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Thursday, 2 May, 2024
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डिज्नी-स्टार शो लीक किये जाने को लेकर FIR, मनोरंजन की दुनिया को लूटने वाले ‘पाइरेट्स’ पर फिर शुरू चर्चा

डिज़नी स्टार द्वारा पिछले हफ्ते बेंगलुरु में दायर की गई प्राथमिकी में 4 ऑनलाइन प्लेटफॉर्मस – तमिलरॉकर्स, तमिलएमवी, तमिलब्लास्टर्स और पिकाशो – पर अवैध रूप से इसका कंटेंट रिलीज करने का आरोप लगाया गया है.

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नई दिल्ली: डिज़्नी+हॉटस्टार की असली सीरीज़ और स्टार प्लस, स्टार गोल्ड, स्टार वर्ल्ड और स्टार स्पोर्ट्स टेलीविज़न चैनलों पर दिखाए जाने वाले इसके शो और फॉक्स स्टार स्टूडियो की नई फ़िल्मों को इंटरनेट पर अवैध रूप से कैसे शेयर किया गया?

ठीक उसी तरह जैसे नेटफ्लिक्स के ‘स्ट्रेंजर थिंग्स’ नाम के शो का सीजन 4 ऑनलाइन लीक हुआ था, या फिर कंगना रनौत-अभिनीत ‘धाकड़’  फिल्म थिएटर में रिलीज होने से कुछ दिन पहले ही ऑनलाइन उपलब्ध करवा दी गई थी.

स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म डिज़नी स्टार द्वारा उसके कंटेंट (विषय वास्तु) की कथित चोरी के खिलाफ दायर एक एफआईआर ने फिर से उस समस्या को सामने ला दिया है, जिसके बारे में मनोरंजन उद्योग के अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि यह लंबे समय से प्रोडक्शन हाउसेस (शो बनाने वाली कंपनियां) और ओटीटी प्लेटफार्मों को परेशान कर रहा है.

उनका कहना है कि कानूनी कार्रवाई और पायरेसी के खिलाफ जन जागरूकता पैदा करने के तमाम प्रयास भी इस मामले में मदद करने में विफल रहे हैं.

डिज़नी हॉटस्टार द्वारा पिछले हफ्ते बेंगलुरू में दर्ज की गई एफआईआर, जिसे दिप्रिंट ने भी देखा है, उसके अनुसार इस ओटीटी प्लेटफॉर्म ने चार ऑनलाइन प्लेटफार्मों – तमिलरॉकर्स, तमिलएमवी, तमिलब्लास्टर्स और पिकाशो पर अवैध रूप से इसके स्वामित्व वाले कंटेंट को रिलीज (जारी) करने का आरोप लगाया है.

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इस एफआईआर में आरोप लगाया गया है, ‘हम इन टोरेंट वेबसाइटों से पीड़ित हैं जो अवैध रूप से हमारे प्लेटफॉर्म से नए कंटेंट को रिकॉर्ड करे रहे हैं और इसे ऑनलाइन रिलीज कर रहे हैं. तमिलरॉकर्स, तमिलएमवी, तमिलब्लास्टर्स और पिकाशो ऐप काफी सक्रिय हैं और वे ‘हॉटस्टार’ और ‘स्टार इंडिया’ जैसे प्लेटफॉर्म से कंटेंट चुरा रहे हैं. इन्होने कई सारे विज्ञापन भी हमारे पलटफोर्म से बिना अनुमति ले लिए है.

प्राथमिकी में लागू किए गए कानूनी प्रावधान इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट  (कंप्यूटर-रिलेटेड ओफ्फेंसेस)- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (कंप्यूटर से संबंधित अपराध) – की धारा 66 से सम्बंधित हैं. इसके अलावा कॉपीराइट अधिनियम की  धारा 63 (कॉपीराइट के उल्लंघन का अपराध या कॉपीराइट अधिनियम द्वारा प्रदत्त अन्य अधिकारों का उल्लंघन),  धारा 65 (नकली प्रतियां बनाने के उद्देश्य से प्लेटों का कब्ज़ा)  तथा आईपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी और किसी भी संपत्ति की बेईमानी के साथ डिलीवरी को बढ़ावा देना) भी लगाई गई हैं.

दिप्रिंट ने इस बारे में टिप्पणी के लिए डिज्नी स्टार के जनसंपर्क प्रतिनिधि से फोन पर संपर्क किया, लेकिन इस खबर के प्रकाशित होने तक उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी.

इस बीच, बेंगलुरु पुलिस साइबर क्राइम सेल के स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ या थाना प्रभारी) संतोष राम ने कहा, ‘हां, डिज्नी स्टार ने हमसे संपर्क किया है और इस बारे में प्राथमिकी दर्ज की है.’

जिस तरह प्रोडक्शन हाउस और सिनेमा हॉल पायरेसी के कारण वर्षों से अपनी आमदनी खोने का जोखिम उठाते रहे हैं, उसी तरह ओटीटी प्लेटफॉर्म के मामले में भी पायरेसी ग्राहकों और विज्ञापनदाताओं की हानि की वजह बन रही है और इस तरह उनकी कमाई को नुकसान पहुंचा रही है.

लंदन स्थित डिजिटल टीवी रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को पायरेसी के कारण साल 2022 तक 3.08 बिलियन डॉलर की अनुमानित राजस्व हानि (रेवेन्यू लॉस) का जोखिम है, वहीँ दुनिया भर में पायरेसी से होने वाली राजस्व हानि 52 बिलियन डॉलर आंकी गई थी.

इस बीच, कंटेंट डिलीवरी नेटवर्क अकामाई और टेक कंपनी मूसो (जो एंटी-पायरेसी सोलूशन्स उपलब्ध करवाती है) द्वारा प्रकाशित एक संयुक्त रिपोर्ट से पता चलता है कि पायरेटेड कंटेंट की वैश्विक मांग जनवरी 2021 और सितंबर 2021 के बीच बढ़ी है.

इसमें कहा गया है कि भारत में पाइरेसी वेबसाइटों पर 6.5 बिलियन विज़िट दर्ज की गईं, जो अमेरिका (13.5 बिलियन) और रूस (7.2 बिलियन) के बाद तीसरा सबसे अधिक है.

क्या हैं टोरेंट वेबसाइट?

पाइरेसी का अर्थ संगीत, फिल्म, शो, किताबें आदि जैसे कॉपीराइट वाली सामग्री को अवैध रूप से पुन: प्रस्तुत या प्रसारित करने के कृत्य से है.

जब ऑडियो-विज़ुअल इंटरटेनमेंट कंटेंट (दृश्य-श्रव्य मनोरंजन सामग्री) की बात आती है, तो पायरेटेड कंटेंट उपलब्ध कराने के लिए टोरेंट वेबसाइट एक आम जरिया है.

इन वेबसाइटों को अपना यह नाम टोरेंटिंग की प्रक्रिया से मिलता है  जो एक तरह की ऑनलाइन पीयर-टू-पीयर शेयरिंग होती है. यहां, कोई भी यूजर सेंट्रल सर्वर के बजाय ऑनलाइन नेटवर्क के माध्यम से फ़ाइलें डाउनलोड या अपलोड कर सकता है.

इस कृत्य में शामिल प्रत्येक पीयर (सहकर्मी) एक-दूसरे से फ़ाइलें डाउनलोड या अपलोड कर रहा होता है. ऐसा करने के लिए, सबसे पहले टोरेंटिंग को सक्षम बनाने वाले सॉफ्टवेयर, जो ऑनलाइन मुफ्त रूप से उपलब्ध है, को डाउनलोड करना होता है.

टोरेंट वेबसाइटें यूजर्स को अन्य प्लेटफार्मों द्वारा कॉपीराइट की गई फ़ाइलों को भी साझा करने की अनुमति देती है, क्योंकि यह एक उपकरण (डिवाइस) से दूसरे उपकरण पर जा रही होती है. इसके तहत पीअर्स उनके बीच फ़ाइलों को एक डिवाइस से दूसरे डिवाइस में स्थानांतरित करते हैं, जिससे इसके स्रोत का पता लगाना मुश्किल हो जाता है.

इन कॉपीराइट वाली फ़ाइलों में मूवी, सीरीज़, गेम और संगीत सभी शामिल हो सकते हैं. लेकिन कॉपीराइट के मालिक की अनुमति के बिना किये जाने की वजह से यह सारी प्रक्रिया अवैध हो जाती है और इन कंटेंट को बनाने वालों को नुकसान पहुंचाती है.

पिछले कुछ वर्षों में हुए तकनीकी सुधारों ने पायरेसी में शामिल लोगों की मदद ही की है.

पहले जिस फाइल को डाउनलोड करने में एक घंटा लगता है, अब एक अच्छे ब्रॉडबैंड कनेक्शन के साथ उसमें कुछ ही मिनट लगते हैं.  इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (आईएसपी) से फाइलों के स्रोत छिपाने के लिए लोगों ने टोरेंट वेबसाइटों से कंटेंट डाउनलोड करने के लिए वीपीएन सेवाओं या वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क का उपयोग करना शुरू कर दिया है. अब ऐसे ऐप्स भी उपलब्ध हैं जो यूजर्स को अपने फोन पर अवैध रूप से कंटेंट को डाउनलोड या स्ट्रीम करने की अनुमति देते हैं.

उपयोगकर्ताओं ने उन डोमेन के माध्यम से फिल्मों या सीरीज को ऑनलाइन स्ट्रीम करना भी शुरू कर दिया है, जो अक्सर किसी को पता नहीं लगने देने के लिए शिफ्ट जगह बदलते रहते हैं. भारत में इसका एक सामान्य उदाहरण ‘एफ़मूवीज’ है जो एक ऐसा प्लेटफॉर्म जहां कोई भी व्यक्ति मुफ्त में फिल्में स्ट्रीम कर सकता है.


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 पहली बार नहीं हो रह है ये

उद्योग जगत के अग्रणी लोगों  अनुसार, यह पहली बार नहीं है जब तमिलरॉकर्स  – जिसके बारे में कहा जाता है कि यह पायरेटेड सामग्री के लिए भारतीयों द्वारा देखी जाने वाली सबसे आम टोरेंट साइटों में से एक है – जैसी टोरेंट वेबसाइटों के खिलाफ क़ानूनी शिकायत दर्ज की गई है.

हालांकि. इसे तमिलरॉकर्स के नाम से जाना जाता है – क्योंकि इसने चेन्नई से अपना संचालन शुरू किया और सूत्रों के अनुसार अन्य स्थानों के साथ-साथ इसने अभी भी वहां से काम करना जारी रखा हुआ है  – मगर यह साइट कई सारी भाषाओं में कंटेंट उपलब्ध करवाती है.

इसी सोमवार, को तमिलरॉकर्स ने अपने प्लेटफॉर्म पर स्ट्रेंजर थिंग्स का बहुप्रतीक्षित सीजन 4 रिलीज कर दिया. इस ओटीटी प्लेटफॉर्म पर पहले से ही अमेरिका में पायरेसी की समस्या से सम्बंधित मुकदमे लंबित हैं.

साल 2019 में, तमिलरॉकर्स के तीन सदस्यों को इस प्लेटफार्म पर कैमरा-क्वालिटी (अच्छी गुणवत्ता) वाले प्रिंट के साथ नई फिल्में मुफ्त में रिलीज करने के बाद गिरफ्तार कर लिया गया था. उसके एक साल पहले तमिलरॉकर्स के संदिग्ध एडमिन को केरल पुलिस ने गिरफ्तार किया था. ये मामले अभी भी अदालत में विचाराधीन हैं, जबकि इसके आरोपी जमानत पर बाहर हैं.

फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया के महासचिव रवि कोट्टारकरा ने दिप्रिंट को बताया, ‘तमिलरोकर्स के साथ लड़ाई लम्बे समय से चल रही है. वे अपने तौर-तरीकों में बहुत चतुर रहे हैं और मुख्य रूप से मलेशिया और दुबई जैसी जगहों से काम करते हैं. यह पहली बार नहीं है जब किसी कंटेंट को इतनी बेशर्मी के साथ पायरेटेड किया गया है. उन्होंने तो कई सारे कानूनी नोटिस मिलने के बावजूद फिल्मों को ऑनलाइन स्ट्रीम किया है.  बाकियों के मुकाबले इनका रैकेट (गैंग) सबसे बड़ा है.’

कोट्टारकरा ने आगे कहा: ‘ऐसा इसलिए भी है क्योंकि हमारे पास भारत में पाइरेट्स के खिलाफ सख्त कानून नहीं हैं और इसलिए उन्हें एक भरपूरा बाजार मिला हुआ है. कॉपीराइट अधिनियम किसी के दोषी  साबित होने पर सिर्फ 2 साल की जेल का प्रावधान करता है और यह करोड़ों के कंटेंट की चोरी करने के लिए पर्याप्त सजा नहीं है. ‘

पिकाशो, थॉप टीवी (जिसे पिछले साल एक पुलिस कार्रवाई में बंद कर दिया था), एफ़मूवीज आदि साइट्स पायरेटेड कंटेंट के लिए देश की अन्य लोकप्रिय साइट्स हैं. ‘सांग्स.पीके’ ने 2000 के दशक की शुरुआत से ही बॉलीवुड गानों को पायरेटेड किया है, जबकि ‘9एनीमे जैसी वेबसाइटें अवैध रूप से मुफ्त एनीमे कंटेंट उपलब्ध करवाती हैं.

जवाबी मुकाबला

पिछले साल, ज़ी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज ने सलमान खान-अभिनेत ‘राधे’ फिल्म के पायरेटेड संस्करणों को व्हाट्सएप और टेलीग्राम सहित अन्य मैसेजिंग प्लेटफॉर्म पर प्रसारित किए जाने के बाद एक शिकायत दर्ज की थी.

कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश और अन्य जगहों पर भी कई सारे निर्माताओं और निर्देशकों के संघों ने इन पाइरेट्स के खिलाफ लड़ाई छेड़ी हुई है.

जहां तमिल फिल्म प्रोड्यूसर्स काउंसिल में एक एंटी-पायरेसी सेल है, वहीँ प्रोड्यूसर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की एक टीम है जो इस बारे अभियान चलाती है और ‘पायरेसी साइट्स’ की पहचान करने के लिए काम करती है.

गुमनाम रहने की शर्त पर एक निर्माता ने कहा, ‘भारत में पायरेसी चार चरणों में होती है’.  इस निर्माता ने आगे बताया, ‘पहला तो एडिटिंग टेबल (फिल्म का संपादन करने वाली जगह) ही है. ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां लोगों से (फिल्म का) पहला प्रिंट लेने के लिए करोड़ों की रिश्वत दी गई है. दूसरा चरण वह है जब सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन की बात आती है, ऐसे भी कई मौके आए हैं जब लीक के स्रोत का पता यहां से चला था. तीसरा वितरण वाला चरण है, और चौथा वह समय है जब फिल्मों को स्क्रीनिंग के लिए (थिएटर्स में दिखाने के लिए) विदेश भेजा जाता है.’

उन्होंने कहा, ‘मलेशिया और यूएई जैसे देश, जहां बड़े पैमाने पर पायरेसी होती है, रिलीज की तारीख से कम-से=कम एक सप्ताह पहले नई फिल्मों की प्रतियां प्राप्त कर लेते हैं. यही वह समय है जब प्रवासी भारतीय इस काम का समन्वय करने में मदद करते हैं. मगर, भ्रष्टाचार के कारण ही ये प्रतियां गलत लोगों में बांट दी जाती हैं.’

हालांकि, अब पुलिस भी पायरेसी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के लिए सतर्क हो गई है – पिछले साल महाराष्ट्र पुलिस ने एक लोकप्रिय पायरेसी वेबसाइट के सीईओ को गिरफ्तार किया और इसकी सभी कार्यवाहियों को रोक दिया था.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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