नयी दिल्ली, 19 मार्च (भाषा) देश में लड़कों की तुलना में गोद ली जाने वाली लड़कियों की संख्या में वृद्धि हुई है क्योंकि अधिक संख्या में बच्चियों को छोड़ दिया जाता है तथा उन्हें पसंद किये जाने की कोई प्रवृत्ति नहीं है। यह बात बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने कही है।
उच्चतम न्यायालय में केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (सीएआरए) के निदेशक द्वारा हाल में दायर हलफनामे के अनुसार, 2021 और 2023 के बीच 11 राज्यों में 18 वर्ष की आयु तक, दोनों लिंग के कुल 15,536 बच्चों और युवाओं को हिंदू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनयम (एचएएमए) के तहत गोद लिया गया।
इस अवधि के दौरान माता-पिता ने 6,012 लड़कों की तुलना में 9,474 लड़कियों को गोद लिया, जो लड़कियों को गोद लेने की संख्या में वृद्धि का संकेत देता है।
सीएआरए केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की एक वैधानिक निकाय है और देश में बच्चों को गोद लेने के लिए नोडल एजेंसी के रूप में काम करता है। यह देश में और अंतर-देश में गोद लेने की निगरानी और विनियमन करता है।
विशेषज्ञों ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि ऐसी कोई प्रवृत्ति नहीं है लेकिन अधिक लड़कियों को छोड़ दिया जाता है, इसलिए गोद लेने के लिए उनकी उपलब्धता अधिक है।
सेंटर फॉर चाइल्ड राइट्स की सह-संस्थापक और कार्यकारी निदेशक भारती अली ने कहा कि अधिक लड़कियों की उपलब्धता के परिणामस्वरूप उन्हें अधिक गोद लिया जाता है।
उन्होंने कहा, ‘यह (वृद्धि) इसलिए हो सकती है क्योंकि अधिक लड़कियां (गोद लेने के लिए) उपलब्ध हैं, अधिक बेटियों को छोड़ दिया जाता है।’
बाल अधिकार कार्यकर्ता एनाक्षी गांगुली ने अली के विचारों से सहमति व्यक्त की और कहा, ‘ऐसा इसलिए है क्योंकि अधिक संख्या में लड़कियों को छोड़ दिया जाता है और इसलिए, अधिक (गोद लेने के लिए) उपलब्ध हैं।’
सीएआरए ने अपने हलफनामे में कहा कि एक पहचान अभियान के दौरान राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) में अब तक कुल 20,673 बच्चों (7-11 वर्ष और 12-18 वर्ष के आयु वर्ग के तहत) की पहचान की गई है।
दस राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों – अरुणाचल प्रदेश, बिहार, जम्मू कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, केरल, लद्दाख, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और मणिपुर – ने इस अवधि के दौरान हुए कुल गोद लेने के आंकड़े उपलब्ध नहीं कराए हैं।
पंजाब में, एचएएमए के तहत कुल 7,496 गोद लेने के मामले दर्ज किए गए। इनमें से 4,966 लड़कियां और 2,530 लड़के थे।
तेलंगाना में, जोड़ों ने एचएएमए के तहत गोद लेने के लिए लड़कों को प्राथमिकता दी।
शीर्ष अदालत ने 15 मार्च को देश भर के 370 जिलों में छोड़े जाने वाले बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए विशेषीकृत दत्तक ग्रहण एजेंसियों (एसएए) की स्थापना में विफलता पर नाराजगी व्यक्त की। इसने अपने निर्देशों का पालन न करने पर राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को ‘दंडात्मक कदम’ उठाने की चेतावनी दी।
इसने निराशा जतायह कि देश के 760 जिलों में से 370 में कार्यात्मक एसएए नहीं है, जो किशोर न्याय अधिनियम के तहत एक आवश्यक कानूनी आवश्यकता है।
पीठ ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से एसएए की स्थापना और गोद लेने की संख्या पर केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को 7 अप्रैल तक नवीनतम डेटा उपलब्ध कराने को कहा। केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि राज्यों को गोद लेने की प्रक्रिया को सुचारू बनाने के लिए अदालती आदेशों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए केंद्रीय मंत्रालय को डेटा प्रदान करने के लिए कहा जाना चाहिए।
पीठ ने पिछले साल 20 नवंबर को निर्देश दिया था, ‘सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य रूप से निर्देशित किया जाता है कि उनके अधिकार क्षेत्र में आने वाले प्रत्येक जिले में, किशोर न्याय अधिनियम 2015 के अनुसार आवश्यक एसएए 31 जनवरी 2024 तक स्थापित किए जाएं।’
शीर्ष अदालत ने पहले कहा था कि भारत में बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने की तत्काल आवश्यकता है।
शीर्ष अदालत ‘द टेम्पल ऑफ हीलिंग’ की एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें भारत में बच्चे को गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया को सरल बनाने का अनुरोध करते हुए कहा गया था कि देश में सालाना केवल 4,000 बच्चे गोद लिए जाते हैं।
भाषा अमित माधव
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