(गौरव सैनी)
नयी दिल्ली, आठ मार्च (भाषा) विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की पूर्व मुख्य वैज्ञानिक और स्वास्थ्य मंत्रालय की सलाहकार सौम्या स्वामीनाथन का कहना है कि भारत में सटीक आंकड़ों के अभाव के कारण गर्मी से संबंधित मौतों की गिनती कम होने की ” संभावना अधिक” है, लेकिन सरकार अब स्वास्थ्य पर चरम स्थितियों के प्रभाव को कम करने के लिए निगरानी में सुधार कर रही है।
टेरी के विश्व सतत विकास शिखर सम्मेलन से इतर ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ एक साक्षात्कार में स्वामीनाथन ने बेहतर निगरानी, तैयारी और नीतिगत हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया, क्योंकि देश एक और भीषण गर्मी का सामना करने के लिए तैयार है।
यह पूछे जाने पर कि क्या भारत में गर्मी से संबंधित मौतों की कम गणना की जा रही है, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के पूर्व महानिदेशक ने कहा, ‘‘संभवतः ऐसा ही है। हमारे पास देश में होने वाली प्रत्येक मौत का सही रिकॉर्ड नहीं है। इसलिए हमें कुछ अनुमान लगाने होंगे। हमें जो घट रहा है, उसका (पता लगाने के लिए) कुछ गणना या पद्धति अपनानी होगी।’’
स्वामीनाथन ने कहा कि हाल ही में, कई वैज्ञानिक शोधपत्र प्रकाशित हुए हैं, जिनमें वास्तव में तथाकथित अतिरिक्त मौतों का पता लगाया गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘जब आप पूरे साल को देखेंगे तो पाएंगे कि हर महीने मौतों की संख्या सामान्य रूप से एक जैसी ही होगी। लेकिन फिर आप अचानक से संख्या में वृद्धि देखते हैं, जैसे कि कोविड के दौरान हमने (वृद्धि) देखी थी।’’
स्वामीनाथन ने कहा, ‘‘जैसे आप हर महीने मृत्यु दर स्थिर रखते हुए आगे बढ़ रहे हैं और फिर अचानक, मई-जून में, आप देखते हैं कि मृत्यु दर में वृद्धि हो गई है। तब आप यह मान सकते हैं कि अतिरिक्त मौतें संभवतः गर्मी के कारण हो रही हैं।’’
भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, पिछले साल ग्रीष्मकाल में भारत ने भीषण गर्मी का सामना किया, जिसमें गर्म हवा के 536 दिन दर्ज किए गए, जो 14 वर्षों में सबसे अधिक है।
आधिकारिक आंकड़ों से पता चला है कि भारत में सबसे गर्म और सबसे लंबे गर्म हवा के दिनों के दौरान लू लगने के 41,789 संदिग्ध मामले और गर्मी से संबंधित 143 मौतें दर्ज की गईं।
सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि लू से होने वाली मौतों की आधिकारिक संख्या कम है क्योंकि आमतौर पर 20 से 30 प्रतिशत लू के मामलों में मौत हो जाती है।
भाषा शफीक पवनेश
पवनेश
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