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Sunday, 26 May, 2024
होमदेशडर था नक्सली बताकर कर दिया जाएगा एनकाउंटर, बोले झारखंड के पत्रकार रूपेश कुमार

डर था नक्सली बताकर कर दिया जाएगा एनकाउंटर, बोले झारखंड के पत्रकार रूपेश कुमार

डीएसपी रवीश कुमार व सहायक पुलिस सुपरीटेंडेंट ने कहा था, 'ये तीनों लोग नक्सलियों के लिए हथियारों की खेप पहुंचा रहे थे. इनके पास से इलेक्ट्रॉनिक डेटोनेटर और 32 जिलेटिन छड़ मिले हैं.

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रामगढ़: पिछले दिनों (बीते 6 जून) गया पुलिस ने प्रेस कांफ्रेंस कर बताया था कि उन्होंने तीन नक्सलियों को गिरफ्तार किया है, चौंकाने वाली बात ये थी इन तीन कथित नक्सलियों में स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार भी थे. ये खबर बोकारो में रह रही इप्सा शताक्षी के लिए किसी सदमे से कम नहीं थी.

अभी इप्सा पति के गिरफ्तार किए जाने और नक्सली कहे जाने के सदमें से उभर भी नहीं पाईं थीं कि एक के बाद एक नई मुसीबत उनके गले पड़ती जा रही थी. वह बताती हैं, ‘इस घटना के पांच दिन बाद हमसे बोकारो में मकान खाली करवा लिया गया.’

‘रामगढ़ में रहे रूपेश के छोटे भाई से भी किराए का मकान खाली करवा लिया गया. इसके बाद दो महीने तक पूरा परिवार किसी दोस्त के पुराने खंडहर हो चुके घर में रहा जहां ना बिजली की व्यवस्था थी और ना ही शौचालय की.’

छह महीने बाद रूपेश कुमार को 5 दिसंबर को जमानत मिली है और वो अपने परिवार के पास आए हैं. दिप्रिंट से हुई खास बातचीत में गिरफ्तारी के दिन के बारे में बताते हैं, ‘मैं उस दिन ड्राइवर मोहम्मद कलाम और रामगढ़ के एडवोकेटे मिथिलेश कुमार सिंह के साथ जा रहा था. अचानक से दो बाइक और एक बोलेरो से आए तीन लोगों ने मुझे हज़ारीबाग के पास पद्मा नाम की जगह से उठा लिया. बोलेरो में बैठाते ही उन्होंने मेरी आंखों पर काली पट्टी और हाथ में हथकड़ी लगा दी. मैं पूछता रहा कि क्या कर रहे हो? कहां ले जा रहे हो? ‘


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वो आगे कहते हैं, ‘फिर वो मुझे हाइवे पर दो घंटे तक घुमाते रहे ताकि मुझे दिशा का आभास ना रहे. इस दौरान वो किसी से फोन पर बात कर रहे थे. उनकी बातों में एनकाउंटर जैसे शब्द इस्तेमाल किए जा रहे थे. मैंने आदिवासियों के एनकाउंटर पर रिपोर्ट्स की हैं लेकिन उस वक्त एनकाउंटर शब्द सुनकर मेरे शरीर में सिहरन पैदा हो गई और मुझे अपने दो साल के छोटे बेटे का ख्याल आने लगा. पुलिस वाले मुझसे पूछ रहे थे कि मैं माओवादी नेता संदीप जादव से मिलने क्यों जा रहा हूं जबिक मैंने उस नेता का नाम सिर्फ अखबारों में पढ़ा था. इसके बाद पुलिस वाले मुझे गया के बाराचट्टी थाना ले गए और मुझसे पूछताछ की. बाद में समझाने लगे कि पत्रकार तो और भी हैं, उनकी तरह लिखा करो. ये सब क्या लिखते रहते हो. सरकार से इतनी तकलीफ क्यों है.

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क्या था प्रेस कॉन्फ्रेंस में पुलिस का दावा?

प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले डीएसपी रवीश कुमार व सहायक पुलिस सुप्रिंटेंडेंट का कहना था, ‘ये तीनों लोग नक्सलियों के लिए हथियारों की खेप पहुंचा रहे थे. इनके पास से 15 बंडल इलेक्ट्रॉनिक डेटोनेटर और 32 जिलेटिन छड़ मिले हैं. साथ ही इनके घर से नक्सली साहित्य भी बरामद किया गया है.’

पुलिस का ये दावा भी था कि तीनों को गया के डोभी से नेशनल हाईवे नंबर दो से गिरफ्तार किया गया है. डोभी थाने के एसएचओ राहुल रंजन के बयान के आधार पर ही तीनों के खिलाफ भारतीय दंड विधि की धारा 414/120 (बी), आर्म्स एक्ट की धारा 3 व 4 तथा यूएपीए की धारा 10/13/18/20/38 और 39 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी. अपने बयान में राहुल रंजन ने बताया कि मौके पर कोई स्वतंत्र साक्षी मौजूद नहीं था. इसलिए उन्होंने खुद को और सशस्त्र बल के एक जवान को इस केस में प्रत्यक्षदर्शी बनाया.

आरोपों पर क्या कहते हैं रूपेश कुमार?

नक्सली साहित्य के नाम पर रूपेश हंसते हुए कहते हैं, मेरे घर से पुलिस ने लेखक राहुल पंडिता की सलाम बस्तर, रामशरण जोशी की यादों का लाल गलियारा, जूलियस फ्यूचिक की फांसी के तख्ते से और कम्यूनिस्ट पार्टी की बुनियादी समझदारी जैसी किताबें बरामद की हैं. मेरी गाड़ी में पुलिस द्वारा बताए गए कोई भी हथियार नहीं थे. ये सब पुलिस ने बाद में मेरी गाड़ी में रखवाए. साथ ही सीपीआई ‘एम’ की प्रेस रिलीज डाउनलोड करके मेरी गाड़ी में रख दी गई. इस घटनाक्रम का पुलिस के पास कोई स्वतंत्र साक्षी भी नहीं है इसलिए खुद पुलिस ही इस मामले की गवाह भी बन गई है. इस मामले को अब छह महीने हो गए हैं लेकिन पुलिस अभी तक चार्जशीट तक फाइल नहीं कर पाई है.

वो केस की फाइलें खोलकर दिखाते हैं जहां पुलिस ने केस डायरी में लिखा है, ‘एक पत्रकार के रूप में ये सरकार की जनविरोधी योजनाओं का सोशल मीडिया और पत्रिकाओं में विरोध करते हैं.’

कैसे लोगों का रवैया बदल गया?

वो कहते हैं, ‘ भले ही सोशल मीडिया पर मेरे लिए आंदोलन चलाया गया हो लेकिन जब मैं जेल में था तो मेरी पत्नी बताती थीं कि किस तरह मेरी गिरफ्तारी के बाद पत्रकार भी दूर से ही फोटो खींचकर भाग जाते थे. कोई भी पास आने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था. कोई परिवार से बात करना भी नहीं चाहता था. इस केस ने मेरे पूरे परिवार को सड़क पर ला दिया है.’

7 जून तक रूपेश को शेरघाटी जेल रखा गया था और उसके बाद 25 सितंबर को गया सेंट्रल जेल भेज दिया गया. जेल के अनुभव को लेकर वो कहते हैं, ‘ गया जेल में मैं सौ से ज्यादा किताबें पढ़ गया. अच्छी बात है कि जेलों में लाइब्रेरी हैं.’

रूपेश और इनके साथ गिरफ्तार हुए वकील को सीआरपीसी 167(2) के तहत जमानत मिली है. मोहम्मद कलाम को हाईकोर्ट ने 8 नंवबर को जमानत दे दी थी. गया डिस्ट्रिक कोर्ट में ब्राहमनंद शर्मा रूपेश के वकील है. साथ ही स्थानीय वकील श्यामकुमार सिन्हा ने भी समय-समय पर गाइड कर रहे हैं.

झारखंड के चुनाव को लेकर रूपेश कहते हैं कि अभी दो तीन दिन परिवार के साथ समय बिता लूं उसके बाद चुनावी रिपोर्टिंग पर निकलूंगा.

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