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Friday, 1 November, 2024
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UPSC की ‘रिजर्व लिस्ट’ SC/ST कैंडीडेट के लिए कैसे मददगार, IAS के लिए ये ‘बैकडोर एंट्री’ नहीं है

रिजर्व लिस्ट हमेशा विवादों के घेरे में रही है और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की बेटी अंजलि के 2019 की परीक्षा क्रैक करने के बाद एक बार फिर विवाद खड़ा हो गया है.

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नई दिल्ली: संघ लोक सेवा आयोग की ‘रिजर्व लिस्ट’, जो सिविल सेवा परीक्षा (सीएसई) के नतीजे घोषित होने के करीब छह महीने बाद जारी की जाती है, अक्सर ही विवादों में घिरती है. आयोग की तरफ से इसे जारी करने में बरती जाने वाली अपारदर्शिता को लेकर कई शिकायतें की जाती हैं.

आरोप लगाया जाता है कि यह सूची सिविल सेवाओं में आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों की संख्या कम करने का एक तरीका है.

अपारदर्शिता को लेकर आरोपों ने पिछले महीने उस समय और जोर पकड़ लिया जब लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की बेटी अंजलि ने 2019 की परीक्षा पास की, अफवाहें तो यहां तक रहीं कि उन्होंने टेस्ट दिया ही नहीं था. अंजलि का नाम 4 जनवरी को जारी की गई 89 उम्मीदवारों के नाम वाली ‘आरक्षित सूची’ में था.

कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने पिछले हफ्ते राज्य सभा में एक सवाल का जवाब देते हुए स्पष्ट किया था कि सिविल सेवा भर्ती के तहत यूपीएससी की तरफ से तैयार की जाने वाली ‘रिजर्व लिस्ट’ कोई प्रतीक्षा सूची नहीं है.

जितेंद्र सिंह ने इसे ‘नियमित प्रक्रिया’ करार देते हुए कहा, ‘आयोग सबसे पहले तो विभिन्न श्रेणियों से संबंधित उन अभ्यर्थियों की संख्या तक सीमित करके परिणाम घोषित करता है जिन्होंने पात्रता या चयन मानदंडों में किसी भी रियायत या छूट का लाभ उठाए बिना ही अपेक्षित योग्यता या निर्धारत सामान्य योग्यता मानक हासिल कर लिया हो.’

मंत्री ने आगे जोड़ा कि पहले चरण में उम्मीदवारों की अनुशंसा करने के बाद यूपीएससी कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) की ओर से बताई गई जरूरतों के मुताबिक समग्र ‘आरक्षित सूची’ के माध्यम से और उम्मीदवारों की सिफारिश करता है.

‘आरक्षित सूची’ पर विवाद और मंत्री की तरफ से संसद में संबंधित चिंताओं को दूर करने की कोशिशों के बीच दिप्रिंट आपको बता रहा है कि यह सूची क्या होती है, यूपीएससी इसे क्यों तैयार करता है, इस पर वैधानिक स्थिति क्या है और यह क्यों ‘बैकडोर एंट्री’ नहीं है, जैसा कि आरोप लगता है.


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सूची एक ‘नियमित प्रक्रिया’ का हिस्सा कैसे है

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा नियमों के नियम 16(2) के अनुसार आरक्षित सूची तैयार करता है, जिसमें कहा गया है, ‘सेवा चयन के समय अनारक्षित रिक्तियों के लिए अनुशंसित अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को सरकार आरक्षित रिक्तियों में समायोजित कर सकती है, यदि पूरी प्रक्रिया के दौरान उन्हें अपनी वरीयता के क्रम में पसंद की सेवा मिल रही हो तो.’

हर साल सरकार आईएएस, आईपीएस, आईआरएस, आदि जैसे सिविल सेवाओं में एक निश्चित संख्या में रिक्तियों की घोषणा करती है जिस पर आयोग उम्मीदवारों की भर्ती करती है.

एक बार साक्षात्कार प्रक्रिया पूरी हो जाने पर आयोग एक सामान्य योग्यता मानक निर्धारित करता है, इंटरव्यू प्रिलिमनरी और मेन परीक्षा के बाद सीएसई का तीसरा और अंतिम चरण है.

कट-ऑफ या मानक के आधार पर खरे उतरे उम्मीदवारों के नाम यूपीएससी द्वारा सफल उम्मीदवारों की पहली सूची में जारी किए जाते हैं.

हालांकि, यह संख्या सरकार की तरफ से निकाली गई रिक्तियों की तुलना में कुछ कम ही होती है.

उदाहरण के तौर पर सीएसई 2019 में सरकार की तरफ से घोषित रिक्तियों की संख्या 927 थी लेकिन पहली सूची में यूपीएससी ने 829 उम्मीदवारों को सफल घोषित किया था. शेष रिक्तियां आरक्षित सूची के माध्यम से भरी गई हैं.

यूपीएससी के एक पूर्व अधिकारी के अनुसार, आरक्षित सूची में शामिल उम्मीदवारों की संख्या अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के उन उम्मीदवारों की संख्या पर निर्भर करती है, जो आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को आयु या परीक्षा के लिए मिलने वाले मौकों में छूट जैसी रियायतों के बिना ही क्वालीफाई करते हैं.

अधिकारी ने कहा, ‘उदाहरण के तौर पर यदि बिना किसी रियायत के क्वालीफाई करने वाले उम्मीदवारों— जिन्हें मेरिट आधारित आरक्षित उम्मीदवार (एमआरसी) कहते हैं— की संख्या 100 है तो यूपीएससी आरक्षित सूची में 200 लोगों को शामिल करता है. उनमें से 100 आरक्षित श्रेणियों वाले और 100 सामान्य श्रेणी वाले होते हैं.’

ऐसा क्यों किया गया है, यह स्पष्ट करते हुए अधिकारी ने कहा कि ऐसा ये सुनिश्चित करने के लिए किया गया कि आरक्षित श्रेणी के किसी उम्मीदवार, जिसने कोई रियायत नहीं ली और परीक्षा में सफलता हासिल की है, को बाद के चरण में छूट का लाभ उठाने और बेहतर सेवा चुनने का मौका मिल सके.

अधिकारी ने कहा, ‘अगर अनुसूचित जाति के किसी उम्मीदवार को पहली रैंक मिलती है, तब तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. लेकिन यदि उसे 300वीं रैंक मिली तो उसे रियायतों का लाभ उठाकर अपनी पसंदीदा सेवा प्राप्त करने का मौका मिल सकता है.’


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सामान्य धारणा

जब कोई एमआरसी अपनी आरक्षण सुविधा का लाभ उठाता है, तो सामान्य श्रेणी की सीट रिक्त हो जाती है और ऐसी स्थिति में आयोग आरक्षित सूची से सामान्य श्रेणी के छात्र को चुनता है, और उसे एक सफल उम्मीदवार के तौर पर अनुशंसित करता है.

डीओपीटी के अधिकारी ने कहा कि यही वजह है कि सामान्य धारणा है कि इस आरक्षित सूची से सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों को ही ज्यादा फायदा मिलता है.

अधिकारी ने कहा, ‘यह स्वाभाविक-सी बात है कि कोई रियायत न लेकर सफलता हासिल करने वाले आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार बाद में इसका लाभ उठाना चाहते हैं, अगर उन्हें अपनी पसंद की सेवा न मिली हो तो…उनके ऐसा करने पर उनकी सामान्य सीटें खाली हो जाती हैं और उन पदों के लिए आयोग अन्य सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों को चुनता है.’

उन्होंने कहा, ‘इसीलिए जो उम्मीदवार इस आरक्षित सूची के जरिये जगह बनाते हैं वे शायद ही कभी आईएएस, आईपीएस जैसी शीर्ष सेवाओं में पहुंच पाते हों. ऐसा इसलिए है क्योंकि आरक्षित श्रेणी के जो उम्मीदवार पहले रेलवे, डाक सेवा आदि जैसी सेवाओं के लिए चुने गए होते हैं, वे आईएएस, आईपीएस आदि को चुन लेते हैं.’


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कानूनी चुनौती

अपनी जटिलता और संवेदनशीलता के कारण आरक्षित सूची को पहले भी अदालतों में चुनौती दी जा चुकी है.

2010 में बिना किसी रियायत के क्वालीफाई करने वाले आरक्षित श्रेणी के एक उम्मीदवार के बाद में छूट का लाभ उठाने संबंधी प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. इस दौरान तर्क दिया गया कि यह प्रावधान असल में तो आरक्षित श्रेणियों के लिए ही हानिकारक है.

तर्क दिया गया है कि एमआरसी को बाद में रियायतों का लाभ उठाने की अनुमति दिए जाने से उन्हें आरक्षित सीटें पाने में मदद मिलती है लेकिन इसका नतीजा यह होता है कि सीएसई क्वालीफाई करने वाले एससी, एसटी और ओबीसी उम्मीदवारों की संख्या कम हो जाती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि हर एमआरसी, जो आरक्षित सीट लेने का विकल्प चुनता है, की जगह सामान्य श्रेणी की सीट भरने के लिए सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार को चुना जाता है.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि किसी एससी/एसटी/ओबीसी उम्मीदवार का अच्छा प्रदर्शन उन्हें अपनी पसंद की सेवा चुनने से नहीं रोकना चाहिए और इसीलिए यह प्रावधान बरकरार रखा.

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, ‘आरक्षित श्रेणी के ‘ओबीसी, एससी/एसटी श्रेणियों से ताल्लुक रखने वाले’ उम्मीदवार, जिन्हें मेरिट के आधार पर चुना गया है और सामान्य/अनारक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों की सूची में रखा गया है, सेवा आवंटन के समय संबंधित आरक्षित श्रेणी को चुनने के प्रावधान का लाभ उठा सकते हैं.’

कोर्ट ने कहा, ‘नियम 16(2) के तहत परिकल्पित इस तरह का माइग्रेशन किसी भी तरह से नियम 16(1) या संविधान के अनुच्छेद 14, 16 (4) और 335 के साथ असंगत नहीं है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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1 टिप्पणी

  1. एस. एस. सी में भी रिज़र्व लिस्ट” लाना चाहिए। बहुत से लोगों के कई साल बर्बाद हो जाते हैं इसके ना होने से। मैं दि प्रिंट से निवेदन करूँगा की आप इस बारे में भी परीक्षार्थियों से बात करें, परीक्षार्थियों ने इस मुद्दे को उठाया भी था ट्विटर पर लेकिन कुछ परिणाम नहीं निकला। कृपया आप भी ये मुद्दा उठाये और उनका सहयोग करें।

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