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Sunday, 28 April, 2024
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क्या गुड्डू मुस्लिम ने अतीक की पीठ में छुरा घोंपा? यह ‘बंबाज’ अपने पुराने आकाओं को दे चुका है धोखा

उत्तरप्रदेश पुलिस ने उमेश पाल हत्याकांड में गुड्डू मुस्लिम, एक शातिर 'बंबाज', की तलाश शुरू कर दी है, जिसका जिक्र अतीक अहमद के भाई अशरफ ने अपनी मौत से कुछ समय पहले किया था. 

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प्रयागराज/लखनऊ: क्या गुड्डू मुस्लिम ने अपने उर्फ (बॉस) की पीठ में छुरा घोंपा? उत्तर प्रदेश पुलिस हलकों में अटकलें तेज हैं क्योंकि वे इस ‘बम एक्सपर्ट’ को पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं. गुड्डू मुस्लिम का जिक्र अशरफ अहमद ने 15 अप्रैल को प्रयागराज में उनके और उनके भाई अतीक अहमद के मारे जाने से कुछ समय पहले किया था.

स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने उमेश पाल हत्याकांड के आरोपियों में से एक और अतीक के करीबी माने जाने वाले गुड्डू की तलाश शुरू कर दी है. पुलिस गुड्डू के पहले के मालिको के प्रति उसकी वफादारी के एंगल से भी जांच कर रही है. खासकर अशरफ के आखिरी शब्द ने इस बात को और हवा दी है.

प्रयागराज के कोल्विन अस्पताल के बाहर अतीक और उसके भाई अशरफ की गोली मारकर हत्या करने से कुछ सेकंड पहले अशरफ मीडियाकर्मियों के सवालों का जवाब दे रहा था जब उसने गुड्डू का जिक्र किया. उसने कहा था, ‘मेन बात ये है कि गुड्डू मुस्लिम…’ अतीक और अशरफ को पुलिस मेडिकल जांच के लिए अस्पताल लेकर गई थी.

प्रयागराज के पुलिस अधीक्षक (नगर) दीपक भुकर ने दिप्रिंट से कहा, ‘गुड्डू मुस्लिम पहले भी अपने बॉस की पीठ में छुरा घोंपने के लिए जाना जाता रहा है.’

हालांकि, अतीक और अशरफ के बारे में जानकारी लीक करने की अटकलों के बारे में पूछे जाने पर, यूपी के पूर्व पुलिस महानिरीक्षक राजेश पांडे ने कहा, ‘गुड्डू मुस्लिम के पास अतीक के बारे में जानकारी लीक करने और उसकी पीठ में छुरा घोंपने का साधन नहीं है.’

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गुड्डू के खिलाफ संभावित कार्रवाई के बारे में पूछे जाने पर, मामले से जुड़े एक वकील, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘वह अतीक-अशरफ का सबसे करीबी सहयोगी था. जब उससे पूछताछ की जाएगी तो वह अतीक की संपत्तियों, शेल कंपनियों और निवेश के बारे में कई जानकारियां देगा. वह पुलिस की हिटलिस्ट में है.’

इस बीच, समाचार रिपोर्टों से पता चलता है कि यूपी पुलिस गुड्डू को नासिक में ढूंढ रही हैं. साथ ही लखनऊ में एक किसान नेता देवेंद्र तिवारी की कार पर गुड्डू मुस्लिम के नाम से एक चिट्टी चिपकी मिली है जिसमें लिखा है कि ‘इलाहाबाद में 20 लाख रुपये लाओ या मौत का सामना करो’. तिवारी ने इस चिट्ठी के बारे में पुलिस कमिश्नर को लिखा है. उन्होंने इसकी पुष्टि दिप्रिंट से भी की है.

‘बम स्पेशलिस्ट’ और उनके बॉस

इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के शिवकुटी इलाके में जन्मे, गुड्डू का अपराध से कथित जुड़ाव उसके स्कूल के दिनों से है. प्रयागराज पुलिस सूत्रों ने कहा कि उसके व्यवहार से नाखुश उसके माता-पिता ने उसे आगे की पढ़ाई के लिए लखनऊ भेज दिया था.

लेकिन सूत्रों ने कहा कि लखनऊ में भी गुड्डू धनंजय सिंह (बाद में बहुजन समाज पार्टी के सांसद) और अभय सिंह (अब गोसाईंगंज से समाजवादी पार्टी के विधायक) के साथ जुड़कर काम करने लगा, जो कई आपराधिक मामलों में आरोपी हैं.

हालांकि, धनंजय और गुड्डू के साथ उनके कथित संबंध के बारे में पूछे जाने पर, अभय सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘गुड्डू कभी भी छात्र राजनीति में शामिल नहीं था और न ही वह हॉस्टल में रहता था.’ इस बीच, धनंजय सिंह ने दावा किया कि गुड्डू वास्तव में अभय सिंह का सहयोगी था.

गुड्डू ने कथित तौर पर मार्च 1997 में पहली हत्या की थी. पीड़ित फ्रेड्रिक जे गोम्स थे, जो शहर के प्रसिद्ध ला मार्टिनियर स्कूल में सहायक वार्डन और शारीरिक शिक्षा प्रशिक्षक थे. गुड्डू को इस मामले में गिरफ्तार किया गया था लेकिन बाद में सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया था.

अपने पहले के दिनों को याद करते हुए, यूपी के पूर्व पुलिस महानिरीक्षक राजेश पांडे ने दिप्रिंट को बताया कि लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्र नेता बम हमलों के लिए गुड्डू का इस्तेमाल करते थे. ऐसा उस दौर में कई बार हुआ था.

पांडे ने कहा कि वह एक बड़ा ‘बम स्पेशलिस्ट’ था जो ‘बंबाज’ के नाम से जाना जाता था. गुड्डू केवल पांच मिनट में बम बना सकता है, अगर उसके पास सारी सामग्री उपलब्ध हो तो.

पुलिस सूत्रों ने कहा कि गुड्डू ने कथित तौर पर 1990 के दशक में धनंजय सिंह और अभय सिंह के साथ काम करना शुरू किया. साथ ही वह मुख्तार अंसारी गिरोह से भी जुड़ा था.

उसने अंबेडकर नगर के गैंगस्टर सत्येंद्र सिंह लंगड़ के साथ भी काम किया और उसका करीबी बन गया. अंबेडकर नगर और फैजाबाद (अब-अयोध्या) क्षेत्रों में सिंचाई और पीडब्ल्यूडी के ठेकों को लेकर गिरोहों के बीच झगड़ा होता रहा है. सरकारी ठेकों को लेकर गैंगस्टर अजीत सिंह के खिलाफ गैंगवार में गुड्डू मुस्लिम का इस्तेमाल किया गया था.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1990 के दशक में जब पूर्वी यूपी के डॉन श्री प्रकाश शुक्ला द्वारा लंगड़ की हत्या की गई थी, तब उसकी जिप्सी का पीछा एक अन्य वाहन द्वारा किया जा रहा था, जिसे गुड्डू चला रहा था. जैसे ही शुक्ला ने सत्येंद्र सिंह पर गोलियां बरसाईं, गुड्डू, जो 100 मीटर की दूरी पर गाड़ी चला रहा था, अयोध्या के सरायरासी गांव में भागने में सफल रहा.


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गुड्डू ‘पीठ पर वार करने वाला’

माना जाता है कि 1998 में, गुड्डू अयोध्या में मारे गए ठेकेदार संतोष सिंह के साथ मेल मिलाप बढ़ा रहा था. लेकिन बाद में उसकी हत्या हो गई जिसके बाद गुड्डू को ‘धोकेबाज़’ (बैकस्टैबर) का टैग मिल गया. 

गोसाईंगंज विधायक अभय सिंह के सहयोगी रणधीर सिंह लल्ला ने गुरुवार को समाचार चैनल ‘आज तक’ को एक साक्षात्कार में बताया कि लंबे समय के दोस्त धनंजय सिंह और गुड्डू ने संतोष सिंह की हत्या की साजिश रची थी और 1998 में उन्हें जहर देकर मार डाला था. उसी साक्षात्कार में लल्ला ने कहा कि यह गुड्डू द्वारा ‘पीठ में छुरा घोंपना’ था जिसने अभय और धनंजय को आजीवन शत्रु बना दिया.

उन्होंने ‘आज तक’ को बताया, ‘उसने संतोष सिंह से दोस्ती की और फिर धनंजय और अभय से उसकी मुलाकात करवाई. जब अभय को पता चला कि संतोष अयोध्या से सटे गांव राजेपुर का रहने वाला है, तो उसने गुड्डू को संतोष को नहीं मारने की चेतावनी दी. लेकिन जब अभय जेल में था, तो गुड्डू और धनंजय ने संतोष की ‘पीठ में छुरा घोंपा’ और उसकी कोल्ड ड्रिंक में जहर मिलाकर हत्या कर दी. गुड्डू ने संतोष को लखनऊ आने के लिए गुमराह किया था.’

दिप्रिंट से बात करते हुए, लल्ला ने कहा कि उन्होंने केवल वही कहा था जो उन्होंने उन घटनाओं के के बारे में सुना था जिसके कारण संतोष सिंह की मौत हुई थी. उन्होंने कहा, ‘मैं उस समय बहुत छोटा था, और मैंने इसे अपनी आंखों से नहीं देखा. मुझे बताया गया था कि संतोष इन लोगों के साथ गया था और कभी वापस नहीं आया.’

अभय सिंह ने कहा कि यह धनंजय और गुड्डू ही थे जिन्होंने संतोष को कोल्ड ड्रिंक में मिलाकर मार डाला था.

उन्होंने कहा, ‘उस समय, सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी और यूपी के पूर्व डीजीपी ओपी सिंह लखनऊ के एसएसपी थे. उस मामले को लेकर लखनऊ के हुसैनगंज थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी गयी थी. सिंह ने गुड्डू मुस्लिम को गिरफ्तार किया था और उससे पूछताछ भी की थी.’

दिप्रिंट से बात करते हुए, पूर्व सांसद धनंजय सिंह ने साक्षात्कार में लल्ला द्वारा लगाए गए सभी आरोपों का खंडन किया.

उन्होंने कहा, ‘वह (लल्ला) अभय सिंह का करीबी सहयोगी है. वह (अभय) मेरा एक प्रतिद्वंद्वी है, इसलिए स्वाभाविक रूप से लल्ला मेरे बारे में बुरा ही बोलेगा. मूल रूप से, गुड्डू मुस्लिम अभय सिंह का करीबी सहयोगी था और अगर आपको याद हो तो अभय, गुड्डू और एक और सहयोगी मदन को जौनपुर पुलिस ने 1990 के दशक में एक पेट्रोल पंप लूटने के लिए बुक किया था. तीनों कुछ समय के लिए जेल में थे, अभय एक महीने के लिए जबकि गुड्डू उस समय तीन-चार महीने जेल में रहा था.’

धनंजय सिंह ने आगे कहा कि अभय के साथ उनकी प्रतिद्वंद्विता वास्तव में 1995 में लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ को लेकर शुरू हुई थी ‘जब अरुण उपाध्याय चुनाव लड़ने वाले थे लेकिन अभय ने अचानक चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त कर दी थी’.

हालांकि, पांडे ने दिप्रिंट को बताया कि दोनों ने संतोष का गला घोंटा था और उसके शव को लखनऊ-रायबरेली रोड पर एक ट्रक के आगे फेंक दिया गया था और इस घटना को एक दुर्घटना बताया गया था. जबकि संतोष के मामले में पहले हत्या के आरोप लगाए गए थे लेकिन बाद इस घटना दुर्घटना के रूप देखा जाने लगा.

श्रीप्रकाश शुक्ल प्रकरण

पुलिस ने कहा कि सत्येंद्र सिंह की मौत के बाद गुड्डू श्रीप्रकाश शुक्ला के संपर्क में आया और उसने कई अपराधों में उस डॉन की मदद की. हालांकि, 1998 में पुलिस मुठभेड़ में शुक्ला की मौत के बाद गुड्डू को एक और बॉस मिल गया.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, शुक्ला यूपी का पहला ‘गैंगस्टर’ था जिसने एके-47 राइफल का इस्तेमाल किया था. उस व्यक्ति ने कथित तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की हत्या के लिए सुपारी ली थी. उसकी गिरफ्तारी के लिए ही यूपी पुलिस ने पहली बार ‘एसटीएफ’ का गठन किया था.

‘आज तक’ के साथ साक्षात्कार में, लल्ला ने आरोप लगाया कि यह गुड्डू ही था जिसने शुक्ला के बारे में ‘एसटीएफ’ को जानकारी लीक की और अपने बॉस को फिर से ‘छुरा घोंपा’. पुलिस को तब शुक्ला की तस्वीर लेने में काफी मशक्कत करनी पड़ी थी.

सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी पांडे, जो तब एसटीएफ का हिस्सा थे, ने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने वास्तव में गुड्डू को शुक्ला की ताकत, पहचान, मारक क्षमता और चाल-चलन के बारे में पूछताछ करने के लिए उठाया था. पांडे ने खुलासा किया, ‘गुड्डू से उस वक्त श्रीप्रकाश शुक्ला के बारे में पूछताछ की गई थी.’

हालांकि, सितंबर 1998 में शुक्ला की मृत्यु के बाद, गुड्डू ने कथित तौर पर संदिग्ध आईएसआई एजेंट और दाऊद इब्राहिम के सहयोगी परवेज टांडा के लिए काम करना शुरू कर दिया था, जिससे गोरखपुर जेल में रहने के दौरान उसकी दोस्ती हुई थी.

पांडे ने दिप्रिंट से बताया, ‘2000 में, गोरखपुर पुलिस ने गुड्डू को बिहार की बेउर जेल के बाहर से गिरफ्तार किया था और उसे नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले के सिलसिले में यूपी लाया गया था. हालांकि, अतीक अहमद की बदौलत जमानत पर रिहा होने से पहले उसने कुछ महीने ही जेल में बिताए थे. उसके वकीलों का खर्चा अतीक ने ही उठाया था.’

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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