नई दिल्ली: देशभर में विरोध प्रदर्शन और देश के संवैधानिक लोकाचार को बदलने के लिए कथित और वास्तविक प्रयासों ने सिविल सेवकों में एक प्रकार की अशांति पैदा कर दी है, जिन्होंने अपनी चिंताओं और शिकायतों को साझा करने के लिए व्हाट्सएप ग्रुप का सहारा ले लिया है.
कई आईएएस, आईपीएस और आईआरएस अधिकारी, जिन्होंने दिप्रिंट से बात की, ने बताया कि अधिकारियों में बोझ, असुरक्षा और चिंता की एक भावना घर कर गई है है, जिसे वे सार्वजनिक रूप से व्यक्त करने में सावधानी बरत रहे हैं, लेकिन अपने साथियों और सहयोगियों के साथ व्हाट्सएप ग्रुप में साझा कर रहे हैं.
जबकि, कई अधिकारी जो सरकार की नीतियों का समर्थन करते हैं, उन्होंने सरकार के लिए ट्विटर और फेसबुक का सहारा लेना शुरू कर दिया है. लेकिन जो आलोचनावादी या आशंकित हैं वे अपने डर को व्यक्त करने के लिए व्हाट्सएप ग्रुप का सहारा ले रहे हैं.
प्रसारित किए जा रहे संदेशों में जर्मन लूथरन पादरी मार्टिन नीमोलर की क्लासिक कविता की पंक्तियां हैं, ‘पहले वे कम्युनिस्टों के लिए आए थे…………. यह जॉर्ज ऑरवेल के कविता का अंश है.
एक आईएएस अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘अफसरों में यह भावना बढ़ रही है कि सरकार किसी को भी असुविधा होने पर उसके पास आ सकती है. अधिकारियों का नाम नहीं है, लेकिन (चुनाव आयुक्त अशोक) लवासा की पसंद वाले अधिकारियों टारगेट किया गया है, जिससे यह लगने लगा है कि आगे हम में से कोई भी हो सकता है, जिसे आगे भेजा जा सकता है.
एक आईएएस अधिकारी ने अपने समूह में एक संदेश में लिखा था. खुद को मूर्ख मत बनने दो. कोई सुरक्षा नहीं है. संवैधानिक सुरक्षा भी नहीं है. यह एक मास्टर-स्लेव रिलेशनशिप (मालिक और दास के रिश्ते जैसा) है.
जांच एजेंसियों की काली छाया
वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों के बीच असुरक्षा की बढ़ती भावना इस धारणा से उपजी है कि मोदी सरकार कई सिविल सेवकों पर जांच एजेंसियों को भेज रही है -इसमें सेवारत और सेवानिवृत्त अधिकारी और जो अधिकारी कांग्रेस पार्टी के करीबी माने जाते हैं या जो मौजूदा विवाद के प्रति विरोधी दिखते हैं.
इस साल की शुरुआत में, नीति आयोग के सीईओ सिद्धुश्री खुल्लर सहित छह आईएएस अधिकारियों को 13 साल पुराने आईएनएक्स मीडिया मामले में सीबीआई जांच के दायरे में लाया गया था, जिसमें पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम को गिरफ्तार किया गया था.
इसके बाद 70 से अधिक नौकरशाहों ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर अधिकारियों की अभियोजन पर चिंता व्यक्त की और कहा कि इसका मेहनती और ईमानदार अधिकारियों पर प्रभाव पड़ रहा है.
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इसी समय सीबीआई और ईडी जैसी जांच एजेंसियां चुनाव आयुक्त अशोक लवासा के परिवार की जांच कर रही हैं, यह तब हुई जब सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी लवासा ने चुनाव आयोग द्वारा 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को कथित आदर्श आचार संहिता उल्लंघन के मामलों में दी गई क्लीन चिट देने से मना कर दिया था.
इसके अलावा सरकार ने पूर्व वित्त सचिव सुभाष गर्ग या पूर्व मानव संसाधन विकास सचिवों आर सुब्रह्मण्यम और रीना रे जैसे कई सचिव स्तर के अधिकारियों को अलग-थलग कर दिया है, साथ ही वरिष्ठ अधिकारियों के बीच अप्रसन्नता और असुरक्षा की भावना भी है.
अधिकारी इस बात से सहमत हैं कि अफसरों के अफसरशाही पर हतोत्साहित करने वाला प्रभाव पड़ता है, क्योंकि अगर अधिकारी सरकार के साथ खड़े नहीं रहते हैं तो उन अधिकारियों को सरकार से बैकलैश का डर बना रहता है.
एक अधिकारी ने कहा, ‘सभी अधिकारी व्हाट्सएप ग्रुप पर अपने विचार रखने के लिए तैयार नहीं होते हैं – ग्रुप पर जासूसी की संभावना को देखते हुए कुछ अधिकारी अपने समर्थन का विस्तार करते हुए मुखर अधिकारियों को निजी संदेश भेजते हैं.
अधिकारी ने कहा, ‘बहुत बार जब मैंने ग्रुप पर कुछ पोस्ट किया है, तो कुछ अधिकारी मुझे व्यक्तिगत रूप से संदेश भेजते हुए कहते हैं कि वे मुझसे सहमत हैं, कभी-कभी वे मुझसे सतर्क रहने के लिए भी कहते हैं.’
एक अन्य अधिकारी ने कहा कि क्लोज्ड व्हाट्सएप ग्रुप को ‘सुरक्षित स्थान’ माना जाता है. अधिकारियों को पता है कि उन्हें साथी बैचमेट्स द्वारा संदेशो को ‘उजागर’ किया जा सकता है. फिर भी, लोग अपने विचार साझा कर रहे हैं क्योंकि लोग वास्तव में चिंतित हैं अन्यथा, यहां तक कि हम जानते हैं कि जब आप साइबरस्पेस में कुछ डालते हैं, तो उसके बाद कुछ भी छिपाना संभव नहीं होता है.
हालांकि, अधिकारियों ने कहा कि महत्वपूर्ण पदों पर रहने वाले हमेशा अपने विचार व्यक्त करने से बचते हैं.
नीतियों पर चर्चा की जा रही है, आलोचना भी की गई
सिविल सेवकों को किसी भी सरकारी नीतियों की खुले तौर पर आलोचना करने से रोक दिया जाता है, निजी ग्रुप चैट पर मोदी सरकार के नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ आवाज उठाई जाती है, देशव्यापी विरोध प्रदर्शनों के बीच सरकार के प्रति प्रतिक्रिया बढ़ रही है.
आईएएस अधिकारी ने कहा कि निजी ग्रुप पर (अमेरिकी राष्ट्रपति) डोनाल्ड ट्रम्प के यात्रा प्रतिबंध को पैरलल में चलाया जा रहा है. ऐसा सभी अधिकारी नहीं कर रहे हैं लेकिन निश्चित रूप से उनमें से कुछ इस बारे में बात कर रहे हैं कि अनुच्छेद 14 को कैसे पलट दिया जा रहा है.
ग्रुप पर भेजे गए कुछ संदेश इस प्रकार हैं, ‘आगे जाकर, सरकार एक ही धर्म के अपराधियों के लिए अलग-अलग दंडों को निर्धारित करना शुरू कर सकती है.’ भारत एक वास्तविक शक्ति (सॉफ्ट पावर या हार्ड पावर) के बिना अस्थिर देश बन रहा है. भारत कभी भी चीन नहीं बन सकता है और अब भारत भी वह भारत नहीं है जिसे हम जानते थे.
मोदी सरकार द्वारा शुरू किए गए सिविल सेवा सुधारों के बारे में भी चिंता है. जब हम सरकार को कैडर और सेवा आवंटन के नियमों को बदलने या सरकार द्वारा सूची में सम्मिलित करने को ख़त्म करने के बारे में पढ़ते हैं, तो व्हाट्सएप पर चिंताएं साझा की जाती हैं कि ये समय सिविल सेवा के अंत को देख सकता है जैसा कि हम जानते हैं.
दूसरे अधिकारी ने कहा कि सभी अधिकारियों के पास सिविल सेवा छोड़ने और दूसरा करियर बनाने का साधन नहीं है, लेकिन सरकारी नीतियों में निराशा की भावना है.
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इस बात पर एक आईआरएस अधिकारी सहमत होते हुए कहते हैं, ‘हम इस बारे में बात करते हैं कि सरकार की प्राथमिकताएं कैसे गलत हैं अर्थव्यवस्था के निर्माण के बजाय, वे हमारे लोकतंत्र के स्तम्भों को तोड़ रहे हैं. ‘नौकरशाही को लोगों से अलग देखा जाता है, लेकिन हम आमलोगों का ही एक विस्तार है और वही भय हम में भी है.’
आईआरएस अधिकारी ने कहा, ‘हमें यह भी आश्चर्य है कि सरकार लगातार चुनाव मोड में क्यों है, हमें अपना सिर नीचे रखना होगा और काम करना होगा – कहीं ऐसा न हो कि हमें कालापानी भेज दिया जाए.
हालांकि, एक आईपीएस अधिकारी इस बारे में आशावादी नहीं दिखे उन्होंने कहा कि इससे क्या निकल सकता है. ‘सिविल सेवकों को बड़े विशेषाधिकार प्राप्त हैं. अधिकारी ने कहा, ‘हम स्वार्थ से प्रेरित हैं. हममें से ज्यादातर लोग फुसफुसाते हुए आलोचना करेंगे, लेकिन इससे ज्यादा कुछ नहीं.’ जब भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता खो देती है, तो हम में से कई बाहर आ जाएंगे और इस बारे में किताबें लिखेंगे कि ये अशांत समय कैसा था.’
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