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Wednesday, 24 April, 2024
होमदेश‘इससे तो अच्छा है घर पर मरें’—क्यों पटना के दो सरकारी अस्पतालों पर कोविड मरीजों को जरा भी भरोसा नहीं रहा

‘इससे तो अच्छा है घर पर मरें’—क्यों पटना के दो सरकारी अस्पतालों पर कोविड मरीजों को जरा भी भरोसा नहीं रहा

बिहार की राजधानी पटना में कोविड के सबसे ज्यादा मरीज हैं, लेकिन शहर के दो सरकारी अस्पतालों के ICU में अभी भी कई बेड खाली हैं. डॉक्टरों का मानना है कि लोगों का विश्वास कम हुआ है.

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पटना: ‘डेड कर गए हैं. किडनी निकाल लिएन होई, देखे के पड़ी’, यह कहते हुए 28 वर्षीय मुन्ना यादव की आवाज दुख और आशंका के कारण भर्रा रही थी जब उसने 6 मई को बिहार के घंघा टोला गांव में रहने वाले अपने परिवार को फोन करके पिता की मृत्यु की सूचना दी.

यादव के पिता दीना राय (65) की पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (पीएमसीएच) में कोविड के कारण मौत हो गई थी.

कोविड वार्ड के बाहर खड़े यादव मित्रों और परिजनों को लगातार फोन करने के बीच गमछे से अपने आंसू पोंछते रहे. हर फोन कॉल के साथ अपने पिता की मौत के कारण को लकेर उनकी शंकाएं और मजबूत होती जा रही थीं.

उनका कहना था, ‘मुझे पता लगाना होगा कि कहीं उन्होंने कोई अंग तो नहीं निकाल लिया, किडनी तो नहीं चुरा ली. कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्होंने (अस्पताल के डॉक्टरों ने) मेरे पिता को जानबूझकर मार दिया.’

मुन्ना यादव अपने परिवार को फोन करके अपने पिता की मृत्यु की सूचना देता है/ज्योति यादव/ दिप्रिंट
मुन्ना यादव अपने परिवार को फोन करके अपने पिता की मृत्यु की सूचना देता है/ज्योति यादव/ दिप्रिंट

करीब आधे घंटे पहले ही दिप्रिंट ने यादव को अपने पिता के स्वास्थ्य, उनके ऑक्सीजन स्तर आदि के बारे में अपडेट पाने के लिए वार्ड प्रभारी के साथ बहस करते देखा था. यहां तक कि ये बताए जाने के बाद भी कि उनका ऑक्सीजन स्तर सामान्य है, युवक सहज नहीं हो पा रहा था. उसने वहां मौजूद सफाई कर्मचारियों में से एक के हाथ में मामूली ‘रिश्वत’—पचास रुपये का नोट—थमाकर अपने पिता का हाल पता लगाने को कहा.

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मरीजों और उनके परिवारों के बीच बातचीत की सुविधा के लिए वार्ड के बाहर तीन ऑडियो-विजुअल स्क्रीन लगे थे लेकिन उनमें से कोई कोई काम नहीं कर रहा था. यादव ने इसकी शिकायत की. और अस्पताल में बड़े-बड़े चूहे यहां-वहां घूम रहे होने की बात भी उठाई.

पटना के दो सरकारी कोविड अस्पतालों—पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (पीएमसीएच) और नालंदा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (एनएमसीएच)—का नजारा कमोबेश एक जैसा ही है, वास्तव में यहां की स्थिति बेहद दयनीय है.

हवा में मूत्र की दुर्गंध भरी हुई है, यहां-वहां कई जगह कचरा जमा है और शौचालयों का गंदा पानी गलियारों में बह रहा है. इस सबके बीच इंतजार करते मरीजों के परिजन मरीजों के लिए पानी या जीवनरक्षक दवाएं लाने के लिए कर्मचारियों को भुगतान करते नजर आ रहे थे.

राज्य के हेल्थ बुलेटिन के मुताबिक, बिहार में कोविड से सबसे ज्यादा प्रभावित जिले पटना में 9 मई को 1,646 नए केस सामने आए. उसी दिन राज्यभर में 11,259 नए मामले आए थे. शहर में 8 मई तक 22,000 से अधिक सक्रिय कोविड केस थे, जो कि राज्य में कुल आबादी का 20 प्रतिशत है.

चौंका देने वाली संख्या के बावजूद, अस्पताल में बेड और ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहे देश के तमाम अन्य हिस्सों के विपरीत, ये पटना में उपलब्ध हैं.

स्वास्थ्य सेवा से जुड़े अधिकारियों का मानना है कि यह एक चिंताजनक प्रवृत्ति है क्योंकि इसका मतलब यही हो सकता है कि लोग बीमार होने पर भी इलाज के लिए नहीं आ रहे हैं. कई लोगों का मानना है कि इसके पीछे लोगों का यह डर भी एक वजह है कि अस्पताल में भर्ती होने पर असुविधा के साथ-साथ नुकसान भी हो सकता है.

अपना नाम न छापने की शर्त पर पीएमसीएच में एक स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा, ‘यह चिंताजनक है कि लोग भर्ती होने के बाद भी आईसीयू बेड खाली कर रहे हैं. यह स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के प्रति भरोसा खत्म हो जाने की तरफ इशारा करता है.’

इसके अलावा यह भी ‘डर’ बना हुआ है, जैसा कि यादव ने जताया था कि अस्पताल में रहने वाले किसी मरीज के अंग भी निकाले जा सकते हैं, हालांकि ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है.

परिवार वाले शरीर की जांच करते हुए/ज्योति यादव/दिप्रिंट

दिप्रिंट ने भी जितने मरीजों के परिजनों से बात की, उनमें से किसी ने ऐसी किसी घटना का गवाह होने या अनुभव करने की बात नहीं कही. वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारियों ने इस डर के पीछे ‘दुष्प्रचार’ को जिम्मेदार ठहराया.

ऊपर उद्धृत पीएमसीएच अधिकारी ने कहा, ‘हर दिन हमारा साबका ऐसा परिवारों से पड़ता है जो हमें कोविड से मरने वाले मरीजों का शव खोलने को मजबूर करते हैं, यह देखने के लिए कि उनकी आंखें और किडनी आदि है कि नहीं.’

मरीजों की स्थिति के बारे में उनके परिजनों को अपडेट देने के लिए लगी ऑडियो-विजुअल स्क्रीन के काम न करने के बारे में अस्पताल के एक अधिकारी ने कहा कि सिस्टम को बंद कर दिया गया क्योंकि नाम और अन्य विवरण दिखाए जाने से ‘मरीजों की गोपनीयता का उल्लंघन’ होता था.

प्रशासन की तरफ से साझा आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, दोनों सरकारी अस्पताल औसतन प्रतिदिन 15 से अधिक कोविड मौत की रिपोर्ट देते हैं.


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‘जो भी अस्पताल जाएगा मर जाएगा’

बदहवाश यादव पीएमसीएच के बाहर लगातार ऐसे आरोप लगाने में जुटा है.

‘गांव गांव में बात फैल गई है जो अस्पताल जाएगा वो मारा जाएगा.’

उसने गुस्से में भरकर अपने पिता के जूतों को अस्पताल के कचरे के डिब्बे में फेंक दिया और बड़बड़ाया, ‘पूरा आदमी खा गए, जूतों का क्या करेंगे.’

इसी बीच, अस्पताल में भर्ती दो कोविड मरीजों के परिजनों ने अस्पताल प्रशासन से उन्हें छुट्टी दे देने की गुहार लगाई.

इनमें से एक परिवार के सदस्य ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘यहां इलाज में पूरी तरह लापरवाही बरती जा रही है. ऐसे सफाई कर्मचारी मरीजों की देखभाल के काम में लगे हैं, जिन्हें रोगी की नब्ज जांचने, ऑक्सीजन स्तर पता करने या दवाओं आदि देने के बारे में कोई भी जानकारी नहीं है.’

रिश्तेदार ने कहा, ‘डॉक्टर और नर्स तो कहीं नजर ही नहीं आ रहे. बेहतर है कि हमारा मरीज ऐसे कष्ट झेलने की बजाये घर पर ही दम तोड़े. इस तरह कम से कम आखिरी समय पर हम उसका चेहरा तो देख पाएंगे.’

एक तरफ जहां डॉक्टरों और नर्सों पर काम का बहुत अधिक बोझ है, एक तथ्य यह भी है कि मरीजों के ऑक्सीजन लेवल की जांच जैसे कामों की जिम्मेदारी अमूमन वार्ड ब्वाय पर रहती है, और अस्पताल कर्मियों के अभाव में कोविड मरीजों के परिजन ही उनकी देखभाल करते हैं.

54 वर्षीय रीता देवी के बेटे ने बताया कि कैसे उसने अपनी कोविड पॉजिटिव मां को पीएमसीएच में एक आईसीयू बेड दिलाने के लिए कुछ शीर्ष नौकरशाहों से गुहार लगाई थी. बिहार के गोपालगंज जिले की निवासी को 7 मई को हो अस्पताल में एक बेड मिला था. लेकिन एक दिन बाद ही उसका बेटा उन्हें अपने घर ले गया.

उन्होंने बताया, ‘मैंने अपनी मां को यह बेड दिलाने के लिए अधिकारियों से विनती की थी. लेकिन वह फोन पर रो रही है. कोई उसके पास नहीं जा रहा, उसे खाना भी नहीं दे रहा. वो अंदर तड़प रही है और मैं बाहर. मैं उसे किसी और अस्पताल में ले जाऊंगा.’

पीएमसीएच के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. आई.एस. ठाकुर ने दिप्रिंट से फोन पर बातचीत में कहा कि संक्रमण की दूसरी लहर के बाद से काम का दबाव बहुत ज्यादा बढ़ गया है, और उम्मीद है कि जल्द ही अस्पताल की स्थिति में सुधार होगा.

इस बीच, एनएमसीएच के डॉ. सरोज ने कहा कि मरीजों को पिछले 48 घंटों में अस्पताल में बेड के लिए इंतजार नहीं करना पड़ा है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘…लेकिन अगर हम मेडिकल बिरादरी पर भरोसा घटने की बात करें तो पटना एम्स से लेकर यहां के अन्य अस्पतालों तक के मामले में ये बात सच है.’ साथ ही जोड़ा कि मृत मरीजों के शरीर से अंगों को निकाले जाने की बात पूरी तरह ‘दुष्प्रचार’ है.

दिप्रिंट ने बिहार के स्वास्थ्य सचिव प्रत्यय अमृत से भी संपर्क साधा, लेकिन उन्होंने केवल यही कहा, ‘मेरे पास सांस लेने का भी टाइम नहीं है. माफ करें मैं आपके किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकता.’

जहां मरीज और परिजन ‘आत्मनिर्भर’ हैं

7 मई को एनएमसीएच कोविड वार्ड के बाहर खड़े अमितेश कुमार फोन कान के पास लगाकर अपनी 56 वर्षीय मां शीला कुमारी की दिल दुखी कर देने वाली पीड़ा सुनी.

28 अप्रैल को शीला को कोविड पॉजिटिव पाया गया था. अमितेश ने कहा कि उनकी हालत इतनी गंभीर थी कि उसे एनएमसीएच रेफर किए जाने से पहले सात निजी अस्पतालों ने वापस लौटा दिया था. उन्होंने कहा कि उन्हें मजबूरी में सरकारी अस्पताल लाना पड़ा, ऐसा नहीं है कि इसे लेकर उनको कोई घबराहट नहीं थी.

एनएमसीएच के बाहर शीला कुमारी के बेटे/ज्योति यादव/दिप्रिंट

उन्होंने बताया, ‘मैं इतनी गंभीर स्थिति में उन्हें कार से 80 किलोमीटर दूर तक लाया. लेकिन यहां की स्थिति देखकर मुझे नहीं पता कि वह बच भी पाएंगी या नहीं. हम डॉक्टरों और नर्सों की तलाश में जुटे हैं, लेकिन कोई नहीं है. इस कोविड वार्ड में हर मरीज आत्मनिर्भर बन गया है. हमें मरीजों के लिए ऑक्सीजन, दवाओं और अन्य आवश्यक चीजों की व्यवस्था खुद ही करनी पड़ती है.

उसी शाम शीला की मौत हो गई.

इस बीच, कोविड वार्ड के अंदर 50 से अधिक गंभीर मरीजों की देखभाल के लिए केवल दो नर्स थीं. ज्यादातर मामलों में परिवार के सदस्य ही अपने मरीजों की देखभाल में जुटे थे.

पीएमसीएच ने जहां परिवार के सदस्यों में संक्रमण फैलने से रोकने के लिए कोविड वार्ड में उनके प्रवेश पर रोक लगा रखी थी, वहीं एनएमसीएच में इस तरह का कोई प्रतिबंध नहीं था.

नतीजा ये था कि कोविड वार्ड के अंदर कुछ लोग गंभीर रूप से बीमार मरीजों को सांस लेने में मदद के लिए व्यायाम करा रहे थे, कुछ शौचालय के अंदर कपड़े धो रहे थे और कोई खाना खा रहा था, ये सभी अपनी सुरक्षा की परवाह न करते हुए कोविड पीड़ित अपने मरीजों की देखभाल में जुटे थे.


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