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Thursday, 25 April, 2024
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RSS की प्रेरणा से एक युवा विधवा ने पूरे देश में कैसे फैलाया महिला संगठन

1936 में आरएसएस संस्थापक केबी हेडगेवार ने शिक्षाविद लक्ष्मी बाई केलकर को संघ की विचारधारा से प्रेरित किया जिसके नतीजे में राष्ट्र सेविका समिति का जन्म हुआ. आज ये संस्था आरएसएस के समानांतर काम करती है.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) यकीनन दुनिया की सबसे बड़ी स्वैच्छिक संस्था है, जिसके विरोधी महिलाओं के प्रति उसके वैश्विक नजरिए को गलत सदंर्भों में पेश करते रहे हैं.

लेकिन इसकी स्थापना के समय से ही आलोचकों ने इसकी जिस घिसी-पिटी छवि को परवान चढ़ाया है, उसके विपरीत आरएसएस एक पितृसत्तात्मक संगठन नहीं है.

1936 में आरएसएस संस्थापक केबी हेडगेवार ने शिक्षाविद लक्ष्मी बाई केलकर को, जो एक विधवा थीं, संघ की विचारधारा से प्रेरित किया जिसके नतीजे में राष्ट्र सेविका समिति के नाम से महिलाओं के लिए एक संगठन वजूद में आया.

21वीं सदी के लिए आरएसएस रोडमैप (रूपा पब्लिकेशंस 2019) में वरिष्ठ आरएसएस प्रचारक सुनील आंबेकर ने लिखा, ‘बड़े पैमाने पर सामाजिक रूढ़िवाद के दौर में डॉक्टर जी (हेडगेवार) का महिलाओं की बौद्धिक क्षमताओं में दृढ़ विश्वास था, जो उनके उनकी खुली सोच को दर्शाता है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘उस समय केवल महिलाओं के लिए, कोई समानांतर संगठन खड़ा करने के उद्देश्य से, किसी विधवा महिला से कई दौर की बातचीत करना, कोई आसान व सामान्य कार्य नहीं था. डॉक्टर जी ने मौसी केलकर (लक्ष्मी बाई केलकर) को संघ के विश्वास, तरीके, उद्देश्य और अन्य तकनीकी बारीकियां समझाईं. इसके नतीजे में, संघ के रूप और सामग्री को अपनाकर महिलाओं के लिए सेविका समिति का गठन किया गया’.

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आज, समिति के पास अपनी पूर्ण-कालिक कार्यकर्त्ता हैं, दैनिक शाखाएं हैं और दुनिया के दो दर्जन से अधिक देशों में, इसकी विभिन्न गतिविधियां चलती हैं.

समिति का ढांचा भले ही आरएसएस से काफी मिलता जुलता हो लेकिन इसकी गतिविधियां अलग होती हैं. गठन के बाद से ही महिलाओं से जुड़ने के लिए इसने अपने खुद के तौर तरीके विकसित कर लिए हैं.

जिस तरह आरएसएस के पूर्ण-कालिक कार्यकर्त्ता होते हैं, जिन्हें प्रचारक कहा जाता है, ठीक वैसे ही समिति की भी ‘प्रचारिकाएं’ होती हैं. कुछ अल्प-कालिक कार्यकर्त्ताएं भी होती हैं, जो दो साल की अवधि के लिए समिति का काम करती हैं.

समिति की एक यूनिफॉर्म भी होती है, ये अपने कार्यकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण शिविर भी आयोजित करती है- पृथम वर्ष, द्वितीय वर्ष और तृतीय वर्ष. हर कैंप की अवधि करीब 15 दिन की होती है, जो वार्षिक रूप से मई-जून में आयोजित किए जाते हैं.

समिति के रिकॉर्ड्स के अनुसार, हर साल देश भर में 10,000 से अधिक महिलाएं, इन कैंपों में शिरकत करती हैं. ऐसा पहला शिविर 1939 में लगाया गया था. 2016 में समिति की 80वीं वर्षगांठ के दौरान, इसके प्रशिक्षण शिविर में 3,000 सेविकाओं (वॉलंटियर्स) ने शिरकत की थी.

नागपुर स्थित मुख्यालय के इस संगठन का काम, देश के हर सब-डिवीज़न में पहुंच चुका है जिसमें करीब 5,000 शाखाएं और 900 कल्याण योजनाएं चल रही हैं.

उसके दस्तावेज़ों के अनुसार, समिति समाज में लीडर्स और पॉज़िटिव समाज सुधारों की एजेंट के तौर पर महिलाओं की भूमिका पर फोकस करती है और उन्हें उनके आदर्श सिखाती है: मातृत्व, कर्तृत्व और नेतृत्व.


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समिति का सफर

राष्ट्र सेविका समिति का विकास, इसकी संस्थापक लक्ष्मी बाई केलकर की जीवन यात्रा का पर्याय है जिनका जन्म 6 जलाई 1905 को हुआ था और जिन्हें उनके मानने वाले, ‘मौसी जी’ के नाम से जानते हैं.

27 वर्ष की आयु में विधवा होने के बाद, जब उनकी एक छोटी सी बेटी थी, केलकर को अक्सर चिंता रहती थी कि वो अपनी बेटी को कहां पढ़ाएंगी. शिक्षा को लेकर वो इतनी प्रतिबद्ध थीं कि लड़कियों को पढ़ाने के लिए उन्होंने एक स्कूल स्थापित करने का फैसला कर लिया. केसरीमल कन्या विद्यालय नाम का ये स्कूल आज भी चल रहा है.

फिर उनकी मुलाकात आरएसएस संस्थापक केबी हेडगेवार से हुई जिन्होंने 1925 में संघ की स्थापनी की थी और हेडगेवार के साथ उनकी कई दौर की बातचीत हुई. इसके बाद उन्होंने संगठन शुरू कर दिया और खुद को एक देशव्यापी संगठनात्मक नेटवर्क बनाने के प्रति समर्पित कर दिया.

संगठन की पहली प्रमुख होने के नाते उन्हें प्रमुख संचालिका कहा गया. उनका ये दायित्व 1978 में उनकी मौत तक उनके साथ रहा.

वर्तमान में ये दायित्व शांता कुमारी के पास है, जो गणित में पोस्ट ग्रेजुएट और एमएड डिग्री रखती हैं. उन्होंने बेंगलुरू में भारतीय विद्या भवन में बतौर टीचर काम किया जिसके बाद 1995 में स्वैच्छिक रिटायरमेंट लेकर उन्होंने खुद को पूरी तरह संगठन के कामों के प्रति समर्पित कर दिया.

समिति की एक वरिष्ठ पदाधिकारी के अनुसार, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, संगठन अब अपना ध्यान किशोरियों, खासकर कॉलेज छात्राओं के बीच अपने आधार को फैलाने में लगा रहा है.

युवा कन्याओं और महिलाओं के साथ जुड़ने के लिए, ‘तरुणी विभाग’ के नाम से एक अलग विंग स्थापित की गई है.

समिति पदाधिकारी ने कहा कि इसके परिणाम काफी उत्साहजनक रहे हैं. उन्होंने ये भी कहा, ‘आने वाले दिनों में हम पहले से देख सकते हैं कि किशोरियों और युवतियों के बीच हमारी गतिविधियों में तेज़ी से विस्तार होगा’.

(लेखक दिल्ली स्थित एक थिंक-टैंक विचार विनिमय केंद्र में रिसर्च डायरेक्टर हैं. इन्होंने आरएसएस पर दो किताबें लिखी हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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