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Friday, 8 November, 2024
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21 दिन तक चले विशेष अभियान से मूसेवाला के ‘हत्यारों’ तक कैसे पहुंची दिल्ली पुलिस

दिप्रिंट आपको बता रहा है कि कैसे हाल के दिनों के सबसे हाई-प्रोफाइल हत्याओं में से एक में की गई महत्वपूर्ण गिरफ्तारी के लिए दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने गुजरात में एक जगह पर अपना ध्यान केंद्रित किया?

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नई दिल्ली: अंडरकवर (गुप्त रूप से तैनात) पुलिस, निरंतर तकनीकी निगरानी, डेटा डंप का विश्लेषण और अपराधियों के हावभाव संबंधी लक्षणों की निगरानी. कुछ इस तरह से दिल्ली पुलिस का विशेष प्रकोष्ठ (स्पेशल सेल) सिद्धू मूसेवाला मामले में शामिल तीन शूटरों और उनके दो सहयोगियों को पकड़ने में कामयाब रहा.

दिल्ली पुलिस के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि यह सारा ऑपरेशन 13 जून को उस वक्त शुरू हुआ जब स्पेशल सेल ने तकनीकी निगरानी के जरिए इस बात की पुष्टि की कि मूसेवाला हत्याकांड में शामिल कुछ शूटर फिलहाल गुजरात में है.

उसके बाद से, स्पेशल सेल को संदिग्धों के ठिकाने- एक छोटा सा कमरा जिसे उन्होंने 2,500 रुपये में किराए पर लिया था- पर छापेमारी करने और उन्हें गिरफ्तार करने में कुल 192 घंटे लगे.

दिल्ली पुलिस के सूत्रों ने कहा कि टेलीऑपरेटर से प्राप्त डेटा ने जांचकर्ताओं को पहले कच्छ की खाड़ी में स्थित मुंद्रा बंदरगाह के आसपास 3.5 किमी के दायरे में और अंततः बरोई गांव तक अपनी खोज को सीमित करने में मदद की.

बरोई गांव मुंद्रा के उप-जिला मुख्यालय से 2 किमी दूर स्थित है. इस गांव की आबादी (2011 की जनगणना के अनुसार 14,954) को देखते हुए मूसेवाला के हत्यारों की तलाश एक चुनौती साबित होने वाली थी.

बता दें कि 28 वर्षोंय गायक-सह-राजनेता सिद्धू मूसेवाला की 29 मई को पंजाब के मनसा में दिनदहाड़े हत्या कर दी गई थी. पुलिस का मानना है कि गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई इस हत्या का मास्टरमाइंड था और उसने अपने करीबी सहयोगी गोल्डी बरार, जो कनाडा में रह रहा एक गैंगस्टर है, के साथ मिलकर इसे अंजाम दिया था.

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने इस मामले में अब तक कई लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें तीन शूटर- प्रियव्रत उर्फ फौजी, कशिश उर्फ कुलदीप, अंकित सेरसा उर्फ अंकित तूर- और उनके दो सहयोगी- केशव कुमार और सचिन भिवानी शामिल हैं.

पंजाब पुलिस ने भी इस मामले में कई गिरफ्तारियां की हैं, जिनमें उन व्यक्तियों को भी शामिल किया गया है जिन्होंने इन शूटर्स को साजो-सामान के साथ सहायता प्रदान की थी. जहां दो अन्य शूटर- जारूप रूपा और मनप्रीत मन्नू- 20 जुलाई को पंजाब पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में मारे गए थे, वहीं दीपक मुंडे नाम का एक शूटर अभी भी फरार है.

गुप्त रूप से तैनात होने और लोगों की गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखने से लेकर निगरानी के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करने तक, दिप्रिंट को इस बारे में सारा विवरण मिला है कि कैसे दिल्ली पुलिस का सपेशल सेल हाल के दिनों की इस सबसे हाई-प्रोफाइल हत्याओं में से एक के मामले में यह महत्वपूर्ण सफलता हासिल करने में कामयाब रहा.


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किराए के कमरों व अवैध शराब के धंधे पर रखी गई नजर

सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि इन संदिग्धों ने प्रवासी श्रमिक होने का बहाना बनाकर और फर्जी पहचान पत्र का इस्तेमाल करते हुए बरोई में एक छोटा सा कमरा किराए पर लिया था. सूत्रों ने कहा कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा और बिहार के प्रवासी कामगारों से खचाखच भरे इस इलाके में इस तरह के स्पष्टीकरण से कोई संदेह भी पैदा नहीं हुआ. साथ ही, सूत्रों ने यह भी कहा कि जांचकर्ताओं ने अंततः अपनी खोज को उन कमरों तक सीमित कर दिया, जिन्हें हाल ही में किराए पर लिया गया था.

इस तथ्य की जानकारी के अलावा कि ये तीन संदिग्ध मुंद्रा बंदरगाह के 3.5 किमी के दायरे में छिपे हुए थे, जांचकर्ताओं को उनकी शारीरिक बनावट, उनके मूल निवास स्थानों और कुछ मामलों में उनकी पूरी प्रोफाइल के बारे में भी अच्छे से पता था.

एक सूत्र ने कहा, ‘मोबाइल टावर से मिले लोकेशंस के आधार पर एक छोटे से कमरे को अलग कर पाना मुश्किल है. इसलिए स्पेशल सेल की एक टीम स्कूटियों पर सवार होकर पूरे इलाके में फैल गई.’

सूत्र ने कहा कि स्पेशल सेल के कुछ सदस्य तो बंदरगाह के कर्मचारियों के वेश में इलाके में घूमें.

सूत्र ने कहा कि शराबबंदी वाले राज्य गुजरात में अवैध शराब का धंधा चलाने वाले विभिन्न गिरोहों की मौजूदगी के कारण जांचकर्ताओं को यकीन था कि अवैध शराब के कारोबार पर नजर रखने से वे संदिग्धों तक पहुंच सकते हैं.

यही वह समय था जब जांचकर्ताओं को शराब के एक ऐसे अवैध कारोबार का पता चला जो ज्यादातर बरोई गांव और आसपास के क्षेत्रों के श्रमिकों की जरूरतों को पूरा करता था.

सूत्र ने कहा, ‘(शराब की) आपूर्ति ज्यादातर किसी खास ‘ज़ोन’- सोनीपत, कुरुक्षेत्र और अन्य क्षेत्रों से होती है. हम पहले से ही जानते थे कि प्रियव्रत (शूटर्स में से एक) सोनीपत से है. अवैध शराब के कारोबारों को गिरोहों द्वारा ही नियंत्रित किया जाता है.’

कुछ दिनों बाद, जांचकर्ताओं को एक और सूचना मिली कि तीन लोग एक किराए के कमरे में रह रहे हैं और उनके बगल में एक नेपाली परिवार रहता है.

हालांकि, सूत्रों के अनुसार, यह जानकारी किसी को गिरफ्तारी करने के लिए अपर्याप्त थी. साथ ही, जैसा कि सूत्रों ने बताया, 18 जून तक पुलिस उस किराए के कमरे में रहने वाले लोगों की कुल संख्या का पता लगाने में कामयाब नहीं हो सकी थी.


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‘बैठने का अंदाज’ और ‘बेमेल’ दिखना

एक बार जब संदिग्धों के आवास की तलाश शुरू हुई, तो पुलिस ने उन लोगों की भी तलाश शुरू कर दी, जो इलाके में ‘बेमेल’ लग रहे थे.

इस तरह के एक तलाशी अभियान के दौरान, पुलिस दल की नजर चारपाई पर बैठे तीन लोगों पर पड़ी लेकिन चूंकि उनका चेहरा दूसरी तरफ था, इस वजह से उनकी पहचान में समस्या हो रही थी. हालांकि, जांचकर्ताओं को जो बात चौंकाने वाली लगी, वह थी कि उनमें से एक के बैठने का तरीका- एक पैर समेटा हुआ था और दूसरा घुटने से मुड़ा हुआ था. पुलिस का कहना है कि बैठने की यह अनोखी मुद्रा हरियाणा में ही देखी जाती है.

सूत्र ने कहा, ‘उन तीन मर्दों में से, एक व्यक्ति की बैठने की शैली एकदम अनूठी थी- एक पैर समेटा हुआ था और दूसरा मुड़ा हुआ था. वह शख्श प्रियव्रत उर्फ फौजी था.’

फिर जिस घर के बाहर उन तीनों को देखा गया था, उसकी लगातार निगरानी से और भी बारीक जानकारियां सामने आई.

सूत्र ने बताया, ‘कशिश छह फीट लंबा और गोरी चमड़ी वाला है. वह इस इलाके में बेमेल जैसा दिखता था.’

पुलिस ने यह भी पाया कि उन तीन लोगों में से सिर्फ केशव कुमार- शूटर्स को साजोसामान के साथ सहायता प्रदान करने और मूसेवाला के घर की छानबीन करने का आरोपी- ही कमरे से बाहर आता था.

सूत्र ने कहा, ‘केशव कुमार दूध लेने के लिए कमरे से बाहर आता था. लिए गए दूध की मात्रा सिर्फ एक व्यक्ति के उपयोग जितनी नहीं थी इसलिए हमें यकीन था कि उसके साथ और भी लोग हैं.’

प्रियव्रत और कशिश उर्फ कुलदीप दोनों को 29 मई को मूसेवाला की हत्या से पहले एक पेट्रोल पंप पर रिकॉर्ड किए गए सीसीटीवी फुटेज में देखा गया था. इसी फुटेज से पुलिस को उन्हें पहचानने और मौके से गिरफ्तार करने में मदद मिली.

सूत्र का कहना है, ‘पुलिस टीम ने दीवार फांद अंदर घुसी और उसने पहले केशव को पकड़ लिया, जिसने बताया कि दो अन्य लोग कमरे के अंदर थे. बाद में उन दोनों को भी गिरफ्तार कर लिया गया.’

पूछताछ के दौरान, केशव ने कहा कि उसने दूसरों को बिना मास्क के इलाके में घूमने के खिलाफ चेतावनी दी थी, क्योंकि उस समय तक हर जगह उनके चेहरे दिखाने वाले सीसीटीवी फुटेज से चित्र प्रसारित किए जा चुके थे.

सूत्र ने कहा, ‘कुमार ने बताया कि प्रियव्रत उसकी बात नहीं सुनता था और बिना मास्क के बाहर निकल जाता था. जब हमने उसे गिरफ्तार किया तो वह बिना मास्क के ही था.’


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‘जरूरत के आधार पर होती थी बातें’

सूत्रों ने बताया, ‘मूसेवाला हत्याकांड के संदिग्धों ने कभी एक-दूसरे को फोन नहीं किया और केवल ओपन वाई-फाई नेटवर्क या डोंगल का उपयोग करके ही एक-दूसरे से बात करते थे, वह भी केवल जानकारी की जरूरत के आधार पर ही. इस बात ने उनकी तलाश को और भी चुनौतीपूर्ण बना दिया था.’

हालांकि, वे सभी विदेश में अपने हैंडलर (समन्वय करने वाले शख्स – कनाडा स्थित गैंगस्टर गोल्डी बरार के संपर्क में थे. सूत्रों ने कहा कि बरार ही उन्हें सभी निर्देश देता था और छुपने के ठिकाने के लिए जगह मुहैया कराता था.

जांचकर्ताओं ने पाया कि मूसेवाला हत्याकांड में शामिल होने के संदेह के दायरे में शामिल कुल सात लोग शुरू में बरोई के कमरे में रहते थे. उनमें से चार- जिसमें 19 वर्षीय अंकित सेरसा, जो सभी शूटर्स में सबसे छोटा है और उनके एक अन्य सहयोगी, सचिन भिवानी- ने जून के पहले सप्ताह में यह जगह छोड़ दी थी. सेरसा और भिवानी (शूटर्स को साजो-सामान मुहैया कराने का आरोपी शख्स) दोनों को 3 जुलाई को दिल्ली के आईएसबीटी बस अड्डे से गिरफ्तार किया गया था.

बरोई से की गई तीन गिरफ्तारियों के बाद ही जांचकर्ता अपने अगले लक्ष्य- सेरसा और भिवानी की तरफ आगे बढ़े थे.

उनका शुरुआती आकलन यह था कि ये दोनों छत्तीसगढ़ में थे.

सूत्र ने कहा, ‘यह एक (सेल फोन) डेटा डंप के माध्यम से किया गया था जिसमें टाइम जोन और कॉल शेड्यूल पाए गए थे.’

हालांकि, उनकी पहचान अभी भी एक लंबी प्रक्रिया थी, खासकर इस वजह से क्योंकि सेल फोन के स्थान बदलते रहते थे. इसके अलावा आरोपी दिन भर अपने फोन स्विच ऑफ रखते थे.

सूत्रों का कहना है कि ये लोग ज्यादातर ओपन वाई-फाई का इस्तेमाल करते थे. इसके अलावा, उनके सेल फोन के स्थान बदलते रहते थे साथ ही, जिस चीज ने उनकी ट्रैकिंग को और भी मुश्किल बना दिया, वह यह थी कि संदिग्ध अपने फोन को थोड़ी देर के लिए ही चालू रखते थे.

सूत्र ने कहा, ‘उन फोनों से केवल दो कॉल किए गए थे- एक दोपहर 3 बजे के आसपास और दूसरी रात 8 बजे के आसपास और इससे हमारे द्वारा उनका पता लगाने की गुंजाइश सीमित हो रही थी.’ साथ ही उसने बताया कि वे शुरू में मध्य प्रदेश के विदिशा और छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में पाए गए थे.

सूत्रों के अनुसार, संदिग्ध एक जगह से दूसरी जगह पर आने-जाने के लिए केवल सार्वजनिक परिवहन का उपयोग कर रहे थे. यही वजह है कि जांचकर्ताओं ने भी अपनी खोज को रेलवे स्टेशनों, बस स्टॉप और टैक्सी स्टैंडों में ही केंद्रित किया हुआ था.

सूत्र ने कहा, ‘जब भी वे अपने फोन चालू करते, हम उनके स्थान की पहचान करते और फिर निकटतम रेलवे स्टेशन और बस स्टॉप फर उनकी तलाश करते.’

सूत्र ने कहा, ‘उनकी गिरफ्तारी से पहले, उनका स्थान छत्तीसगढ़ का एक दूरस्थ क्षेत्र था और उस क्षेत्र से उपलब्ध निकटतम सार्वजनिक परिवहन का जरिया छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस था. हमारे पास खुफिया जानकारी थी कि संदिग्ध दिल्ली जा रही ट्रेन में हो सकते हैं. फिर हमें और भी जानकारी मिली कि वे आईएसबीटी में होंगे, जहां बरार द्वारा इंतजाम किया गया उनका एक अन्य सहयोगी उन्हें लेने के लिए इंतजार कर रहा होगा.’

गुप्त जानकारी सही साबित हुई और दोनों संदिग्धों को अंततः आईएसबीटी बस अड्डे से गिरफ्तार कर लिया गया, जिससे आखिरकार इस ऑपरेशन की परिणति हुई.

21 दिनों के अंतराल में सिद्धू मूसेवाला के हत्यारों की दिल्ली पुलिस द्वारा की गयी इस तलाश का नेतृत्व विशेष पुलिस आयुक्त (स्पेशल सेल) एच.एस. धालीवाल, पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) प्रमोद कुशवाहा, सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) ललित मोहन नेगी और इंस्पेक्टर सुनील कुमार ने किया था.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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