कोलकाता: कलकत्ता हाई कोर्ट से सेवानिवृत्त होते समय, न्यायमूर्ति चित्तरंजन दास ने सोमवार को एक पूर्ण-अदालत संदर्भ के दौरान घोषणा की कि वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के “सदस्य थे और हैं” और संगठन में “वापस जाने” के लिए तैयार हैं.
उन्होंने अपने विदाई भाषण में जहां, कलकत्ता हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश उनके बगल में बैठे थे और साथी न्यायाधीश और बार के सदस्य उपस्थित थे, में कहा, “मैं एक संगठन का बहुत आभारी हूं, मैं बचपन से लेकर व्यस्क होने तक इसमें था. मैंने साहसी, ईमानदार होना और दूसरों के प्रति समान दृष्टिकोण रखना और सबसे ऊपर, देशभक्ति की भावना और काम के प्रति प्रतिबद्धता सीखी है और कुछ लोगों को नापसंद करते हुए, मुझे यहां यह स्वीकार करना होगा कि मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सदस्य था और हूं.”
न्यायमूर्ति दास, जिन्हें जून 2022 में ओडिशा हाई कोर्ट से कलकत्ता हाई कोर्ट में स्थानांतरित किया गया था, ने कहा कि उन्होंने लगभग 37 साल तक खुद को आरएसएस से दूर किया था और उनके साथ उनके जुड़ाव ने बतौर न्यायाधीश उनके कर्तव्यों को प्रभावित नहीं किया.
उन्होंने कहा, “मैंने अपने करियर में किसी भी प्रगति के लिए कभी भी संगठन की सदस्यता का उपयोग नहीं किया क्योंकि यह संगठन के सिद्धांत के खिलाफ है. मैंने हर किसी के साथ एक समान व्यवहार किया है — चाहे वो अमीर हो या गरीब, कम्युनिस्ट हो, या कांग्रेस या बीजेपी या टीएमसी से हो. मेरे व्यवहार से आपने देखा होगा कि मेरे मन में किसी के प्रति, या किसी पूर्वाग्रह या किसी विशेष दर्शन या राजनीतिक तंत्र के प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं है. मेरे लिए सभी एक समान थे.”
न्यायमूर्ति दास ने कहा कि वे अपने न्यायिक करियर को अलविदा कहते हुए आरएसएस में वापस जाने के लिए तैयार हैं.
उन्होंने कहा, “मैंने दो सिद्धांतों पर न्याय देने की कोशिश की — पहला, सहानुभूति और दूसरा कि न्याय के लिए कानून को मोड़ा जा सकता है, लेकिन न्याय को कानून के अनुरूप नहीं मोड़ा जा सकता. मैं अब संगठन में वापस जाने के लिए तैयार हूं अगर, वे मुझे किसी सहायता या किसी ऐसे काम के लिए बुलाते हैं जिसकी उन्हें ज़रूरत है और मैं करने में सक्षम हूं, चूंकि, मैंने अपने जीवन में कुछ भी गलत नहीं किया है, इसलिए मुझमें यह कहने का साहस था कि मैं संगठन से हूं, क्योंकि वो भी गलत नहीं है. अगर मैं एक अच्छा इंसान हूं, तो मैं किसी बुरे संगठन से नहीं जुड़ सकता.”
जस्टिस दास का जीवन और करियर
ओडिशा के निवासी, दास ने 27-साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया. अपने बचपन के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी (पिता) मृत्यु के बाद यह उनकी तीन बहनें थीं जिन्होंने उनकी ज़िंदगी में आए इस अंधेरे के बादलों को हटाने में उनका समर्थन किया.
उत्कल विश्वविद्यालय से मास्टर ऑफ लॉ (एलएलएम) की डिग्री प्राप्त करने के बाद, 1986 में वे एक वकील बने और न्यायमूर्ति (पूर्व) ए.एस. नायडू के जूनियर के रूप में कार्यालय में शामिल हो गए.
अपने करियर के दौरान, उन्होंने ओडिशा और कलकत्ता हाई कोर्ट की आपराधिक, नागरिक और संवैधानिक पीठों की अध्यक्षता की है.
कलकत्ता हाई कोर्ट में अपने कार्यकाल के बारे में बोलते हुए दास ने बताया कि कैसे इसने अपनी चमक खो दी है और अधिवक्ताओं से इसकी विरासत को बहाल करने का आग्रह किया.
उन्होंने कहा, “यह न्यायालय देश का पहला कानून देने वाला था. आप न्यायशास्त्र के किसी भी क्षेत्र में जाएं, उसका मूल स्थान कलकत्ता हाई कोर्ट ही होगा, लेकिन आज यह निराशा की बात है कि कलकत्ता हाई कोर्ट ने अखिल भारतीय परिदृश्य में वो नेतृत्व खो दिया है. मैं बार के सदस्यों, विशेष रूप से बार के जूनियर सदस्यों, जो इस न्यायालय का भविष्य हैं, से उस विरासत को फिर से जीवंत करने का आग्रह करूंगा. इससे मुझे बहुत खुशी मिलेगी.”
दास ने अपने न्यायिक करियर में पिछले साल POCSO के एक मामले में फैसले के दौरान किशोर लड़कियों को अपनी “यौन इच्छाओं” को नियंत्रित करने की सलाह देने वाली टिप्पणियों से विवाद खड़ा किया है. उन्होंने यह बात तब कही जब वो उस खंडपीठ का हिस्सा थे, जिसमें उन्होंने नाबालिग लड़की के साथ यौन संबंध बनाने के लिए एक व्यक्ति को 20 साल जेल की सज़ा सुनाई थी. सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले की आलोचना करते हुए कहा था कि “ऐसे फैसले लिखना बिल्कुल गलत है.”
कार्यक्रम में बोलते हुए कलकत्ता हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने न्यायमूर्ति दास के कार्यकाल और उनकी कार्यशैली की सराहना की.
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अशोक कुमार चक्रवर्ती ने कहा, “आपका प्रभुत्व महान सांस्कृतिक विरासत के साथ एक महान इंसान के रूप में उभरा है. आपराधिक, दीवानी और संवैधानिक पीठ की अध्यक्षता करके आपके आधिपत्य को प्रसन्नता हुई है और बार के सदस्य हमारे साथ आपके आधिपत्य के विचार-विमर्श से पूरी तरह खुश हैं और हमें आज अपने पद छोड़ने वाले एक खूबसूरत न्यायाधीश की कमी खलेगी.”
बार लाइब्रेरी क्लब के सचिव शाक्य सेन ने कहा, “हमारे साथ बिताए इतने लंबे समय के दौरान, आपके प्रभुत्व ने वकीलों के दिमाग पर एक अमिट छाप छोड़ी है. विशिष्ट रूप से, नागरिक पक्ष और आपराधिक पक्ष दोनों पर अभ्यास करने वाले. हमने जिनसे भी बात की, उन्होंने वास्तव में आपके आधिपत्य के न्याय-उन्मुख और राहत-उन्मुख दृष्टिकोण की सराहना की.”
उन्होंने कहा, “हमने आपके आधिपत्य को एक बहुत ही धैर्यवान श्रोता, एक बहुत ही सौम्य इंसान के रूप में पाया है और अदालत में आपके आधिपत्य के कथनों और टिप्पणियों से हम आपके आधिपत्य की गहरी अंतर्दृष्टि और मामले के तथ्यों पर कानून के त्वरित अनुप्रयोग को समझ पाएंगे. सेन ने कहा, हमें इस बात का गहरा दुख है कि आपका आधिपत्य हमें बहुत जल्दी छोड़ रहा है.”
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