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Sunday, 29 September, 2024
होमदेशकाम की धीमी गति और 'जज्बे' की कमी को लेकर कैसे PM मोदी ने 3 हफ्तों में 3 बार IAS अधिकारियों की खिंचाई की

काम की धीमी गति और ‘जज्बे’ की कमी को लेकर कैसे PM मोदी ने 3 हफ्तों में 3 बार IAS अधिकारियों की खिंचाई की

सिविल सेवकों के प्रति प्रधानमंत्री मोदी की यह ‘हताशा’ 10 फरवरी को लोकसभा में धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान उनकी भूमिका का बारीकी से आकलन किए जाने के बाद सामने आई है.

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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 फरवरी को लोकसभा में अपने धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान भारतीय सिविल सेवा को सार्वजनिक तौर पर जमकर खरी-खोटी सुनाई थी. दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक यह एकमात्र ऐसा उदाहरण नहीं है जब उन्होंने सिविल सेवकों को फटकार लगाई हो.

सरकार में विभिन्न सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया है कि पिछले महीने कम से कम तीन अन्य मौकों पर प्रधानमंत्री ने सिविल सेवकों को फटकार लगाई है.

इसका ताजा उदाहरण 24 फरवरी की एक घटना है, जब प्रधानमंत्री मोदी ने विनिवेश विभाग की तरफ से परिसंपत्तियों के मूल्यांकन और विनिवेश पर एक वेबिनार में हिस्सा लिया. बैठक अधिक सार्वजनिक क्षेत्र की करीब 2.5 लाख करोड़ रुपये वैल्यू वाली 100 से अधिक परिसंपत्तियों के मूल्यांकन पर सुझावों के संबंध में आयोजित की गई थी.

मोदी ने बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को सिर्फ इसलिए ही नहीं चलाते रहना चाहती है क्योंकि वे दशकों से चल रहे हैं या क्योंकि वे ‘किसी की पसंदीदा परियोजनाएं’ हैं.

प्रधानमंत्री ने कहा कि निजी क्षेत्र निवेश लाता है, यह दुनियाभर में अपनाई जाने वाली सबसे बेहतरीन प्रैक्टिस है जो किसी क्षेत्र के आधुनिकीकरण और विस्तार के साथ-साथ रोजगार के अवसर भी प्रदान करती है. विभिन्न विभागों के सिविल सेवकों की आलोचना के पहले उन्होंने यह भी दोहराया कि सिर्फ व्यवसाय के लिए व्यवसाय करते रहना सरकार का काम नहीं है.

एक सूत्र ने कहा, ‘प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकारी अधिकारी आरोपों और अदालतों के डर से साहसिक फैसले लेने में अक्षम हैं. उन्होंने बाबुओं को आगाह किया कि इन संपत्तियों को मॉनीटाइज करना सिर्फ डीआईपीएएम (इन्वेस्टमेंट एंड पब्लिक एसेट मैनेजमेंट) की जिम्मेदारी नहीं है और जिन विभागों के तहत वो परिसंपत्ति आती है, उन्हें भी यह काम करना चाहिए.

उसी दिन, 24 फरवरी को ही एक दूसरे सूत्र ने बताया कि प्रधानमंत्री ने एक बैठक में हिस्सा लिया, जिसमें उन्होंने बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की स्थिति की समीक्षा की, बताया जाता है कि उन्होंने वहां भी काफी स्पष्ट शब्दों में सिविल सेवकों के साथ अपनी हताशा को जाहिर किया.

दूसरे सूत्र के मुताबिक, पूर्वी सिक्किम में दार्जिलिंग और रंगो के बीच 2009-10 में स्वीकृत 41.5 किलोमीटर लंबी रेललाइन पर कोई खास प्रगति न होने को लेकर मोदी ने नाराजगी जताई.

सूत्र ने कहा, ‘प्रधानमंत्री ने रेल मंत्रालय से कहा कि वह उन बाबुओं और विभागों की जवाबदेही तय करे जिन्होंने देश के करदाताओं का पैसा बर्बाद किया है. हर कोई चुपचाप प्रधानमंत्री की बात सुनता रहा.’

बताया जाता है कि इससे करीब 10 दिन पहले 16 फरवरी को भी प्रधानमंत्री ने सिविल सेवकों के लिए प्रति अपने गुस्से का इजहार किया था.

बुनियादी ढांचा मंत्रालयों और निजी क्षेत्र के प्रमुखों के साथ मोदी की इस बैठक में मौजूद रहे एक अधिकारी ने बताया कि उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि परियोजनाओं पर अमल धीमी गति से हो रहा है और सिविल सेवकों को आगाह किया कि इसके कारण देश को कोई नुकसान नहीं होना चाहिए.

इससे ठीक एक हफ्ते पहले 10 फरवरी को प्रधानमंत्री ने लोकसभा के अंदर सिविल सेवा की कार्यप्रणाली को लेकर बेहद तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की थी.

देश की वृद्धि और विकास में योगदान के लिए निजी क्षेत्र की प्रशंसा करते हुए मोदी ने यह भी कहा कि ‘हमने सब कुछ बाबुओं को सौंपकर देश में पॉवर सेंटर बना दिए हैं.’

मोदी ने कहा, ‘सब कुछ बाबू ही करेंगे. आईएएस बन गए मतलब वो फर्टिलाइजर का कारखाना भी चलाएंगे, केमिकल का कारखाना भी चलाएंगे, आईएएस हो गए तो वो हवाई जहाज भी चलाएंगे. ये कौन-सी बड़ी ताकत बनाकर रख दी हमने? बाबुओं के हाथ में देश देकर हम क्या करने वाले हैं? हमारे बाबू भी तो देश के हैं तो देश का नौजवान भी तो देश का है.’

अधिकांश अधिकारियों के लिए प्रधानमंत्री की यह टिप्पणी देश के सर्वोच्च कार्यालय की तरफ से पूरे आईएएस समुदाय की एक दुर्लभ और बेहद सख्त सार्वजनिक आलोचना थी.


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रुख में बदलाव

सिविल सेवाओं के प्रति प्रधानमंत्री का यह कड़ा रुख उनके गुजरात वाले दिनों से एकदम उलट है, जब मुख्यमंत्री के तौर पर वह अपने काम पूरे कराने के लिए आईएएस अधिकारियों पर पूरा भरोसा करते थे.

लेकिन कई अधिकारियों और सूत्रों ने दिप्रिंट से कहा कि मोदी के रुख में यह बदलाव मुख्यत: इस वजह से भी आया है क्योंकि उन्हें लग रहा है कि सिविल सेवक सरकार के मॉनेटाइजेशन प्लान में सक्रियता से रुचि नहीं दिखा रहे हैं.

ऊपर उद्धृत पहले सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि संसद में प्रधानमंत्री की नाराजगी इसलिए थी क्योंकि मोदी को लगता है कि अधिकारी पीएसयू के विनिवेश के प्रयासों को लेकर निराशावादी दृष्टिकोण रखते हैं.

24 फरवरी को परिसंपत्तियों के मूल्यांकन संबंधी एक बैठक में मौजूद सचिवों में से एक ने कहा, ‘वह (मोदी) चाहते हैं कि सबकुछ एकदम तेजी से हो जाए लेकिन बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में समय लगता है. परिसंपत्ति के निवेश और मूल्यांकन के साथ कई मुद्दे जुड़े होते हैं लेकिन वह एकदम त्वरित समाधान चाहते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘उन्होंने कुछ इस तरह की धारणा बना ली है कि पिछले कुछ वर्षों में विनिवेश लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सका है क्योंकि नौकरशाहों ने कम आक्रामक रुख अपना रखा है.’

उन्होंने कहा, ‘शायद उद्योग जगत के लीडर्स ने प्रधानमंत्री को नौकरशाही के नजरिये के बारे में ये जानकारी दी है…लेकिन सच्चाई यह है कि वैश्विक मंदी के कारण सरकारी लक्ष्य हासिल नहीं हो पाए हैं. हमने जो मूल्यांकन किया है, उसके हिसाब से पर्याप्त खरीदार नहीं मिल रहे हैं. उन सभी संपत्तियों को बेचने में 10 साल लग सकते हैं.’

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में होने वाली तमाम बैठकों में नियमित तौर पर मौजूद रहने वाले नीति आयोग के एक अधिकारी का कहना है, ‘पहले प्रधानमंत्री आगे विचार करते थे लेकिन अब वह अमूमन समस्याओं को सुनना नहीं चाहते हैं. शायद उन्हें समस्याओं के बारे में पता है.’

आयोग के अधिकारी ने कहा कि जब तक नृपेंद्र मिश्रा इन मामलों को देखते थे तब तक निर्देशों और उन पर अमल को लेकर स्पष्टता थी. नृपेंद्र मिश्रा सितंबर 2019 में बाहर होने से पहले तक प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव थे.

नीति आयोग के अधिकारी ने कहा, ‘उनके हटने के बाद से स्पष्टता और त्वरित फैसलों का अभाव हो गया है. उनके (मोदी के) कोपभाजन के दायरे में पीएमओ के अधिकारी भी हैं जो नीतिगत दिशा-निर्देश तय करने और उनके अमल पर नजर रखते हैं.’

एक अन्य अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा कि मोदी शायद अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति का कमतर आकलन कर रहे हैं.

अधिकारी ने कहा, ‘अभी प्रधानमंत्री की प्राथमिकता कोविड वर्ष के बाद अर्थव्यवस्था को गति देना है. और ऐसा करने के लिए खर्च की आवश्यकता है और प्रधानमंत्री आश्वस्त हैं कि उद्योगों और जिन लोगों के पास संपत्ति के मॉनेटाइजेशन की विशेषज्ञता है, के बिना ऐसा नहीं हो सकता है.’

उन्होंने कहा, ‘नौकरशाह 100 सार्वजनिक संपत्तियों का मौद्रिक आकलन नहीं कर सकते, यही वजह है कि 2021 के बजट में मॉनेटाइजेशन और विनिवेश के लिए एक स्पेशल पर्पज व्हीकल (एसपीवी) की घोषणा की गई है. सरकार की इस प्रक्रिया पर कुशलता के साथ अमल के लिए उद्योग से जुड़े बहुत सारे लोगों को इसमें शामिल किया जाएगा.’

अधिकारी ने आगे कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल के अन्य सदस्यों के विचार भी कुछ ऐसे ही रहे हैं.

अधिकारी ने कहा कि बुनियादी ढांचा मामलों के मंत्री नितिन गडकरी ने 28 फरवरी को एक वेबिनार में सिविल सेवकों के प्रति अपनी निराशा जताई थी क्योंकि प्रधानमंत्री के साथ कई समीक्षा बैठकों में उनके मंत्रालय के प्रोजेक्ट अटके पड़े रहे हैं.

अधिकारी ने कहा, ‘उन्होंने कहा कि छह साल बाद उन्होंने पाया कि इस पूरी प्रणाली में शामिल लोगों में बदलाव संभव नहीं है. गडकरी ने कहा कि वह इस नतीजे पर पहुंचे है कि उन्हें बदलना बहुत मुश्किल है. उन्होंने यह भी कहा कि राजमार्ग निर्माण में नई तकनीक के इस्तेमाल के बारे में जानकारी देने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति बनाई जाएगी और ढांचागत प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने के लिए वह ‘राज्यों से बेहतरीन लोगों को’ आगे लाएंगे.’

सरकार की तरफ से दरकिनार किए जा चुके एक रिटायर सिविल सेवक ने दिप्रिंट को बताया कि मोदी शायद पीएसयू को बेचने की अपनी आकांक्षाओं से प्रेरित हैं.

पूर्व अधिकारी ने कहा, ‘नौकरशाही के साथ प्रधानमंत्री के रिश्ते हमेशा बहुत सौहार्दपूर्ण रहे हैं. उन्होंने निष्ठा और प्रदर्शन के आधार पर तमाम नौकरशाहों को बढ़ावा दिया और यहां तक कि उन्हें रिटायरमेंट के बाद भी पुरस्कृत किया.’

उन्होंने कहा, ‘उनके कुछ अधिकारी तो पिछले दो दशकों से उनके साथ ही काम कर रहे हैं. फिर किस जगह पर आकर वे अक्षम हो गए हैं? हो सकता है कि उनकी नाराजगी के पीछे मुख्य कारण यह हो कि प्रधानमंत्री इतने पीएसयू की ब्रिकी पर भविष्य में किसी तरह की आलोचना को टालने के लिए यह अवधारणा बना रहे हों कि निजी क्षेत्र वेल्थ क्रिएटर है.’

(अरुण प्रशांत द्वारा संपादित)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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