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Wednesday, 20 November, 2024
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कैसे उज्जैन का महाकाल मंदिर भीड़ को नियंत्रित करने, सुरक्षा के लिए AI और टेक्नोलॉजी का उपयोग कर रहा है

तिरुपति और काशी विश्वनाथ मंदिर के बाद, महाकालेश्वर मंदिर का महाकाल लोक कॉरिडोर भक्तों की भीड़ को प्रबंधित करने के लिए उच्च तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है.

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नई दिल्ली: तिरुपति मंदिर के बाद, मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकाल लोक कॉरिडोर के अधिकारी भीड़ को नियंत्रित करने के लिए आर्टिफिशियल इन्टेलिजन्स (AI) एनालिटिक्स के साथ-साथ चेहरे की पहचान करने वाली तकनीक (FRT) का उपयोग कर रहे हैं.

महाकाल लोक कॉरिडोर- जो कि महाकालेश्वर मंदिर में आने वाले भक्तों के लिए 2.5 हेक्टेयर में फैला एक प्लाजा क्षेत्र है- में प्रतिदिन 1.5-2 लाख लोग आते हैं. त्योहारों और धार्मिक महीनों के दौरान, उदाहरण के लिए श्रावण माह के प्रत्येक सोमवार को, यह संख्या बढ़कर 4.5-5 लाख तक हो जाती है.

कॉरिडोर के प्रथम चरण का उद्घाटन पिछले साल अक्टूबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था.

नए कॉरिडोर, मंदिर और आसपास की सड़कों पर 700 उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं. सभी कैमरे मंदिर परिसर के भीतर स्थित एक नियंत्रण कक्ष से जुड़े हुए हैं. यहां, 50 लोगों की एक टीम भीड़ की निगरानी करती है और आने वाले लोगों की सुचारू आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए जरूरत पड़ने पर फील्ड स्टाफ को दिशानिर्देश देती है.

उज्जैन नगर निगम के आयुक्त और उज्जैन स्मार्ट सिटी लिमिटेड के कार्यकारी निदेशक रोशन कुमार सिंह ने कहा, “हमने आधिकारिक तौर पर 1 जुलाई से महाकाल लोक कॉरिडोर में भीड़ प्रबंधन के लिए AI तकनीक से लोगों के चेहरे की पहचान करना शुरू कर दिया है.”

उन्होंने कहा कि मंदिर फरवरी से ही इस तकनीक का परीक्षण कर रहा था.

उन्होंने कहा, “पिछले सोमवार को करीब 5 लाख लोगों ने मंदिर परिसर का दौरा किया और इस तकनीक के इस्तेमाल से हमें भीड़ प्रबंधन में मदद मिली है.”

FRT के उपयोग के बारे में बताते हुए, महाकाल मंदिर के प्रशासक और उज्जैन विकास प्राधिकरण के मुख्य कार्यकारी अधिकारी संदीप सोनी ने कहा, “जब कोई व्यक्ति मंदिर परिसर में प्रवेश करता है, तो उनके चेहरे का उपयोग करके एक प्रोफ़ाइल आईडी बनाई जाती है. चेहरे की पहचान तकनीक परिसर में आने वाले लोगों की सटीक गणना करने में मदद करती है और हम महाकाल लोक के अंदर आने वाले व्यक्तियों की गतिविधियों को ट्रैक कर सकते हैं.”

उन्होंने कहा, “चूंकि सभी महत्वपूर्ण स्थानों पर सीसीटीवी लगाए गए हैं, इसलिए परिसर के किसी भीतर व्यक्ति की गतिविधियों को ट्रैक करना आसान है. आने वाले लोगों का डेटा 15 दिनों की अवधि के लिए जमा किया जाता है.”

FRT के उपयोग ने मंदिर प्रशासन को उज्जैन के स्थानीय लोगों के लिए मंदिर परिसर तक तुरंत पहुंचने के लिए एक अलग द्वारा बनाने में मदद की है. यह ‘अवंतिका द्वार’ 11 जुलाई को खोला गया था.

उज्जैन के मेयर मुकेश ततवाल ने कहा, “पहले, यहां प्रतिदिन 30,000-40,000 लोग आते थे, लेकिन अब संख्या कई गुना बढ़ गई है. इसके कारण स्थानीय लोगों को परिसर में प्रवेश करना मुश्किल हो जाता है और वे कुछ समय से इस बारे में शिकायत कर रहे थे.”

इसके लिए उज्जैन के निवासियों को अपने आधार या किसी वैध पहचान पत्र का उपयोग करके एक बार मंदिर प्रशासन के साथ पंजीकरण कराना होगा और रिकॉर्ड के लिए अपना चेहरा स्कैन कराना होगा. सोनी ने कहा, “हालांकि, उसके बाद उन्हें बिना किसी आईडी कार्ड के प्रवेश की अनुमति मिल जाएगी और प्रवेश करने के लिए अवंतिका द्वार पर बस अपना चेहरा स्कैन करना होगा.”

मंदिर प्रशासन के अधिकारियों के अनुसार, महाकालेश्वर मंदिर परिसर देश के उन चुनिंदा परिसरों में से एक है, जहां इतनी बड़ी संख्या में रोजाना करीब 2 लाख पर्यटक आते हैं और भीड़ प्रबंधन और सुरक्षा के लिए AI और FRT को अपनाया गया है.

इस साल मार्च में, आंध्र प्रदेश में तिरुपति मंदिर का प्रबंधन करने वाले ट्रस्ट, तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) ने घर बुकिंग और भक्तों के लिए बिना परेशानी के प्रवेश सुनिश्चित करने के लिए प्रायोगिक आधार पर चेहरे की पहचान तकनीक का उपयोग शुरू किया. और हालांकि काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर में अभी भी FRT शामिल नहीं है, यह परिसर में प्रवेश करने वाले लोगों की संख्या के बारे में वास्तविक समय डेटा प्राप्त करने के लिए तकनीक का उपयोग कर रहा है.

निर्माणाधीन अयोध्या मंदिर के अधिकारी भी अगले साल राम मंदिर के उद्घाटन के बाद भीड़ प्रबंधन के लिए हाई-टेक समाधानों का उपयोग करने की योजना बना रहे हैं.

हालांकि, AI और FRT के उपयोग ने चिंताएं बढ़ा दी हैं.

दिप्रिंट से बात करते हुए, इंटरनेट फ़्रीडम फ़ाउंडेशन के नीति निदेशक, प्रतीक वाघरे ने कहा, “अभी हमारे पास डेटा सुरक्षा कानून लागू नहीं है. बड़े पैमाने पर निगरानी के लिए चेहरे की पहचान तकनीक के उपयोग में कई मुद्दे हैं. इसमें एक यह भी कारण है कि अगर किसी के चेहरे की गलत पहचान हो जाती है तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं. इसका प्रयोग लोगों की सहमति से होना चाहिए. लेकिन, ज्यादातर मामलों में लोगों को अपनी बात कहने का अधिकार नहीं होता.”

सुरक्षा के लिए तकनीक का उपयोग करना, भीड़ को नियंत्रित करना

महाकाल लोक कॉरिडोर प्रशासन किसी विशेष स्थान पर लोगों की संख्या की जांच करने और बुनियादी ढांचे को नुकसान से बचाने के लिए 10 AI-सक्षम एनालिटिक्स का उपयोग कर रहा है.

850 करोड़ रुपये के कॉरिडोर के पहले चरण में, प्लाजा क्षेत्र एक कमल तालाब से घिरा हुआ है जिसमें पानी के फव्वारे के साथ भगवान शिव की मूर्ति है. कॉरिडोर के भीतर 900 मीटर लंबे महाकाल पथ में 108 स्तंभ हैं और इसके साथ-साथ दीवार पर कई भित्ति चित्र हैं.

इस कॉरिडोर को नुकसान से बचाने के लिए, मंदिर प्राधिकरण ने कुछ क्षेत्रों में जियो-फेंसिंग की है.

रोशन कुमार सिंह ने कहा, “मूर्तियों, दीवारों पर मौजूद भित्तिचित्र, हरे स्थानों और अन्य क्षेत्रों जहां लोगों का प्रवेश प्रतिबंधित है, को भू-बाड़ लगा दिया गया है. यदि कोई मूर्तियों या भित्तिचित्रों को छूने की कोशिश करता है या निषिद्ध क्षेत्रों में प्रवेश करता है, तो नियंत्रण कक्ष में एक अलर्ट उत्पन्न होता है और साइट पर तैनात गार्डों को उनके फोन पर इसके बारे में सूचित किया जाता है. अगर कोई अपराधी प्रवृत्ति का व्यक्ति परिसर में प्रवेश करता है तो पुलिस को सतर्क करने में मदद के लिए एनसीआरबी डेटा को भी सिस्टम के साथ एकीकृत करने का प्रस्ताव है.”


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टीटीडी, जो चेहरा पहचान और AI का उपयोग कर रहा है, ने फरवरी में मीडिया को दिए एक बयान में कहा, “हमारा विचार टोकन रहित दर्शन और आवास आवंटन में पारदर्शिता को बढ़ाना है. इससे आने वाले तीर्थयात्रियों की भीड़ को अधिक प्रभावी सेवाएं प्रदान करना है.”

टीटीडी में उपयोग की जाने वाली प्रक्रिया के बारे में बताते हुए, आईटी महाप्रबंधक एल.एम. संदीप ने कहा, “चेहरे की पहचान तकनीक का उपयोग केवल दो महत्वपूर्ण सुविधाओं तक सीमित है – आवास की बुकिंग और दर्शन के लिए वैकुंठम परिसर का दौरा करना.”

दर्शन के लिए तिरुपति मंदिर के वैकुंठम परिसर में भक्तों की सुचारू आवाजाही के लिए, मंदिर अधिकारी चेहरे की पहचान का उपयोग कर रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भक्त कई बार परिसर में प्रवेश न कर सकें. संदीप कहते हैं, “एक व्यक्ति को दिन में केवल एक बार वैकुंठम परिसर में प्रवेश की अनुमति है. हमने प्रवेश द्वार पर एक कैमरा लगाया है, जहां व्यक्ति की तस्वीर कैद हो जाती है. यदि वे दोबारा प्रवेश करने का प्रयास करते हैं, तो उन्हें अनुमति नहीं दी जाएगी क्योंकि सिस्टम पर एक अलर्ट मिलेगा. परिसर में प्रवेश करने वाले व्यक्ति को प्रसाद के लिए एक टोकन दिया जाता है. लोग अक्सर प्रसाद के लिए बार-बार अंदर जाने की कोशिश करते हैं. इस नई प्रणाली से भीड़ को रोकने में काफी मदद मिली है.”

अब, अयोध्या मंदिर भी हाई-टेक समाधानों का उपयोग करने की योजना बना रहा है. अयोध्या विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष विशाल सिंह ने दिप्रिंट को बताया, “सुरक्षा प्रदान करने और भीड़ को प्रबंधित करने के लिए सीसीटीवी सहित नवीनतम गैजेट स्थापित करने पर करीब 80 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं. हम चेहरे की पहचान तकनीक से करने की योजना पर काम कर रहे हैं.

दिसंबर 2021 में पीएम मोदी द्वारा उद्घाटन के बाद काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर में भी तीर्थयात्रियों और पर्यटकों की भारी भीड़ उमड़ी. यहां, अधिकारी चेहरे की पहचान तकनीक का उपयोग नहीं कर रहे हैं, बल्कि परिसर में प्रवेश करने वाले लोगों की संख्या के बारे में वास्तविक समय डेटा प्राप्त करने के लिए हेडकाउंट कैमरों का उपयोग कर रहे हैं. इसकी मदद के लिए काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर में लगभग 400 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं.

काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुनील कुमार वर्मा ने कहा, “पिछले साल, कॉरिडोर में करीब 7 करोड़ लोगों ने दौरा किया था. अभी प्रतिदिन लगभग 2 लाख लोग आते हैं और कभी-कभी यह संख्या 5 लाख तक हो जाती है. अब हमारे पास कमोबेश परिसर में आने वाले लोगों की संख्या के बारे में सटीक डेटा है. इससे हमें बेहतर योजना बनाने में मदद मिलती है, खासकर महत्वपूर्ण दिनों के दौरान.”

गोपनीयता को लेकर चिंता

सार्वजनिक नीति थिंक टैंक द डायलॉग के प्रोग्राम मैनेजर कामेश शेखर ने कहा कि हालांकि, ऐसा कोई कानूनी ढांचा नहीं है जो विशेष रूप से सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में चेहरे की पहचान प्रौद्योगिकियों की तैनाती और उपयोग को नियंत्रित करता हो.

उन्होंने कहा, “हालांकि FRT जैसी तकनीकों और इसके माध्यम से एकत्र किए गए डेटा का उपयोग सुरक्षा उद्देश्यों और राज्य व्यवस्था को संरक्षित करने के लिए किया जाता है, लेकिन उन्हें डेटा सुरक्षा व्यवस्था और मजबूत निगरानी सुधार के बिना विकसित किया जाता है, जो चिंताजनक है. अब, यह इस सवाल को भी सामने लाता है कि FRT सिस्टम को तैनात करने के लिए वैध उपयोग के मामले क्या हैं, जहां भीड़ प्रबंधन जैसे उज्जैन मंदिर द्वारा सुझाए गए उद्देश्य, गोपनीयता की कीमत पर ऐसी प्रणालियों के उपयोग की आनुपातिकता का सवाल लाते हैं.

चेहरे की पहचान के उपयोग से संबंधित गोपनीयता के मुद्दे के बारे में पूछे जाने पर सोनी ने कहा, “हमारे पास परिसर में प्रवेश करने वाले लोगों की वीडियो रिकॉर्डिंग है. आजकल आपके पास हर जगह सीसीटीवी हैं. हम इसका उपयोग सिर्फ लोगों और परिसर की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कर रहे हैं. इससे लोगों को परिसर तक आसानी से पहुंचने में मदद मिल रही है.”

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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