नई दिल्ली : भारत ने कहा है कि प्रथम ‘ग्लोबल स्टॉकटेक’ परिणाम में कार्बन उत्सर्जन में 2020 से पहले के अंतर को पाटने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, समता के अभाव को एक व्यापक चिंता के रूप में शामिल किया जाना चाहिए और जलवायु परिवर्तन से निपटने को लेकर विकसित देशों में इच्छा के गंभीर अभाव को स्वीकार किया जाना चाहिए.
‘ग्लोबल स्टॉकटेक’ पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सामूहिक वैश्विक प्रगति के आकलन को लेकर संयुक्त राष्ट्र की द्विवार्षिक समीक्षा है. यह प्रक्रिया दुबई में ‘सीओपी28’ में पूरी होगी.
भारत ने ‘ग्लोबल स्टॉकटेक’ को लेकर अपनी अपेक्षाओं को रेखांकित करते हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन रूपरेखा सम्मेलन (यूएनएफसीसीसी) में एक अभिवेदन में जोर दिया कि परिणाम में विकसित देशों को अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारियों के अनुरूप उत्सर्जन कम करने और वित्त, प्रौद्योगिकी के विकास एवं हस्तांतरण तथा क्षमता निर्माण के लिए विकासशील देशों को समर्थन मुहैया कराने के वास्ते प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.
भारत ने कहा कि ‘ग्लोबल स्टॉकटेक’ परिणाम में गरीबी उन्मूलन, सतत विकास, आर्थिक विविधीकरण प्रयासों और विकसित एवं विकासशील देशों के बीच सामाजिक एवं आर्थिक विकास में अंतर को कम करने के संदर्भ में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर कार्रवाई को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.
उसने कहा कि ‘फर्स्ट ग्लोबल स्टॉकटेक’ परिणाम में ऐसा नहीं होना चाहिए कि ‘‘ऐतिहासिक जिम्मेदारी एवं 2020 से पहले के उत्सर्जन’’ की अनदेखी कर केवल भविष्य में इसे कम करने पर ध्यान केंद्रित किया जाए.
भारत ने कहा, ‘‘2020 से पहले का समय वह आधार है, जिस पर जलवायु परिवर्तन से निपटने की कार्रवाई की बुनियाद रखी जानी चाहिए और दीर्घकाल में इस कार्रवाई को आगे बढ़ाने तथा पेरिस समझौते की प्रामाणिकता की रक्षा करने के लिए 2020 से पहले के अंतर को प्राथमिकता से पाटा जाना चाहिए.’’
उसने कहा, ‘‘यह बार-बार होने वाली प्रक्रिया है. वर्ष 2020 से पहले की अवधि में बढ़ी हुई कार्रवाई की प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए सम्मेलन के उद्देश्यों, सिद्धांतों और प्रावधानों, विशेष रूप से समता और सीबीडीआर-आरसी (आम लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियां एवं संबंधित क्षमताएं) के सिद्धांतों को पुन: पुष्ट करने की आवश्यकता है.’’
भारत ने कहा कि समता का सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के देशों के प्रयासों को इतिहास और वर्तमान में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में उनके योगदान तथा भविष्य में उनके द्वारा होने वाले संभावित उत्सर्जन को ध्यान में रखकर देखा जाए.
उसने कहा कि सीबीडीआर-आरसी सिद्धांत के तहत, जलवायु परिवर्तन से निपटना प्रत्येक देश की जिम्मेदारी है, लेकिन विकसित देशों के ऐतिहासिक और वर्तमान ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को देखते हुए उन्हें प्राथमिक जिम्मेदारियां निभानी चाहिए.
भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि वह विकासशील देशों के ‘‘प्रमुख उत्सर्जक’’, ‘‘जी20 भागीदार’’ और ‘‘अन्य विकासशील एवं उभरती अर्थव्यवस्थाओं’’ जैसे किसी भी वर्गीकरण का समर्थन नहीं करता, क्योंकि ये वर्गीकरण राष्ट्रीय परिस्थितियों को नजरअंदाज करते हैं.
भारत ने तर्क दिया कि ‘ग्लोबल स्टॉकटेक’ परिणाम में यूएनएफसीसीसी के ‘एनेक्स-1’ पक्षकारों में उर्त्जन कम करने की इच्छा की उल्लेखनीय कमी को पहचाना जाना चाहिए.
एनेक्स-1 में यूरोपीय संघ (ईयू) के देशों समेत औद्योगिक रूप से विकसित देश शामिल हैं.
भारत ने कहा कि पेरिस समझौता मानता है कि ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार विकसित देशों को अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारी के अनुरूप विकासशील देशों का समर्थन करना चाहिए.
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