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Friday, 22 November, 2024
होमदेशसोनीपत के सबसे बड़े श्मशान घर में लगे कोविड पीड़ितों की अस्थियों के ढेर, गंगा में प्रवाहित जाने का है इंतज़ार

सोनीपत के सबसे बड़े श्मशान घर में लगे कोविड पीड़ितों की अस्थियों के ढेर, गंगा में प्रवाहित जाने का है इंतज़ार

जहां कुछ परिवारों के पास अंतिम संस्कार करने के पैसे नहीं हैं, वहीं कुछ दूसरे अस्थियां लेने नहीं आ पाए हैं, चूंकि वो महामारी के दौरान सफर करने से डर रहे हैं.

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सोनीपत: सोनीपत के सबसे बड़े श्मशान घर शिव मुक्ति धाम में, कोविड से मारे गए लोगों की अस्थियां कई महीने से लॉकर्स में रखी हई हैं, लावारिस, जिसे गंगा या किसी दूसरी पवित्र नदी में बहाए जाने का इंतज़ार है. कारण: जहां कुछ परिवारों के पास अंतिम संस्कार करने के पैसे नहीं हैं, वहीं कुछ दूसरे राख लेने नहीं आ पाए हैं, चूंकि वो महामारी के दौरान, सफर करने से डर रहे हैं.

कुछ मामलों में राख श्मशान में इसलिए भी रखी है, क्योंकि पूरे-पूरे परिवार कोविड में साफ हो गए हैं.

21 मई को श्मशान के लॉकर में, कम से कम 40 कलश रखे हैं, जिनमें कोविड से मरने वालों की अस्थियां रखी हैं.

शिव मुक्ति धाम के सचिव डॉ डीएल मल्होत्रा, अप्रैल के अंत को याद करते हैं, जब कोविड-19 की दूसरी लहर अपने चरम पर थी. उन्होंने बताया, ‘27 अप्रैल को हमने एक दिन में, 35 शवों का दाह-संस्कार किया. हमें उस जगह का भी इस्तेमाल करना पड़ा, जो बच्चों को दफ्नाने के लिए है. वो बहुत ही भयावह था. उसके बारे में तो मैं सोचना भी नहीं चाहता’.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘लहर के पीक पर यहां हमारे पास, तक़रीबन 80 लावारिस अस्थियां रखी हुईं थीं, और हमें एक काउंटर को साथ मिलाकर, उन्हें यहां अपनी दुकान में रखना पड़ा’.

तो लावारिस कलश का क्या होता है? मल्होत्रा ने कहा कि वो हर साल हरिद्वार जाते हैं, और उन्हें गंगा में विसर्जित कर देते हैं.


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उन्होंने कहा, ‘हालांकि इतनी अधिक तो नहीं, लेकिन पहले हम लावारिश शवों के अवशेष, हर साल हरिद्वार ले जाते थे, और रीति-रिवाज तथा परंपराओं के अनुसार, उन्हें नहीं में बहा देते थे’.

मल्होत्रा ने ये भी कहा कि 20 मार्च और 27 अप्रैल के बीच, शिव मुक्ति धाम में 430 से अधिक कोविड शवों का दाह-संस्कार किया गया. लेकिन, महामारी की शुरूआत से अब तक, पूरे ज़िले में हुईं कुल मौतों का अधिकारिक सरकारी आंकड़ा, सिर्फ 211 है.

हमारे पास आपात योजना होनी चाहिए

शिव मुक्ति धाम में, जो सोनीपत सिविल अस्पताल से बहुत ही नज़दीक है, एक सीएनजी भट्टी के अलावा, 30 चिताओं के लिए जगह है.

लगातार बढ़ते मामलों के बीच, मल्होत्रा ने सरकार से अपील की है, कि श्मशान को कम से कम दो और सीएनजी भट्टियां मुहाया कराई जाएं. उन्होंने कहा, ‘हमारे पास आपात योजनाएं होनी चाहिएं, अगर एक और लहर आ जाती है, और अप्रैल अंत जैसी ख़राब स्थिति पैदा हो जाती है, तो शवों से निपटने के लिए, हमें और जगह की ज़रूरत होगी’.

यहां पर अंतिम संस्कार बिना किसी ख़र्च के होता है, और श्मशान की ओर से लकड़ी, घी, और दाह-संस्कार में लगने वाली अन्य सामग्री भी, बिना कुछ पैसा लिए दी जाती है.

मल्होत्रा ने कहा, ‘लहर के पीक पर भी, हमने सबके लिए लकड़ी का प्रबंध किया, ताकि किसी पर भी चिता के लिए, लकड़ी जुटाने का दबाव न हो’.

लेकिन, उन्होंने आगे कहा, कि पीड़ितों की अस्थियों के कलश श्मशान में ही रखे हुए हैं, चूंकि या तो लोग पैसे की तंगी के चलते सफर नहीं कर पा रहे हैं, या फिर महामारी के डर से यहां का चक्कर लगाने से बच रहे हैं.

उन्होंने कहा कि कुछ मामलों में, कोविड ने परिवारों के सभी या अधिकांश लोगों की जान ले ली, और ये भी एक कारण है कि कोई कलश लेने नहीं आया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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