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Tuesday, 25 November, 2025
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इथियोपिया में फटे ज्वालामुखी की राख भारत तक कैसे पहुंची?

हेली गुब्बी ज्वालामुखी रविवार को लगभग 10,000 सालों में पहली बार फटा. एक्सपर्ट्स का कहना है कि विज़िबिलिटी कम होने की वजह से राख से एयर ट्रैफिक पर असर पड़ सकता है, लेकिन एयर क्वालिटी पर इसका कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा.

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नई दिल्ली: इथियोपिया के हायली गुब्बी ज्वालामुखी की राख सोमवार देर रात भारत के कुछ हिस्सों में पहुंच गई. राख के बादल पर नज़र रख रहे मौसम विशेषज्ञों ने कहा कि कम विज़िबिलिटी की वजह से हवाई यातायात प्रभावित हो सकता है, लेकिन वायु गुणवत्ता पर इसका बड़ा असर नहीं पड़ेगा.

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के महानिदेशक एम मो. मोहापात्रा ने कहा, “राख का बादल अब चीन की तरफ बढ़ रहा है. यह बादल मंगलवार शाम तक भारत से आगे निकल जाएगा.”

इथियोपिया के अफ़ार इलाके में मौजूद शील्ड ज्वालामुखी, हेली गुब्बी, 23 नवंबर को फट गया, जिससे राख का एक बड़ा गुबार लगभग 14 km (45,000 ft) की ऊंचाई तक पहुंच गया, जो लाल सागर से होते हुए पूरब की ओर और अरब प्रायद्वीप और भारतीय उपमहाद्वीप की ओर फैल गया.

दिप्रिंट बता रहा है कि यह राख का बादल क्या है, यह कैसे पहुंचा, और रास्ते में किन शहरों पर इसका असर पड़ा.

यह क्या है और भारत तक कैसे पहुंचा?

फ्रांस के टूलूज़ वॉल्केनिक ऐश एडवाइजरी सेंटर (VAAC) ने कहा कि यह ज्वालामुखी लगभग 10,000 साल बाद पहली बार रविवार सुबह 8.30 बजे GMT पर फटा.

इस विस्फोट से घना धुआं निकला जो लगभग 14 किलोमीटर ऊपर आसमान तक पहुंच गया. यह जगह अदीस अबाबा से लगभग 800 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में है. विस्फोट जानलेवा नहीं था, लेकिन VAAC ने सोमवार सुबह अपनी घोषणा में चेतावनी दी कि राख का एक बड़ा बादल पूर्व दिशा की ओर बढ़ रहा है.

ज्वालामुखी की राख वाला बादल आमतौर पर चट्टान, ज्वालामुखीय कांच और सिलिका जैसे खनिजों के बारीक कणों और सल्फर डाइऑक्साइड जैसी गैसों से बना होता है. ये कण तब बनते हैं जब ज्वालामुखी का तेज़ विस्फोट ठोस चट्टान और मैग्मा को बहुत छोटे कणों में तोड़ देता है और उन्हें वायुमंडल में ऊपर की ओर फेंक देता है. कण तेज़ी से ऊपर उठते हैं और 10 से 20 किलोमीटर ऊंचाई तक बादल का रूप ले लेते हैं.

IMD अधिकारियों ने बताया कि तेज़ हवाएं इथियोपिया से उठी राख को लाल सागर, यमन और अरब सागर के ऊपर से होकर उत्तर-पश्चिम भारत तक ले आईं.

भारतीय मौसम विभाग के बयान में कहा गया, “फोरकास्ट मॉडल्स ने दिखाया कि गुजरात, दिल्ली-एनसीआर, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा पर राख का असर हो सकता है. IMD ने सैटेलाइट इमेजरी, VAAC की एडवाइजरी और डिस्पर्शन मॉडल्स पर क़रीबी नज़र रखी.”

यह क्या है और यह भारत तक कैसे पहुंचा?

फ्रांस के टूलूज़ वॉल्केनिक ऐश एडवाइजरी सेंटर (VAAC) ने बताया कि यह ज्वालामुखी लगभग 10,000 साल बाद पहली बार रविवार सुबह 8.30 बजे जीएमटी (ग्रीनविच मीन टाइम) पर फटा.

इस विस्फोट से घना धुआं निकला जो लगभग 14 किलोमीटर ऊपर आसमान तक उठ गया. यह जगह अदीस अबाबा से करीब 800 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में है. विस्फोट जानलेवा नहीं था, लेकिन VAAC ने सोमवार सुबह अपनी घोषणा में चेतावनी दी कि राख का बड़ा बादल पूर्व की ओर बढ़ रहा है.

ज्वालामुखी की राख का बादल आमतौर पर चट्टान, ज्वालामुखीय कांच और सिलिका जैसे खनिजों के बहुत छोटे कणों और सल्फर डाइऑक्साइड जैसी गैसों से बना होता है. ये कण तब बनते हैं जब ज्वालामुखी का तेज़ विस्फोट ठोस चट्टान और मैग्मा को छोटे-छोटे कणों में तोड़ देता है और उन्हें वायुमंडल में ऊपर की तरफ धकेल देता है. ये कण तेज़ी से ऊपर उठते हैं और 10 से 20 किलोमीटर तक ऊंचाई में बादल का रूप ले लेते हैं.

IMD अधिकारियों ने बताया कि तेज़ हवाओं ने इथियोपिया से उठी राख को लाल सागर, यमन और अरब सागर के ऊपर से होते हुए उत्तर-पश्चिम भारत की तरफ पहुंचा दिया.

भारतीय मौसम विभाग के बयान में कहा गया, “फोरकास्ट मॉडल्स ने दिखाया कि गुजरात, दिल्ली-एनसीआर, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा पर राख का असर हो सकता है. IMD ने सैटेलाइट इमेजरी, VAAC की एडवाइजरी और डिस्पर्शन मॉडल्स पर क़रीबी नज़र रखी.”

राख के बादल का प्रभाव

राख का यह बादल ओमान को पार कर सोमवार शाम करीब 7 बजे भारत पहुंचा.

IMD के मुंबई, दिल्ली और कोलकाता स्थित Met Watch ऑफिसों ने एयरपोर्ट्स के लिए इंटरनेशनल सिविल एविएशन ऑर्गनाइजेशन (ICAO) के मानक के अनुसार SIGMET वेदर वार्निंग जारी की.

एडवाइजरी में प्रभावित हवाई क्षेत्र और उन फ्लाइट लेवल्स से बचने की सलाह दी गई जिनका ज़िक्र VAAC बुलेटिन में किया गया था, क्योंकि राख वाले बादल में मौजूद कण आसमान को ढक देते हैं और विज़िबिलिटी कम कर देते हैं. आसमान सामान्य से ज़्यादा धुंधला और गहरा दिखाई देता है क्योंकि उस पर ग्रे रंग के बादल छा जाते हैं.

फ्लाइट प्लानिंग में राख की एडवाइजरी पर लगातार नज़र रखी जाती है. रास्ते बदलने और ईंधन की गणना में भी इसकी वजह से बदलाव करना पड़ता है. ऐसी स्थिति में उड़ानें अपने रास्ते बदल सकती हैं, उड़ान समय बढ़ सकता है या विमान हवा में होल्डिंग पैटर्न में जा सकते हैं. यही सोमवार शाम से मंगलवार सुबह के बीच उत्तर-पश्चिम भारत में हुआ. कम विज़िबिलिटी के कारण कई उड़ानें रद्द हुईं और उनके रूट बदले गए.

लेकिन विशेषज्ञों ने कहा कि इथियोपिया का यह राख बादल क्षेत्र की वायु गुणवत्ता पर कोई बड़ा असर नहीं डालेगा.

इंडिया मिड स्काई वेदर (IndiaMetSky Weather), जो एक निजी मौसम चैनल है, ने एक्स पर पोस्ट किया, “यह बादल सतह पर किसी बड़े खतरे का कारण नहीं है और AQI सामान्य ही रहेगा, हालांकि थोड़ी बहुत राख गिरने की कम संभावना है. राख का बादल सतह से 25,000 से 45,000 फीट की ऊंचाई पर है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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