लखनऊ: ‘निगरानी के लिए कोई उपकरण नहीं था, कंप्यूटर का इस्तेमाल करने से पुलिस वाले डरते थे, माउस इस डर से नहीं छूते थे कि कहीं करंट न लग जाए.’ उत्तर प्रदेश (यूपी) पुलिस के स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के बारे में याद करते हुए सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी राजेश पांडे कहते हैं. साल 1998 में यूपी एसटीएफ की स्थापना हुई थी. मूल टीम का हिस्सा रह चुके पांडे ने कहा कि उन्होंने इस यूनिट में एक लंबा सफर तय किया है.
गुरुवार को यूपी एसटीएफ ने 25 साल पूरा किया और उसी दिन ‘गैंगस्टर’ अनिल दुजाना को मार गिराया. योगी आदित्यनाथ के 2017 में यूपी के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद से यह यूनिट की 184वीं मुठभेड़ माना जा रहा है. इससे पहले इनकाउंटर गैंगस्टर से नेता बने अतीक अहमद के बेटे असद और उसके साथी का पिछले महीने एनकाउंटर नंबर 183 हुआ था. इसके कुछ दिन बाद ही अतीक और उसके भाई अशरफ की पुलिस की मौजूदगी में हत्या कर दी गई थी.
64 आपराधिक मामलों का आरोपी दुजाना कथित तौर पर नोएडा, गाजियाबाद और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के अन्य हिस्सों में लोगों को आतंकित करने के लिए जाना जाता था. एसटीएफ ने कहा कि वह मेरठ में एक मुठभेड़ में मारा गया. हालांकि, दुजाना के वकील ने गुरुवार को दिप्रिंट को बताया कि उसे दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट के बाहर से उठाया गया था.
एसटीएफ की स्थापना के बारे में बात करते हुए, पांडे ने दावा किया कि इसे ‘अस्थायी आधार’ पर स्थापित किया गया था. जब इसकी स्थापना हुई थी उस वक्त एसटीएफ के पास टेलीफोनिक निगरानी के लिए सिर्फ 5,000 रुपये के उपकरण थे. उन्होंने कहा कि एसटीएफ की स्थापना का पहला उद्देश्य खूंखार ‘गैंगस्टर’ श्री प्रकाश शुक्ला से निपटना था.
शुक्ला को उसी साल एसटीएफ ने एनकाउंटर में मार गिराया था, जिस साल इसकी स्थापना की गई थी.
पांडे ने कहा, ‘1990 के दशक में, उत्तर भारत, खासकर यूपी में अपराध अपने चरम पर था और उस समय के कई गैंगस्टर बाद में राजनीति में आ गए. उस समय के कई खूंखार अपराधियों से निपटने के लिए तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार ने 17 अधिकारियों को मिलाकर यूपी एसटीएफ का गठन किया था और इसका मुख्य लक्ष्य श्री प्रकाश शुक्ला से निपटना था. वह उस समय काफी उग्र हो गया था.’
सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी पांडे ने 1998 में अयोध्या निवासी ठेकेदार संतोष सिंह की कथित हत्या के बारे में भी बात की. इसमें धनंजय सिंह, जो अब जनता दल (यूनाइटेड) के सदस्य हैं, और गुड्डू मुस्लिम, जो कथित तौर पर अतीक अहमद का सहयोगी था, का नाम सामने आया था.
जबकि एसटीएफ कई अन्य मामलों को लेकर गुड्डू मुस्लिम की तलाश कर रही है. हालांकि सिंह ने इन आरोपों से इनकार किया है.
अस्थायी तौर पर 6 महीने के लिए बनाया गया था
पांडे ने याद करते हुए कहा कि उस वक्त यह अफवाह मची थी कि ‘गैंगस्टर’ श्री प्रकाश शुक्ला ने उत्तरप्रदेश के के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को मारने की सुपारी ली थी.
वह कहते हैं, ‘जहां तक मुझे पता है, शुक्ला यूपी के पहले व्यक्ति थे जिसने एके -47 का इस्तेमाल किया था. उन्होंने कथित तौर पर पटना में बिहार के तत्कालीन मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की हत्या कर दी.’
यूपी एसटीएफ के पहले प्रमुख अजय राज शर्मा द्वारा लिखी गई एक किताब, ‘बिटिंग द बुलेट: मेमोयर्स ऑफ ए पुलिस ऑफिसर’ का हवाला देते हुए, जिसमें उन्होंने एसटीएफ की स्थापना का जिक्र किया था, पांडे ने कहा, ‘जब सीएम ने पहली बार उन्हें [शर्मा को फोन किया था , एसटीएफ बनाने के सिलसिले में] फोन किया था तो वह काफी परेशान थे. उन्होंने शर्मा की देखरेख में एक यूनिट स्थापित करने का निर्देश दिया. शुरू में इसमें तीन-चार लोगों को तैनात किया गया था, जिनमें IPS अधिकारी अरुण कुमार, सत्येंद्र वीर सिंह और मैं शामिल था. इसके अलावा कुछ ड्राइवर, एक सब-इंस्पेक्टर और 10-12 कांस्टेबल शामिल थे.’
पांडे ने याद करते हुए कहा कि शुक्ला ने ऐसा डर पैदा किया था कि सरकार ने 15 से 20 दिन के भीतर एसटीएफ का गठन किया था. शुरू में इसे छह महीने के लिए बनाया गया था.
पांडे ने कहा, ‘कोई निगरानी उपकरण नहीं था. न ही अधिक कंप्यूटर थे. शुरू में तो पुलिस वाले माउस को पकड़ने से भी डरते थे क्योंकि उन्हें करंट लगने का डर रहता था.’
उन्होंने कहा, ‘पुलिस अधिकारियों को कंप्यूटर का उपयोग करने के तरीके सिखाने के लिए एक कंप्यूटर संस्थान के मालिक को भी शामिल किया गया था. उस समय सैकड़ों गिरोह और संगठित माफिया सक्रिय थे. इसमें से अधिक माफिया अपहरण जैसी घटनाओं को अंजाम देते थे. लेकिन, एसटीएफ का मुख्य लक्ष्य शुक्ला था और इसका गठन केवल 6 महीने के लिए किया गया था. इसके साथ ही कथित हथियारों की तस्करी से जुड़े अपराधी, नकली भारतीय करेंसी नोट बनाने वाले और कुछ इनामी अपराधी भी एसटीएफ के रडार पर थे.’
इस सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी के मुताबिक, यूपी एसटीएफ को शुक्ला जैसे खूंखार ‘गैंगस्टर’ का सफलतापूर्वक सफाया करने के बाद स्थायी किया गया था.
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‘शुक्ला की तस्वीर बनाने के लिए अभिनेता सुनील शेट्टी की तस्वीर का इस्तेमाल’
जब पांडे से पूछा गया कि यूपी एसटीएफ को अपने लक्ष्य श्रीप्रकाश शुक्ला के बारे में कैसे पता चला तो उन्होंने कहा कि शुरू में तो शुक्ला की फोटो के लिए एसटीएफ को काफी संघर्ष करना पड़ा.
उन्होंने कहा, ‘शुक्ला किसी की हत्या करने के लिए उसपर कई गोलियां दागता था. किसी को मारने के लिए एक गोली पर्याप्त होती है लेकिर वह डर पैदा करने के लिए बार-बार गोली मारता था. इससे यह होता था कि लोगों के बीच एक डर पैदा होता था और लोग आसानी से वसूली का भुगतान कर देते थे.’
पांडे ने कहा, ‘शुक्ला ने गोरखपुर में एक फोटो स्टूडियो के मालिक की हत्या कर दी थी. जिसने किसी की सलाह पर उसकी तस्वीर लेने की कोशिश की थी. हमें उसकी तस्वीर उसकी भतीजी की बर्थडे पार्टी की तस्वीरों में मिली, जहां वह मौजूद था.’
यह याद करते हुए कि ‘गैंगस्टर’ ने अपनी पहचान करना कितना मुश्किल बना दिया था, सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी ने कहा, ‘शुक्ला का बहनोई खूब रोया और कहा कि अगर शुक्ला को पता चल गया कि पुलिस के पास जन्मदिन की पार्टी की तस्वीरें हैं, तो वह उसके पूरे परिवार को मार देगा.’
अपने सोर्स (शुक्ला के बहनोई) की सुरक्षा के लिए, एसटीएफ ने ‘गैंगस्टर’ की तस्वीर बनाने के लिए एक फिल्म स्टार के धड़ की तस्वीर को उसके सर के साथ मिलाने का फैसला किया.
पांडे ने दावा किया, ‘मैंने सुनील शेट्टी की तस्वीर लखनऊ में एक पोस्टर में देखा और एक फोटोग्राफर से शेट्टी के धड़ के साथ शुक्ला की तस्वीर को मिलाने के लिए कहा.’
एसटीएफ ने आईआईटी कानपुर के एक छात्र को शुक्ला के द्वारा फोन पर किए गए बातचीत को ट्रैक करने के लिए एक उपकरण बनाने के लिए कहा गया. पांडे ने खुलासा किया, यह संभवतः भारत में टेलीफोन टैपिंग का पहला मामला था. यह उपकरण 5000 रुपये में बनाया गया था.
‘लखनऊ यूनिवर्सिटी में गुड्डू मुस्लिम ने शुरू की बमबारी’
पांडे ने दावा किया कि बीजेपी नेता उमेश पाल की फरवरी में हत्या के आरोपियों में से एक गुड्डू मुस्लिम भी 1990 के दशक में सक्रिय होना शुरू कर दिया था.
एसटीएफ आज जिस ‘बम स्पेशलिस्ट’ की तलाश कर रही है, माना जाता है कि वह अतीक अहमद का करीबी सहयोगी था, जिसकी 15 अप्रैल को प्रयागराज में उसके भाई अशरफ के साथ हत्या कर दी गई थी.
पाण्डेय के अनुसार 90 के दशक में लखनऊ विश्वविद्यालय में बम मारने की शुरुआत गुड्डू मुस्लिम ने ही की थी.
पांडे ने कहा, ‘गुड्डू मुस्लिम, मूल रूप से सुल्तानपुर के गोसाईंगंज का रहने वाला था और आशीष चौधरी के नाम पर लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रावास में ढाई साल तक रहा था.’
इस सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी ने कहा, ‘जब अतीक अहमद ने उसे साल 2001 में [नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट मामले में] जमानत दिलाने में मदद की, तो उसके बाद अतीक ने उसे प्रयागराज के चकिया में एक घर भी दिया. उसके बाद गुड्डू ने शादी भी की. तब से अब तक वह अतीक के साथ था. अतीक ने गुड्डू पर बहुत कई एहसान किए थे. गुड्डू ने भी छाया की तरह उसका साथ दिया.’
पिछले महीने प्रयाग में पुलिस हिरासत में मेडिकल जांच के लिए ले जाने के दौरान अतीक और उसके भाई अशरफ की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. गोलीबारी के बाद से तीन संदिग्धों को हिरासत में लिया गया है. गोली मारे जाने से ठीक पहले अशरफ गुड्डू मुस्लिम के बारे में ही कुछ बोल रहा था.
अतीक अहमद, अशरफ, गुड्डू मुस्लिम और अतीक अहमद के परिवार के कई सदस्य और उनका गिरोह साल 2005 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के विधायक राजू पाल की हत्या और फरवरी में उमेश पाल की हत्या के मामले में मुख्य आरोपी हैं. राजु पाल की हत्या का मुख्य गवाह उमेश पाल की हत्या इसी साल कर दी गई थी.
पांडे ने 1998 में लखनऊ-रायबरेली रोड पर कथित तौर पर एक दुर्घटना में मारे गए अयोध्या के ठेकेदार संतोष सिंह की मौत में गुड्डू मुस्लिम का हाथ होने की बात कही.
इस सेवानिवृत्त अधिकारी ने आरोप लगाया कि उनकी मौत की साजिश गुड्डू मुस्लिम और धनंजय सिंह द्वारा रची गई हत्या थी.
पांडे ने आरोप लगाते हुए कहा, ‘गुड्डू मुस्लिम और धनंजय सिंह ने उसे कथित तौर पर कोल्ड ड्रिंक में जहर मिलाकर पिला दिया जिसके बाद वह बेहोश हो गया था. हालांकि, वे उसकी मौत के बारे में निश्चिंत नहीं थे कि वह मर गया है. उसके बाद उनलोगों ने लखनऊ-रायबरेली रोड पर उसे फेंकने से पहले उसका गला घोंट दिया और फिर उसके शरीर पर गाड़ी चढ़ा दी.’
पिछले महीने गोसाईंगंज के विधायक अभय सिंह के सहयोगी रणधीर सिंह लल्ला ने भी गुड्डू मुस्लिम और धनंजय सिंह पर संतोष की हत्या का आरोप लगाया था. हालांकि जब दिप्रिंट धनंजय सिंह से इन आरोपों के बारे में पूछा था तो उन्होंने इससे मना कर दिया था.
(संपादन: ऋषभ राज)
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