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Thursday, 23 May, 2024
होमदेशएक महीना, कोर्ट का आदेश- COVID के बाद UP के एक प्रवासी का शव जॉर्डन से लाने के लिए क्या-क्या किया गया

एक महीना, कोर्ट का आदेश- COVID के बाद UP के एक प्रवासी का शव जॉर्डन से लाने के लिए क्या-क्या किया गया

एक प्रवासी मज़दूर कलाम की, 4 नवंबर को जॉर्डन में कोविड से मौत हो गई थी. दिल्ली एयरपोर्ट पर जब कार्गो एजेंसी ने उसके शव को हैंडल करने से मना कर दिया, तो उसके परिवार ने हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया.

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नई दिल्ली: एक महीने से ज़्यादा समय, और हाईकोर्ट का एक आदेश- तब कहीं जाकर 26 वर्षीय अब्दुल कलाम का, उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में स्थित परिवार, उसके शव को जॉर्डन से भारत ला सका, ताकि वो उसे दफ्ना सकें.

कलाम की, जो जॉर्डन में प्रवासी भारतीय मज़दूर था, 4 नवंबर को कोविड से मौत हो गई थी. उसका परिवार उसे भारत में दफ़्नाना चाहता था, इसलिए उसने जॉर्डन में भारतीय एम्बेसी से, उसका शव भेजने का अनुरोध किया.

लेकिन, 3 दिसंबर को परिवार को मजबूरन दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा, जब एम्बेसी ने उसे सूचित किया, कि दिल्ली एयरपोर्ट पर कार्गो एजेंसी ने, कलाम के शव को हैंडल करने से इनकार कर दिया था.

इस हफ्ते, जब 7 दिसंबर को कोर्ट ने आदेश दिया, तब आख़िरकार शव को लाने के इंतज़ाम किए गए. कोर्ट ने दिल्ली इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (डायल) से कहा, कि दिल्ली में परिवार के वकील से संपर्क करने के लिए, एक अधिकारी को नियुक्त करे, ताकि समय रहते सभी औपचारिकताएं पूरी की जा सकें.

डायल ने कोर्ट के सामने बयान दिया, कि उसे शव के वापस लाए जाने पर कोई ऐतराज़ नहीं है. चूंकि डायल ने शव को वापस लाने की हामी भर ली, इसलिए कोर्ट ने केस को लंबित नहीं रखा, और डायल को निर्देश जारी करते हुए, उसे सुनवाई की पहली तारीख़ पर ही निपटा दिया.

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परिवार की ओर से ये केस लड़ने वाले, एडवोकेट सुभाष चंद्रन ने दिप्रिंट को बताया, कि कोर्ट के आदेश के बाद चीज़ें तेज़ी से आगे बढ़ीं.

उन्होंने कहा, ‘9 दिसंबर को भारतीय एम्बेसी ने, हमें एयरवे बिल दिखाया, जो 10 दिसंबर को शव को दिल्ली लाने के लिए जारी किया गया था. शव को आख़िरकार 11 दिसंबर की सुबह दफनाया गया, जिसके लिए परिवार ड्राइव करके दिल्ली आया’.


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परिवार ने क्या किया

कलाम के बहनोई इरशाद अहमद ने दिप्रिंट को बताया, कि उसके पेरेंट्स को मौत की इत्तिला 4 नवंबर को मिली थी. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के जॉर्डन कार्यालय, और भारतीय एम्बेसी की दख़लअंदाज़ी के बाद, नियोक्ता भी शव को भेजने का ख़र्च वहन, करने को तैयार हो गया था.

दिल्ली हाईकोर्ट में दायर, परिवार की याचिका के मुताबिक़, एम्बेसी ने औपचारिकताएं पूरी कर लीं थीं, और एमिरेट्स एयरलाइन को अमान से दिल्ली लाने को तैयार हो गई.

चंद्रन ने कहा कि एम्बेसी के अनुरोध पर, कलाम के माता-पिता ने एक दिल्लीवासी को उसका शव लेने के लिए अधिकृत भी कर दिया. 18 नवंबर को एम्बेसी को बाक़ायदा इसकी सूचना भी दे दी गई.

इरशाद के मुताबिक़, चंद्रन ने शव को हैण्डल करने, ट्रांसपोर्ट करने, और दफ्नाने के लिए, शहीद भगत सिंह (एसबीएस) फाउण्डेशन नाम की एक एनजीओ से, संपर्क करने में भी परिवार की मदद की. 26 नवंबर को दिल्ली में अधिकारियों ने, परिवार को ऐसा करने के लिए कहा था.

एसबीएस कथित रूप से अब तक, 500 से अधिक कोविड-पॉज़िटिव शवों को ले जाकर, उनका अंतिम संस्कार कर चुकी है.

जब सारी औपचारिकताएं पूरी कर ली गईं, तो पिछले महीने के अंत में, परिवार को एम्बेसी की ओर से फोन आया, कि दिल्ली एयरपोर्ट ने शव को लेने के लिए अपना क्लियरेंस नहीं दिया था. उन्हें ये भी बताया गया, कि एसबीएस वॉलंटियर्स को शव को लेने, और ट्रांसपोर्ट करने के लिए अनुमति नहीं मिली.

इरशाद ने कहा कि परिवार को ये सब फोन पर बताया गया था, और कोई औपचारिक या लिखित संदेश नहीं था. उसके बाद, परिवार ने 3 दिसंबर को हाईकोर्ट के समक्ष रिट याचिका दायर की.

प्रवासियों के लिए बीमे का मुद्दा

पीएम जाबिर ने, जो ओमान में प्रवासी भारतीयों की एक मान्यता प्राप्त संस्था, इंडियन सोशल क्लब के वेल्फेयर सेक्रेटरी हैं, और कलाम के मामले पर नज़दीकी नज़र रखे हुए थे, कहा कि इस घटना से ज़ाहिर होता है, कि जॉर्डन में रह रहे प्रवासी भारतीय किस हाल में हैं.

उन्होंने कहा, ‘यहां रहने वाले प्रवासी परिवारों के पास इतने साधन नहीं हैं, कि किसी के बीमार पड़ने, या अस्पताल में भर्ती होने की स्थिति में, अथॉरिटीज़ के पीछे लग सकें. कलाम का मामला एक अपवाद है, क्योंकि नियोक्ता और एयरलाइन, उसके शव को ले जाने का ख़र्च उठाने पर सहमत हो गए.

जाबिर ने आगे कहा, ‘ऐसी मिसालें हैं जब बिल अदा न कर पाने की स्थिति में, शवों को अस्पताल से रिलीज नहीं किया गया’.

उन्होंने कहा कि जॉर्डन में रह रहे प्रवासी भारतीय, अकसर भारतीय प्रवासी मज़दूरों की मदद करते हैं. जाबिर ने ये भी कहा, ‘प्रवासी भारतीयों के लिए बीमा सुविधा उपलब्ध न होने की वजह से भी, वो बेबसी की हालत में रहते हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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