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Thursday, 28 March, 2024
होमदेशमोदी सरकार के खिलाफ बोलने वाले निजी विश्वविद्यालयों पर ख़ुफ़िया ब्यूरो की नज़र

मोदी सरकार के खिलाफ बोलने वाले निजी विश्वविद्यालयों पर ख़ुफ़िया ब्यूरो की नज़र

जुलाई में जब इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस के तमगे से विश्वविद्यालयों को नवाज़ा गया था तब रिलायंस फाउंडेशन के जियो इंस्टीट्यूट के इसमें शामिल होने पर हंगामा हुआ था.

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नई दिल्ली: मोदी सरकार कई प्रमुख निजी विश्वविद्यालयों जैसे अशोका युनिवर्सिटी, केआरईए और अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय को ‘इंस्टीट्यूट ऑफ एमीनेंस’ का दर्जा देने से कतरा रही है. ये इसलिए क्योंकि इंटेलिजेंस ब्यूरो का कहना है कि जो लोग इन संस्थानों से जुड़े है वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सत्ताधारी भाजपा के आलोचक रहे हैं. आईबी ने अपनी यह रिपोर्ट प्रकाश जावड़ेकर के नेतृत्व वाले मानव संसाधन विकास मंत्रालय को पिछले महीने भेजी है.

दिप्रिंट को एक नोट मिला है जिसमें अशोका युनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रताप भानु मेहता को मोदी सरकार का आलोचक बताया गया है. वहीं इस नोट में यह भी कहा गया है कि विश्वविद्यालय के अध्यक्ष, बोर्ड ऑफ ट्रस्टीस और संस्थापक, आशीष धवन , ‘द वायर.इन’ जैसी सरकार के खिलाफ प्रोपेगेंडा करने वाली साइट्स को धन देते हैं. धवन  निजी इक्विटी निवेशक और दानदाता धवन इंडीपेंडेन्ट पब्लिक स्पीरिटेड मीडिया फाउंडेशन (आईपीएसएमएफ) के बोर्ड मेंबर भी हैं. यह फाउंडेशन स्वतंत्र, जन उपयोगी और समाज पर असर डालने वाली पत्रकारिता की मदद करता है. आईपीएसएमएफ जिन प्रकाशनों को धन देते है उनमें ‘द वायर’ भी शामिल है. आईपीएसएमएफ दिप्रिंट को भी रिपोर्टिग और पब्लिशिंग के लिए वित्तीय मदद देता है, ताकि जनहित की पत्रकारिता की जा सके.

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आईबी के नोट में कहा गया है कि केआरईए विश्वविद्यालय के बोर्ड में, जिसने अभी कामकाज शुरू भी नहीं किया है, सरकार के आलोचक रहे आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन शामिल हैं. नोट में कहा गया है कि युनिवर्सिटी की गवर्निंग काउंसिल की एक सदस्य अनु आघा ने एक बार एक भाषण में कहा था कि ‘मोदी ने गुजरात में दंगाइयों को रोकने के लिए कुछ नहीं किया था.’ जहां तक अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की बात है, आईबी के इस नोट में कहा गया है कि अज़ीम प्रेमजी फिलेंथ्रोपिक इनिशिएटिव लिमिटेड जो कि टेक्नोलॉजी क्षेत्र की बड़ी कंपनी विप्रो की दानकर्ता शाखा है, द वायर को एक चैरिटेबल ट्रस्ट के ज़रिए धन दे रहा है.

नोट में ये भी कहा गया है कि इस विश्वविद्यालय ने एक स्टडी में इस बात को रेखांकित किया था कि ग्रामीण रोज़गार योजना, मनरेगा के तहत राष्ट्रीय कोष में कमी हो रही है. अज़ीम प्रेमजी ने विप्रो अर्थियन अवार्ड 2016 में कहा था, ‘ स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट, बात ज्यादा है काम कम. प्रधानमंत्री ज़रूर इसपर बहुत ज़ोर देते हैं पर इसका कार्यान्वयन बहुत उथला रहा है. ‘ मानव संसाधन मंत्रालय के उच्च शिक्षा सचिव आर सुब्रामणियम ने दिप्रिंट को बताया, ‘एमपावर्ड विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट को यूजीसी की कमीशन बैठक में 29 जनवरी को विचार किया जाएगा.’

सुब्रमण्यम ने इंटेलिजेंस ब्यूरो की रिपोर्ट पर कोई टिप्पणी नहीं की. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने अभी तक दिप्रिंट को कोई जवाब नहीं दिया है. उनके जवाब आने पर रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जायेगा.

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नये तरह के विश्वविद्यालय

आईबी ने मौजूदा सरकार के खिलाफ नकारात्मक टिप्पणियां करने वाले इन तीन निजी संस्थानों समेत कुल नौ संस्थानों का उल्लेख किया है. ये नौ संस्थान उन 12 निजी और 7 सार्वजनिक संस्थानो में शामिल हैं जो कि इंस्टीट्यूट ऑफ एक्सिलेंस की दूसरी सूचि में शामिल हैं, इनको पिछले महीने एमपावर्ड विशेषज्ञ समीति (ईईसी) ने शार्टलिस्ट किया था जिसके प्रमुख पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालास्वामी थे. इनमें पहले सेट के संस्थानों को आईओई का दर्जा पिछली जुलाई में दिया गया था, जिस सार्वजनिक क्षेत्र के संगठन को आईओई का दर्जा मिलेगा उसे सरकार से आगामी पांच सालों तक1000 करोड़ की सहायता मिलेगी. वहीं निजी क्षेत्र को नियामकों से पूरी छूट मिल जायेगी.

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यूजीसी को मानव संसाधन मंत्रालय के उच्च अधिकारियों की बैठक में इन सिफारिशों का अनुमोदन करना होगा. सरकार के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि इस आईबी के नोट, जिसे ‘उच्च स्तर तक पहुंचाया गया है’, की वजह से इन संस्थाओं को अभी तक एमीनेंस का दर्जा नहीं मिला है. जुलाई में जब इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस के तमगे से विश्वविद्यालयों को नवाज़ा गया था तब रिलायंस फाउंडेशन के जियो इंस्टीट्यूट के इसमें शामिल होने पर हंगामा हुआ था. ये इंस्टीट्यूट अबतक स्थापित भी नहीं हुआ है. जियो इंस्टीट्यूट को आईआईटी मुम्बई, आईआईटी दिल्ली, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलूरू और निजी संस्थान जैसे बिट्स पिलानी, मणिपाल युनिवर्सिटी को मिला था. ये दर्जा कुल 30 संस्थानों को क्रमबद्ध तरीके से मिलेगा.

गुजरात का भूत

इस आईबी नोट में इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन सेटलमेंट, बेंगलुरु का नाम भी शामिल है. इस दस्तावेज़ में कहा गया है कि साइसर गज़दर, जो कि इसके एक संस्थापक है और अध्यक्ष, सीबी भावे भी ‘द वायर’ को फंड करते हैं.
इस नोट के अनुसार, गज़दर उन याचिकाकर्ताओं में शामिल हैं जिसमें अदालत से मांग की गई थी कि अयोध्या की बाबरी मस्जिद – राम मंदिर के विवादित स्थल को गैर धार्मिक कामों के लिए इस्तेमाल किया जायें.

इस नोट में गुजरात दंगों में उनके द्वारा लिखे एक लेख का भी हवाला दिया गया है जिसका शीर्षक था ‘क्या धर्मनिर्पेक्षता व्यापार के लिए अच्छा है ?’ जहां उन्होंने ‘ मुस्लिम घरों पर हमलों को नरसंहार बताया था. ‘

आईबी के इस नोट में दूसरे निजी संस्थानों के विषय में भी टिप्पणी की गई है जिसमें जामिया हमदर्द, कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रीयल तकनालाजी, भुवनेश्वर, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हैल्थ, गांधीनगर, ओपी जिंदल ग्लोबल युनिवर्सिटी, सोनीपत, वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलोजी, वेल्लोर आदि शामिल है.

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जामिया हमदर्द के चांसलर हबील खोराकीवाला ने योजनाओं को पूरा करने पर सरकार के ट्रैक रिकार्ड पर संशय व्यक्त किया है- वे उदाहरण स्वरूप राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना की बात करते हैं जो कि गरीबों के लिए एक स्वास्थ्य बीमा है.
इस नोट में कहा गया है कि उन्होंने दवाओं की कमी, मूलभूत ढ़ाचे की कमी आदि को सरकार की महत्वाकांक्षी योजना आयुषमान भारत की राह में बड़ी अड़चन बताया है. ये योजना 2018 में शुरू हुई थी और उसके पहले की योजनाएं जैसे ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना’ और वरिष्ठ नागरिकों की स्वास्थ्य बीमा योजना समाहित की गई थी. जामिया हमदर्द के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘हम मेडिकल कॉलेजों में नं. 10 पर है और फारमेसी में नं. 2 पर, और इन सारे मामलों पर ध्यान दिया जाना चाहिए.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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