नई दिल्ली: दिप्रिंट को सूत्रों से पता चला है कि भारत ने अभी तक, अफगानिस्तान को मानवीय सहायता भेजने की अपनी व्यापक योजना को अंतिम रूप नहीं दिया है. इसके बावजूद कि पाकिस्तान ने आश्वास्त किया है कि पश्चिमी पड़ोसी देश से होकर ज़मीनी रास्ते से सहायता भेजी जा सकती है.
सूत्रों ने बताया कि नई दिल्ली अपने विकल्प तलाश रही है कि क्या संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (यूएनडब्लूएफपी) के सहयोग से अफगानिस्तान को सहायता भेजी जा सकती है जिसमें मुख्य रूप से खाद्य सामग्री और ज़रूरी वस्तुएं शामिल हैं. भारत दवाएं भी भेजना चाहता है.
सूत्रों के मुताबिक़ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा है कि भारत वागा बॉर्डर की सड़क इस्तेमाल कर सकता है लेकिन नई दिल्ली को ये चिंता सता रही है कि ये सारी राहत सामग्री कहां पहुंचेगी? अफगानिस्तान के अंदर इसका वितरण कैसे होगा? और क्या ये युद्ध-ग्रस्त देश के सभी कोनों तक पहुंच पाएगी.
पिछले हफ्ते अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्तक़ी की अगुवाई में तालिबान प्रतिनिधि मंडल और ट्रोइका प्लस ग्रुप के साथ मुलाक़ात के बाद पाकिस्तान पीएम कार्यालय ने एक बयान में कहा था कि ‘प्रधान मंत्री ने कह दिया है कि वर्तमान संदर्भ में पाकिस्तान, अफगान भाइयों के अनुरोध पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेगा जिन्होंने आग्रह किया है कि भारत की ओर से पेश गेहूं को एक अपवाद के तौर पर मानवीय उद्देश्यों की ख़ातिर और तय तौर-तरीक़ों के मुताबिक़ पाकिस्तान से होकर जाने दिया जाए.’
In addition to the assistance already extended, the Prime Minister stated that Pakistan would provide essential food items including wheat and rice, emergency medical supplies, and shelter items for Afghanistan.
— Prime Minister's Office, Pakistan (@PakPMO) November 12, 2021
ट्रोइका प्लस ग्रुप में चीन (यू शियाओयॉन्ग), रूस (ज़मीर काबुलोव), और अमेरिका (टॉमस वेस्ट) में, अफगानिस्तान के विशेष नुमाइंदे शामिल थे.
सूत्रों ने बताया कि माल कैसे भेजा जाएगा? क्या वो भारतीय ट्रकों के ज़रिए जाएगा? और ये चीज़ें अफ़गान आबादी के किस हिस्से को मिलेंगी? इन सब बातों को अभी अंतिम रूप नहीं दिया गया है.
उन्होंने आगे कहा कि नई दिल्ली ने पहले ही आंकलन कर लिया है कि ईरानी के चाबहार पोर्ट के रास्ते सहायता भेजना ‘मुश्किल’ होगा. उसे पाकिस्तान के रास्ते भेजना सबसे आसान होगा लेकिन एक चिंता ये भी है कि ये क़दम उल्टा भी पड़ सकता है.
अफगानिस्तान के लिए यूएनडब्लूएफपी हेड प्रोग्राम सेसीलिया गार्ज़न ने कहा है कि सहायता भेजे जाने के बारे में भारत के साथ बातचीत चल रही है. पीटीआई के साथ एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि भारत और दूसरे देशों को, युद्ध-ग्रस्त देश में मुसीबत में फंसे परिवारों की सहायता के लिए ‘सब कुछ करना चाहिए’.
तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री मुत्तक़ी ने एक इंटरव्यू में बीबीसी उर्दू से कहा कि काबुल भारत समेत किसी भी मुल्क से कोई टकराव नहीं चाहता.
NSA वार्त्ता में सहायता वितरण पर ज़ोर
सूत्रों ने बताया कि अफगानिस्तान सहायता के वितरण को मध्य एशियाई देशों ने अफगानिस्तान पर क्षेत्रीय सुरक्षा वार्त्ता में भी एक प्रमुख चिंता के रूप में उठाया जो पिछले हफ्ते राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की अध्यक्षता में नई दिल्ली में आयोजित की गई.
बैठक के बाद जारी एक साझा बयान के अनुसार, सभी देशों ख़ासकर पड़ोसी और क्षेत्रीय देशों की ओर से भेजी गई मानवीय सहायता, ‘अफगानिस्तान को बेरोक, सीधे और सुनिश्चित तरीके से दी जानी चाहिए’.
एक सूत्र ने बताया कि एनएसए वार्त्ता के दौरान जिसमें रूस, ईरान, उज़्बेकिस्तान, ताज़िकिस्तान, कज़ाख़स्तान, तुर्कमेनिस्तान और किर्गिज़िस्तान के पांच मध्य एशियाई देश शरीक हुए, युद्ध-ग्रस्त देश के अंदर ‘सुरक्षा और स्थिरता’ को ध्यान में रखते हुए, सभी देशों ने ‘मात्रा और वितरण प्रणाली’ पर ज़ोर दिया.
अफगानिस्तान पर US के विशेष प्रतिनिधि से परामर्श
सूत्रों ने बताया कि अफगानिस्तान के लिए अमेरिकी विदेश विभाग के विशेष प्रतिनिधि और डिप्टी असिस्टेंट सेक्रेटरी टॉमस वेस्ट के आगामी दौरे के दौरान मानवीय सहायता का मुद्दा एजेंडे का एक प्रमुख बिंदु होगा.
वेस्ट, जो ज़लमय ख़लीलज़ाद की जगह अफगानिस्तान के लिए अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि बने हैं. इसी हफ्ते अपनी इस भूमिका में पहली बार भारत के दौरे पर आएंगे.
इससे पहले उन्होंने दक्षिण और मध्य एशिया के लिए राजनीतिक मामलों के अंडर सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट के स्पेशल असिस्टेंट के तौर पर काम किया है. जब उन्होंने 2008-10 में अमेरिका और भारत के बीच सामरिक भागीदारी बढ़ाने पर काम किया था.
पिछले हफ्ते इस्लामाबाद में ट्रोइका प्लस बैठक में शिरकत करते हुए उन्होंने कहा, ‘हम सब का ध्यान बिगड़ती हुई मानवीय स्थिति और फौरी ज़रूरतों को पूरा करने पर है. जिनमें यूएन के बढ़ते प्रयासों का समर्थन शामिल है. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को एक आवाज़ में बोलना चाहिए और एक उद्देश्य से काम करना चाहिए’.
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