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Thursday, 21 November, 2024
होमदेशबिहार के इस IAS अधिकारी ने कैसे 8 घंटे में ऑक्सीजन का भारी संकट सुलझाकर 250 जानें बचाईं

बिहार के इस IAS अधिकारी ने कैसे 8 घंटे में ऑक्सीजन का भारी संकट सुलझाकर 250 जानें बचाईं

पूर्णिया में 12 मई को एक बड़ा हादसा होते बचा जब बिहार के इस जिले का एकमात्र ऑक्सीजन प्लांट ठप पड़ गया. डीएम राहुल कुमार के नेतृत्व में 8 घंटे चला ऑपरेशन इस संकट को टालने में सफल रहा.

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पूर्णिया: बिहार के पूर्णिया जिले में स्थित एकमात्र ऑक्सीजन संयंत्र 12 मई को तड़के लगभग 3.30 बजे ठप पड़ गया. संयंत्र जिले की दैनिक आवश्यकता को पूरा करता है लेकिन यहां उत्पादित मेडिकल ऑक्सीजन को स्टोर करने की सुविधा नहीं है.

सुबह 7 बजे तक पूर्णिया के नोडल अधिकारियों के व्हाट्सएप ग्रुप में एसओएस संदेशों की बाढ़ आ गई और लोगों ने मदद के लिए सोशल मीडिया पर गुहार लगानी शुरू कर दी. राज्य की राजधानी पटना से 300 किलोमीटर दूर पूर्णिया जिले के लिए कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान यह अब तक का ‘सबसे बड़ा संकट’ था.

हर सोशल मीडिया पोस्ट के साथ दहशत फैलने लगी थी. अगर कुछ ही घंटों के भीतर मेडिकल ऑक्सीजन की कमी पूरी नहीं होती तो 13 अस्पतालों में भर्ती गंभीर रूप से बीमार करीब 250 मरीजों, जिनमें से 40 वेंटिलेटर पर थे, की जान पर बन आती.

यह भारत में कोविड महामारी के बीच एक और त्रासद दिन होता जो कि पहले ही ऑक्सीजन की कमी के कारण कई अनमोल जाने गंवा चुका है.

लेकिन पूर्णिया ने ऐसी किसी आपदा को टाल दिया और इसके लिए एक व्यक्ति का आभार जताना चाहिए और वो हैं जिला मजिस्ट्रेट- राहुल कुमार.

शीर्ष अधिकारी ने न केवल कुछ ही घंटे के भीतर आवश्यक मेडिकल ऑक्सीजन उपलब्ध कराने की व्यवस्था की बल्कि मुख्य शहर से करीब पांच किलोमीटर दूर स्थित मरंगा औद्योगिक क्षेत्र में ठप पड़े ऑक्सीजन संयंत्र को एक दिन के अंदर ही फिर से चालू करा दिया.

कई ट्विटर यूजर ने अपनी शानदार प्लानिंग की बदौलत एक बड़ा हादसा टाल देने वाले 2011 बैच के आईएएस अधिकारी की माइक्रोब्लॉगिंग साइट पर सराहना की.

कुमार ने दिप्रिंट को इस पूरे ऑपरेशन के बारे में बताया और यह जानकारी भी दी कि कैसे उन्होंने जीवन बचाने का लक्ष्य पूरा करने के लिए ‘किसी भी ऑर्डर या जरूरी कागजात पर दस्तखत करने में मिनट भर की भी देरी नहीं की.’

पूर्णिया सदर अस्पताल में कोविड नियंत्रण कक्ष से कुमार के नेतृत्व में आठ घंटे चले ऑपरेशन ने न केवल 250 गंभीर कोविड मरीजों की जान बचाई बल्कि यह संकट प्रबंधन की दिशा में एक सबक के तौर पर भी सामने है.

ताजा आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, जिले में महामारी की दूसरी लहर के दौरान 45 कोविड मरीजों की मौत हुई है.


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जब दूरवर्ती क्षेत्र में एक मेडिकल हब को ऑक्सीजन की कमी झेलनी पड़ी

पूर्णिया दशकों से एक मेडिकल हब है. यह पूर्वी बिहार के सबसे पिछड़े जिलों- जैसे किशनगंज, अररिया, खगड़िया, सुपौल और सहरसा की जरूरतों को पूरा करता है. दूसरी कोविड लहर के दौरान पूर्णिया जिले में स्थित 10 बड़े निजी अस्पताल इन पड़ोसी जिलों से आने वाले कोविड मरीजों के लिए लाइफलाइन बने हुए हैं.

12 मई को जिले में 409 नए कोविड मामले दर्ज किए गए, जिसके साथ कुल सक्रिय केस 2,684 हो गए.

उस दिन की घटना के बारे में सिलसिलेवार बताते हुए डीएम राहुल कुमार ने कहा, ‘पहला एसओएस कॉल हमारे सबसे बड़े निजी अस्पतालों में से एक मैक्स7 से आया था. डायरेक्टर ने मुझे यह बताने के लिए फोन किया कि वहां बस चार घंटे के लिए ही बैकअप बचा है. मैंने तुरंत भागलपुर में आपूर्ति की स्थिति पता की तो पता चला कि हमें जिले से एक भी सिलेंडर नहीं मिला है.’

यह जिले के लिए एक बड़ा संकट था क्योंकि कुछ ही घंटों में स्थितियां एकदम बिगड़ सकती थीं.

फिर और भी निजी अस्पतालों ने यह बताना शुरू कर दिया कि उनके पास ऑक्सीजन की कमी हो गई है, जिसके कारण गंभीर मरीजों के परिजनों को ऑक्सीजन लेने के लिए ट्विटर पर गुहार लगानी पड़ी.

डीएम को राज्यभर के राजनेताओं के फोन आने लगे, कुछ ने तो मदद की पेशकश की और कुछ ने केवल पूछताछ.

The Covid control room at Sadar Hospital in Bihar's Purnea | Photo by special arrangement
बिहार के पूर्णिया के सदर अस्पताल में कोविड कंट्रोल रूम | फोटो: विशेष प्रबंध

8 घंटे चला अभियान

राहुल कुमार ने बताया कि जब वह सुबह आठ बजे कंट्रोल रूम पहुंचे तो स्थिति गंभीर थी. नोडल अधिकारियों और जिला प्रशासन में विश्वास जगाने के लिए उन्होंने एक ट्वीट पोस्ट कर ऑक्सीजन की कमी की बात स्वीकारी लेकिन कहा कि वह स्थिति को संभालने की कोशिश में जुट गए.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘एक प्रशासक के रूप में खुद जवाबदेह होना और लोगों में भरोसा जगाना बहुत महत्वपूर्ण होता है.’

पूर्णिया में ऑक्सीजन सप्लाई चेन के बारे में अधिक जानकारी साझा करते हुए उन्होंने कहा, ‘हमारा ऑक्सीजन संयंत्र हर दिन 350 सिलेंडर का उत्पादन करता है. लेकिन कोविड मरीजों के लिए हमें औसतन 500-550 सिलेंडर की जरूरत पड़ती है. इसलिए मैंने प्लांट में तीन शिफ्ट में काम करने के लिए तीन नोडल अधिकारियों को नियुक्त करने का फैसला किया है. यह सुनिश्चित करने के लिए कि हम 24 घंटे ऑक्सीजन का उत्पादन करें. बाकी 150 ऑक्सीजन सिलेंडर भागलपुर से आउटसोर्स किए जाते हैं.

उन्होंने आपूर्ति के लिए चार निजी डिस्ट्रीब्यूटर्स को भी लगाया. उन्होंने बताया, ‘हर डिस्ट्रीब्यूटर हमारे ड्रग इंस्पेक्टरों के साथ मिलकर काम करता है.’


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पड़ोसी जिलों से मदद

ऐसे समय में जब राष्ट्रीय स्तर पर ऑक्सीजन की आपूर्ति को लेकर राज्यों के बीच झगड़ा चल रहा है, बिहार ने अपने जिलों को ऑक्सीजन संकट में एक-दूसरे की मदद के लिए आगे आते देखा है.

राहुल कुमार ने बताया, ‘हमारे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से कुछ सिलेंडरों का प्रबंधन किया गया लेकिन वे पर्याप्त नहीं थे. चूंकि मैक्स7 और जीवन अस्पतालों को तुरंत मदद की जरूरत थी, इसलिए हमारे धमदाहा सब-डिवीजन ने आधे घंटे के भीतर ही इन अस्पतालों को 15 ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध करा दिए, जिनमें से 10 मैक्स7 और पांच जीवन अस्पताल भेजे गए थे.’

लेकिन मैक्स7 ने फिर एसओएस संदेश भेजा और ‘जंबो सिलेंडर’ की जरूरत बताई.

कुमार ने बताया, ‘मैंने उन डॉक्टरों को फोन मिलाया, जो सदर अस्पताल की चारों विंग में प्रभारी हैं. उन्होंने 90 से अधिक ऑक्सीजन स्तर वाले मरीजों की पहचान की. इन मरीजों के लिए ऑक्सीजन का फ्लो थोड़ा कम किया गया ताकि स्टॉक कुछ और घंटों तक चल सके. सदर अस्पताल ने तब अपने जंबो सिलिंडर मैक्स7 को भेजे. मिनट भर की भी देरी कई लोगों की जान ले सकती थी लेकिन हमने कोई आदेश जारी करने या कागजात पर दस्तखत करने में जरा भी समय नहीं गंवाया.’

पूर्णिया की मदद के लिए किशनगंज, कटिहार और सुपौल के जिलाधिकारी भी आगे आए. सुपौल ने तुरंत 105 सिलेंडर भेजे, जबकि कटिहार और किशनगंज की तरफ से 10-10 सिलेंडर भेजे गए.

इस बीच, एमएलसी दिलीप जायसवाल ने भी ट्विटर पर एसओएस कॉल देखी और किशनगंज स्थित अपने मेडिकल कॉलेज से 40 सिलेंडर भेजने का वादा किया.

कुमार ने बताया, ‘अंतत: रात लगभग 8 बजे तक हमें भागलपुर और सिलीगुड़ी से क्रमशः 65 और 60 ऑक्सीजन सिलेंडर मिल चुके थे. इस समय तक, हमने अपनी मशीनों की मरम्मत भी कर ली और संयंत्र फिर से शुरू हो गया.’


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