नयी दिल्ली, 26 जनवरी (भाषा) भारत और इंडोनेशिया ने दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती सैन्य ताकत के बीच प्रासंगिक अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप एक ‘‘पूर्ण और प्रभावी’’ आचार संहिता की वकालत की है।
यहां जारी एक संयुक्त बयान के अनुसार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो के बीच शनिवार को हुई व्यापक बातचीत में दक्षिण चीन सागर में हालात पर विस्तृत विचार विमर्श हुआ।
बैठक में दोनों पक्षों ने ‘भारत के सूचना संलयन केन्द्र-हिंद महासागर क्षेत्र’ (आईएफसी-आईओआर) में इंडोनेशिया से एक संपर्क अधिकारी तैनात करने पर सहमति व्यक्त की।
भारतीय नौसेना ने समान विचारधारा वाले देशों के साथ सहयोगात्मक ढांचे के तहत नौवहन यातायात के साथ-साथ क्षेत्र में अन्य महत्वपूर्ण घटनाक्रमों पर नजर रखने के लिए 2018 में गुरुग्राम में आईएफसी-आईओआर की स्थापना की थी।
मोदी और सुबियांतो ने सभी प्रकार के आतंकवाद की कड़ी निंदा करते हुए भारत-इंडोनेशिया आतंकवाद विरोधी सहयोग बढ़ाने का संकल्प लिया और बिना किसी ‘‘दोहरे मापदंड’’ के इस खतरे से निपटने के लिए ठोस वैश्विक प्रयास करने का आह्वान किया।
रविवार को जारी बयान में कहा गया कि दोनों नेताओं ने सभी देशों से संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों और उनके सहयोगियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने का आह्वान किया।
इंडोनेशियाई राष्ट्रपति चार दिवसीय यात्रा पर बृहस्पतिवार को यहां पहुंचे। सुबियांतो रविवार को कर्तव्य पथ पर आयोजित गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि थे।
बयान के अनुसार प्रधानमंत्री और सुबियांतो ने भारत-इंडोनेशिया आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने के तरीकों पर भी चर्चा की तथा द्विपक्षीय लेन-देन के लिए स्थानीय मुद्राओं के उपयोग के वास्ते पिछले वर्ष दोनों पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन के शीघ्र क्रियान्वयन के महत्व पर बल दिया।
मोदी और सुबियांतो का मानना है कि द्विपक्षीय लेन-देन के लिए स्थानीय मुद्राओं के उपयोग से व्यापार को और बढ़ावा मिलेगा तथा दोनों अर्थव्यवस्थाओं के बीच वित्तीय एकीकरण गहरा होगा।
संयुक्त बयान में समुद्री क्षेत्र की स्थिति का उल्लेख करते हुए कहा गया कि दोनों नेताओं ने क्षेत्र में शांति, स्थिरता, नौवहन और उड़ान की स्वतंत्रता को बनाए रखने और बढ़ावा देने के महत्व की पुष्टि की।
उन्होंने निर्बाध वैध समुद्री वाणिज्य और 1982 के यूएनसीएलओएस (समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन) सहित अंतरराष्ट्रीय कानून के सार्वभौमिक रूप से मान्यता प्राप्त सिद्धांतों के अनुसार विवादों के शांतिपूर्ण समाधान को बढ़ावा देने का भी आह्वान किया।
आसियान देश भी दक्षिण चीन सागर पर बाध्यकारी आचार संहिता (सीओसी) पर जोर दे रहे हैं। बीजिंग सीओसी का कड़ा विरोध कर रहा है।
चीन पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपनी संप्रभुता का दावा करता है। यह स्थान हाइड्रोकार्बन का एक बड़ा स्रोत है। वहीं वियतनाम, फिलीपीन और ब्रुनेई सहित कई आसियान सदस्य देश भी इस पर अपना दावा करते हैं।
भाषा शोभना नरेश
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