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Friday, 4 October, 2024
होमदेश‘कठोर’ धारा 66ए रद्द होने के 7 साल बाद भारत ने UN कान्फ्रेंस में उसी तरह के कदम उठाने का प्रस्ताव रखा

‘कठोर’ धारा 66ए रद्द होने के 7 साल बाद भारत ने UN कान्फ्रेंस में उसी तरह के कदम उठाने का प्रस्ताव रखा

संयुक्त राष्ट्र साइबर अपराध संधि पर बातचीत के लिए सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रस्ताव में धारा 66ए के जैसे कदम उठाने पर जोर देने और अन्य बातों के अलावा ‘घोर आक्रामक’ संदेशों को साझा करना अपराध की श्रेणी में लाने का आह्वान किया गया.

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नई दिल्ली: वियना में साइबर क्राइम पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने ऐसे कदम उठाने का प्रस्ताव रखा जो एक तरह से भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की विवादास्पद धारा 66ए के समान हैं, जिसे 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया था.

संयुक्त राष्ट्र एडहॉक कमेटी (एएचसी) का दूसरा सत्र ‘आपराधिक उद्देश्यों के लिए सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से निपटने’ पर एक प्रस्तावित संयुक्त राष्ट्र संधि पर बातचीत करने के लिए बुलाया गया है.

भारतीय प्रतिनिधिमंडल—जिसमें गृह, विदेश और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालयों के अधिकारी शामिल थे—ने 12 मई को अपना प्रस्ताव भेजा था और फिर बुधवार को इसे वियना बैठक में पेश किया गया.

हालांकि, प्रस्ताव में कुछ प्वाइंट शब्दश: आईटी अधिनियम की धारा 66ए से लिए गए लगते हैं, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था क्योंकि ये भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत मिले गारंटीशुदा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करते थे.

भारतीय प्रतिनिधिमंडल के 13 सेक्शन वाले वियना प्रस्ताव में सबकैटेगरी 4(डी)—जो ‘संचार सेवाओं के माध्यम से आपत्तिजनक संदेश’ पर केंद्रित है—धारा 66ए के तहत पाबंदियों की हू-ब-हू प्रति नजर आती है.

इसमें सिफारिश की गई है कि किसी भी स्टेट को ‘घोर आक्रामक’ या ‘खतरनाक चरित्र’ वाली मानी जा रही जानकारी को अपराध की श्रेणी में लाने के लिए ‘विधायी कदम’ उठाने चाहिए.

वही ‘झूठी मानी जाने वाली जानकारियां’ भेजे जाने के मामले में भी, जिनका उद्देश्य ‘झुंझलाहट, असुविधा बढ़ाना, खतरा पैदा करना, किसी तरह की बाधा डालना, अपमान या चोट पहुंचाना, आपराधिक धमकी, या दुश्मनी, घृणा या दुर्भावना हो…’ इसी तरह के कदम उठाने का प्रस्ताव किया गया है.

एएचसी सेशन में भारत की तरफ से अंतत: यही कहा गया कि कोई भी इलेक्ट्रॉनिक संचार यदि ‘इसे पाने वाले या रिसीवर को परेशान करने या असुविधा में डालने या धोखा देने या गुमराह करने के उद्देश्य से भेजा गया हो’ तो इसे कानूनन दंडनीय अपराध होना चाहिए.


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इस प्रस्ताव ने डिजिटल एक्टिविस्ट को नाराज कर दिया है.

डिजिटल एक्टिविस्ट और सेव द इंटरनेट के सह-संस्थापक निखिल पाहवा ने दिप्रिंट से कहा, ‘इसमें ‘बेहद आक्रामक’ जैसे शब्द अस्पष्ट हैं और सरकार को मनमाने ढंग से व्याख्या करने और इसका दुरुपयोग करने की शक्ति देते हैं. यूपीए सरकार ने ऐसा तब किया जब उसके पास 66ए की ताकत थी.’

दिप्रिंट ने ईमेल और फोन कॉल के जरिये प्रस्ताव में शामिल सभी मंत्रालयों से संपर्क की कोशिश की, लेकिन यह रिपोर्ट प्रकाशित किए जाने तक कोई जवाब नहीं मिला. यदि कोई प्रतिक्रिया आती है, तो इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

गौरतलब है कि अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में विभिन्न नेताओं की आलोचना करने वाले कई कलाकारों, पत्रकारों और छात्रों को धारा 66ए के कारण कानून के उल्लंघन का दोषी करार दिया गया था.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की तरफ से खारिज किए जाने के बावजूद कानून तत्काल खत्म नहीं हो पाया. जैसा पिछले साल एक रिपोर्ट में सामने आया था कि खत्म होने के बावजूद इस धारा को न केवल पुलिस थानों में लागू किया गया, बल्कि देशभर की निचली अदालतों के कई मामलों में भी लागू किया गया—जिस तथ्य को सुप्रीम कोर्ट ने काफी चौंकाने वाला बताया.

बाद में केंद्र सरकार की तरफ से राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एक एडवाइजरी जारी कर 2015 के आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करने को कहा गया, जिसमें इस संबंध में पूर्व में जारी निर्देशों का भी हवाला दिया गया था.

‘धारा 66ए को जिंदा रखने के प्रयास’

सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम की धारा 66ए के तीन उप-खंडों और ‘संचार सेवा के माध्यम से आपत्तिजनक संदेशों’ पर यूएन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल के प्रस्तावों के बीच वस्तुतः कोई अंतर नहीं है.

यदि कोई अंतर है, तो बस यही है कि 66ए के तहत किसी के दोषी पाए जाने पर ऐसे अपराधों के लिए विशिष्ट दंड निर्धारित रहे हैं.

2008 में तत्कालीन यूपीए सरकार की तरफ से पेश इस कानून के तहत प्रावधान था कि ‘बेहद आक्रामक’, ‘खतरनाक’ और गलत जानकारी भेजने वाले किसी भी व्यक्ति पर मुकदमा चलाया जा सकता है. ये उल्लंघन ‘एक अवधि तक कारावास के साथ दंडनीय अपराध थे जिसमें तीन साल तक सजा और जुर्माने दोनों हो सकते थे.’

2015 में सुप्रीम कोर्ट ने श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ मामले में अपने ऐतिहासिक फैसले में इस कानून को रद्द कर दिया. अदालत ने कहा कि इस्तेमाल की गई शर्तें ‘बेसिर-पैर की और असंवैधानिक रूप से अस्पष्ट’ थीं. फैसले के दौरान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुछ तर्कों का भी हवाला दिया गया.

यह मामला शीर्ष कोर्ट में तब आया जब 21 वर्षीय विधि छात्रा श्रेया सिंघल ने शिवसेना नेता बाल ठाकरे के अंतिम संस्कार के लिए मुंबई को बंद रखने को लेकर फेसबुक पर टिप्पणी करने वाली दो लड़कियों को ठाणे पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद एक याचिका दायर की.

हालांकि, इसके बाद भी यह कानून पूरी तरह खत्म नहीं हुआ.

निखिल पाहवा के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट द्वारा धारा 66ए रद्द कर दिए जाने के बावजूद सरकार इसे जिंदा करने के प्रयास जारी रखे है.

उन्होंने कहा, ‘हमें भूल जाने की आदत है जबकि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से आईटी अधिनियम की धारा 66ए रद्द किए जाने के बाद भी 2015 में मंत्रालयों के अनाम सूत्रों के हवाले से आई खबरों में कहा गया था कि सरकार इस कानून को एक अलग रूप में वापस लाना चाहती है.’

इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (आईएफएफ) और सिविक डाटा लैब ने ‘जॉम्बी ट्रैकर’ नामक एक वेबसाइट लॉन्च की थी, जिसमें वो मामले सूचीबद्ध किए गए जिनमें धारा 66ए खत्म होने के बावजूद इसे लागू किया गया.

पाहवा ने आरोप लगाया, ‘यह इरादा (कानून को वापस लाने का) हमेशा से रहा है. ऐसा नहीं है कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने धारा 66ए को रद्द कर दिया इसलिए सरकार फिर कोई कानून पारित करके इस प्रावधान को किसी अलग शक्ल और तरीके से वापस नहीं ला सकती. यह प्रस्ताव उसी मंशा का संकेत है.’

साइबर अपराध से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन

एएचसी की दूसरी बैठक संयुक्त राष्ट्र की तरफ से आयोजित की गई थी, और 30 मई से 10 जून तक चलने वाली इस बैठक के लिए 29 देशों ने अपने प्रतिनिधियों को वियना भेजा. यह सारी कवायद साइबर अपराधों के संबंधों में एक नई संधि का प्रारूप तय करने और इसे अंतरराष्ट्रीय कानूनों के साथ नियंत्रित और बाध्यकारी बनाने के प्रयासों का हिस्सा है.

पहली बैठक फरवरी में हुई थी जिसमें सदस्य देशों के बीच साइबर अपराध का मुकाबला करने के उपायों पर अपने-अपने मसौदे देने पर सहमति बनी थी.

सदस्य राष्ट्रों ने भ्रामक सूचना, डेटा प्राइवेसी और चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी जैसे मुद्दों को रेखांकित किया जिसे लेकर पाबंदियों को दरकिनार कर देशों के बीच डेटा-शेयरिंग पर बातचीत शुरू हुई.

भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने अपने प्रस्ताव में दावा किया कि हाल के वर्षों में, ‘सोशल मीडिया और मोबाइल इकोसिस्टम सार्वजनिक संचार माध्यमों के रूप में तेजी से उभरा है. हाल में दुनियाभर में अपराधियों और राष्ट्र-विरोधी तत्वों ने साइबर अपराध के लिए सोशल मीडिया के उपयोग को एक प्रमुख हथियार भी बनाया है.

विभिन्न डिवाइस के माध्यम से ‘डेटा सुरक्षा में सेंध’ से लेकर ‘आपत्तिजनक संदेश भेजे जाने’ तक, भारतीय प्रस्ताव में साइबर अपराध पर नकेल कसने के लिए व्यापक अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरूरत को रेखांकित किया गया है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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