नई दिल्ली: कोविड-19 महामारी ने दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं को तबाह कर दिया और सभी क्षेत्रों में लोगों के रोजगार छीन लिए. लेकिन एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि इस दौरान देश के कुछ अमीर तरीन लोगों ने दुनिया भर के अपने समकक्षियों की तरह,अपनी दौलत में भारी इज़ाफा किया. लेकिन इस इज़ाफे और उनके परोपकार में तालमेल नहीं रहा.
अगर वो अपने चीनी समकक्षों के जितने उदार होते तो भारत के बेहद अमीर लोगों ने वित्त वर्ष 2021 में 1 लाख करोड़ रुपए दान में दिया होता- इसकी अपेक्षा उन्होंने अनुमान के मुताबिक़ क़रीब 12,000 करोड़ रुपए ही दिए. ये ख़ुलासा ‘इंडिया परोपकार सूची 2022’ में किया गया है, जिसे सोमवार को ग्लोबल कंसल्टेंसी फर्म बेन एंड कंपनी, और सामरिक परोपकार फाउण्डेशन डासरा ने प्रकाशित किया.
ये विश्लेषण मोटे तौर पर हुरुन डोनर डेटाबेस के पास उपलब्ध आंकड़ों पर आधारित है. 1998 में स्थापित हुरुन एक लंदन स्थित कंपनी है, जो दुनिया के सबसे धनी व्यक्तियों के मूल्यांकन के लिए जानी जाती है.
भारत के सबसे धनी लोग बहुत सारे सामाजिक अभियानों के लिए पैसा देते हैं, जैसे शिक्षा, स्वास्थ देखभाल, ग़रीबी उन्मूलन आदि, लेकिन रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी के दौरान, उनकी कुल दौलत के मुक़ाबले उनके परोपकार के अनुपात में कमी देखी गई.
2019 की रिपोर्ट में, बेहद अमीरों यानी अल्ट्रा हाई नेट वर्थ इंडिवीजुअल्स (यूएचएनआईज़)- जिनकी कुल नेट वर्थ 226 करोड़ रुपए से अधिक हो- की चर्चा करते हुए कहा गया कि शीर्ष ब्रैकेट ने, जिनकी नेट वर्थ 50,000 करोड़ रुपए से अधिक थी, अपनी दौलत का 1.4 प्रतिशत दान में दिया. रिपोर्ट में कहा गया कि 2021 तक ये घटकर 0.1 प्रतिशत पर आ गया. भारत में 23 लोग इस शीर्ष श्रेणी में आते हैं.
रिपोर्ट में आगे कहा गया कि दूसरे यूएचएनआईज़ लोगों में- जो 10,000-50,000 करोड़ और 1,000-10,000 करोड़ रुपए की श्रेणी में हैं- उनकी कुल दौलत में परोपकार का प्रतिशत, 2019 के आंकड़े से गिरकर क़रीब आधे, 0.1 प्रतिशत पर आ गया.
निर्पेक्ष संख्या के मामले में, 2019-20 के लिए कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन रिपोर्ट में कहा गया है कि यूएनएचआईज़ और एचएनआई- जिनकी नेट वर्थ 5 करोड़ रुपए से अधिक है- की ओर से दी गई रक़म 2020-21 में बढ़कर 35,000 करोड़ रुपए हो गई, जो 2014-15 में 32,000 करोड़ रुपए थी.
लेकिन, धनी भारतीयों के इन वर्गों के भीतर अलग अलग प्रवृत्तियां हैं. 2020-21 में यूएचएनआईज़ के दान घटकर 12,000 करोड़ रुपए रह गए, जो 2014-15 में 16,000 करोड़ रुपए थे, लेकिन इसी अवधि में एचएनआईज़ का दान, 16,000 करोड़ रुपए से बढ़कर 23,000 करोड़ हो गया.
रिपोर्ट के अनुसार, इस अवधि के दौरान धनी व्यक्तियों की संख्या, और उनकी दैलत में बेतहाशा वृद्धि देखी गई, जिससे समझा जा सकता है कि दान का अनुपात छोटा क्यों हो गया.
रिपोर्ट में अमेरिका में भी इस कमी की ओर इशारा किया गया. 2019 में 50,000 करोड़ रुपए से अधिक के ब्रैकेट ने, अपनी दौलत का 3.52 प्रतिशत दान किया, जो 2021 में घटकर 2.52 प्रतिशत रह गया.
धनी लोगों की संख्या और दौलत में वृद्धि
रिपोर्ट में कहा गया है कि 1,000 करोड़ रुपए से अधिक की दौलत वाले लोगों की संख्या, 2020-21 में बढ़कर 1,000 से अधिक हो गई, जो 2019-20 में 828 थी. इसके अलावा, इन व्यक्तियों की कुल दौलत भी, 50 प्रतिशत बढ़कर 90 लाख करोड़ पहुंच गई, जो पहले 60 लाख करोड़ थी.
50,000 करोड़ रुपए से अधिक की नेट वर्थ वाले व्यक्तियों का दान, उनकी दौलत के अनुपात में कम हो गया होगा, चूंकि अकेले इन व्यक्तियों की दौलत में 80 प्रतिशत का इज़ाफा देखा गया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि इसकी तुलना में, 10,000-50,000 करोड़ रुपए श्रेणी में आने वाले लोगों की दौलत में 45 प्रतिशत वृद्धि हुई, जबकि 1,000-10,0000 करोड़ रुपए ब्रैकेट के व्यक्तियों में, ये वृद्धि 30 प्रतिशत थी.
भारत में कम परोपकार
फोर्ब्स की 2021 की सूची के अनुसार, भारत में अरबपतियों की संख्या 140 है- जो दुनिया में अमेरिका (724) और चीन (626) के बाद तीसरी सबसे अधिक है. लेकिन, रिपोर्ट में कहा गया, कि अमेरिका और चीन में बेहद अमीर लोगों की दौलत में दान का अनुपात, भारत के ऐसे अमीरों से काफी अधिक है.
भारत में 50,000 करोड़ रुपए से अधिक की हैसियत वाले व्यक्तियों का औसत परोपकारी योगदान 0.09 प्रतिशत था, जबकि चीन में ये अनुरूपी आंकड़ा 1.48 प्रतिशत, और अमेरिका में 2.52 प्रतिशत था.
10,000-50,000 करोड़ रुपए के ब्रैकेट में, भारत में दान का औसत हिस्सा केवल 0.08 प्रतिशत था, जबकि चीन में ये 0.54 प्रतिशत और अमेरिका में 1.14 प्रतिशत था.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर धनी भारतीय लोगों ने, अपने चीनी समकक्षों के बराबर योगदान किया होता, तो उन्होंने 90,000 करोड़-100,000 करोड़ रुपए दान किए होते. धनी अमेरिकी लोगों के परोपकार स्तर की बराबरी का मतलब, 1.6 लाख करोड़-1.70 लाख करोड़ का दान होता.
लेकिन, रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि बहुत अमीर भारतीयों (यूएचएनआई) ने केवल 12,000 करोड़ रुपए के क़रीब दान किए. (इसमें उन लोगों की दानराशि को शामिल नहीं किया गया है, जिनकी दौलत दूसरे देशों से तुलना करते समय 1,000 करोड़ से कम थी).
रिपोर्ट में कहा गया है कि इसका मतलब ये है, कि सामाजिक क्षेत्र के लिए व्यक्तिगत दान में अभी बढ़ने की बहुत संभावना है.
रिपोर्ट में फाउण्डेशन फॉर एक्सीलरेटिंग फिलैंथ्रोपी (एआईपी) की फिलैंथ्रॉपी एडवाइज़री डायरेक्टर, राधिका जैन का ये कहते हुए हवाला दिया गया है, ‘अगले एक दशक में हमें पारिवारिक परोपकार में अपार संभावनाएं नज़र आती हैं, उन्हें फलीभूत करने के लिए ज़्यादा पारदर्शिता और सहयोग, दान के विश्वसनीय अवसरों के बारे में सबूतों पर आधारित जानकारी, और नए दानकर्त्ताओं को प्रेरित करने के लिए, दान के असर की कहानियों की ज़रूरत होगी’.
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