नई दिल्ली: अहमदाबाद में करीब 500 निम्न आय वाले परिवारों में किये गए एक शोध में सामने आया है कि लॉकडाउन के बाद से 74 प्रतिशत के पास नियमित आय का कोई जरिया नहीं बचा है. वहीं 40 प्रतिशत से अधिक परिवारों ने बताया कि वे या उनके पडोसी भोजन और दवा की आपूर्ति सम्बंधित समस्याओं का सामना कर रहे हैं. यह सर्वे टेलीफोन से किया गया है.
ये सर्वे आईआईएम अहमदाबाद के कुछ वालंटियर्स जिनमें छात्र और शिक्षक शामिल थे, ने 29 मार्च से 9 अप्रैल के बीच किया. इस सर्वे का उद्देश्य कोरोनावायरस के मद्देनज़र किये गए लॉकडाउन की वजह से निम्न आय वाले परिवारों की ज़रूरतों और परिस्थितियों में आये बदलाव को समझना था.
इस सर्वे में भाग लेने वाले परिवारों में से अधिकतर ऑटो एवं रिक्शा चालक, मजदूर, प्लम्बर, सब्जी बेचने वाले, ठेले वाले, दैनिक मजदूरी कर्मचारी और क्लीनर इत्यादि शामिल हैं. करीब 52 प्रतिशत घरों में से एक बच्चा किसी सरकारी स्कूल या आंगनवाडी में भर्ती है.
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आय का साधन नहीं, राशन की किल्लत
सर्वे के मुताबिक लगभग 74 प्रतिशत घरों में फिलहाल कुछ आय अर्जित नहीं की जा रही है. इनमें से कई ने बताया कि उनके पास अगले मकान का किराया, बिजली का बिल जैसी अन्य ज़रूरतों के साथ-साथ स्कूल के फीस भरने तक के पैसे नहीं हैं. वहीं 40 प्रतिशत का कहना है कि उन्हें खाने या दवा की सप्लाई जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
रिपोर्ट में एक भाग लेने वाले एक व्यक्ति का कहना है कि उनके पास कोई नौकरी नहीं बची है और उन्होंने अपने बैंक में से सारे पैसे निकाल लिए हैं ताकि 6 लोगों के अपने परिवार को खाना खिला सकें. ‘खाने-पीने और अन्य ज़रूरत के सामान की कमी होने के कारण दुकानों ने दाम बढ़ा दिए हैं, और हमारे पास उतने पैसे नहीं हैं’, एक अन्य व्यक्ति ने कहा.
कुछ ने ये भी बताया कि सरकार अथवा समाजसेवी संस्थाओं द्वारा खाने की किट उन तक पहुंचाई जा रही है पर इसकी संख्या सीमित है, इसलिए कई लोग इनसे वंचित रह जाते हैं.
44 प्रतिशत लोगों ने बताया कि उनके पास फिलहाल जो राशन है वो हफ्ते भर में ख़त्म हो जाएगा.
94 प्रतिशत को नहीं पता जन-धन खाते में पैसा आया या नहीं
करीब 6 प्रतिशत से कम ने माना कि उन्हें सरकार द्वारा कोविड रिलीफ पैकेज के तहत ट्रांसफर किये जाने वाली धनराशि के अपने खाते में आने की कोई जानकारी नहीं है. रिपोर्ट में इसकी संभावित वजह ये बताई गयी है कि शायद पैसा ट्रांसफर हुआ ही नहीं अथवा लोगों को एटीएम या बैंक न जा पाने की वजह से जानकारी न मिली हो.
इस रिपोर्ट से ये भी पता चला कि गरीबी रेखा से ऊपर वाले राशन कार्डधारकों, जिनमें कुछ दैनिक मजदूरी करने वाले लोग भी शामिल हैं, को मात्र एक एनएफएसए स्टाम्प न होने की वजह से राशन देने से मना कर दिया गया. कुछ को इसलिए राशन नहीं मिल पाया क्योंकि उनके राशन कार्ड पर उनके निवास स्थान का पता दूसरा था, वहीं कुछ को इसलिए देने से मना कर दिया गया क्योंकि वो ऐसे व्यक्ति के स्थान पर राशन लेने पहुंचे जो शारीरिक रूप से उपस्थित हो पाने में असमर्थ हैं. कुछ स्थानों में राशन की दुकान बंद थी या सप्लाई सीमित थी.
एक व्यक्ति ने बताया कि लाइन में लगे पहले 3-4 व्यक्तियों को पर्याप्त राशन मिल जाता है और उसके बाद दुकानें बंद हो जाती हैं और बाकि लोगों को खली हाथ लौटना पड़ता है.
जिन घरों में बच्चे सरकारी स्कूल या आंगनवाड़ी में जाते हैं, उनमें से 80 प्रतिशत ने बताया कि उन्हें लॉकडाउन के बाद से इन जगहों से राशन संबंधी कोई सहायता नहीं मिली है.
इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि सरकार एवं स्थानीय प्रशासन द्वारा चलायी जा रही हेल्पलाइन की जानकारी होने के बावजूद केवल 3 प्रतिशत लोगों ने उस पर कॉल करके किसी प्रकार की सहायता प्राप्त की.
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ये दिए सुझाव
सर्वे के अंत में इन हालातों से निपटने के कुछ महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए गए हैं- जैसे प्रवासी श्रमिकों के लिए साझी रसोई की शुरुआत. इसमें सुझाया गया है कि स्व-सहायता समूहों (एसएचजी) के नेटवर्क के द्वारा ये साझी रसोई खड़ी की जा सकती है. पहचान के विशिष्ट साधनों की बजाय न मिटने वाली स्याही जैसी सुविधाओं के उपयोग पर विचार किया जा सकता है. एनजीओ द्वारा भोजन वितरण को ज़रूरतमंदों तक पहुंचाने के लिए सुनिश्चित करने के साथ साथ उसकी गुणवत्ता और प्रबंधन पर भी ध्यान दिया जाये. हेल्पलाइन नंबर जीरो बैलेंस होने के बावजूद डायल किया जा सके, ये सुनिश्चित किया जाये.
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