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Saturday, 21 December, 2024
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‘बाढ़ और सूखा ये तो बस शुरुआत है,’ जलवायु परिवर्तन से कैसे बेहाल हो रहे हैं भारत और पाकिस्तान

मौसम विज्ञानी दुनियाभर में हो रहे मानसून के बदलावों को लेकर चिंता जाहिर की है. इन दिनों पाकिस्तान में आई भीषण बाढ़ और भारत के कई हिस्सों में उम्मीद से ज्यादा बारिश और बाढ़ जैसी घटनाओं ने जलवायु परिवर्तन के असर को और भी साफ कर दिया है.

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नई दिल्ली: पाकिस्तान इस समय जबरदस्त बाढ़ की चपेट में है जिसमें 1,100 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. बुनियादी ढांचे और फसलों को भी भारी नुकसान पहुंचा है और देश की आबादी का सातवां हिस्सा यानी 3.3 करोड़ लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं.

अगर वैज्ञानिकों की मानें तो उनका कहना है कि यह महज शुरुआत भर है आने वाले वर्षों में मौसम में बदलाव और खतरनाक साबित होंगे और हमें इसके लिए तैयार रहना होगा. सिर्फ वर्षा ही नहीं पाकिस्तान में पिछले पांच साल पहले कराची में आई लू भी खतरनाक थी. उस समय लू और भीषण गर्मी की वजह से लगभग दो हजार लोग हताहत हुए थे.

भारत का हाल भी पाकिस्तान से मिलता जुलता ही है. भारतीय उपमहाद्वीप में मानसून की बदलती प्रवृत्ति खेती किसानी, खाद्य सुरक्षा से लेकर सामाजिक-आर्थिक स्थिति तक पर प्रभाव डाल रही है. मौसम वैज्ञानियों का मानना है कि इनसब के पीछे जलवायु परिवर्तन एक बड़ा कारण है. और अब तीव्रता से हो रहे मौसमी बदलाव जनजीवन के बीच ‘न्यू नार्मल’ हो चुका है.

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार 1902 के बाद 2022 में दूसरी बार मौसम में इस तरह का बड़ा और भयावह बदलाव देखा गया है. इस बीच बाढ़ से लेकर सूखे तक की घटनाएं भी बढ़ी हैं.

मौसम विज्ञानी दुनियाभर में हो रहे मानसून के बदलावों को लेकर चिंता जाहिर कर रहे हैं. इन दिनों पाकिस्तान में आई भीषण बाढ़ और भारत के कई हिस्सों में उम्मीद से ज्यादा बारिश और बाढ़ जैसी घटनाओं ने जलवायु परिवर्तन के असर को और भी साफ कर दिया है.

कराची की पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. सीमा जिलानी ने कहा, ‘जलवायु परिवर्तन के प्रभाव हमें चौंका रहे हैं. पाकिस्तान में और यहां तक कि दुनिया के अन्य हिस्सों में जो हो रहा है वह जलवायु परिवर्तन के एक बुरे सपने की तरह है.’

डॉ. जिलानी ने आगाह किया, ‘हमने इस मॉनसून के मौसम में पाकिस्तान में जो देखा है, वह सिर्फ एक शुरुआत है क्योंकि आने वाले वर्षों में मौसम में बदलाव और खतरनाक साबित होंगे और हमें इसके लिए तैयार रहना होगा.’

जिलानी और कराची विश्वविद्यालय में पर्यावरण अध्ययन संस्थान के सहायक प्रोफेसर डॉ. आमिर आलमगीर जैसे अन्य विशेषज्ञ, सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन पर दक्षिण एशियाई नेटवर्क के साथ काम कर रहे हैं.

डॉ. आलमगीर ने सहमति व्यक्त की कि जलवायु परिवर्तन और प्रतिकूल मौसम की स्थिति के बीच संबंध स्पष्ट है. उन्होंने कहा, ‘पाकिस्तान में और विशेष रूप से कराची में, हमने मूसलाधार बारिश और अचानक बाढ़ में ऐसी निरंतरता नहीं देखी है जो हम अभी देख रहे हैं.’

विशेषज्ञों का मानना है कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि जलवायु परिवर्तन इसके पीछे कारण है. इसलिए इस व्यवस्था के पैटर्न को समझने के लिए और रिसर्च की जरूरत है.

भारत में स्काइमेट वेदर के उपाध्यक्ष महेश पलावत ने कहा, ‘यह एक दुर्लभ घटना है क्योंकि हम मौसम प्रणालियों को इस दिशा में यात्रा करते हुए नहीं देखते हैं. दो बैक-टू-बैक मॉनसून डिप्रेशन मध्य भारत से होते हुए बंगाल की खाड़ी से दक्षिण सिंध और पाकिस्तान में बलूचिस्तान तक गए. जबकि पूर्वी हवाएं इन्हें पाकिस्तान क्षेत्र की ओर बढ़ा रही हैं और अरब सागर से पश्चिमी हवाएं इस क्षेत्र की ओर आ रही थीं. विपरीत हवाओं के कन्वर्जेंस ने पाकिस्तान के ऊपर कॉल क्षेत्र का निर्माण किया, सिंध क्षेत्र और बलूचिस्तान पर एक लंबी अवधि के लिए प्रणाली फंसी रही जिसके परिणामस्वरूप मूसलाधार बारिश हुई.’

उन्होंने आगे कहा, ‘यह एक शुष्क क्षेत्र है, इसलिए भू-भाग का भूगोल इसे बड़ी मात्रा में पानी को बहुत जल्दी सोखने नहीं देता है, जिससे अचानक बाढ़ आ जाती है. इसे जलवायु परिवर्तन से जोड़ा जा सकता है, जिसने मानसून प्रणालियों के ट्रैक को बदल दिया है, जो अब भारत के मध्य भागों के माध्यम से पश्चिमी दिशा की ओर जा रहा है.’

उन्होंने कहा, ‘सामान्य स्थिति में ये व्यवस्था पूर्वोत्तर भारत से होते हुए पश्चिमी विक्षोभ के कारण उत्तरी पाकिस्तान की तरफ जाता है. हालांकि मानसून सिस्टम में बदलाव के कारण दक्षिण सिंध और बलूचिस्तान में अधिक बारिश देखने को मिल रही है.’


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मौसमी बदलाव आगे भी बने रहेंगे

विशेषज्ञों का कहना है कि मौसम में हो रहे बदलाव अभी बने रहेंगे और इस कारण दक्षिण एशिया के क्षेत्र में तीव्र मौसमी घटनाएं होती रहेंगी.

बता दें कि पाकिस्तान में अब तक बाढ़ से 1100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और कई इलाकों में खड़ी फसलें बर्बाद भी हुई हैं. अनुमान के मुताबिक देश का एक तिहाई हिस्सा पानी में डूबा हुआ है और करीब 10 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है.

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को ट्वीट कर कहा था कि वह पाकिस्तान में बाढ़ से हुई तबाही को देखकर दुखी हैं. उन्होंने पड़ोसी देश में जल्द से जल्द सामान्य स्थिति बहाल होने की उम्मीद जताई थी. जिसके बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने उनका धन्यवाद किया.

प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा था कि बाढ़ और मूसलाधार बारिश से 3.3 करोड़ से अधिक लोग बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान का कार्बन उत्सर्जन नगण्य था, लेकिन जलवायु परिवर्तन की भयावहता के संपर्क में आने वाले देशों में इसे आठवें स्थान पर रखा गया था.

आईपीसीसी के लीड ऑथर और इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के भारती इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी के शोध निदेशक अंजल प्रकाश ने कहा, ‘बीते छह महीनों में दक्षिण एशिया में तीव्र मौसमी घटनाएं काफी देखने को मिली है. जहां एक तरफ बांग्लादेश, पाकिस्तान और भारत बाढ़ से जूझ रहा है वहीं चीन में सूखे जैसी स्थिति है. ये जलवायु परिवर्तन के कारण ही है.’

उन्होंने कहा कि छोटे बदलावों से अनुकूलन के तरीकों से निपटा जा सकता है लेकिन इस तरह की बड़ी घटनाओं से निपटना बहुत मुश्किल है.

‘हमारे पास सिर्फ रेस्क्यू ऑपरेशन का तरीका है जिसके लिए पैसे की जरूरत है. और ऐसी स्थिति में देश को विकास से हटकर क्लाइमेट फाइनेंस की तरफ देना पड़ेगा. दक्षिण एशिया में यही हो रहा है. और इन घटनाओं के लिए क्लाइमेट जस्टिस की जरूरत है क्योंकि जलवायु परिवर्तन दक्षिण एशिया के लोगों के कारण नहीं है. इनमें से तो कई देश कार्बन न्यूट्रल या क्लाइमेट निगेटिव है. हमारा कार्बन फुटप्रिंट को 1.9 टन है जो कि वैश्विक औसत (4 टन) के काफी कम है.’


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खाद्य सुरक्षा पर असर

मानसून व्यवस्था में हो रहे बदलाव का सीधा असर कृषि पर पड़ रहा है. खरीफ की फसलें जिनमें धान प्रमुख है, सबसे बुरी तरह से प्रभावित हो रही है. बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में धान की सबसे ज्यादा पैदावार होती है लेकिन इन इलाकों में जुलाई और अगस्त में पर्याप्त बारिश नहीं हुई.

अगस्त महीने में मध्य भारत में जिनमें मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के कुछ हिस्से, गुजरात और महाराष्ट्र में 26 प्रतिशत ज्यादा बारिश हुई है. लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल में बारिश की काफी कमी देखी गई है.

महेश पलावत ने कहा, ‘मानसून सिस्टम में बदलाव का सबसे बुरा असर कृषि पर पड़ता है. पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश में बारिश की काफी कमी रही है और इसका सीधा असर पैदावार की मात्रा और गुणवत्ता पर होगा.’

साथ ही बारिश का इतना असामान्य रहने के साथ बढ़ते तापमान और आद्रता के कारण पेस्ट अटैक और बीमारियों का खतरा भी बढ़ा है, जिसकी वजह से फसल की गुणवत्ता पर असर पड़ेगा.


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सामाजिक-आर्थिक असर

मानसून के असामान्य रहने के कारण सामाजिक-आर्थिक स्तर पर भी बुरा असर पड़ रहा है. जलवायु प्रभावों के कारण खाद्य सुरक्षा स्थानीय से लेकर वैश्विक स्तर पर प्रभावित होती है. क्योंकि भारत धान का दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है.

इसके अलावा, वर्षा आधारित धान की खेती करने वाले अधिकांश भारतीय किसान छोटे जोत वाले हैं, जिनके स्थानीय आजीविका जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं और 1980 के बाद से, भारत में छोटे जोत वाले किसान 2010-11 में करीब 77% बढ़कर लगभग 66 मिलियन हो गए. इसके साथ ही, भारत में कृषि क्षेत्र देश की लगभग आधी श्रम शक्ति को रोजगार देता है, इसलिए कोई भी धान की खेती में बदलाव का काफी सामाजिक प्रभाव पड़ने की संभावना है.

गौरतलब है कि एक रिसर्च के अनुसार वर्षा आधारित धान की खेती वाले 15-40 प्रतिशत क्षेत्र 2050 तक फसल उगाने के लिए उपयुक्त नहीं रह जाएंगे. और ये बदलाव ज्यादातर ओडिशा, असम और छत्तीसगढ़ जैसे पूर्वी भारत में दिखाए देंगे, जो कि देश के धान उत्पादन में एक चौथाई से ज्यादा भूमिका अदा करते हैं.


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