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Sunday, 24 November, 2024
होमदेशकृत्रिम बारिश कराने के ‘क्लाउड सीडिंग’ के प्रयोग से महाराष्ट्र के सोलापुर में 18% अधिक वर्षा : स्टडी

कृत्रिम बारिश कराने के ‘क्लाउड सीडिंग’ के प्रयोग से महाराष्ट्र के सोलापुर में 18% अधिक वर्षा : स्टडी

‘क्लाउड सीडिंग’ सूखी बर्फ या सामान्यतः सिल्वर आयोडाइड एरोसोल के बादलों के ऊपरी हिस्से में छिड़का जाता है. छोटे कणों को विमानों का इस्तेमाल कर बादलों में फैला दिया जाता है.

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नई दिल्ली : एक अध्ययन से पता चला है कि दक्षिण-पश्चिम महाराष्ट्र के सोलापुर क्षेत्र में कृत्रिम रूप से बारिश कराने के लिए ‘क्लाउड सीडिंग’ के प्रयोग से सामान्य परिस्थितियों की तुलना में 18 प्रतिशत अधिक बारिश हुई.

‘क्लाउड सीडिंग’ सूखी बर्फ या सामान्यतः सिल्वर आयोडाइड एरोसोल के बादलों के ऊपरी हिस्से में छिड़काव की प्रक्रिया है ताकि वर्षण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करके वर्षा कराई जा सके. ‘क्लाउड सीडिंग’ में छोटे कणों को विमानों का उपयोग कर बादलों में फैला दिया जाता है.

छोटे-छोटे कण हवा से नमी सोखते हैं और संघनन से उसका द्रव्यमान बढ़ जाता है. इससे जल की भारी बूंदें बनकर वर्षा करती हैं. ‘क्लाउड सीडिंग’ से वर्षा दर प्रतिवर्ष लगभग 10 प्रतिशत से 30 प्रतिशत तक बढ़ जाती है और क्लाउड सीडिंग के संचालन में विलवणीकरण प्रक्रिया की तुलना में बहुत कम लागत आती है.

अमेरिकन मौसम विज्ञान सोसायटी (बीएएमएस) के बुलेटिन में प्रकाशित अध्ययन के नतीजों में पुणे स्थित भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान और अन्य संस्थानों के वैज्ञानिकों ने पाया कि ‘हाइग्रोस्कोपिक क्लाउड सीडिंग’ ने सोलापुर में 100 वर्ग किलोमीटर तक फैले वर्षा छाया क्षेत्र में वर्षा को बढ़ा दिया है.

‘हाइग्रोस्कोपिक सीडिंग’ ‘क्लाउड सीडिंग’ का एक तरीका है जिसमें बादलों के निचले हिस्से में यानी शून्य डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान की ऊंचाई वाले बादलों में कैल्शियम क्लोराइड के कणों का छिड़काव किया जाता है.

क्लाउड एयरोसोल इंटरेक्शन एंड पर्सिपिटेशन एन्हांसमेंट एक्सपेरिमेंट के परियोजना निदेशक थारा प्रभाकरन ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘क्लाउड सीडिंग वाले स्थान के नीचे की ओर 100 वर्ग किलोमीटर तक फैले क्षेत्र में राडार अवलोकन के अनुसार ‘सीडिंग’ श्रेणी के बादलों में वर्षा में 18 प्रतिशत की सापेक्ष वृद्धि हुई थी.’’

प्रभाकरन इस सप्ताह की शुरुआत में ‘बीएएमएस’ में प्रकाशित अध्ययन के लेखकों में से एक हैं.

क्लाउड सीडिंग प्रयोग 2017-19 के बीच किया गया था, जिसमें वैज्ञानिकों ने प्रक्रिया की प्रभावशीलता का परीक्षण करने के लिए 276 बादलों का मूल्यांकन किया था, जिसे पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक परियोजना के तहत एक विशेष विमान के माध्यम से अंजाम दिया गया था.

सभी माप स्वचालित वर्षामापी, राडार, रेडियोमीटर और विमान जैसे अत्याधुनिक उपकरणों के विस्तृत नेटवर्क का उपयोग करके किए गए थे.

वैज्ञानिकों ने बर्फ और पानी दोनों ठंडे बादलों में ‘ग्लेशियोजेनिक सीडिंग’ विधि भी अपनाई. इस प्रक्रिया में बर्फ के कणों के उत्पादन को बढ़ाने और बादल के ठंडे हिस्से से बारिश को बढ़ाने के लिए आइस-न्यूक्लियेटिंग (स्वत: बर्फ जमने की प्रक्रिया) सिल्वर आयोडाइड कणों का उपयोग करते हैं.


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