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Friday, 22 November, 2024
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लोकसभा में पेश किए गए 3 आरक्षण बिल जम्मू-कश्मीर में बीजेपी के वोट शेयर को कैसे प्रभावित कर सकते हैं

3 विधेयकों में जम्मू-कश्मीर में पहाड़ियों को ST सूची में शामिल करने, SC सूची में चुरा, भंगी, बाल्मीकि और मेहतर समूहों के पर्याय के रूप में 'वाल्मीकि' को जोड़ने और 'सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों' को OBC के रूप में फिर से परिभाषित करने का प्रावधान है.

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नई दिल्ली: मोदी सरकार ने बुधवार को जम्मू-कश्मीर में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण से संबंधित तीन विधेयक लोकसभा में पेश किए. इस कदम से केंद्र शासित प्रदेश में भाजपा को फायदा होने की संभावना है, जहां चुनाव में काफी देरी हो चुकी है.

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय द्वारा सदन में पेश किया गया जम्मू और कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक, “सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों” को फिर से परिभाषित करता है – जो जम्मू-कश्मीर में नौकरियों और शिक्षा में चार प्रतिशत आरक्षण का आनंद लेते हैं – ओबीसी के रूप में. इस बीच, केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा द्वारा पेश किया गया संविधान (जम्मू और कश्मीर) अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) विधेयक केंद्र शासित प्रदेश के पहाड़ी समुदाय को जम्मू-कश्मीर में आरक्षण का आनंद लेने वाले एसटी की सूची में जोड़ने का प्रयास करता है.

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार ने संविधान (जम्मू और कश्मीर) अनुसूचित जाति आदेश (संशोधन) विधेयक भी पेश किया, जिसमें जम्मू-कश्मीर की एससी सूची में चूरा, भंगी, बाल्मीकि और मेहतर समुदायों के पर्याय के रूप में ‘वाल्मीकि’ जोड़ने का प्रस्ताव है.

दिप्रिंट ने पहले बताया था कि जम्मू-कश्मीर में पहाड़ियों के लिए आरक्षण लंबे समय से मांग रही है. पिछले साल अक्टूबर में, गृह मंत्री अमित शाह ने एक रैली में घोषणा की थी कि न्यायमूर्ति शर्मा आयोग ने सिफारिश की थी कि पहाड़ी, बकरवाल और गुज्जरों को एसटी कोटा लाभ में शामिल किया जाए. उन्होंने उस समय कहा था, ”ये सिफारिशें प्राप्त हो गई हैं और कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के तुरंत बाद गुज्जरों, बकरवालों और पहाड़ियों को आरक्षण का लाभ मिलेगा.”

वर्तमान में, एसटी को यूटी में नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 10 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त है, जबकि एससी के लिए यह 8 प्रतिशत है.

जबकि विपक्षी कांग्रेस ने पहाड़ियों को एससी का दर्जा देने के प्रस्ताव का स्वागत किया है, उसने कहा कि इस कदम के लिए अकेले भाजपा श्रेय की हकदार नहीं है. विधान परिषद के पूर्व सदस्य और पहाड़ी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रविंदर शर्मा ने दिप्रिंट को बताया, “यह लंबे समय से लंबित मांग थी. इसकी अनुशंसा पहली बार 1980 के दशक में एनसी (नेशनल कॉन्फ्रेंस)-कांग्रेस सरकार द्वारा की गई थी. 2014 में, एनसी-कांग्रेस सरकार के तहत, 5 प्रतिशत आरक्षण बिल लाया गया था.”

इस बीच, भाजपा प्रवक्ता अभिजीत जसरोटिया ने कहा कि तीन विधेयकों के परिणामस्वरूप “सभी के लिए न्याय” आया है.

उन्होंने कहा, “पहाड़ियों, गुज्जर-बकरवालों का यह आरक्षण जाति के बजाय इलाके पर आधारित है. वे जहां रहते हैं वहां उन्हें वो सुविधाएं नहीं मिल पातीं जो आम जनता को मिल पाती हैं. जो व्यक्ति पहाड़ों पर रहता है, वह अन्य लोगों से प्रतिस्पर्धा कैसे करेगा?”

वाल्मिकी समुदाय को एससी सूची में शामिल करने पर, जसरोटिया ने दिप्रिंट को बताया, “दशकों पहले, स्थानीय सफाई कर्मचारियों के हड़ताल पर जाने के बाद वाल्मिकी समुदाय को सफाई के लिए पंजाब से लाया गया था. उस समय एनसी सरकार ने उनसे वादा किया था कि वे सभी (वाल्मीकि) परिवारों को जम्मू-कश्मीर का राज्य विषय बना देंगे. उसके बाद, एनसी ने उन्हें कभी भी राज्य का विषय नहीं बनाया. यहां तक कि समुदाय के पढ़े-लिखे लोग भी केवल सफ़ाईकर्मी के रूप में ही काम कर सकते थे. ये कैसी मानवता थी? इसमें एनसी और कांग्रेस दोनों शामिल थे.


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अनुसूचित जनजातियों की सूची में राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है पहाड़ी

संविधान (जम्मू और कश्मीर) अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) विधेयक जम्मू-कश्मीर के लिए एसटी सूची में चार आदिवासी समुदायों को शामिल करने की अनुमति देता है, जिससे उन्हें नौकरियों, शिक्षा और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में आरक्षण का लाभ मिलता है.

इन समुदायों में गद्दा ब्राह्मण, कोली, पद्दारी और राजनीतिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण पहाड़ी भाषी लोग शामिल हैं.

पहाड़ी एक भाषाई जनजाति है, जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल हैं, हालांकि कथित तौर पर पहाड़ी बाद वाले की तुलना में अधिक संख्या में हैं. पहाड़ी भाषी लोगों के विकास के लिए राज्य सलाहकार बोर्ड द्वारा किए गए जनसंख्या सर्वेक्षण के अनुसार, समुदाय ज्यादातर राजौरी और पुंछ जिलों में केंद्रित है, जहां इसकी आबादी 50 प्रतिशत से अधिक है.

जम्मू-कश्मीर स्थित एक राजनीतिक विश्लेषक ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि पहाड़ियों के लिए आरक्षण से राजौरी-पुंछ क्षेत्र में भाजपा को फायदा होने की संभावना है.

राजनीतिक विश्लेषक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “ऐसा कोई पहाड़ी समुदाय नहीं है. एक भाषा है. अन्य लोगों के अलावा ब्राह्मण, राजपूत, सईद, महाजन सभी पहाड़ी समुदाय का गठन करते हैं. भाजपा अनंतनाग-राजौरी लोकसभा सीट पर अपनी संभावना बढ़ाने के लिए राजौरी-पुंछ बेल्ट में अपना आधार मजबूत करना चाहती है.”

परंपरागत रूप से, राजौरी-पुंछ बेल्ट नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) का गढ़ रहा है. हालांकि, 2014 के जम्मू-कश्मीर चुनावों में, सभी प्रमुख दलों द्वारा इस बेल्ट में सीटें जीतने के साथ कंपटीशन ओपन है.

पहाड़ी जनजाति एसटी फोरम की कार्यकारी समिति के सदस्य नासिर गिलानी ने पहले दिप्रिंट को बताया था कि वे आभारी हैं कि सरकार ने आखिरकार उनकी मांगें सुनीं. “हम 30 वर्षों से अधिक समय से इसका इंतजार कर रहे थे. मांग 1974 में की गई थी लेकिन हमें छोड़ दिया गया और 1991 में गुर्जरों को विशेष दर्जा और आरक्षण दिया गया. इतने सालों के बाद, हमारी बात सुनी गई और हम इस सरकार के बेहद आभारी हैं.’

हालांकि, पहाड़ी समुदाय के लिए आरक्षण के मुद्दे ने गुज्जर-बकरवाल – ज्यादातर मुसलमानों का एक समुदाय – के बीच अशांति पैदा कर दी है, जिसने 1991 से आरक्षण का आनंद लिया है. आर्थिक रूप से कमजोर इस खानाबदोश जनजाति को डर है कि अगर पहाड़ी भी पात्र हो गए तो उनकी अपनी स्थिति आरक्षण के लिए कमजोर हो जाएगी.

कश्मीर के अनंतनाग स्थित एक राजनेता मोहम्मद यूसुफ गोरसी ने शाह की अक्टूबर की घोषणा के बाद पहाड़ियों के लिए आरक्षण के बारे में चिंता व्यक्त की थी.

उन्होंने तब दिप्रिंट को बताया था, “पहाड़ी संभ्रांत लोग हैं, जिनकी दूरदराज के इलाकों में रहने वाले कुछ लोगों को छोड़कर सभी संसाधनों तक पहुंच है. हम [गुर्जर] बस यही कहते हैं कि आरक्षण किसे चाहिए, इसका विश्लेषण करके दीजिए. अगर उन्हें आरक्षण मिलता है तो हमें कोई समस्या नहीं है, हमें बस इस बात की चिंता है कि वे हमारा हिस्सा खा जाएंगे.”

चूंकि गृह मंत्री ने पहले कहा था कि गुज्जर-बक्करवालों के लिए आरक्षण का प्रतिशत कम नहीं किया जाएगा, इसलिए यह देखना बाकी है कि सूची में प्रस्तावित परिवर्धन को समायोजित करने के लिए यूटी में एसटी के लिए समग्र आरक्षण बढ़ाया जाता है या नहीं.

जम्मू, जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 43 प्रतिनिधि भेजता है, जबकि कश्मीर 47 प्रतिनिधि भेजता है. नौ सीटें – जम्मू में 6 और कश्मीर में 3 – एसटी के लिए आरक्षित हैं.

जहां राजौरी और पुंछ में गुज्जर-बकरवाल समुदाय की आबादी लगभग चार लाख है, वहीं इन दोनों जिलों की आबादी में पहाड़ी समुदाय की आबादी लगभग छह लाख है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक दोनों जिलों की कुल आबादी करीब 11 लाख है.

जम्मू-कश्मीर के पीर पंजाल बेल्ट में राजौरी और पुंछ जिलों की आठ विधानसभा सीटों पर ये तीनों समुदाय एक महत्वपूर्ण कारक हैं.

इस बीच, अन्य तीन समुदायों में से एक पद्दारी जनजाति, जिसे एसटी सूची में शामिल करने का विधेयक में प्रस्ताव किया गया है, भी चुनावी रूप से महत्वपूर्ण है.

पद्दारी समुदाय अधिकतर किश्तवाड़ जिले की पदर घाटी में केंद्रित है.

ऊपर उल्लिखित जम्मू-कश्मीर स्थित राजनीतिक विश्लेषक के अनुसार, पद्दारियों के लिए आरक्षण का नवगठित पद्दार-नागसेनी विधानसभा सीट पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा, जहां पदार घाटी स्थित है.

विश्लेषक ने कहा कि अन्य दो जनजातियां जनसंख्या के हिसाब से बहुत छोटी हैं और राजनीतिक रूप से कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा.

एसटी सूची में उन्हें शामिल करने के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए, विधेयक में कहा गया है, “जम्मू और कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन की सिफारिश के आधार पर और भारत के रजिस्ट्रार जनरल और अनुसूचित जनजाति के लिए राष्ट्रीय आयोग के परामर्श के बाद.” संविधान (जम्मू और कश्मीर) अनुसूचित जनजाति आदेश, 1989 में संशोधन करने का प्रस्ताव है.

अन्य आरक्षण

बुधवार को पेश किया जाने वाला दूसरा विधेयक – संविधान (जम्मू और कश्मीर) अनुसूचित जाति आदेश (संशोधन) विधेयक – वाल्मिकी को यूटी में एससी श्रेणी में शामिल चार समुदायों के पर्याय के रूप में प्रस्तावित करता है.

विधेयक में कहा गया है, “जम्मू और कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश ने वाल्मिकी समुदाय को चूरा, भंगी, बाल्मीकि, मेहतर के पर्याय के रूप में शामिल करने की सिफारिश की है. केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की अनुसूचित जातियों की सूची में नंबर 5 हैं.”

वाल्मिकियों को शामिल करने के बारे में विश्लेषक ने कहा, “वाल्मीकि केवल जम्मू शहर में केंद्रित हैं. 1950 के दशक में बख्शी गुलाम मोहम्मद की सरकार इन्हें मैला ढोने के लिए पंजाब से लाई थी. लेकिन बाहर से आने के कारण उन्हें कभी भी मतदान का अधिकार नहीं मिला.”

इस बीच, तीसरे विधेयक में आरक्षण अधिनियम की धारा 2 में संशोधन करने का प्रस्ताव है ताकि देश के बाकी हिस्सों के अनुरूप “कमजोर और वंचित वर्ग (सामाजिक जाति)” शब्द को “अन्य पिछड़ा वर्ग” में बदला जा सके. वर्तमान में राज्य में “कमजोर और वंचित वर्ग (सामाजिक जातियां)” को चार प्रतिशत आरक्षण प्राप्त है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में कोई ओपीसी वर्ग नहीं है.

बिल के अनुसार, “उपरोक्त संशोधन जम्मू और कश्मीर सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग आयोग (एसईबीसीसी) की सिफारिशों पर प्रस्तावित किए गए हैं, ताकि आम जनता के साथ-साथ सक्षम अधिकारियों के बीच अंतर के कारण पात्र व्यक्तियों को प्रमाण पत्र जारी करने के भ्रम को दूर किया जा सके. प्रस्तावित संशोधन संविधान (एक सौ पांचवां संशोधन) अधिनियम, 2021 को अक्षरश: लागू करने में भी सक्षम बनाएगा.”

यह देश के बाकी हिस्सों में प्रचलित कोटा श्रेणी को संरेखित करने के लिए नामकरण में सिर्फ एक बदलाव है, और इसका कोई सामाजिक या राजनीतिक प्रभाव होने की संभावना नहीं है.

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादन: पूजा मेहरोत्रा)


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