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Monday, 4 November, 2024
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इंदिरा गांधी कला केंद्र अब सरस्वती नदी के इर्द-गिर्द सभ्यताओं की खोज में जुटा

सरस्वती नदी पर काम करने वालों के साथ साथ इसरो जयपुर और बेंगलुरू के सेंटर की रिसर्च टीम भी नदी की खोज में शोध कर रही है. वहीं भारतीय पुरात्तव परिषद के एन. दीक्षित की अध्यक्षता में अलग अलग ग्रुप बनाकर काम किया जा रहा है.

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नई दिल्ली : केंद्र की मोदी सरकार लुप्त हो चुकी सरस्वती नदी की तलाश में एकबार फिर जुट गई है. इस बार नदी की खोज उसके स्रोत से नहीं बल्कि इसके किनारे बसे समाज और सभ्यता की खोज कर की जाएगी.

राम मंदिर मुद्दा निपटने के बाद सरस्वती नदी देश में सबसे अधिक चर्चा का विषय बन सकती है. पुराणों में उल्लिखित इस नदी की कभी सेटेलाइट इमेज तो कभी भूगर्भीय जांच के द्वारा इसकी खोज की कोशिश पहले भी कई बार की जा चुकी है. इलाहाबाद जिसे गंगा, यमुना के साथ सरस्वती नदी का संगम स्थल कहा जाता है. इसमें सरस्वती नदी सदियों पहले लुप्त हो चुकी है.

इस शोध के पीछे की वजह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है. केंद्र सरकार के अधीन आने वाला इंदिरा ग़ांधी राष्ट्रीय कला केंद्र सरस्वती नदी के सभ्यता की शोध में जुट गया है. तमाम विशेषज्ञ को इस कम में लगा दिया गया है. निर्देश है कि जल्द से जल्द ऐतिहासिक सभ्यता के साथ जुड़ी सरस्वती नदी के सुराग जुटाए जाएं.

इंदिरा गांधी कला केंद्र के ट्रस्टी महेश शर्मा ने दिप्रिंट को बताया, ‘सरस्वती नदी के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. अभी तक जो शोध हुआ है, उसे एकत्र कर आगे के शोध की तैयारी कर रहे हैं. इस बारे में जल्द एक रिसर्च बुक भी जारी करेंगे. हम सरकार से भी मांग करेंगे कि सरस्वती नदी को एक राष्ट्रीय मिशन की तरह लिया जाए.’


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पुरातत्व परिषद से जुड़े एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘सरस्वती नदी पर अब तक कई शोध हुए हैं लेकिन कुछ ही  प्रमाणिक जानकारी निकल कर सामने आई है. नदी कहां और कैसे, किस दिशा में बहती थी यह भी कई रिसर्च में निकलकर ठीक से सामने नहीं आया है. अब इंदिरा गांधी कला केंद्र संघ के एजेंडे के अनुरूप नदी के आसपास की सभ्यता और संस्कृति खोजने में जुटा है. पहले नदी के बारे में कुछ निकलकर सामने आए उसके बाद इन सब विषय पर खोज होनी चाहिये.’

चुनावी सभा में मोदी भी कर चुके हैं सरस्वती नदी का जिक्र

हरियाणा विधानसभा चुनाव 2014 के दौरान पीएम मोदी ने कुरुक्षेत्र में हुई अपनी चुनावी सभा में सरस्वती नदी को लेकर बात कही थी. उन्होंने कहा था कि ‘जब सरकार आएगी तो नदी के पुनरुद्धार के लिए काम करेंगे’. इसके बाद 2017 में सरकार ने फंड भी दिया था और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में नदी पर रिसर्च का काम भी शुरू किया था.

इंदिरा गांधी कला केंद्र जुटा सरस्वती का अस्तित्व खोजने में

देशभर में सरस्वती नदी को लेकर अब तक कई शोध हुए हैं लेकिन एक भी रिसर्च अपने मुकाम तक नहीं पहुंच सकी है. अब नदी के अस्तित्व को खोजने के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र आगे आया है. केंद्र अब तक नदी को लेकर हुई रिसर्च को एकत्र कर रहा है. इसके बाद कुछ बिंदुओं पर शोध को आगे बढ़ाया जाएगा. इस प्रोजेक्ट को लेकर बीते डेढ़ वर्ष में तीन बैठकें भी हो चुकी हैं. इनमें से एक बैठक बद्रीनाथ और दो दिल्ली में. नदी के अस्तित्व को लेकर दिल्ली में बड़ा व्याख्यान भी आयोजित किया जा चुका है.

इसरो, वाडिया इंस्टीट्यूट भी कर चुके हैं रिसर्च

सरस्वती नदी पर शोध अलग-अलग संस्थानों द्वारा किए गए हैं. इनमें प्रमुख तौर पर वाडिया इंस्टीट्यूट, आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अलावा हरियाणा सरकार भी शामिल है. हरियाणा सरस्वती विरासत विकास बोर्ड का गठन किया गया है. राज्य के सीएम मनोहर लाल खट्टर इसके अध्यक्ष हैं. जो राज्य में सरस्वती नदी के अस्तित्व को खोज कर रहा है. हरियाणा सरकार ने एक एप भी लांच किया है. जो नदी से संबंधित जानकारी प्रदान करता है. इसके अलावा एप नदी के अस्तित्व और प्रांसगिक अध्ययानों के ‘वैज्ञानिक प्रमाण’ की जानकारी भी देता है. सरकार हरियाणा में सरस्वती का लंबा प्रावाह क्षेत्र मानती है. जो यमुना नगर, कुरुक्षेत्र और कैथल के जिले में पड़ता है.

वाजपेयी सरकार कर चुकी है इस दिशा में काम

हरियाणा में 1999 के दौरान सरस्वती शोध संस्थान नाम से एक गैर-सरकारी संस्था का गठन हुआ. इस संगठन के अस्तित्व में आने के बाद सरस्वती को लेकर तेजी आई. 2002 में तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने पहली बार केंद्र सरकार के स्तर पर सरस्वती खोज अभियान शुरू किया. इस दौरान संस्कृति मंत्रालय, इतिहासकार और विज्ञान से जुड़े लोगों का एक पैनल भी बनाया गया लेकिन केंद्र में सत्ता परिवर्तन होने के बाद ही यह परियोजना रद्द कर दी गई.

सरस्वती नदी संस्कृति का मुख्य केंद्र बिंदु हुआ करती थी

इंदिरा गांधी ट्रस्ट के महेश शर्मा ने बताया कि, ‘वेदों और रिसर्च से मिली जानकारी के अनुसार सरस्वती नदी जब थी तब इसके किनारे ऋषियों के आश्रम और गुरुकुल थे. यह नदी पूरे क्षेत्र के संस्कृति का मुख्य केंद्र बिंदु हुआ करती थी. ऐसा माना जाता है कि यह ग्लेशियर वाली हमेशा पानी से लबालब रहने वाली नदी थी. पहाड़ पर रहने वाले लोग बताते हैं कि बद्रीनाथ के ऊपर बंदरपूंछ ग्लेशियर से बद्रीनाथ की व्यास गुफा से होते हुए यह अलकनंदा में मिल जाती है. ऐसा बताया जाता है कि हरियाणा में भूंकप के कारण यह नदी का पाट फैला और राजस्थान में यह गहराई में चली गई.’

शर्मा का कहना,’ केंद्र में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी तब इस प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू हुआ था, लेकिन कांग्रेस की सरकार के बाद संघ का एजेंडा बताते हुए बंद कर दिया. अब हम लोग इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के साथ मिलकर सरस्वती नदी के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. इस पर काम करने वालों के साथ-साथ इसरो जयपुर और बेंगलुरू के सेंटर की रिसर्च टीम नदी की खोज पर शोध कर रही है. वहीं भारतीय पुरातत्व परिषद केएन. दीक्षित की अध्यक्षता में अलग अलग ग्रुप बनाकर काम किया जा रहा है. जो रिसर्च पर पुस्तक तैयार होगी उसमें अभी तक का पूरा लेखा जोखा होगा. इसके बाद हम आगे के बारें में दिशा तय करेंगे. उम्मीद है यह किताब संक्राति तक तैयार हो जाएगी.’


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शर्मा का कहना है कि ‘इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सहयोग से हम जो प्रोजेक्ट चला रहे हैं, वह भी इसकी क्षमता से  ऊपर का है. सरस्वती नदी के कार्य के लिए जल्द ही अन्य संबंधित एजेंसियों से बात करेंगे. इसके बाद पर्यटन, संस्कृति और विज्ञान प्रौद्यौगिकी मंत्रियों से मिलकर इस संदर्भ में आगे का काम जल्द बढ़ाने को लेकर चर्चा करेंगे. हम चाहते हैं कि हमने जो जानकारी और रिसर्च एकत्र की है वह संबंधित विभाग और मंत्रालय आगे बांटकर आगे बढ़ाए. अगर सभी मिलकर काम करते हैं तो दो से तीन साल में सार्थक परिणाम निकलकर सामने आ सकेंगे.’

18वीं शताब्दी में हुई थी पहली रिसर्च

हरियाणा में सरस्वती नदी की खोज कर रहे प्रोफेसर एआर चौधरी ने बताया कि ‘सरस्वती नदी उत्तर भारत की सबसे पुरानी नदी रही है. इसके शोध की शुरुआत सबसे पहले 18वीं शताब्दी में हुई थी. इसके बाद इसरो ने भी इसकी खोज की. इसका कुछ भाग हरियाणा और राजस्थान में नजर आया. कई लोगों ने अपने अपने क्षेत्रों में इसको लेकर रिसर्च की.’

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