नई दिल्ली: दिप्रिंट को सरकारी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कम-से-कम एक दर्जन खालिस्तान समर्थक आतंकवादी समूहों के नेता अब भी लाहौर में खुलेआम रह रहे हैं, अपने ऑपरेशन्स के लिए चंदा इकट्ठा कर रहे हैं और हथियारों की खेप को सीमा पार भेजने की व्यवस्था कर रहे हैं.
और यह सब एक ऐसे समय में हो रहा है जब पाकिस्तान बहुराष्ट्रीय फाइनेंसियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (एफएटीएफ) द्वारा उन क़दमों के जमीनी प्रभाव का आकलन करने के लिए किये जा रहे निरीक्षण की तैयारी कर रहा है, जिनके बारे में इस्लामाबाद का कहना है कि उसने अपने सरजमीं से आतंकवाद को दूर करने के लिए कदम उठाए हैं.
इस हफ्ते की शुरुआत में, पाकिस्तान के एक गुरुद्वारे में दल खालसा प्रमुख गजिंदर सिंह की एक तस्वीर को बड़ी लापरवाही के साथ फेसबुक पर जारी किये जाने से उस कथित अपहर्ता का पता चल गया, जिसने साल 1981 में इंडियन एयरलाइंस की एक उड़ान को लाहौर में उतरने के लिए मजबूर किया था.
हालांकि, गजिंदर के लाहौर वाले ठिकाने के बारे में भारतीय अधिकारियों को लंबे समय से जानकारी रही है और इसका खुलासा उन भारतीय यात्रियों द्वारा किया गया था जो डेरा साहिब गुरुद्वारा में, और उसके घर में भी, उससे मिले थे; मगर इस फेसबुक पोस्ट ने पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में आतंकवाद को लगातार संरक्षण देने वाली इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के कारनामों को उजागर कर दिया है.
लाहौर स्थित खालिस्तान समर्थक नेता – जो भारत की तरफ से हत्याएं, आतंकवादी बम विस्फोट और अपहरण सहित कई अपराधों में शामिल होने के लिए वांछित हैं – वहीं से अपना ऑनलाइन प्रचार अभियान भी चलाते हैं. ऑनलाइन प्रकाशित ऐसी ही एक कविता में गजिंदर ने नफरत भड़काने की कोशिश करते हुए लिखा है:
‘यह चेहरों के बारे में नहीं है; यह एक विश्वासघाती चरित्र – गंगू की रूह- के बारे में है.’
‘यह उन सभी (हिंदुओं और भारत सरकार) के भीतर रहता है.’
गंगू सिख ऐतिहासिक कथाओं में वर्णित एक चरित्र है जिसने गुरु गोबिंद सिंह के बच्चों को धोखा दिया था.
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आईएसआई के पालतू खालिस्तानी
वधावा सिंह बब्बर को लाहौर से ही बब्बर खालसा इंटरनेशनल का नेतृत्व करते हुए करवाए गए कई सारे आतंकी हमलों के लिए जिम्मेदार माना जाता है, जिनमें से सबसे प्रमुख वारदात साल 1995 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या थी. यह पंजाब में होने वाला यह पहला फ़िदायीन (आत्मघाती) हमले का मामला था.
पुलिस रिकॉर्ड यह दिखाते हैं कि आतंकवाद से संबंधित आठ मामलों में वधावा का नाम शामिल है, जिसमें साल 2007 में लुधियाना में शिंगार मूवी थियेटर में हुआ वह बम विस्फोट भी शामिल है, जिसमें सात लोगों की जान चली गई थी. साल 1982 से ही इंटरपोल के रेड कॉर्नर नोटिस का सामना कर रहे वधावा को साल 2020 में भारतीय गृह मंत्रालय द्वारा एक आतंकवादी घोषित किया गया था.
लाहौर स्थित अन्य खालिस्तान समर्थक नेताओं की तरह, वधावा पर भी भारत में सीमा पार हथियारों की तस्करी के लिए ड्रोन के इस्तेमाल की व्यवस्था करने का संदेह है. भारतीय खुफिया एजेंसियों के अधिकारियों का आरोप है कि वह पश्चिमी देशों में (खालिस्तान) समर्थकों के बीच धन जुटाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
वधावा का भाई मेहल सिंह भी पाकिस्तान भाग गया था, लेकिन बाद में उसने बब्बर खालसा के एक प्रतिद्वंद्वी गुट को खड़ा करने में मदद की. वह भी साल 1990 में दर्ज आतंकवाद से संबंधित एक मामले का सामना कर रहा है और इंटरपोल नोटिस में सूचीबद्ध है.
भारतीय अधिकारियों का कहना है कि खालिस्तान कमांडो फोर्स का प्रमुख परमजीत सिंह पंजवार भी पाकिस्तान से ही सक्रिय है, हालांकि उसकी पत्नी पलजीत कौर और उसके दो बेटे कई साल पहले जर्मनी चले गए थे. दिप्रिंट द्वारा देखे गए पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, पंजवार के खिलाफ आतंकवाद से लेकर नकली-मुद्रा को फैलाने वाले तंत्र के निर्माण तक से जुड़े 22 मामले दर्ज हैं.
भारतीय खुफिया सेवाओं का मानना है कि खालिस्तान कमांडो फोर्स का यह प्रमुख – जिसके एक हाथ में छह उंगलियां हैं और जो अपने बाल छोटे रखता है – आईएसआई द्वारा उसे मुहैया करवाए गए घरों में रहता है, जिनमें से एक लाहौर स्थित वापदा कॉलोनी में और दूसरा बहावलपुर में सरवर रोड पर है.
भारतीय खुफिया सेवा के अधिकारियों के अनुसार, खालिस्तान के तथाकथित संरक्षक जरनैल सिंह भिंडरावाले का भतीजा लखबीर सिंह रोड़े भी लाहौर के रक्षा ठिकानों के आस पास रहता है.
खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स का प्रमुख रंजीत सिंह ‘नीता’, जो कम-से-कम 11 आतंकवाद के मामलों का सामना कर रहा है, पर आरोप है कि वह हथियारों के सीमा पार तस्करी का एक रैकेट संचालित कर रहा है जो पंजाब के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर में भी आतंकवादियों की जरूरतों को पूरा करता है.
1996 में झेलम एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट, 1997 में बसों पर हुए हमलों, 2000 में सियालदह और पूजा एक्सप्रेस ट्रेनों में हुए विस्फोट और अप्रैल 2006 में जालंधर बस स्टेशन में हुए विस्फोट के आरोपियों में शामिल ‘नीता’ के खिलाफ 11 मामले दर्ज किए गए हैं.
लाहौर में आईएसआई द्वारा सुरक्षित घरों (सेफहाउसेस), जो मिलिट्री कैंट के पास स्थित भाखड़ा कोठ और डल टाउन में स्थित हैं, के अलावा शहर के बाहरी इलाके में बसी पेको कॉलोनी में रहने वाले ‘नीता’ के ऊपर कई हेटेरोडोक्स धार्मिक नेताओं की हत्याओं में भी भूमिका निभाए जाने का संदेह है.
ताजा भर्ती किये गए रंगरूट
हरविंदर सिंह संधू, जिसे ‘रिंडा’ के नाम से भी जाना जाता है, जैसे खालिस्तान समर्थक आंदोलन में शामिल किये गए कई नए रंगरूट भी पाकिस्तान भाग गए हैं. 31 आपराधिक मामलों में वांछित, हरविंदर पर आरोप है कि उसने पिछले साल नवांशहर में पंजाब पुलिस के एक कार्यालय पर हुए ग्रेनेड हमले में इस्तेमाल किए गए हथियारों का प्रबंध किया था.
भारतीय खुफिया सेवाओं का मानना है कि बड़ी संख्या में दूसरे पायदान के खालिस्तानी गुर्गे भी लाहौर में बसे हैं, जिनमें मंजीत सिंह उर्फ ‘फौजी’, मंजीत सिंह उर्फ ‘पिंका’, परशोतम सिंह उर्फ ‘पम्मा’, रतन दीप सिंह उर्फ ‘हैप्पी’, और बलबीर सिंह संधू जैसे नाम शामिल हैं.
अब पाकिस्तान में रह रहे इन भगोड़ों में रविंदर सिंह उर्फ ‘पिंका’ भी शामिल है. एक समय में जम्मू का निवासी रहा पिंका साल 1984 में श्रीनगर से लाहौर के लिए उड़ान भरने वाली इंडियन एयरलाइंस की एक फ्लाइट का अपहरण करने वाले आरोपियों में शामिल है. इस विमान के नौ अपहर्ताओं को पाकिस्तान की एक अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन साल 1995 में दी गयी एक ‘आम माफी योजना’ के तहत उन्हें रिहा कर दिया गया था.
बाद में, इनमें से एक अपहर्ता, परमिंदर सिंह सैनी उर्फ हरफन मौला, ने कनाडा में शरण लेने के लिए फर्जी अफगान दस्तावेजों का इस्तेमाल किया था. हालांकि, सितंबर 1995 में उसकी असली पहचान पता चल गयी थी और इसके बाद उसे जालसाजी और धोखाधड़ी के मुकदमे का सामना करने के लिए साल 2010 में भारत निर्वासित कर दिया गया था.
असफल मुकदमे
29 सितंबर 1981 को, पाकिस्तान के विशिष्ट सुरक्षा दस्ते ‘स्पेशल सर्विस ग्रुप’ द्वारा लाहौर हवाई अड्डे पर अमृतसर जाने वाले विमान के 111 यात्रियों को सुरक्षित बचाये जाने के बाद दल खालसा प्रमुख गजिंदर सिंह सहित पांच चाकूधारी अपहर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था.
हालांकि, पाकिस्तान ने इन लोगों को भारत निर्वासित करने से इनकार कर दिया, लेकिन वहीं की एक अदालत ने उन्हें इस अपहरण में उनकी भूमिका के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. माना जाता है कि इन अपहर्ताओं को पाकिस्तान की कोट लखपत जेल में 12 से 13 साल की सजा काटने के बाद रिहा कर दिया गया था.
इस पांच अपहर्ताओं में से दो, भारतीय सेना के पूर्व कर्मी जसबीर सिंह और करण सिंह, स्विट्जरलैंड में राजनीतिक शरण प्राप्त करने में सफल रहे, और खालिस्तान समर्थक अलगाववादी आंदोलन के सक्रिय पैरोकार बने रहे.
अन्य दो अपहर्ताओं में से तेजिंदरपाल कनाडा और सतनाम संयुक्त राज्य अमेरिका चला गया. हालांकि, जिन परिस्थितियों में उन्होंने वीजा प्राप्त किया, वे काफी अस्पष्ट थे.
भारतीय खुफिया सेवाओं के अथक प्रयासों के बाद इन दोनों को विमान अपहरण के मामले में मुकदमे का सामना करने के लिए क्रमशः 1998 और 1999 में भारत प्रत्यर्पित किया गया था.
हालांकि, दस साल तक चली कानूनी कार्यवाही के बाद दिल्ली की एक अदालत ने इन लोगों को ‘डबल जेओपर्डी’ वाले सिद्धांत के तहत एक ही अपराध के लिए दो बार दंडित होने से बचाते हुए निर्दोष ठहराया. उनके खिलाफ अलग से चलाये गए देशद्रोह के आरोप भी बाद में वापस ले लिए गए.
इस बीच, दल खालसा का प्रमुख गजिंदर सिंह पाकिस्तान में ही बना रहा और सीमा पार हथियारों और पैसे की आपूर्ति करने के साथ- साथ उस देश के धार्मिक स्थलों पर आने वाले सिख तीर्थयात्रियों की भर्ती के प्रयासों की व्यवस्था करता रहा.
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