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Sunday, 22 December, 2024
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बेतुके बयान, चर्चों के भीतर कलह- क्यों केरल कोर्ट ने पूर्व बिशप फ्रांको मुलक्कल को किया बरी

मुलक्कल पर केरल की एक नन ने 2014 से 2016 के बीच 13 बार बलात्कार का आरोप लगाया था, जब वो जालंधर में बिशप थे. शिकायत का समर्थन कर रहीं अन्य ननें, बरी किए जाने के खिलाफ अपील करेंगी.

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नई दिल्ली: असंगत बयानात, कथित यौन हमलों के बाद भी पीड़िता का अभियुक्त के साथ जुड़े रहना और धार्मिक सभा में विरोधी ग्रुप की मौजूदगी- ये कुछ कारण हैं जो केरल की कोट्टायम डिवीज़न के अतिरिक्त सेशंस जज ने, जालंधर प्रांत के पूर्व बिशप फ्रांको मुलक्कल को 2018 के एक बलात्कार मामले में बरी करते हुए रेखांकित किए हैं.

मुलक्कल पर केरल की एक नन ने 2014 से सितंबर 2016 के बीच 13 बार उसका बलात्कार करने का आरोप लगाया था, जब वो जालंधर में बिशप थे. शिकायतकर्ता मिशनरीज़ ऑफ जीसस की सदस्या है, जो जालंधर धर्मप्रांत के अंतर्गत एक धर्मप्रांत मंडली है.

शुक्रवार को दिए गए 289 पन्नों के एक फैसले में अतिरिक्त सेशंस जज जी गोपालकुमार ने मुलक्कल को निर्दोष घोषित कर दिया. एक मुद्दा जो जज ने उठाया वो था एफआईआर में देरी, जो 28 जून 2018 को दायर की गई थी.

कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष और शिकायतकर्ता, दोनों इस देरी की सफाई नहीं दे पाए थे. जज ने ये भी कहा कि असंगत बयानात की वजह से शिकायतकर्ता को, ‘एक खरे गवाह की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता’. उन्होंने आगे कहा कि उसकी गवाही के अलावा अभियोजन केस को साबित करने के लिए कोई साक्ष्य नहीं हैं.

जज ने कहा, ‘ये एक ऐसा केस है जिसमें अनाज और भूसा आपस में मिले हुए हैं कि उन्हें अलग नहीं किया जा सकता. अनाज को भूसे से अलग करना असंभव है. पीड़िता के आरोप अतिश्योक्तियों और अलंकरण से भरे हुए हैं’.

‘उसने कुछ तथ्यों को छिपाने की भी पूरी कोशिश की. साफ जाहिर है कि पीड़िता दूसरे लोगों के प्रभाव में थी, जिनके इस मामले में निहित स्वार्थ थे’.

जहां मुलक्कल ने शुक्रवार को फैसले की सराहना करते हुए कहा ‘प्रभु की स्तुति करो’, वहीं शिकायतकर्ता का समर्थन कर रहीं ननों ने कहा कि वो अपील दायर करेंगी.

शिकायतकर्ता और उसकी हिमायत कर रहीं ननें कोट्टायम में कुराविलांगड़ कॉनवेंट में रहती हैं.


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शिकायत दर्ज करने में देरी

फैसले में एफआईआर दर्ज कराने में हुई देरी पर बात की गई है कि कैसे इससे केस की जांच और अभियोजन पर असर पड़ा है.

जज ने कहा, ‘जैसा कि किसी भी दूसरे अपराध में होता है, रेप के मुकदमों में भी झूठे आरोप बढ़ रहे हैं. आपसी सहमति से बने यौन रिश्ते कभी-कभी यौन हिंसा का रूप ले लेते हैं, जब रिश्ते खराब हो जाते हैं’. जज ने कारण बताए कि देरी के कारणों का विश्लेषण करना क्यों जरूरी था.

‘इसलिए, ये देखना और भी जरूरी हो जाता है कि क्या कानूनी कार्रवाई शुरू करने के पीछे कुछ बाहरी कारण भी हैं’.

कोर्ट ने ये भी कहा कि जहां अभियोजन का आरोप था कि यौन हिंसा की कथित घटनाएं 2014 में शुरू हुईं थीं और 23 सितंबर 2016 को खत्म हुईं लेकिन ‘इस मामले में खुलासे 2016 के अंत में होने शुरू हुए’.

कोर्ट ने कहा कि ये तब शुरू हुआ जब अभियुक्त ने नन की कज़िन की एक शिकायत पर जांच के आदेश जारी किए, जिसने आरोप लगाया था कि नन ने उसके पति के साथ सेक्स किया था. ये 10 दिसंबर 2016 को किया गया था.

मुकदमे के दौरान कज़िन ने दावा किया कि उसने वो शिकायत गुस्से की हालत में दर्ज कराई थी लेकिन वो शिकायत में लिखी बातों को समझा नहीं पाई, जिनमें उसका एक आरोप ये भी था कि नन से अवैध संबंधों के चलते उसके पति ने खुदकुशी की कोशिश की थी.

इसलिए कोर्ट ने बचाव पक्ष की इस बात पर ज्यादा भरोसा जताया कि नन ने ये आरोप अनुशासनात्मक जांच के खिलाफ, बदले की भावना से लगाए थे.

जज ने देखा कि नन के खिलाफ शिकायत में मुलक्कल का कोई रोल नहीं था. पेश किए गए सबूतों के आधार पर कोर्ट इस नतीजे पर पहुंची कि शिकायतकर्ता और उसकी सहयोगी सिस्टर्स, जो उसी कॉनवेंट में रहती थीं जहां कथित अपराध घटित हुआ था, वहां की रोज़मर्रा की गतिविधियों में हिस्सा नहीं लेती थीं.

बेंच ने फैसला दिया, ‘ये सारे घटनाक्रम अनुशासनहीनता, असहयोग और सभा के सदस्यों के बीच आपसी आदर सम्मान के अभाव की ओर इशारा करते हैं’. बेंच ने शिकायतकर्ता के दावे को खारिज कर दिया कि अनुशासनात्मक कार्यवाही ‘अभियुक्त की यौन इच्छाओं को पूरा न किए जाने पर की गई बदले की कार्रवाई थी’.


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‘असंगत बयानात’

अलग-अलग समय पर अलग-अलग लोगों के समक्ष दिए गए असंगत बयानात की वजह से कोर्ट ने उसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए.

ऐसी ही एक असंगति उसकी शिकायत को लेकर थी, जिसे ‘पुलिस भी समझा नहीं सकी थी’.

कोर्ट ने कहा, ‘पीड़ित के बयान में कोई संगति नहीं है. उसने अपनी साथी सिस्टर्स तक ये शिकायत पहुंचाई थी कि उसकी यौन इच्छाएं पूरी न किए जाने के कारण, अभियुक्त बदले के तहत उसके खिलाफ कदम उठा रहा था, जबकि कोर्ट के समक्ष उसने कहा था उसे अभियुक्त के साथ 13 मौकों पर यौन संबंध के लिए मजबूर किया गया, जिसमें पहले मौके पर उंगली का इस्तेमाल किया गया था’.

कोर्ट ने ये भी कहा कि मेडिकल जांच के दौरान उसने डॉक्टर को कथित लिंग प्रवेश या जबर्दस्ती यौन संभोग के बारे में नहीं बताया था. कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता की ओर से इस चूक के लिए कोई सफाई पेश नहीं की गई.

कोर्ट ने कहा कि उसकी पहली सूचना रिपोर्ट में लिंग प्रवेश का कोई उल्लेख नहीं था, सिर्फ उंगली इस्तेमाल करने और ओरल सेक्स के लिए दबाव बनाने की बात की गई थी. लेकिन पुलिस को दिए गए अतिरिक्त बयान में पीड़िता ने अभियुक्त के खिलाफ लिंग प्रवेश के आरोप लगाए थे.

ये पता चलने पर कि शिकायतकर्ता का हाइमन फटा हुआ पाया गया था, जज को बचाव पक्ष की दलीलों में वज़न लगा, कि उसने अपनी कज़िन के पति से यौन संबंध बनाए थे और सिर्फ इस कारण से कि पीड़िता का हाइमन फटा हुआ पाया गया, लिंग प्रवेश या जबरन यौन संभोग का निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता’.

उसके बयान में विसंगति के बारे में कोर्ट ने कहा कि ये संभवत: अपने कज़िन के पति के साथ ‘यौन संबंधों को ढंकने का प्रयास’ हो सकता है.

कोर्ट ने कहा कि गवाहों के साथ साझा किए गए अपने खुलासों में शिकायतकर्ता ने कभी भी जबरन यौन हमले का जिक्र नहीं किया. जो खुलासे सामने आए उनसे पता चलता है कि उसने दावा किया कि उसे ‘अभियुक्त के साथ बिस्तर साझा करने के लिए मजबूर किया गया’.

उन दो गवाहों के बयानों से भी, जो पुलिस के मुताबिक उस वक्त कॉनवेंट में मौजूद थे, जब रेप की पहली दो कथित घटनाएं हुईं थीं, पता चलता है कि उन्हें इस बारे में कोई सीधी जानकारी नहीं थी. उनमें से एक ने स्वीकार किया कि उसने घटना के बारे में सिर्फ सुना था.

कोर्ट ने कहा, ‘उन्हें इस दुर्व्यवहार का तनिक भी आभास नहीं था, जब तक कि उन्हें मीडिया के ज़रिए इस बारे में पता नहीं चल गया, वो भी 4 साल के बाद’.

जिस गवाह को नन ने पहली बार बिशप द्वारा कथित यौन उत्पीड़न के बारे में बताया था, उसने भी अभियोजन के रुख का समर्थन नहीं किया.

अभियोजन ये साबित करने में भी नाकाम रहा कि अभियुक्त ‘बुरे चरित्र’ का व्यक्ति था और ननों के साथ बदसलूकी करता था. इस बीच बचाव पक्ष ये स्थापित करने में कामयाब रहा कि बिशप अपने समुदाय में एक लोकप्रिय पादरी था.


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‘करीबी मेल-मिलाप’

कोर्ट ने ये भी कहा कि शिकायतकर्ता और अभियुक्त के बीच मेल का आदान-प्रदान होता था और जिन दिनों में कथित यौन हिंसा की घटनाएं हुईं, उनके बीच आपस में काफी नज़दीक बातचीत हुई थी.

बेंच ने कहा, ‘उसने अभियुक्त के साथ उसकी कार में लंबा सफर तय किया था और बहुत सारे समारोहों में शरीक हुई थी, जो सभी उससे अगले दिन थे, जब कथित जबरन यौन हिंसा की घटनाएं हुईं थीं’. उसने आगे कहा, ‘वो सभी नियुक्तियों में बिशप की मुख्य सलाहकार थी…’

बेंच ने कथित यौन हमले के पहले दो दिन, दोनों के बीच हुए मेल्स के आदान-प्रदान का भी संज्ञान लिया और कहा, ‘मेल्स में इस्तेमाल की गई भाषा न तो औपचारिक है न आधिकारिक. इन ई-मेल्स से निश्चित रूप से अभियुक्त और पीड़िता के बीच के रिश्तों का अंदाज़ा हो जाता है. इन ई-मेल्स से किसी अत्याचारी या प्रतिशोधी व्यक्ति की तस्वीर उभरकर सामने नहीं आती’.


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पुलिस की खामियां

मुकदमे के दौरान कोर्ट के संज्ञान में लाया गया कि अपने बयान में नन ने 13 में से एक तारीख छोड़ दी थी, जिनमें उसका कथित रेप हुआ था. ये पूछने पर कि वो तारीख आरोप पत्र में कैसे शामिल की गई, जांच अधिकारी ने कोर्ट को बताया कि शिकायतकर्तe की एक फोन कॉल के बाद उसने ऐसा किया था.

जज को ये बयान बहुत ‘अचंभित करने वाला’ लगा और उसने ये भी कहा कि पुलिस, आरोपों को साबित करने के लिए सबूत नहीं जुटा पाई थी.

पुलिस की इस बात को लेकर भी खिंचाई की गई कि ये आरोप साबित करने के लिए कि मुलक्कल पीड़िता को अश्लील संदेश भेजा करता था, पुलिस ने शिकायतकर्ता और गवाहों के मोबाइल फोन पेश नहीं किए. अभियोजन ने कोर्ट को बताया कि शिकायतकर्ता ने अपना फोन और सिम कार्ड कहीं छोड़ दिया था, जो बाद में किसी स्क्रैप डीलर को बेच दिया गया, इसलिए उसे बरामद नहीं किया जा सका.

हालांकि पुलिस ने मोबाइल कंपनी के पास जाकर डेटा निकालने का अनुरोध किया था, खासकर वो संदेश जो अभियुक्त ने शिकायतकर्ता को भेजे थे लेकिन कंपनी ने जवाब दिया था कि मांगी गई जानकारी उसके पास उपलब्ध नहीं थी.

कोर्ट ने उस लैपटॉप का वैज्ञानिक विश्लेषण करने में पुलिस की नाकामी का भी जिक्र किया, जिसे नन ने मुलक्कल के खिलाफ अपनी शिकायतें टाइप करने और ई-मेल करने के लिए इस्तेमाल किया था. पुलिस ने कोर्ट में दावा किया था कि उसकी हार्ड डिस्क खराब हो गई थी.

जब अभियोजन ने वो क्षतिग्रस्त हार्ड डिस्क कोर्ट में पेश की, तो कोर्ट ने कहा, ‘लैपटॉप का केस सबसे खराब है’.

जज ने कहा कि लैपटॉप को कथित रूप से हार्ड डिस्क की सर्विस के लिए एफआईआर दर्ज होने के तकरीबन तीन महीने बाद भेजा गया और तब भी पुलिस ने अपनी जांच के लिए मशीन को कब्ज़े में लेना मुनासिब नहीं समझा.


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समूह के भीतर आंतरिक कलह

बचाव पक्ष के अनुसार शिकायतकर्ता ने अपनी शिकायत पादरियों के एक विरोधी ग्रुप के कहने पर दर्ज की थी.

अभियोजन के गवाहों से जिरह करने के बाद, जिससे समूह के भीतर लंबे समय से चली आ रही गुटबाजी का पता चला, कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार कर लिया.

कोर्ट ने कहा, ‘इस बात के सबूत थे कि चर्च के भीतर अभियुक्त के काफी विरोधी थे और इन सभी परिस्थितियों से पता चलता है कि समूह के अंदर सब कुछ सही नहीं था’.

जज ने आगे कहा कि ये ‘स्पष्ट है कि अभियोजिका दूसरों के प्रभाव में थी, जिनके इस मामले में निहित स्वार्थ थे’.

कोर्ट ने कहा, ‘आपसी कलह और विरोध, ननों के समूहों में लड़ाई, तथा समूह पर सत्ता, पद और नियंत्रण की इच्छा, अभियोजिका तथा उसकी समर्थक ननों की मांग (जांच आयोग के समक्ष) से ज़ाहिर है, कि वो मामले को निपटाने के लिए तैयार हैं, अगर चर्च बिहार धर्मप्रांत के अंतर्गत एक अलग क्षेत्र की उनकी मांग को मंजूर कर लेता है’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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