षा उपकरण, खनिज संसाधन, कीमती पत्थरों एवं धातुओं, परमाणु ऊर्जा उपकरण, उर्वरक, इलेक्ट्रिकल मशीनरी, स्टील की वस्तुएं और अकार्बनिक रसायनों का आयात करता है.

सूत्रों ने कहा कि इन प्रतिबंधों से न केवल रूस के साथ भारत के रक्षा व्यापार पर ‘गहरा प्रभाव’ पड़ेगा, बल्कि जहां तक इंजीनियरिंग के सामान, ऑटोमोबाइल कंपोनेंट्स (घटकों), फार्मास्युटिकल्स, दूरसंचार उपकरण और कृषि उत्पादों जैसी अन्य वस्तुओं की बात आती है, तो वे मास्को के साथ नई दिल्ली के इनके व्यापार पर भी ‘प्रतिकूल प्रभाव’ डालेंगे.

रूस स्थित भारतीय दूतावास ने अपनी वेबसाइट पर कहा है कि कई रूसी बैंकों ने भारत में शाखाएं खोली हैं. इनमें वीटीबी, स्बेरबैंक, वनशैकोम्बनक, प्रॉस्वैबैंक और गाज़प्रोमबैंक शामिल हैं. इसी तरह, कॉमर्शियल बैंक ऑफ इंडिया एलएलसी, जो दो प्रमुख भारतीय बैंकों – एसबीआई और केनरा बैंक – का संयुक्त उद्यम है – रूस में बैंकिंग सेवाएं प्रदान कर रहा है.

भारत-रूस भुगतान तंत्र

यह कोई पहली बार नहीं है जब रूस पर इस तरह से आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए हैं. 2014 में, रूस द्वारा क्रीमिया पर कब्जा किये जाने के बाद, अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों ने आर्थिक प्रतिबंध लगाकर रूस और बाकी दुनिया के बीच डॉलर के व्यापार को सीमित कर दिया था.

2019 में, भारत ने अपने आयात के भुगतान के लिए रूसी बैंक वीटीबी के साथ लेन-देन हेतु चेन्नई स्थित मुख्यालय वाले इंडियन बैंक का चयन किया था. इसके पीछे का विचार यह था कि इन बैंकों का अमेरिकी मुद्रा के प्रति कम-से-कम एक्सपोजर होगा. यह स्पष्ट नहीं है कि मौजूदा प्रतिबंधों के तहत रूस के साथ लेन-देन के लिए इंडियन बैंक का इस्तेमाल किया जाएगा या नहीं.

सरकारी अधिकारियों, जो अपना नाम जाहिर नहीं करना चाहते थे, के अनुसार, रूस को स्विफ्ट से बाहर करने के कदम से भारत के साथ उसका व्यापार बाधित हो सकता है, खासकर उर्वरकों के सम्बन्ध में जो हमारे देश के कृषि क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं.

एक अधिकारी ने कहा कि दोनों सरकारों के स्तर पर लेनदेन के लिए पहले से ही एक रुपया-रूबल व्यवस्था मौजूद है. इसलिए, इन प्रतिबंधों से इसके प्रभावित होने की संभावना नहीं है और अधिकांश भुगतानों के लिए इसका उपयोग जारी रह सकता है.

अपने परमाणु कार्यक्रम की बजह से साल 2012 में ईरान पर लगाए गए पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद भी, भारत ने कोलकाता स्थित यूको बैंक को ईरानी तेल के आयात हेतु पेमेंट बैंक के रूप में नामित किया था. अमेरिकी बैंकिंग प्रणाली के एक्सपोजर से बचने के लिए इस खाते में यूरो में जमा राशि जमा रखी जाती थी.

मौजूदा संकट का रक्षा उपकरणों की आपूर्ति पर तत्काल प्रभाव पड़ेगा

रक्षा क्षेत्र में भारत का रूस के साथ पुराना सहयोग रहा है. अब डर इस बात का है कि नए भुगतान तंत्र (पेमेंट मैकेनिज्म) के अभाव में नए लगाए गए प्रतिबंधों का भारत के रक्षा आयात पर बुरा असर पड़ सकता है.

अक्टूबर 2021 में जारी अमेरिकी कांग्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारतीय सेना रूसी उपकरणों के बिना प्रभावी ढंग से काम नहीं कर सकती है तथा अल्प एवं मध्यम समयावधि में वह रूसी हथियार प्रणालियों पर ही निर्भर करना जारी रखेगी.

हालांकि, इसी रिपोर्ट द्वारा दिए गए आंकड़ों से पता चला था कि 2014 के बाद से, जब से क्रीमिया के मुद्दे पर पश्चिमी शक्तियों के साथ रूसी संकट सामने आया था, रूस के साथ भारत के रक्षा व्यापार में लगातार गिरावट आई है.

एक ओर जहां रूस और यूक्रेन के बीच मौजूदा तनाव का भुगतान की जा चुकी वस्तुओं की आपूर्ति पर तत्काल प्रभाव पड़ेगा, वहीं सरकारी सूत्रों ने दिप्रिंट को यह भी बताया कि रूसी बैंकिंग चैनलों पर लगे प्रतिबंध से भारत की भुगतान करने की क्षमता प्रभावित हो सकती हैं और इस वजह से आगे के भुगतान में देरी हो सकती है.

एक शीर्ष सूत्र, जिन्होंने एस-400 सौदे पर रूसियों के साथ अतीत में काम किया हुआ है, ने कहा, ‘किसी भी फर्म या देश के साथ हस्ताक्षरित अन्य सभी रक्षा अनुबंधों की तरह ही भुगतान एक शेड्यूल (तयशुदा कार्यक्रम) के अनुसार किया जाता है.’

उन्होंने कहा, ‘कोई भी भुगतान एकदम से तुरंत नहीं किया जाता है. इसलिए, पहले से अनुबंधित विभिन्न रक्षा सौदों के लिए कई जरूरी भुगतान किये जाने हैं, मगर नवीनतम प्रतिबंध इसे और अधिक कठिन बना सकते हैं.‘

वर्तमान में, भारत में निर्मित सभी रूसी उत्पाद, जैसे तमिलनाडु के आवाडी स्थित हैवी व्हीकल्स फैक्ट्री द्वारा उत्पादित टी-90 टैंक, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) द्वारा बनाये जा रहे एसयु-30 एमके आई लड़ाकू विमान, आयुध निर्माणी बोर्ड (आर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड) द्वारा निर्मित पैदल सेना लड़ाकू वाहन (इन्फेंट्री कॉम्बैट व्हीकल) बीएमएपी-2, और ब्रह्मोस मिसाइलें, लाइसेंस-प्राप्त उत्पादन के माध्यम से बनाये जा रहे हैं.

इनके लिए, भारत रूसियों को एक रॉयल्टी का भुगतान करता है. इसके अलावा वह बुनियादी ढांचे और उत्पादन पर आने वाली लागत पर भी खर्च करता है, जो कभी-कभी रूस से सीधे आयात करने की तुलना में इनका यहां निर्माण करना अधिक महंगा बना देते हैं.


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दिप्रिंट ने सोमवार को एक विशेष रिपोर्ट प्रकाशित की थी कि भारत को इस बात की चिंता है कि रिकाज एडवर्सरीज थ्रू सेंक्शंस एक्ट (सीएएटीएसए-कात्सा) का खतरा नई दिल्ली के सिर पर किसी लटकती हुई तलवार की तरह मंडरा रहा है.

यहां यह तर्क दिया जा रहा है कि कई देशों द्वारा नवीनतम दौर में प्रतिबंधित की गयी रक्षा उत्पादन संस्थाएं पहले से ही अमेरिका द्वारा थोपे गए प्रतिबंधों की जद में थीं, इसलिए, अभी यह देखना होगा कि पश्चिमी देश अब ऐसी नई परियोजनाओं के लिए किस हद तक मोहलत देते हैं.

रक्षा मंत्रालय की अधिग्रहण शाखा (एक्वीजीशन विंग) के पूर्व वित्तीय सलाहकार अमित कौशिश ने दिप्रिंट को बताया, ‘भारत के लिए कात्सा के तहत कोई विशेष छूट नहीं है. यह केस-टू-केस (मामला-दर-मामला) आधार पर होना था. उनका ध्यान प्रमुख रक्षा वस्तुओं पर था और भारत के पास पहले से मौजूद रूसी रक्षा प्रणालियों के रखरखाव के लिए होने वाला व्यापार इसमें कोई मायने नहीं रखता था क्योंकि वे समझते हैं कि भारत इसके लिए रूस पर निर्भर है.‘ उन्होंने कहा ‘यहां तक कि फ्रिगेट और एस-400 के लिए भी, अमेरिकियों ने आंखें मूंद ली थीं क्योंकि यह उनके अनुकूल थी.’

उन्होंने कहा कि अमेरिका ने एस-400 की डिलीवरी लेने के लिए चीन और तुर्की दोनों पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन उसने अब तक भारत के खिलाफ ऐसा नहीं किया है.

एस-400 के लिए, भारत ने अमेरिकियों को आधिकारिक तौर पर एक ‘नॉन पेपर’ के रूप में जाने जाने वाला दस्तावेज यह बताते हुए जारी किया है कि यह सौदा इसके लिए महत्वपूर्ण क्यों था. भारत का आधिकारिक रुख यह है कि कात्सा के अस्तित्व में आने से पहले ही यह सौदा क्रियान्वित हो गया था और भारत केवल संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों का ही पालन करता है.

भारत के रक्षा बजट का बारीकी से अध्ययन करने वाले जेएनयू के स्पेशल सेंटर फॉर नेशनल सिक्योरिटी स्टडीज के एसोसिएट प्रोफेसर लक्ष्मण कुमार बेहरा ने दिप्रिंट को बताया कि रूसी बैंकिंग प्रणाली के खिलाफ लगाए गए नए प्रतिबंधों और इस देश के बैंकों को स्विफ्ट से बाहर किये जाने के कदम का दोनों देशों में हमेशा की तरह व्यापार जारी रखने की क्षमता पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा.

उन्होंने कहा कि भुगतान करना मुश्किल हो जाएगा. हमें चीजों को व्यवस्थित होने के लिए कुछ समय देना होगा, और फिर दोनों देशों के बीच के रक्षा व्यापार पर इनका असर देखना होगा.

सेकेंडरी प्रतिबंधों के बारे में चिंता

नरेंद्र मोदी सरकार, जिसने अभी तक सीधे तौर पर रूस की निंदा न करके और ‘कूटनीति तथा संवाद’ पर जोर देते हुए इस पूरे मुद्दे पर एक सुरक्षित रुख अपनाया है, यह भी मानती है कि यदि ‘द्वितीयक प्रतिबंध’ (सेकेंडरी सैंक्शंस) सक्रिय होते हैं, तो भारत को ‘सबसे कठिन चोट’ पहुंचेगी.

अमेरिका कथित तौर पर रूसी संस्थाओं और व्यक्तियों पर सेकेंडरी सैंक्शंस लगाने पर भी विचार कर रहा है.

यूएस-स्थित लॉ फर्म हॉलैंड एंड नाइट के अनुसार, ‘अमेरिका द्वारा सेकेंडरी सैंक्शंस आम तौर पर ऐसे गैर-अमेरिकी नागरिकों पर लगाए जाते हैं, जो एग्जिक्यूटिव आर्डर (कार्यकारी आदेश) के तहत प्रतिबंधित व्यक्तियों के साथ कुछ गतिविधियों जैसे कि ‘उन्हें सहायता पहुंचाना, प्रायोजित करना अथवा वित्तीय, भौतिक या तकनीकी सहायता प्रदान करने, अथवा वस्तुओं या सेवाओं के साथ समर्थन में शामिल पाए जाते हैं.‘

रूस में भारत के पूर्व राजदूत और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष पी.एस. राघवन ने दिप्रिंट को बताया, ‘इस बार लगाए गए प्रतिबंध बहुत बड़े और अभूतपूर्व हैं. कई देशों द्वारा कहीं अधिक भागीदारी के साथ ये पहले से कहीं अधिक कड़े प्रतिबंध हैं.’

सेकेंडरी सैंक्शंस के मुद्दे पर, उन्होंने कहा, ‘सेकेंडरी सैंक्शंस वे हैं जो किसी तीसरे देश की ऐसी कंपनी पर लगाए जाते हैं जो प्रतिबंधित संस्थाओं के साथ व्यापार करती है. कात्सा सेकेंडरी सैंक्शंस का एक उदाहरण है.‘

उन्होंने कहा, ‘सेकेंडरी सैंक्शंस में कंपनी को अमेरिका या अमेरिकी कंपनियों के साथ उनके सभी तरह के कारोबार से अलग किये जाने का प्रबल खतरा होता है. कोई भी कंपनी कभी भी सेकेंडरी सैंक्शंस को अपनी ओर आकर्षित करने का जोखिम नहीं उठाएगी,‘.

साथ ही, राघवन ने कहा, ‘प्रतिबंध मूलरूप से डेटेररेन्स (भय पैदा करने वाले) की तरह होते हैं’. उन्होंने कहा, ‘रूस सभी प्रकार के प्राकृतिक संसाधनों का भंडार है और यूरोप अपने लिए तेल और गैस, एल्युमीनियम, तांबे और इस तरह की अन्य आवश्यक वस्तुओं के आयात के लिए मास्को पर बहुत अधिक निर्भर है. कड़े प्रतिबंधों का मकसद इसके उद्देश्यों को तेजी के साथ प्राप्त करना है, ताकि उन्हें जल्द से जल्द हटाया जा सके.’

उन्होंने आगे कहा, ‘ये प्रतिबंध उन्हें लगाने वालों की अर्थव्यवस्था पर भी असर डालेंगे. चीन ने भी इस मुद्दे पर ‘इंतजार करो और देखो’ का रवैया अपनाया है. अभी तक, ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है कि सेकेंडरी सैंक्शंस लगाए जाएंगे, लेकिन हमें इस बारे में बेहद सावधान रहना होगा.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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