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Thursday, 31 October, 2024
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IAS अधिकारी ने CM नीतीश और टॉप अफसरों पर लगाया उसे घोटाले में फंसाने का आरोप, दी शिकायत

2017 में एक भर्ती परीक्षा घोटाले में नामित किए जाने के बाद, सुधार कुमार तीन साल से जेल में थे. पिछले साल उन्हें ज़मानत पर रिहा किया गया.

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पटना: एक आईएएस अधिकारी ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और कई अन्य शीर्ष अधिकारियों के खिलाफ शिकायत दायर की है, जिसमें 2017 में एक भर्ती परीक्षा घोटाले में, उसे कथित तौर पर झूठे तरीक़े से फंसाने का आरोप लगाया गया है.

शनिवार को, 1988 बैच के आईएएस अधिकारी सुधीर कुमार, सीएम और अन्य अधिकारियों के खिलाफ शिकायत एफआईआर दर्ज कराने के लिए पटना के एससी-एसटी पुलिस स्टेशन पहुंचे. लेकिन, 4 घंटे तक इंतज़ार करने के बाद भी पुलिस ने कोई एफआईआर दर्ज नहीं की.

कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं दोपहर 12 बजे पुलिस स्टेशन गया था. पुलिस अधिकारी ने मुझे 4 घंटे इंतज़ार कराया, लेकिन एफआईआर दर्ज नहीं की. अधिकारी ने कहा कि मेरी एफआईआर अंग्रेज़ी में लिखी हुई थी और उसे शिकायत को पढ़ना होगा. लेकिन, उसने मुहर लगाकर और अपने दस्तख़त के साथ शिकायत की कॉपी मुझे नहीं दी.

आईएएस अधिकारी ने 2017 में बिहार स्टाफ सेलेक्शन कमीशन (बीएसएससी) घोटाले में नामित किए जाने के बाद तीन साल जेल में बिताए थे. उन्हें पिछले साल ज़मानत मिली थी.

हालांकि कुमार ने एफआईआर के बारे में ज़्यादा बात नहीं की, लेकिन उन्होंने ये इशारा ज़रूर किया कि उसका ताल्लुक़ धोखाधड़ी और उनके खिलाफ मनगढ़ंत सबूत तैयार करने से था.

उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने इससे पहले 5 मार्च को पटना के एक दूसरे पुलिस थाने में इस एफआईआर को दर्ज कराने की कोशिश की थी. उन्होंने मुझे आश्वस्त किया था कि वो इसे दर्ज करेंगे, लेकिन उसे कभी दर्ज नहीं किया’.

अधिकारी ने, जो फिलहाल राजस्व बोर्ड के सदस्य हैं, ये भी संकेत दिया कि सीएम के अलावा शिकायत में मनु महाराज का नाम भी है, जो पटना के पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक हैं.

एक मंत्री ने नाम छिपाने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा कि कुमार की शिकायत के क़ानूनी परिणामों का आकलन करने के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय में एक बैठक बुलाई गई थी. लेकिन, बिहार सरकार को इस सिलसिले में कोई आधिकारिक जवाब प्राप्त नहीं हुआ है.

इस बीच सीएमओ के एक अधिकारी ने कहा कि कुमार से जुड़े मामले अदालत में हैं और कार्यालय ऐसे मामलों पर टिप्पणी नहीं कर सकता जो अदालत के विचाराधीन हैं.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘उन्होंने जो भी आरोप लगाए हैं, वो कोर्ट में हैं’.


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क्या है पूरा मामला

2017 में जब भर्ती परीक्षा का पर्चा लीक हुआ, तो कुमार बीएसएससी के अध्यक्ष थे जो बिहार में ग्रेड-3 कर्मचारियों की भर्ती करता है.

एसएसपी महाराज की अगुवाई में एक स्पेशल टीम ने पता लगाया कि लीक का संबंध आईएएस अधिकारी के आवास से था, जिसके बाद कुमार और उनके तीन रिश्तेदारों को गिरफ्तार कर लिया गया.

पिछले साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें ज़मानत पर रिहा कर दिया, जिसके बाद बिहार सरकार ने उन्हें राजस्व बोर्ड के सदस्य के तौर पर बहाल कर दिया, जिसे ऐसे आईएएस अधिकारियों का शंटिंग यार्ड माना जाता है, जो रिटायर होने वाले होते हैं.

उनके खिलाफ मुक़दमे पर अभी तक निचली अदालत में सुनवाई शुरू नहीं हुई है.

इस बीच, दिप्रिंट ने कई वकीलों से बात की जिन्हें समझ नहीं आ रहा था कि कुमार एफआईआर के ज़रिए सीएम को क्यों शर्मिंदा करना चाहते हैं.

पटना हाईकोर्ट के वकील अरविंद उज्ज्वल ने कहा, ‘एससी-एसटी एक्ट के तहत केस तभी बनता है जब सुधीर कुमार ये साबित कर दें कि उनकी जाति का नाम लेकर (कुमार एक दलित हैं) सीएम ने उन्हें अपमानित किया. लेकिन उनके पास सबूत अस्पष्ट हैं. अभी तक उन्होंने जो आरोप लगाए हैं वो सब मौखिक हैं’. पटना के एससी-एसटी पुलिस स्टेशन में केवल एससी-एसटी एक्ट के तहत ही मामले दर्ज किए जाते हैं.

एक और वकील ने, जो अपना नाम छिपाना चाहते थे, कहा कि कुमार को अपनी शिकायतों के साथ केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) का दरवाज़ा खटखटाना चाहिए था.

लेकिन, पूर्व मुख्य सचिव वीएस दूबे इससे सहमत नहीं थे, और उनका कहना था कि आईएएस अधिकारी को इस मामले को सरकार के साथ उठाना चाहिए था.

दूबे ने दिप्रिंट से कहा, ‘कैट सिर्फ सेवाओं से जुड़ी शिकायतों को देखता है आपराधिक मामले नहीं. सुधीर कुमार ने अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम का उल्लंघन किया है, जिसे ब्रिटिश राज से लिया गया है. इस नियम में कहा गया है कि सभी सेवारत अधिकारियों को अपनी शिकायतों को उच्च अधिकारी के पास लेकर जाना चाहिए. कुमार को अपनी शिकायतों के निवारण के लिए सीएम, राज्यपाल, या केंद्र सरकार के पास जाना चाहिए था. अगर उन्हें कोई जवाब न मिलता, तब वो कोर्ट जाने की अनुमति मांग सकते थे’.

बाद में कुमार अपनी शिकायत के साथ, चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के पास भी जा सकते थे.

राजनीतिक लहरें

2017 में गिरफ्तारी से पहले कुमार बिहार में कई प्रमुख पदों पर रहे थे, जिनमें पटना के ज़िला मजिस्ट्रेट का पद भी शामिल था.

जीतन राम मांझी के मुख्यमंत्री काल में उच्च-स्तरीय अधिकारी रहे कुमार के एफआईआर दर्ज कराने की असमर्थता, राजनीतिक हलक़ों में चर्चा का विषय बन गई है.

आरजेडी प्रवक्ता शक्ति यादव ने दिप्रिंट को बताया, ‘सुधीर कुमार जैसे वरिष्ठ अधिकारी बिहार में एफआईआर दर्ज कराने में असमर्थ हैं. ऐसे में आप सोच सकते हैं कि आम आदमी का क्या हाल होता होगा’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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