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Thursday, 25 April, 2024
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‘ए मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया’- कैसे बेगम अख्तर ने अपनी गायकी से दिल्ली को मदहोश किया था

बेगम अख्तर ने एक बार कहा था, 'मियां, हम सुरीले हिन्दुस्तान से आए हैं. हम ऐसे ही मिल-जुल कर रहते हैं. हम होली भी मनाते हैं, और ईद भी. हम कान्हा के भजन भी साथ गाते हैं और नातिया कव्वाली भी.'

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बेगम अख्तर के जन्मदिन पर आज उनके शैदाई (चाहने वाले) उन्हें बड़ी ही शिद्दत से याद कर रहे हैं. विदेश मंत्रालय की पूर्व अधिकारी और लेखिका मणिका मोहिनी के अनुसार बेगम अख्तर की जिंदगी का आखिरी बड़ा खास कार्यक्रम दिल्ली में 15 अक्टूबर, 1974 को विज्ञान भवन में हुआ था. वो राजधानी में जाड़े के शुरुआती दिन थे.

बेगम अख्तर ने विज्ञान भवन की महफिल में जब अपनी रेशमी आवाज में शकील बदायूंनी की लिखी गजल- ‘यूं तो हर शाम उम्मीदों में गुज़र जाती है, आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया …‘ गाई तो विज्ञान भवन वाह-वाह करने लगा था. बेगम अख्तर मुस्कारते हुए बड़े ही मन से गा रही थीं. उसके बाद उन्होंने शकील बदायूंनी की एक और गजल ‘मेरे हम-नफ़स मेरे हम-नवा मुझे दोस्त बन के दग़ा न दे …’ भी सुनाई थी. उनकी गायकी पर उस दिन दिल्ली मदहोश हो गई थी.

इस कार्यक्रम को पेश करने के कुछ दिनों बाद उनका इंतकाल हो गया था. वह तब 60 बरस की थीं. बेगम अख्तर की आवाज भारत-पाकिस्तान और गजल के शैदाइयों के दिलों में हमेशा जिंदा और गूंजती रहेगी.


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गजल गायकी में महारत

बेगम अख्तर के चाहने वाले उनकी गाई बेहद मकबूल गजल ‘आप कहते थे कि रोने से न बदलेंगे नसीब, उम्र भर आप की इस बात ने रोने न दिया, रोने वालों से कहो उन का भी रोना रो लें ...’ को खासतौर पर पसंद करते थे. उन्हें दादरा, ठुमरी व गजल गायकी में महारत हासिल थी.

कला के क्षेत्र में योगदान के लिए भारत सरकार ने 1968 में उन्हें पहले पद्म श्री और फिर 1975 में मरणोपरांत पद्म भूषण से सम्मानित किया था. 1972 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी सम्मान से भी नवाजा गया था.

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जो ये कहते हैं कि गजल गायकी का मतलब बेगम अख्तर है, वे अपनी जगह गलत नहीं हैं. बेगम अख्तर ने सप्रू हाउस समेत दर्जनों बार दिल्ली में अपने सफल कार्यक्रम पेश किए. 1964 के दिसंबर महीने में बेगम अख्तर ने सप्रू हाउस में बेहद ही सफल कार्यक्रम पेश किया जिसे दिल्ली में उनका पहला कार्यक्रम भी माना जाता है.

दिल्ली में 1960 के दशक में संगीत और नाटक वगैरह के आयोजन के लिए लगभग एक जगह हुआ करती थी- ‘सप्रू हाउस’. मंडी हाउस के आस पास दूसरे हाल- कमानी, श्रीराम सेंटर और फिक्की आदि, सब बाद में बने.

फिल्म लेखक सतीश चोपड़ा बताते हैं कि बेगम अख्तर के कार्यक्रम का आनंद लेने के लिए चार सौ सीटों वाला सप्रू हाउस खचाखच भरा था. सुनने वालों में सभी तबके के श्रोता थे. रात लगभग नौ बजे प्रोग्राम शुरू हुआ और हर गजल, ठुमरी, दादरा की अवधि लगभग आधे घंटे से अधिक रही होगी. बीच-बीच में ‘ए मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया ’ की फरमाइश होती तो प्रोग्राम के संचालक ये कह कर टाल देते ‘आखिर में.’

वो बतते हैं, ‘खैर, देर रात को उनकी सबसे मशहूर गजल ‘ए मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया ’ का भी नंबर आया, जिसे उन्होंने अपने अनूठे अंदाज़ में आधे घंटे से अधिक समय तक गाया. उस वक्त रात के डेढ़ बजे का समय था. इस गजल को सुनने के बाद दर्शक तृप्त हो गए थे.’


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‘मियां, हम सुरीले हिन्दुस्तान से आए हैं…’

बेगम अख्तर अपने सुनने वालों की हर मांग को पूरा करती थीं. उन्होंने दिल्ली में 1966 में ओबरॉय इंटरकांटिनेंटल होटल में कार्यक्रम पेश किया था. इसका आयोजन किया था 25/33 ईस्ट पटेल नगर से चलने वाली कला-संगीत की संस्था रंग-तरंग ने. उसके प्रमुख हरीश भारद्वाज ने कई बार बेगम अख्तर के दिल्ली में बेहद सफल शो आयोजित किए थे.

बेगम अख्तर के कार्यक्रम गजल प्रेमी डॉ ब्रज मोहन बजाज की सरपरस्ती में चलने वाली संस्था कल्याणी कला केंद्र जनपथ होटल में आयोजित करती थी. एक बार डॉ. बजाज ने बताया था कि दिल्ली में बेगम अख्तर से उनके चाहने वाले गालिब की गजल- ये ना थी हमारी किस्मत के विसाल-ए-यार होता…, अगर और जीते रहते, यही इंतज़ार होता… को सुनाने की फरमाइश अवश्य करते थे.

बेगम अख्तर ने चेम्सफोर्ड क्लब में भी कई बार अपने कार्यक्रम पेश किए. वे यहां प्राइवेट महफिलों में भी भाग लेती थीं. लाला भरत राम और लाला चरत राम के घरों में उन्होंने कई बार अपनी आवाज का जादू बिखेरा था.

बेगम अख्तर की रवायत को कायम रखने वाली सबसे मजबूत स्तंभ उनकी शिष्य डॉक्टर शांति हीरानंद थीं. उनका पिछले साल अप्रैल में गुरुग्राम में निधन हो गया था. बेगम अख्तर की गाई बेहद मकबूल गजल ‘आप कहते थे कि रोने से न बदलेंगे नसीब, उम्र भर आप की इस बात ने रोने न दिया, रोने वालों से कहो उन का भी रोना रो लें...” को शांति हीरानंद भी बेहद सुरीले अंदाज में सुनाया करती थीं.

उन्होंने अपनी चर्चित किताबबेगम अख्तर: द स्टोरी ऑफ माय अम्मी ‘ में एक जगह लिखा है कि जब वे पहली बार बेगम अख्तर के साथ पाकिस्तान गईं तो उन्होंने (बेगम अख्तर) ने वहां पर एक बार कुछ लोगों को कहा था, ‘मियां, हम सुरीले हिन्दुस्तान से आए हैं. हम ऐसे ही मिल-जुल कर रहते हैं. हम होली भी मनाते हैं, और ईद भी. हम कान्हा के भजन भी साथ गाते हैं और नातिया कव्वाली भी.’

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(कृष्ण मुरारी द्वारा संपादित)


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