नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश के 48 वर्षीय भगवाधारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ऐसे सत्तारूढ़ राजनेताओं में से एक है जिन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान कुशल प्रशासक के रूप में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने में सफलता हासिल की है.
पिछले तीन महीनों के दौरान आदित्यनाथ पार्टी के अंदर अपने विरोधियों, अपने भगवा एजेंडे के आलोचकों और यहां तक कि विपक्ष का भी मुंह बंद करने में कामयाब रहे हैं. उन्होंने हर प्रत्याशित और अप्रत्याशित स्तर पर प्रशंसा हासिल की है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 जून को उत्तर प्रदेश रोजगार योजना के उद्घाटन के दौरान यह कहते हुए आदित्यनाथ की सराहना की कि यूपी ने कोविड-19 का मुकाबला अमेरिका से भी बेहतर ढंग से किया है और अन्य राज्यों से भी इसी राह पर चलने का आग्रह किया.
यहां तक कि पाकिस्तानी अखबार डान के स्थानीय संपादक, फहद हुसैन ने भी महामारी से निपटने के तरीकों को लेकर उत्तर प्रदेश की प्रशंसा की.
Here's another graphic comparison this time between Pakistan and Indian state of Maharashtra (prepared by an expert). This shows how terribly Maharashtra has performed in relation to Pakistan. Shows the outcome of bad decisions & their deadly consequences #COVIDー19
(1/2) pic.twitter.com/6AHenrznIs— Fahd Husain (@Fahdhusain) June 7, 2020
आदित्यनाथ संकट से निपटने में अपने स्तर पर काफी सक्रिय रहे हैं. वह पहले मुख्यमंत्री थे जिन्होंने लॉकडाउन के दौरान घर पहुंचने की जद्दोजहद में जुटे प्रवासी श्रमिकों के लिए बसें भेजीं-उन्होंने मार्च अंत में यूपी-दिल्ली बॉर्डर पर 1,000 बसें भेजी थीं.
कुल मिलाकर, उन्होंने लगभग 12,000 बसों के जरिये 35 लाख प्रवासी श्रमिकों को घर पहुंचवाया. आदित्यनाथ ही ऐसे पहले मुख्यमंत्री थे जिन्होंने राजस्थान के कोटा में कोचिंग सेंटरों में फंसे छात्रों को वापस लाने के लिए 300 बसें भेजीं.
लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था को पहुंची गंभीर चोट के बीच यूपी प्रशासन ने इसका असर घटाने के कई प्रयास किए. इसने उद्योगों को फिर अपने पैरों पर खड़ा करने में मदद के उद्देश्य से विवादों के बावजूद श्रम कानूनों, दो को छोड़कर, को तीन साल की अवधि के लिए निलंबित कर दिया.
विदेशी निवेशकों को लुभाने के लिए समिति का गठन करने वाले राज्यों में भी यह अव्वल था और मुख्यमंत्री ने 1 करोड़ रोजगार सृजन के लिए उद्योग के साथ एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए, जिसका उद्घाटन मोदी ने किया था.
कोविड से पहले आलोचनाओं में घिरे एक मुख्यमंत्री
महामारी की शुरुआत से पहले, आदित्यनाथ राज्य में असंतोष से जूझ रहे थे. भाजपा के कई विधायक इससे नाराज थे कि राज्य को चलाने में सिविल सेवा का बोलबाला है. दिसंबर में राज्य विधानसभा भवन के अंदर मुख्यमंत्री के विरोध में लगभग 100 भाजपा विधायकों ने धरना भी दिया था.
विधायकों की शिकायत थी कि अधिकारी उनकी बात नहीं सुनते और न ही उनके सुझावों पर अमल करते हैं. असंतुष्टों का नेतृत्व लोनी से पार्टी के विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने किया.
वहीं, अप्रैल में लॉकडाउन के बीच. सीतापुर से भाजपा विधायक राकेश राठौर की कथित रूप से लीक फोनवार्ता ने इस धारणा को और बल दिया कि भाजपा के अंदर सब ठीकठाक नहीं है, खासकर आदित्यनाथ की शासन शैली को लेकर.
लीक क्लिप में से एक में राठौड़ ने कहा था कि वह सिफारिशी पत्र लिख तो देंगे लेकिन इसका कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि प्रशासन उनकी सुनता नहीं है. एक ओबीसी नेता राठौड़ इसमें यह सुने जा सकते हैं, ‘अगर आप पंडित हैं या राजपूत हैं तो आपका काम हो जाएगा.’
आखिरकार, भाजपा आलाकमान ने इस पर सख्ती दिखाते हुए राठौड़ के खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी किया.
इसके बाद 21 अप्रैल को, आगरा के भाजपा मेयर नवीन जैन ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा कि अगर जिला प्रशासन ने सख्त कदम न उठाए तो शहर एक और वुहान बन जाएगा. उन्होंने आगरा में क्वारंटाइन सुविधाओं की कमी और टेस्ट की उचित व्यवस्था न होने का मुद्दा उठाया.
कुछ दिन बाद 27 अप्रैल को अलीगढ़ के भाजपा विधायक दलवीर सिंह ने मुख्यमंत्री को बाइपास करते हुए सीधे खुद ही रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को, जो पार्टी के यूपी प्रभारी हैं, पत्र लिखकर शहर के स्थानीय जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में कुप्रबंधन का आरोप लगाया.
मेरठ में एक भाजपा नेता की मौत के बाद क्षेत्रीय सांसद राजेंद्र अग्रवाल ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) और जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री से शिकायत की. मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव और खुद आदित्यनाथ को अग्रवाल से बात करके मामला शांत करना पड़ा.
सख्त प्रशासन और नतीजों ने आलोचकों को चुप कराया
अपने अधिकारियों के खिलाफ भाजपा के जनप्रतिनिधियों की तरफ से कई शिकायतें आने के बाद मुख्यमंत्री ने कार्यप्रणाली बदल दी. मई में उन्होंने 11 सचिवों की अपनी आधिकारिक क्रैक टीम से इतर राज्य में कोविड का प्रसार रोकने के प्रयासों की निगरानी के लिए मंत्रियों की एक समिति गठित कर दी.
11 सचिवों की टीम की वजह से भाजपा विधायकों और मंत्रियों के बीच खासी नाराजगी थी.
मुख्यमंत्री ने हालांकि, इसमें एक संतुलन साधा है. मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) में एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि आदित्यनाथ पिछले तीन महीनों से हर दिन सुबह 11 बजे अपनी 11 सदस्यीय टीम के साथ बैठक कर रहे हैं.
अधिकारी ने कहा, ‘वह इस पर बेहद संजीदा हैं. विस्तृत बैठक में वह घटनाओं का पूरा जायजा लेते हैं और उसके अनुसार आवश्यक कदमों की योजना बनाते हैं.’
मंत्रियों का पैनल, हालांकि, गाहे-बगाहे ही बैठक करता है. उक्त अधिकारी ने बताया कि मंत्रियों का उच्चाधिकार प्राप्त समूह सप्ताह में दो बार मिलता है.
संख्या और पारदर्शिता में कमी के आरोपों के बावजूद, यूपी कोविड-19 पर अपने आंकड़े अपेक्षाकृत कम रखने में सफल रहा है. 2 जुलाई तक, यूपी में 24,056 मामले आए थे, जिसमें 6,709 सक्रिय केस और 718 लोगों की मौत हुई है.
इस रिपोर्ट के अनुसार, 7 लाख से ज्यादा टेस्ट कराने वाला यूपी देश का पांचवां राज्य है- अन्य चार तमिलनाडु, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और राजस्थान हैं. राज्य में 30 जून तक 7.07 लाख टेस्ट हो चुके थे.
राज्य में पॉजीटिव केस होने की दर 3.2 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय औसत 6.5 फीसदी है. राज्य अब एक दिन में 30,000 टेस्ट की योजना बना रहा है, जो देश में सबसे अधिक होगा.
सीएम को पार्टी सहयोगियों का साथ
आदित्यनाथ सरकार को अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों से सराहना मिल रही है. जल संसाधन मंत्री महेंद्र सिंह ने दिप्रिंट से कहा कि आदित्यनाथ की सक्रियता और बेहतर योजना ने बड़ी आबादी को मौत के मुंह में जाने से बचा लिया है.
सिंह ने कहा, ‘उन्होंने स्वास्थ्य ढांचे, टेस्टिंग, पीपीई और वेंटिलेटर की सुविधा आदि पर हरसंभव उपाय के लिए मार्च में ही अपनी नौकरशाही टीम का गठन कर लिया था. उन्होंने 7,000 कम्युनिटी किचन बनाने का भी आदेश दिया.’
भाजपा के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘अगर आप कोविड के दौरान कई मुख्यमंत्रियों के प्रदर्शन का आकलन करें तो योगी शासन में अनुभव की कमी के बावजूद अन्य की तुलना में ज्यादा बेहतर स्थिति दिखाई देती है.
उन्होंने आगे जोड़ा, ‘उन्होंने एक अनुभवी, सख्त और सक्षम प्रशासक की तरह प्रदर्शन किया है. हो सकता है कि उन्होंने यह प्रशासनिक कुशलता अपनी गोरखनाथ पीठ से हासिल की हो, जहां उनका जनता दरबार शिकायतों के तत्काल निवारण के लिए ख्यात था.’
भाजपा नेता ने आगे कहा कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने अपने काम को लेकर खासी प्रशंसा अर्जित की है, लेकिन वह आदित्यनाथ ही हैं जो इस संकट में पार्टी के असली सितारे के तौर पर उभरे हैं.
उक्त नेता ने कहा, ‘येदियुरप्पा एक अनुभवी राजनेता हैं, एक बड़े जनाधार वाले नेता हैं और उनके पास शासन का लंबा अनुभव भी है. उन्होंने योगी से 30 साल पहले सार्वजनिक जीवन में कदम रखा था. उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया क्योंकि वह भी अशोक गहलोत और पिनरई विजयन की तरह अनुभवी हैं. लेकिन पहली बार मुख्यमंत्री के तौर पर योगी ने सभी को चौंकाया है.’
लखनऊ के एक सिविल सेवक, जो पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ काम कर चुके हैं, ने दिप्रिंट को को बताया, ‘उन्होंने (आदित्यनाथ) ने अपनी सक्रिय भागीदारी और हर परिस्थिति में मार्गदर्शन के जरिये नौकरशाही को अचरज में डाल दिया है. वह व्यक्तिगत तौर पर कोविड से जुड़े हर छोटे-बड़े पहलू पर नजर रखते हैं और विभिन्न लोगों से जानकारी लेते रहते हैं.’
हालांकि, हर कोई सफलता की इस कहानी से सहमत नहीं है.
कांग्रेस नेता अखिलेश प्रताप सिंह ने राज्य प्रशासन पर मौजूदा स्थिति को लेकर ‘लंबे-चौड़े दावे’ करने का आरोप लगाया.
सिंह ने कहा, ‘टेस्ट कम है और इसलिए पॉजीटिव मामले भी कम हैं.’ उन्होंने दावा किया, ‘योगी के लिए यह एक पीआर एक्सरसाइज बन गया है और वह विपक्ष की आवाजों को दबा रहे हैं. 20 जिले ऐसे हैं, जहां वेंटीलेटर नहीं हैं.’
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Agar Yogi k talve hi chat na chahte hoo to chato but Galt misinformation mat print Karo the Print par…covid 19 prevention is total blunder in major Indian states.
Most of covid positive cases in BJP in government…. Ahmedabad is death spot of corona.
After Delhi & MH.
Gujarati CM lied n fool people of Gujarat.