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Wednesday, 24 April, 2024
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भारत में नेट जीरो टार्गेट को पूरा करने के लिए क्लाइमेट टेक स्टार्टअप्स को बढ़ावा देना क्यों जरूरी

रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए स्टार्ट अप इंडिया योजना के तहत जलवायु को लेकर फंडिंग की कोई योजना अभी तक नहीं है, जो कि देश में जलवायु नवाचार को बढ़ावा देने के लिए करना काफी जरूरी है.

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नई दिल्ली: अगर भारत को 2030 तक नेट जीरो लक्ष्य को पूरा करना है तो सरकार को क्लाइमेट टेक स्टार्टअप्स को बढ़ावा देना होगा.

बीते कुछ सालों में ये देखा गया है कि भारत में शुरुआती तौर पर स्टार्टअप्स बढ़े हैं लेकिन इनमें से ज्यादातर दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, बेंगलुरू और कुछ विश्वविद्यालयों तक ही सीमित हैं. ये सुनिश्चित करना जरूरी है कि स्टार्टअप्स को पूरे भारत भर में होना चाहिए.

अमेरिका और चीन के बाद स्टार्टअप्स के मामले में भारत का स्थान तीसरा है. 2021-22 के इकोनॉमिक सर्वे के मुताबिक जनवरी 2022 तक 61,000 से ज्यादा स्टार्टअप रजिस्टर हो चुके हैं. ये आंकड़ा 2016-17 में सिर्फ 733 है.

जलवायु और पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था क्लाइमेट ट्रेंड्स और क्लाइमेट डॉट ने अपनी हालिया रिपोर्ट, जिसका शीर्षक है- ‘क्लाइमेट फाइनेंस फॉर स्टार्टअप्स इन इंडिया‘ में ये बात कही है. रिपोर्ट में देश में क्लाइमेट टेक स्टार्टअप के लिए अवसर, चुनौतियों और सुझावों पर बात की गई है.

सोर्स: https://climatetrends.in/wp-content/uploads/2022/07/climate-finance-for-startups-in-india.pdf

रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए स्टार्ट अप इंडिया योजना के तहत जलवायु को लेकर फंडिंग की कोई योजना अभी तक नहीं है, जो कि देश में जलवायु नवाचार को बढ़ावा देने के लिए करना काफी जरूरी है.

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बता दें कि नेट जीरो ऐसी स्थिति है जब ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन और पर्यावरण से समान मात्रा में उत्सर्जन हटाने के बीच का संतुलन सुनिश्चित किया जाए.

आईपीसीसी के अनुसार 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन आधा होना चाहिए और 2050 तक नेट जीरो तक पहुंच जाना चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोप26 में कहा था कि भारत 2070 तक नेट जीरो को हासिल कर लेगा. हालांकि वैश्विक लक्ष्य से ये समय दो दशक ज्यादा है.

जी7 बैठक में भारत की प्रतिबद्धताओं का जिक्र करते हुए पीएम मोदी ने कहा था, ‘भारत में स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के लिए एक बड़ा बाजार उभर रहा है. भारत में दुनिया की 17 प्रतिशत आबादी रहती है. लेकिन वैश्विक तौर पर हमारा कार्बन उत्सर्जन सिर्फ 5 प्रतिशत है. इसके पीछे का कारण हमारी लाइफस्टाइल है जो कि प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व के सिद्धांत पर आधारित है.’


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स्टार्टअप कम्युनिटी को आगे बढ़ाना चाहिए

अक्षय ऊर्जा, डीकार्बोनाइजेशन के क्षेत्र में भारत लगातार वैश्विक स्तर पर अपनी प्रतिबद्धता जताता रहा है. रिपोर्ट के अनुसार भारत को इन लक्ष्यों को पाने के लिए स्टार्टअप कम्युनिटी को आगे बढ़ाना चाहिए.

Sectoral Breakup of Startups in India | सोर्स: https://climatetrends.in/wp-content/uploads/2022/07/climate-finance-for-startups-in-india.pdf

क्लाइमेट डॉट के निदेशक अखिलेश मगल ने कहा, ‘हमारा विश्लेषण दिखाता है कि क्लाइमेट टेक की जरूरत है. जलवायु परिवर्तन के मुकाबले के लिए क्लाइमेट टेक स्टार्टअप्स व्यवस्थागत बदलाव लाने में मददगार हो सकते हैं.’

भारत में अभी ज्यादातर स्टार्टअप आईटी सेक्टर में है. 2021 में क्लाइमेट टेक निवेश तकरीबन 20 बिलियन डॉलर था जो कि मुख्यत: अक्षय ऊर्जा और इलेकट्रिक व्हीकल तक सीमित है.

वहीं क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा, ‘डीकार्बोनाइजेशन करने की काफी जरूरत है. भारत मुख्यत: अक्षय ऊर्जा योजनाओं के लिए घरेलू संसाधनों पर निर्भर है लेकिन एनर्जी ट्रांजीशन के लिए देश में फंड फ्लो की खासी जरूरत है.’

उन्होंने कहा, ‘कोप26 में भारत ने क्लाइमेट फाइनेंस के लिए भारत ने एक ट्रिलियन डॉलर की घोषणा की है. क्लाइमेट टेक स्टार्टअप्स घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय फंड को बढ़ावा दे सकते हैं.’

गौरतलब है कि हाल ही में हुई जी7 बैठक में जलवायु परिवर्तन की दिशा में इस साल के अंत तक क्लाइमेट क्लब बनाने का फैसला किया गया वहीं स्वच्छ ऊर्जा और 2035 तक कोयले पर आधारित सेक्टर को डीकार्बोनाइजेशन करने का भी लक्ष्य रखा गया है.


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क्लाइमेट टेक स्टार्टअप्स के लिए जोखिम और निवेशकों की उम्मीदें अलग

क्लाइमेट टेक स्टार्टअप्स के लिए जोखिम और निवेशकों की उम्मीदें आईटी और फिनटेक स्टार्टअप्स की तुलना में काफी अलग है. वहीं भारत में स्टार्टअप्स के लिए काफी अच्छा इकोसिस्टम मौजूद है.

रिपोर्ट के अनुसार क्लाइमेट टेक स्टार्टअप्स जेस्टेशन पीरियड (गर्भाविधि) काफी ज्यादा होती है, इसके लिए ज्यादा निवेश की जरूरत होती है वहीं सरकारी रेग्युलेशन को शामिल करना भी जरूरी है.

साथ ही ये भी कहा गया है कि क्लाइमेट टेक इंटरप्रेन्योर को समर्थन देकर सरकार जोखिम को कम करने में भूमिका निभा सकती है.

रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर क्लाइमेट टेक के लिए यूरोप सबसे ज्यादा आगे बढ़ता हुआ क्षेत्र है. भारत को भी यूरोपियन यूनियन के यूरोपियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मॉडल को अपना चाहिए जिसे यूरोपियन कमीशन ने क्लाइमेट टेक स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया था जो अब वित्तीय तौर पर मजबूत हो चुका है.

2009 में कोपेनहेगन में हुए जलवायु समिट में विकसित देशों ने 2020 तक विकासशील देशों को क्लाइमेट फाइनेंस के लिए 100 बिलियन डॉलर मुहैया कराने की बात की थी. लेकिन इसके इतर एक सच्चाई ये भी है कि क्लाइमेट फाइनेंस के लिए वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करना सबसे बड़ी चुनौती है.


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सुझाव

रिपोर्ट में सुझाया गया है कि भारत सरकार को राज्य सराकारों के साथ मिलकर क्लाइमेट टेक स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने के लिए जलवायु आधारित फंड तैयार करना चाहिए. और सरकार को सबसे पहले क्लाइमेट टेक शब्द को परिभाषित करना चाहिए.

वहीं क्लाइमेट चैलेंज को लांच करना चाहिए ताकि स्टार्टअप्स को आकर्षित किया जा सके.

साथ ही फंड सलाहकार परिषद बनाई जा सकती है जो मुख्य रूप से बैंकों, निवेशकों से बना हो और उसमें सरकार की तरफ से सीमित प्रतिनिधित्व हो.

क्लाइमेट टेक इन्वेस्टर एलेक्जेंडर होगवेन रूटर ने कहा, ‘भारतीय क्लाइमेट टेक इकोसिस्टम में काफी अवसर है, जहां काफी युवा, पढ़े लिखे लोग हैं जिनके पास आइडिया हैं. ये रिपोर्ट सुझाव देती है कि कैसे सरकार और अन्य शेयरहोल्डर जलवायु चुनौतियों को पार कर सके. न केवल भारत के लिए बल्कि दुनियाभर में.’


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