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Thursday, 25 April, 2024
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IIT-KGP साबित करने में लगा है कि पाइथागोरस का सिद्धांत और MSMEs प्राचीन भारत से प्रेरित हैं

IKS सेंटर के प्रमुख प्रोफेसर जॉय सेन कहते हैं, कि उनका दावा प्राचीन भारतीय ग्रंथों पर आधारित है, और उनका शोध 'BJP या RSS' के बारे में नहीं है, बल्कि ‘मानव ज्ञान के इतिहास को सही करने को लेकर है’.

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नई दिल्ली: आईआईटी खड़गपुर (आईआईटी-केजीपी) में इंडियन नॉलेज सिस्टम्स (आईकेएस) के लिए सेंटर ऑफ एक्सिलेंस ये साबित करने की कोशिश कर रहा है कि कैसे प्राचीन भारत ने पाइथागोरस सिद्धांत को प्रेरित किया, और आपूर्ति व मांग की अवधारण तथा सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) की जड़ें भी भारत में ही थीं.

आईकेएस केंद्र के प्रमुख प्रोफेसर जॉय सेन ने कहा कि उनका विचार न्यू मीडिया के लैटिन लेखक एपुलेइयस के इस दावे पर आधारित था कि पायथागेरस ने सिकंदर महान से 100 से 300 साल पहले दक्षिण भारत का दौरा किया था.

सेन का दावा है कि सूर्य सिद्धांत और शुल्बा सूत्र जैसी पुस्तकों ने, पायथागोरस सिद्धांत की नींव रखी. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘एपुलेइयस ने पाइथागोरस के दक्षिण भारत आने का उल्लेख किया है. इसलिए इस बात की संभावना है कि यूनानी गणित और ज्यामिती के विकास को भारत के गणितीय ज्ञान से जानकारी मिली’.

सेन अपने एमएसएमई दावों का संबंध 600 ईसा पूर्व के बौद्ध और जैन ग्रंथों तथा रामायण से जोड़ते हैं, जिनमें कहा गया है कि प्राचीन भारत में 16 से 22 महाजनपद थे, जिनमें छोटे-छोटे विशेष व्यवसाय थे, और जो एक दूसरे के साथ व्यवसाय करते थे, जिसमें मांग और आपूर्ति की अवधारण पैदा हुई.

सेन ने कहा, ‘600 ईसा पूर्व में, भारत में पहले से ही कुछ ऐसा मौजूद था, जो बाद में अमेरिका में विकसित हुआ, जहां हर राज्य किसी न किसी चीज़ का अग्रणी उत्पादक था. मसलन, कैलिफोर्निया सोने की खानों के लिए जाना जाता था, व्योमिंग प्राकृतिक संसाधनों में समृद्ध था, जबकि न्यूयॉर्क और न्यू जर्सी समुद्री बंदरगाह से जुड़ी गतिविधियों के लिए जाने जाते थे’.

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सेन ने आगे कहा, ‘भारत में भी यही अवधारणा थी जहां, मसलन, मगध किसी चीज़ के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था, जो अंगा में अच्छी नहीं बनती थी. फिर उन उत्पादों का महाजनपदों के बीच व्यापार होता था, जो मेरा मानना है कि प्राचीन भारत में, मांग और आपूर्ति के सिद्धांत का व्यवहार में चलन था’.


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‘शोध में कोई राजनीति नहीं’

प्रोफेसर सेन ने कहा कि उनका शोध किसी सियासत या विचारधारा से नहीं चल रहा है.

उन्होंने कहा, ‘1987 में आयोवा में एक प्रोफेसर ने, जो एक ईसाई थे और जिनका ताल्लुक़ अमेरिका के मिडवेस्ट से था, मुझे भारतीय आध्यात्म विज्ञान की अवधारणा से परिचित कराया था. इस शोध का बीजेपी, आरएसएस, या दक्षिण पंथ से कोई लेना-देना है, और न ही ये वामपंथी राजनीति से चल रहा है. हम विश्व में भारत के योगदान पर पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, हमारा फोकस हिंदूवाद या बौद्ध धर्म पर नहीं है, ये एक बीच का रास्ता है’.

सेन ने आगे कहा, ‘इसका मक़सद मानव ज्ञान के इतिहास को सही करना है, जो उतना सही नहीं है. अभी तक, इसका मुश्किल से ही कोई उल्लेख मिलता है कि भारत ने गणित, विज्ञान और अर्थशास्त्र के बुनियादी ज्ञान में कितना योगदान दिया है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘हम सब के अंदर ये बात घर कर गई है कि पश्चिम समस्त ज्ञान का केंद्र है, और ये दरअसल एक बहस योग्य परिकल्पना है. भारत में पल रहे बच्चों को अपने इतिहास को जानना चाहिए और पाठ्य पुस्तकों में दिया गया घटनाओं का इतिहास हमेशा ही सही तस्वीर पेश नहीं करता. जो वैज्ञानिक जातिवाद ये मानता था कि गोरा आदमी बाक़ी लोगों से बेहतर है, उस धारणा को ठीक करने का इससे बेहतर समय और कोई नहीं हो सकता’.

लेकिन, क्या पायथागोरस भारत आया भी था?

ये पहली बार नहीं है कि प्रोफेसर सेन ने इस तरह के दावे किए हैं. पिछले साल 2022 के एक कैलेण्डर के लिए उनकी आलोचना हुई थी, जिसमें वेदों का हवाला देकर आर्यों के आक्रमण के सिद्धांत का खंडन किया गया था.

इतिहासकार मीरा नंदा ने अपने एक लेख में, पाइथागोरस सिद्धांत की जड़ें भारत में होने के दावे की धज्जियां उड़ाते हुए लिखा था कि मेसोपोटामिया के लोगों ने प्राचीन भारत में इस सिद्धांत के प्रतिपादित होने से कम से कम एक हज़ार साल पहले पता लगा लिया था कि किसी समकोणीय त्रिभुज की भुजाओं का आपस में क्या संबंध होता है.

प्रोफेसर सेन का ये दावा भी विवादित है कि पाइथागोरस ने भारत का दौरा किया था. रॉड प्रीस की किताब ‘सिन्स ऑफ दि फ्लेश: अ हिस्ट्री ऑफ एथिकल वेजिटेरियन थॉट’ में इस विचार को चुनौती दी गई है कि पाइथागोरस ने भारत का दौरा किया था. उन्होंने कहा कि लूशियस एपुलेइयस (124-170 ईसवीं) ने दावा किया था कि पायथागोरस ने अपना अधिकतर दर्शन भारतीय ज्ञान से लिया था, ‘लेकिन ऐसा नहीं है कि उसने भारत का दौरा किया था’.

प्रीस के अनुसार, ‘इंडोफाइल थियोसोफिस्ट एनी बीसेंट ने तो सरलतापूर्वक यहां तक कह दिया कि वो (पायथागोरस) भारत से बुद्ध का ज्ञान लेकर आया और उसका ग्रीक विचार में रूपांतरण कर दिया’.

इसके विपरीत, प्रीस की पुस्तक में आगे कहा गया कि टॉमस ट्रायॉन (1634-1703) का मानना था कि पाइथागोरस भारत आया था, और यहां उसने ब्राह्मणों को उनका दर्शन पढ़ाया था.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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