नई दिल्ली: पाकिस्तान में नए प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण से लेकर, अभी भी जारी रूस-यूक्रेन युद्ध की भयावहता, रामनवमी पर सांप्रदायिक हिंसा और देश में नफरत भरे भाषण- ये कुछ ऐसी देश-विदेश की खबरें थीं जो सप्ताह भर उर्दू अखबारों की सुर्खियों में बनी रही.
अखबारों ने अपने पहले पन्नों पर किन खबरों को प्रमुखता से छापा और उन्होंने किस मुद्दे पर संपादकीय राय व्यक्त की, इसे लेकर हमारे साप्ताहिक फीचर उर्दूस्कोप में दिप्रिंट का राउंड-अप.
यह भी पढ़ें: ‘दंगाइयों को संदेश’ या ‘अतिक्रमण विरोधी अभियान’— खरगोन में दंगों के बाद आखिर हुआ क्या था
रामनवमी हिंसा
रामनवमी के दिन कई राज्यों और दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में हुई हिंसा सप्ताह की महत्वपूर्ण खबरों में से एक थी जिसे उर्दू अखबारों ने प्रमुखता से कवर किया.
12 अप्रैल को ‘इंकलाब ’ और ‘रोज़नामा ’ राष्ट्रीय सहारा दोनों ने हिंसा की घटनाओं को अपने पहले पन्ने पर जगह दी और खबरों का गहराई से विश्लेषण किया. ‘इंकलाब ’ ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के एक उस बयान पर एक छोटा सा इनसेट भी दिया जिसमें उन्होंने ‘देश को कमजोर कर रही है नफरत’ की बात कही थी.
उसी दिन ‘सियासत’ ने अपने पहले पन्ने पर लिखा, ‘प्रशासन ने रामनवमी के मौके पर मध्य प्रदेश के खरगोन में हुई हिंसा के प्रतिशोध के रूप में अल्पसंख्यक समुदाय के कम से कम 50 घरों को तोड़ने के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल किया है.
14 अप्रैल को ‘इंकलाब ’ ने बिहार के सबसे बड़े विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के एक ट्वीट को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें दावा किया गया था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी ने सोची-समझी रणनीति के तहत रामनवमी को दंगा नवमी में बदल दिया. अखबार ने बताया कि पार्टी ने हैशटैग ‘इंडियन मुस्लिम अंडर अटैक’ का इस्तेमाल किया था.
जेएनयू के ‘मेस’ में रामनवमी पर कथित तौर पर मांसाहारी भोजन परोसे जाने को लेकर हुई हिंसा पर सहारा ने 13 अप्रैल के संपादकीय, ‘वेज + नॉन-वेज = हिंदुस्तान’ में लिखा कि आरएसएस और उसके कुछ संगठन अपने चुनावी फायदे के लिए भारत में आजादी से पहले वाला माहौल फिर बनाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन इसका नतीजा पूरे देश पर असर डालेगा.
उसी दिन ‘इंकलाब ’ ने अपने संपादकीय में लिखा कि हरियाणा में जुमे की नमाज के विरोध से लेकर कर्नाटक में हिजाब को लेकर तनाव और अज़ान के लिए लाउडस्पीकर के इस्तेमाल तक, मुसलमानों के साथ कुछ भी करने के लिए जानबूझकर इन मुद्दों को विवादास्पद बनाने का प्रयास किया जा रहा है. अखबार ने कहा, अगर पुलिस ने समय पर अपना काम किया होता, तो हिजाब विवाद इतना बड़ा मसला नहीं बना होता. अखबार ने शांति समितियों की वापसी की वकालत करते हुए प्रेस को सलाह दी कि उन्हें भी आग में घी डालने से बचना चाहिए.
यह भी पढ़ें: नए सिरे से भारत का स्वप्न सजाने के लिए फिर से आंबेडकर की जरूरत लेकिन इन 3 घेरेबंदियों को पार करना होगा
सांप्रदायिक राजनीति
धार्मिक सभाओं में अभद्र भाषा पर जारी अदालती सुनवाई उर्दू के अखबारों की सुर्खियों में बनी रही.
14 अप्रैल को ‘इंकलाब ’ और ‘सहारा ’ ने अपने पहले पन्नों पर खबरें दी कि सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को हरिद्वार धर्म संसद की जांच और हिमाचल प्रदेश में इसी तरह की सभा को रोकने से इनकार करने पर एक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा है. अखबार ने बताया कि बाद वाले मामले में अदालत ने राज्य प्रशासन को नोटिस जारी किया है.
भगवाधारी महंत बजरंग मुनि के 9 अप्रैल को दिए गए भड़काऊ बयान और 14 अप्रैल को उनकी गिरफ्तारी की खबर को ‘इंकलाब ’ और ‘सहारा ’ दोनों ने अपने पहले पन्ने पर जगह दी.
15 अप्रैल को ‘सियासत ’ ने फ्रंट-पेज पर एक रिपोर्ट चलाई जिसमें कहा गया था कि एमनेस्टी इंटरनेशनल ने खरगोन में मुसलमानों की संपत्तियों को निशाना बनाने पर आपत्ति जताई है.
9 अप्रैल को सियासत ने अशोक गहलोत सरकार के राजस्थान के मंदिरों में रामायण पाठ और अजमेर प्रशासन के धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर के उपयोग पर प्रतिबंध के निर्णय को लेकर एक फ्रंट-पेज स्टोरी प्रकाशित की.
14 अप्रैल को, इंकलाब ने अपने एक संपादकीय में हैरानी जताते हुए लिखा कि क्या कर्नाटक उत्तर प्रदेश और गुजरात के बाद सांप्रदायिक राजनीति का अगला गढ़ बन जाएगा. आगे लिखा गया कि सांप्रदायिक घटनाओं के आर्थिक नतीजे सिर्फ एक समुदाय तक सीमित नहीं रहते हैं.
15 अप्रैल को ‘सहारा ’ ने एक कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक के भाषण से जुड़ी उस खबर को पहले पन्ने पर प्रमुखता से छापा, जिसे उन्होंने मस्जिद से अज़ान की आवाज सुनाई देने पर बीच में ही रोक दिया था. अखबार ने लिखा कि पाठक का ये संदेश ऐसे समय में आया है जब लाउडस्पीकर पर अज़ान बजाना कर्नाटक और महाराष्ट्र में एक विवादास्पद मुद्दा बन गया है और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) चाहती है कि इसे रोक दिया जाए.
यह भी पढ़ें: भारत में ‘मानवाधिकार’ पर अमेरिका की धौंस-पट्टी हाथ मिलाने पर हुई खत्म, दिल्ली को क्या मिला इशारा
पाकिस्तान का राजनीतिक संकट
अगर कोई खबर सप्ताह भर अधिकांश समय सुर्खियां में रही तो वो थी पाकिस्तान का संवैधानिक संकट.
11 अप्रैल को सहारा, सियासत और इंकलाब ने अल जज़ीरा की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए लिखा कि सत्तारूढ़ दल इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के सदस्यों और स्पीकर की अनुपस्थिति में पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में रविवार सुबह तक कार्यवाही जारी रही.
इंकलाब ने रिपोर्ट दी कि खान के खिलाफ वोट करके उन्हें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के पद से हटा दिया गया. अब उनका सफर खत्म हुआ.
उसी दिन सहारा ने अपने एक कॉलम में लिखा कि इस्लामाबाद हाई कोर्ट के समक्ष एक याचिका में खान और उनके कुछ कैबिनेट मंत्रियों को पाकिस्तान की एक्जिट कंट्रोल लिस्ट (ईसीएल) में शामिल करने की मांग की गई ताकि उन्हें देश छोड़ने से रोका जा सके.
‘इंकलाब ’ ने भी उस दिन पाकिस्तान की सियासत से जुड़ा एक लेख प्रकाशित किया. इसमें कहा गया कि शहबाज शरीफ ने आधिकारिक तौर पर प्रधानमंत्री बनने से पहले ही कश्मीर के बारे में बात की. लेख में शरीफ के हवाले से लिखा गया कि वह भारत के साथ शांति चाहते हैं लेकिन यह तब तक संभव नहीं है जब तक कि कश्मीर मुद्दे का समाधान नहीं हो जाता.
‘सहारा ’ ने 11 अप्रैल को अपने संपादकीय में लिखा कि इमरान के निष्कासन और पीएमएल-एन के अध्यक्ष व संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार शहबाज शरीफ के नामांकन दाखिल करने के बाद भी पाकिस्तान में सत्ता का खेल जारी रहा. संपादकीय ने हैरानी जताते हुए आगे कहा कि अगर विपक्षी दल अपने मतभेदों को भुलाकर एक साथ आ भी जाए तो भी यह कितने समय तक चलेगा.
‘सियासत ’ ने 11 अप्रैल को अपने संपादकीय में लिखा, हालांकि इमरान खान के खिलाफ भ्रष्टाचार के कोई आरोप नहीं हैं लेकिन उनके दोस्त और फाइनेंसर अलीम खान के खिलाफ आरोप उन्हें घेर सकते हैं. संपादकीय में अंत तक लड़ते रहने के लिए इमरान खान की दृढ़ता की भी प्रशंसा की गई. पर साथ ही ये भी कहा कि वह सदन में आरोपों का जवाब दे सकते थे और अगर उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया होता तो गरिमा के साथ जाते.
12 अप्रैल को इंकलाब, सियासत और सहारा ने पीएमएल-एन के अध्यक्ष शहबाज शरीफ के 174 मतों से निर्विरोध चुने जाने के बाद देर रात शपथ लेने की खबर पहले पन्ने पर चलाई.
सहारा ने अपनी रिपोर्ट में यह भी लिखा कि एक पाकिस्तान अपनी स्थापना के बाद से राजनीतिक अस्थिरता और सेना से जूझता रहा है. उसे अभी तक एक प्रधानमंत्री नहीं मिला है जिसने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया हो.
सियासत ने 12 अप्रैल को अपने संपादकीय में कहा था कि शहबाज शरीफ को अब गठबंधन बनाकर रखना होगा. पाकिस्तान की राजनीति पर एक नज़र डालने से यह स्पष्ट हो जाता है कि गठबंधन कभी भी बनाया या तोड़ा जा सकता है.
सहारा ने 13 अप्रैल को रिपोर्ट दी कि शहबाज शरीफ ने अपने भारतीय समकक्ष, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके सत्ता में आने पर बधाई देने के लिए धन्यवाद दिया और कहा कि वह भारत के साथ शांतिपूर्ण और सहयोगात्मक संबंध चाहते हैं. हालांकि, शरीफ ने यह भी कहा कि शांति तभी हो सकती है जब कश्मीर मुद्दे जैसे लंबित विवादों को सुलझा लिया जाए.
सहारा ने 14 अप्रैल को रिपोर्ट दी कि सत्तारूढ़ गठबंधन की नाजुक प्रकृति को देखते हुए शरीफ को अपने नए मंत्रिमंडल की घोषणा करने में कुछ समय लग सकता है. इसने द डॉन अखबार के हवाले से पीएमएल-एन और पीपीपी के सूत्रों का हवाला देते हुए कहा कि दोनों दलों का नेतृत्व मंत्रिमंडल में सहयोगी दलों को साथ रखकर, उन्हें उनकी पसंद का मंत्रालय देना चाहता है.
अखबार ने एक अन्य कॉलम में यह भी जानकारी दी कि पाकिस्तान की नई सरकार ने गृह मंत्रालय को निर्देश दिया कि पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और पूर्व वित्त मंत्री इशाक डार के पासपोर्ट को रिन्यू किया जाए. पीएमएल-एन अब इस बात पर चर्चा कर रही है कि नए पीएम के बड़े भाई नवाज शरीफ को इंग्लैंड से पाकिस्तान कैसे वापस लाया जाए.
यह भी पढ़ें: जनप्रतिनिधित्व कानून के पेंच में लंबे समय तक कैसे फंसे रहे कांग्रेस नेता हार्दिक पटेल
बढ़ती महंगाई और यूक्रेन
यूक्रेन में युद्ध की वजह से महंगाई और ईंधन की कीमतों में इजाफे से जुड़ी खबरें भी पहले पन्ने पर छाईं रहीं. 14 अप्रैल को अपनी खास स्टोरी ‘सिर्फ मुसलमान ही नहीं, सभी भारतीय बढ़ती महंगाई से परेशान हैं ‘ में सियासत ने लिखा, 2014 के बाद भारत में शुरू हुई मुद्रास्फीति हाल ही में नियंत्रण से बाहर हो गई.
इंकलाब ने रूस-यूक्रेन युद्ध को मुद्रास्फीति और ईंधन की कीमतों में वृद्धि से जोड़ते हुए 10 अप्रैल को लिखा कि यदि पुतिन और यूक्रेन में युद्ध नहीं होता तो विश्व अर्थव्यवस्था महामारी के प्रभाव से उबर गई होती. अखबार ने उसी दिन एक अन्य संपादकीय में युद्ध का विश्लेषण किया और लिखा कि वैक्यूम और क्लस्टर बमों का इस्तेमाल करने वाला रूस, यूक्रेन के लोगों द्वारा किए जा रहे जवाबी हमले के लिए तैयार नहीं था.
यह भी पढ़ें: ‘अब उन्हें पता चल रहा होगा कि कैसा लगता है’: अज़ान के दौरान वाराणसी में लाउडस्पीकर पर बजा हनुमान चालीसा
भारत-अमेरिका वार्ता
इसके अलावा अमेरिका और भारत के बीच 2+2 बैठक और अधिकारों के उल्लंघन को लेकर की गई टिप्पणी पहले पन्ने की सुर्खियों में रही.
11 अप्रैल को ‘सियासत ’ में पीएम मोदी और राष्ट्रपति जो बाइडन के बीच हुई वर्चुअल मुलाकात की खबरें छाई रही. 13 अप्रैल को ‘इंकलाब ’ ने उस खबर को छापा जिसमें विदेश मंत्री एस जयशंकर और केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की मौजूदगी में अमेरिकी विदेश मंत्री ने भारत में मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर टिप्पणी की थी.
अगले दिन इंकलाब ने खबर को आगे बढ़ाते हुए इस बारे में जयशंकर द्वारा दी गई प्रतिक्रिया को भी प्रमुखता से छापा, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत भी अमेरिका में अधिकारों के उल्लंघन को लेकर चिंतित है.
14 अप्रैल को ‘सहारा ’ ने अमेरिकी हिंद-प्रशांत कमान के लिए राजनाथ सिंह के हवाई दौरे को लेकर भी खबर प्रकाशित की थी.
(उर्दूस्कोप को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: अदालतों में खाली पदों को भरने और बुनियादी ढांचे में सुधार करने का प्रयास कर रहे हैं: CJI रमन्ना