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Saturday, 16 November, 2024
होमदेशदोअर्थी और नारी विरोध से सीधे मां-बहन की गाली तक, आख़िर भोजपुरी गाने यहां तक पहुंचे कैसे

दोअर्थी और नारी विरोध से सीधे मां-बहन की गाली तक, आख़िर भोजपुरी गाने यहां तक पहुंचे कैसे

भोजपुरी गानों के लगातार गिरते स्तर के लिए राष्ट्रवादी राजनीति को बड़ा कारण माना जा रहा है. जानकारों का मानना है कि प्रकाश झा और अनुराग कश्यप जैसे लोगों की जब तक अपनी मातृभाषा से दूरी बनी रहेगी तब तक यही हाल रहेगा.

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नई दिल्ली: भोजपुरी गानों में अश्लीलता को लेकर अक्सर बहस होती रही है. इस भाषा के जानकार बताते हैं कि इन गीतों में पतन का चलन दोअर्थी (डबल मीनिंग) गानों से शुरू हुआ. बाद में साफ अश्लील शब्दों ने जगह ले ली. अब तो गानों में सीधे मां-बहन की गालियों का इस्तेमाल किया जाने लगा है. इनमें से ही एक गाने के बोल हैं: ‘चीन माधर** बा‘.

सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद बॉलीवुड अभिनेता सलमान खान और निर्देशक करन जौहर पर जिस तरह से नेपोटिज्म को लेकर आरोप लगे उसके बाद इनके परिवार की महिलाओं को भी गालियां देते हुए भोजपुरी गाने यूट्यूब पर डाले जाने लगे.

भोजपुरी की लोक गायिका शारदा सिन्हा ने दिप्रिंट से कहा, ‘नए लड़के नेताओं की तरह श्रोताओं की भावना से खेलकर यूट्यूब पर व्यूज़ बटोर रहे हैं.’

उन्होंने कहा, ‘संगीत राजनीति की तरह हो गया है जो मुद्दे चलन में होते हैं उनको भुनाया जाता है. कोरोनावायरस फैलने से लेकर सुशांत की मौत तक पर भद्दे गाने बनते हैं. मामले की संजीदगी से ऐसे लोगों को कोई लेना-देना नहीं होता.’

भोजपुरी गायक और भाजपा नेता मनोज तिवारी का मानना है कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर कंटेंट का रेग्युलेशन होने लगे तो अपने आप चीज़ें सुधर जाएंगी.

बिहार से एमएलसी और भाजपा नेता संजय मयुख ने बीते दिनों एक ट्वीट कर भोजपुरी के अश्लील गानों को प्रतिबंधित करने की मुहिम भी शुरू की थी.


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‘ऑटोट्यून ने गानों को बर्बाद किया’

शारदा सिन्हा के स्वर शारदा आर्ट एंड कल्चर फॉउडेंशन की बागडोर उनके बेटे अंशुमन सिन्हा के हाथों में है. उन्होंने कहा कि ऑटोट्यून ने गानों को बर्बाद कर दिया. इस सॉफ्टवेयर की वजह से ऐसे गानों की बाढ़ आ गई है. ये बेहद सस्ता है जिसकी वजह से हर कोई रिकॉर्डिंग स्टूडियो खोले बैठा है.

भोजपुुरी के प्रचार और साहित्यिक विकास के लिए आख़र नाम की पहल के सदस्य निराला बिदेसिया भोजपुरी पर लंबे समय से काम करते रहे हैं. उनका भी मानना है कि तकनीक ने फूहड़ता को चरम पर पहुंचाया है.

ऑटोट्यून सॉफ्टवेयर का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि कंप्यूटर में पहले से ट्रैक होता है. देखते-देखते गाना लिख दिया जाता है. आड़े, तिरछे, दायें, बायें जैसे गाएं…ऑटोट्यून अपने आप सब ठीक कर देता है. इसी वजह से रोज़ दर्जनों गाने बन रहे हैं.

‘चीन माधर** बा ‘ गाने वाले लवली शर्मा दिल्ली के वेस्ट पटेल नगर में ऐसा ही एक स्टूडियो चलाते हैं. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘उनके जैसे स्टूडियो में 1000-2000 रुपए में एक गाना रिकॉर्ड हो जाता है. पुराने ट्रैक पर गाना रिकॉर्ड करने में एक हज़ार और नए पर रिकॉर्ड करने में दो हज़ार का खर्च आता है’. दिल्ली में ऐसे कई दर्जन स्टूडियो चलते हैं.

चीन वाले गाने पर शर्मा ने कहा, ‘कोरोना आउटब्रेक के समय मार्च में ये गाना गाया था. यूट्यूब पर इसके तेज़ी से व्यूज़ बढ़ रहे थे लेकिन स्ट्राइक (रिपोर्ट कर दिया) आ गया तो इसे डिलीट करना पड़ा. फिर किसी और ने अपने चैनल पर ये गाना डाल दिया तब से इसे हज़रों लोगों ने देखा है.’

शर्मा ने बताया कि लॉकडाउन से धंधा मंदा है वरना अच्छे सीज़न में 40,000 रुपए तक की कमाई हो जाती है. सीज़न से उनका मतलब होली और छठ से है जब भोजपुरी के गानों की खासी मांग रहती है.

इस गाने को लिखने वाले सन्नी कुमार बिहार के सिवान के रहने वाले हैं और फरीदाबाद में इलेक्ट्रीशियन का काम करते हैं. दिप्रिंट ने जब उन्हें फोन किया तो कॉलर ट्यून में शिव स्तुति ‘कर्पूर गौरम, करुणावतारं’ बज रहा था.

ऐसा गाना बनाने पर सन्नी ने कहा, ‘वायरस फैलने को लेकर सोशल मीडिया पर सब चीन को गाली दे रहे थे. इसी से मेरे दिमाग में इस गाने का आइडिया आया.’ उन्होंने कहा कि वो अकेले नहीं है और ऐसे न जाने कितने गानों की यूट्यूब पर बाढ़ आई हुई है.


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राष्ट्रवाद की राजनीति भी ऐसे गीतों की वजह

दिल्ली के त्यवती कॉलेज में पढ़ाने वाले मुन्ना पांडे देश में 2014 के बाद बदली राष्ट्रवाद की राजनीति को इन गीतों के बढ़ते चलन की वजह मानते हैं. भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर पर पांडे ने पीएचडी की है.

उन्होंने कहा, ‘2014 के बाद से गाने और बदतर होते चले गए. भारतीय जनता पार्टी ने ऐसे गानों की सिरमौर रहे मनोज तिवारी, रवि किशन, पवन सिंह और कल्पना पटवारी जैसे लोगों को अपनी पार्टी में शामिल करके इन्हें मान्यता दी.’

उन्होंने कहा ये एक पार्टी की दिक्कत नहीं है. राजनीतिक शह का ऐसा आलम रहा कि जेडीयू के नेतृत्व वाली बिहार सरकार ने विनय बिहारी जैसे अश्लील गाने लिखने वाले व्यक्ति को संस्कृति मंत्री बना दिया था जिन्हें 2014 में कोर्ट से अश्लील गानों के मामले में बेल मिली थी.

पांडे ने गानों पर राष्ट्रवाद के खुमार को बताने के लिए ‘ले आइब दुल्हनिया पाकिस्तान ‘ फिल्म का उदाहरण दिया. इसके एक डायलॉग के बारे में उन्होंने कहा, ‘अदाकारा कहती है- शादी उसी से करूंगी कि जिसकी छाती 56 इंच की है.’ इसके अलावा उन्होंने ‘पाकिस्तानी में जय श्रीराम ‘ और दिनेश लाल यादव उर्फ ‘निरहुआ’ की 2015 में आई फिल्म ‘पटना से पाकिस्तान ‘ जैसी फिल्मों का भी उदाहरण दिया. ‘निरहुआ’ ने 2019 में भाजपा के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा था.

फिल्म मिथिला मखान  के लिए नेशनल अवॉर्ड जीतने वाले नितिन चंद्रा भी ऐसे गानों के विस्तार में राष्ट्रवादी राजनीति को बड़ा कारण मानते हैं. उन्होंने कहा, ‘सारे बड़े भोजपुरी गायक या अदाकार भाजपा में कैसे आ गए?’

वो कहते हैं, ‘बीमारू राज्यों में आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास नहीं हुआ है. ये वो इलाके हैं जहां राष्ट्रवाद के नाम पर हिंदी थोपी गई है. साहित्यकार प्रेमचंद के पोते आलोक राय ने हिंदी नेशन्लिज़्म नाम की एक किताब में इसकी बखूबी चर्चा की है.’

लेकिन पूर्वोत्तर दिल्ली से भाजपा के सांसद और भोजपुरी गायक मनोज तिवारी ने अश्लील गानों को बढ़ावा देने पर दिप्रिंट से बातचीत में इन आरोपों को खारिज किया.

उन्होंने कहा, ‘मुझ पर फूहड़ता के आरोप कैसे लग सकते हैं? मैंने तो भोजपुरी सिनेमा को पारिवारिक बनाया. राज्यवर्धन सिंह राठौड़ के सूचना प्रसारण राज्य मंत्री रहते भोजपुरी फिल्म फेस्टिवल कराया. मेरी फ़िल्म ‘ससुरा बड़ा पैसावाला ‘ जब हिट हुई तो बाकी भोजपुरी अदाकारों की भी कीमत बढ़ गई.’ उनका कहना है कि आज कल के लड़के रातों-रात मशहूर होना चाहते हैं.

दिप्रिंट ने रवि किशन, पवन सिंह, कल्पना पटवाली और ‘निरहुआ’ को उनका पक्ष जानने के लिए संपर्क करने की कोशिश की लेकिन कोई जवाब नहीं आया. अगर उनका जवाब आता है तो लेख को अपडेट किया जाएगा.


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भोजपुरी के इस हाल के लिए पलायन बड़ा कारण

मुन्ना पांडे के मुताबिक भोजपुरी में अश्लीलता काफी तेज़ी से गुड्डू रंगीला और राधे श्याम रसिया के दौर में बढ़ी. टी-सीरीज़, चंदा और वेब कैसेट ने ऐसे गानों को मान्यता देने का काम किया. हालांकि, पहले जो दोअर्थी और अश्लील था अब वो राजनीतिक हो गया जिसकी वजह से अब सीधे मां-बहन की गालियों पर मामला आ गया है.

भोजपुरी गाने में ताज़ा चलन का उन्होंने एक कारण बताया कि बिहार के अभिजात वर्ग ने खुद को अपनी मातृभाषा से दूर कर लिया है.

उन्होंने कहा, ‘आप पंजाब को देख लीजिए. यहां के लोगों का पलायन विकसित देशों में हुआ. पंजाबियों ने पश्चिमी देशों के गीत-संगीत को अपने गानों में उतारा. उनके छिछोरे गाने भी लोगों को ठीक लगते हैं.’

उन्होंने कहा कि बिहारियों का पलायन भारत भर में ही हुआ. भोजपुरी सुनने वाले ज़्यादातर लोग मज़दूर वर्ग के हैं. अभिजात वर्ग ने खुद को ऐसे गानों और इस भाषा से दूर कर लिया. ये लोग न सिर्फ बिहारी भाषाओं से बल्कि बिहार के छोटे शहर से भी खुद को दूर रखते हैं. खुद को पटना का बताते हैं. इसकी वजह से इन्हें डीयू में ‘पटनास्लोवाकिया’ का बुलाया जाने लगा.

भोजपुरी के इस हाल के लिए नितिन चंद्रा ने भी पलायन को बड़ा कारण बताया. उन्होंने कहा, ‘प्रकाश झा से अनुराग कश्यप जैसे लोगों ने भोजपुरी में कोई काम नहीं किया.’

उनका कहना है कि भोजपुरी ऐसे हाथों में रह गई जो काफी सांप्रदायिक, सामंतवादी और नारी विरोधी हैं. यहीं से चीन और सलमान के लिए ऐसे गाने आ रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘हमारे यहां कोरोना से सुशांत की मौत तक पर भड़ास मिटाने के लिए हमें हर जगह महिलाएं या मुसलमान चाहिए.’

उनका मानना है कि जब तक प्रकाश झा और कश्यप जैसों की मातृभाषा से दूरी बनी रहेगी तब तक यही हाल रहेगा.

उन्होंने कहा, ‘पंजाब में मर्सिडिज़ से भी घूमने वाले कलाकार से आम आदमी तक ज़्यादातर लोग पंजाबी बोलते नज़र आते हैं. इनका जो अपनी भाषा से प्रेम है वो भोजपुरी या बिहार की अन्य भाषाओं के लोगों में नहीं मिलता. उल्टे भोजपुरी बोलना अशिक्षा और गंवारपन की निशानी होती चली गई.’

दिप्रिंट ने कॉल और मेल के जरिए झा और कश्यप का भी पक्ष जानने की कोशिश की लेकिन स्टोरी पब्लिश होने तक कोई जवाब नहीं मिला.

निराला ने कहा कि भोजपुरी को भले ही आठवीं सूची में नहीं जोड़ी गई लेकिन बिना राज्याश्रय के ये बिहार की प्रतिनिधि भाषा बन गई और विदेशो में भी फैली. उन्होंने कहा, ‘गुड्डू रंगीला का गाना ‘जा झार के’ में गुटखे का महिला से उतना ही संंबंध नहीं है जितना ट्रैक्टर के प्रचार में अर्धनग्न लड़की का. लेकिन इन सबको लेकर समाज में स्वीकारिता आ गई.’


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उन्होंने कहा कि उदारीकरण के बाद से ये तेज़ हुआ. इसी का असर है कि भारत में कोरोना आने से पहले कोरोना पर ‘लहंगा में वायरस कोरोना घुसल बा‘ जैसा गाना आ गया.

उन्होंने कहा कि ऋत्विक घटक और सत्यजीत रे का कमिटमेंट अपनी भाषा को लेकर बना रहा लेकिन भोजपुरी को लेकर ऐसा कमिटमेंट कभी नहीं रहा.

उन्होंने कहा, ‘बक्सर में जन्मे बिस्मिल्ला ख़ान अपनी भाषा के प्रति इतने समर्पित थे कि अपनी दत्तक पुत्री शोमा घोष से भोजपुरी का गाना गवाया.’

सबसे बड़ा कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि बिहारियों ने अपनी बेटियों को ताले में बंद रखा और नायिका और गायिका नहीं पैदा होने दिया. इसकी वजह से बिहार में कला की कमर टूट गई.

उन्होंने कहा, ‘अगर अपवाद को छोड़ दें तो वर्तमान सभी महिला गायिका और कलाकार बिहार से बाहर की हैं. पाखी हेगड़े, नगमा, संभावना सेठ और रानी चटर्जी भोजपुरी की बड़े स्टार बन जाती हैं. बिहार के मर्दवादी समाज ने नायिका और गायिका पैदा नहीं होने दिए. इसका नतीजा तो भुगतना पड़ेगा.’

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5 टिप्पणी

  1. Me to suru se hi, भोजपुरी gano k खिलाफ hu,kyuki inke hmse hi 2 meaning niklte h.
    Muje lgata h, sarkar ko aise kuch gano pr प्रतिबंध lgana chahiye..
    Aise kuch songs, समाज m rhne aur jine k तौर-तरिके se vanchit krte hh
    Aur ab to छोटे बच्चों k ps b स्मार्टफोन aa gya h, so vo in gaano se गलत प्रेरणा le sakte h..

  2. आपका कोई भी आर्टिकल बिना bjp और मोदी के बिना पुरा क्यों नहीं हो सकता

  3. इन छिछोरे गायकों को समाज से कोई लेना देना नहीं है ।
    अगर गीतकारों से व्याकरण से कोई सवाल पूछा जाय तो भी
    नहीं आएगा ।

  4. U.P/Bihar walo ko chodna shikhoge rajniti karna shikhao ge jo school our college se hi desh ke bare me shichta haai…..aur jo galt hai ushe kahne kya harj hai and that is called freedom of speech

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