नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की ताज़ा प्रोडक्शन गैप रिपोर्ट से पता चला है कि फॉसिल फ्यूल का उत्पादन करने वाले 15 शीर्ष देश जिनमें भारत भी शामिल है वो पैरिस समझौते की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए तैयार नहीं हैं. जिनमें ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व औद्योगिक स्तरों से ऊपर और ‘2 डिग्री से नीचे’ रखने का लक्ष्य है.
गुरुवार को अधिकारिक रूप से जारी रिपोर्ट में कहा गया है, ‘हाल ही की राष्ट्रीय ऊर्जा योजनाओं और अनुमानों के हमारे आकलन के मुताबिक़, सरकारें योजना बना रही हैं कि 2030 में वो सब मिलकर विश्व स्तर पर जितने फॉसिल फ्यूल का उत्पादन करेंगी वो ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस रखने के अनुकूल उत्पादन से 110 प्रतिशत अधिक होगा और वॉर्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस रखने के अनुकूल उत्पादन से 45 प्रतिशत अधिक होगा’. उसमें आगे कहा गया, ‘2040 तक ये अधिकता बढ़कर, क्रमश: 190% और 89% हो जाएगी’.
रिपोर्ट में हर देश की तेल, कोयला और गैस उत्पादन योजनाओं और अनुमानों की इसके जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों से तुलना की गई है. रिपोर्ट में जिन 15 देशों का विश्लेषण किया गया है वो 2020 में दुनिया के 75 प्रतिशत फॉसिल फ्यूल उत्पादन के ज़िम्मेदार थे. ये हैं ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, कज़ाकिस्तान, मेक्सिको, नॉर्वे, रूस, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), युनाइटेड किंग्डम (यूके) और अमेरिका (यूएस).
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2015 में सीओपी 21 के पैरिस समझौते के तहत, ग्लोबल वॉर्मिंग को 2 डिग्री के पार होने से रोकने के लिए देशों ने ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने का संकल्प लिया था. इस साल उम्मीद की जा रही है कि देश अपनी जलवायु महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाएंगे और कुछ देशों ने 2050 तक कार्बन उत्सर्जन शून्य करने का लक्ष्य रखा है.
यूएनईपी रिपोर्ट में कहा गया है कि देशों ने फॉसिल फ्यूल उत्पादन को तेज़ी से घटाने की ज़रूरत न तो खुलकर मानी है और न ही उसके लिए तैयारी की है जिसकी इन लक्ष्यों के लिए ज़रूरत होगी.’
दुनिया पैरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल कर सके इसके लिए ‘कोयले, तेल, और गैस के विश्व उत्पादन (और उपभोग) को तुरंत घटाना होगा ताकि उन्हें वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के अनुकूल किया जा सके.’
भारत की योजनाएं बनाम लक्ष्य
15 देशों में भारत फॉसिल फ्यूल्स का सातवां सबसे बड़ा उत्पादक है. पैरिस समझौते के तहत, भारत ने संकल्प लिया हुआ है कि 2005 के मुक़ाबले 2030 तक वो अपनी अर्थव्यवस्था की ‘उत्सर्जन तीव्रता’ में 33%–35% कमी लाएगा.
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लेकिन, आत्मनिर्भर अभियान के तहत सरकार ने संकल्प लिया है कि वो भारत को कोयले का आत्मनिर्भर उत्पादक बनाएगी और कोयला निकालने के लिए उसने इनफ्रास्ट्रक्चर पर 500 अरब रुपए निवेश करने की एक योजना तैयार की.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘योजना में ऐसे उपायों की रूपरेखा तैयार की गई है जिसके तहत कोयले के उत्पादन को 2019 के मुक़ाबले 2024 तक क़रीब 60% (730 से 1,149 मिलियन टन) बढ़ा दिया जाएगा. इसके लिए भूमि अधिग्रहण की बाधाओं को हटाया जाएगा और खोज के लिए क्षमताएं तैयार की जाएंगी.’ इसमें आगे कहा गया है, ‘भारत का ये भी लक्ष्य है कि इसी अवधि में तेल और गैस का उत्पादन भी 40 प्रतिशत बढ़ाया जाएगा जिसके लिए खोज की लाइसेंसिंग, खोजों के तेज़ी से मुद्रीकरण और गैस मार्केटिंग सुधारों जैसे उपायों का सहारा लिया जाएगा’.
उत्पादन बढ़ाने के लिए भारत ने जो अन्य उपाय किए हैं उनमें फॉसिल फ्यूल्स के उत्पादन के लिए व्यय और 11.8 अरब रुपए की कर रियायतें शामिल हैं. उसमें ये अनुमान भी लगाया गया है कि 2020 में भारत में ‘कोयला उत्पादन के लिए कुल सब्सिडी 17.5 अरब रुपए (24.9 करोड़ डॉलर) थी, और तेल तथा गैस उत्पादन के लिए कुल सब्सीडी 29.3 अरब रुपए (41.7 करोड़ डॉलर) थी’.
रिपोर्ट में ये भी कहा गया है, कि भारत में फॉसिल फ्यूल्स के उत्पादन को घटाने या नवीकरणीय ऊर्जा की ओर उचित संक्रमण सुनिश्चित करने के लिए कोई संघीय नीति नहीं है.
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