प्रतापगढ़/जौनपुर: उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में गर्मी का दिन था, मौसम विभाग ने दिन का तापमान 48 डिग्री सेल्सियस रहने का अनुमान लगाया था. लेकिन सरवरी बेगम की बेचैनी इस बढ़ी हुई गर्मी के कारण नहीं थी. वह प्रतापगढ़ के बासुपुर गांव में बंजर खेतों के बीच, मौसम की मार झेलती दीवारें वाले अपने घर के एक कमरे में एक खाट पर बैठी थी.
जब दिप्रिंट उनके पास पहुंचा तो वह काफी परेशान दिख रही थी. उन्होंने अपने दोनों हाथों को कसकर पकड़ा हुआ था और उनका एक अगूंठा उनकी कलाई को छू रहा था. उन्होंने हैरानी के साथ पूछा, “क्या उसने फिर से कुछ किया है? क्या वह ठीक है?”
बेगम अपने बेटे, सद्दाम हुसैन का जिक्र कर रही थीं, जिसे यूपी पुलिस ने दोहरे हत्याकांड और डकैती के आरोप में गिरफ्तार किया था. मार्च 2019 में पुलिस को उसकी किताबों के ढेर के नीचे से एक देसी पिस्तौल मिली थी, जो कथित तौर पर उसकी थी और वह उसके घर में मुंडेर के नीचे दबी हुई थी.
पुलिस सूत्रों ने कहा कि उसके घर में मिली किताबों में भारत के संविधान की एक प्रति, “मीन कैम्फ” (हिटलर की आत्मकथा) का हिंदी अनुवाद “मेरा संघर्ष’ और तेजी से अंग्रेजी सीखने वाली किताबों की एक सीरीज थी.
सद्दाम, तब 21 साल का था और यूपी के फैजाबाद विश्वविद्यालय में कानून का छात्र था.
पांच बच्चों की मां सरवरी बेगम अपने पति की मामूली तनख्वाह पर घर चलाती हैं, जो मुंबई में रेलवे विभाग में काम करते हैं, अभी भी सदमे में हैं. वह अपने “पढ़ाकू बेटे” के खिलाफ आरोपों को समझने के लिए संघर्ष कर रही हैं.
बात करते हुए उनकी आंखों में आंसू आ गए. वह बार बार अपने बेटे की बेगुनाही के बारे में बोल रही थी.
वह कहती हैं, “उन्होंने कहा कि उसने किसी को मार डाला. ऐसा कैसे हो सकता है? वह एक पढ़ने लिखने वाला लड़का था, जिसे अंग्रेजी बोलना आता था. उसकी सभी किताबों को देखिए.”
बेगम आगे कहती हैं, “वह वकील बनना चाहता था और परिवार के लिए अच्छी कमाई करना चाहता था. कॉलेज के बाद वह रोज साइकिल से ट्यूशन के लिए प्रतापगढ़ जाता था, मैं कैसे मान लूं कि उसने पैसों के लिए किसी की हत्या कर दी?”
उसके अविश्वास के बावजूद, पुलिस का कहना है कि उन्होंने सद्दाम की गिरफ्तारी से दो साल पहले ही उसके खिलाफ कई अपराधों में शामिल होने की जांच की थी. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उसे एक स्थानीय गिरोह द्वारा भर्ती किया गया था और वह उसके लिए “शूटर” बन गया. पहले वह मामूली चोरी करता था लेकिन बाद में वह डकैती भी करने लगा.
मुश्किल से प्रतापगढ़ से 2 किलोमीटर दूर एक और गांव में दिप्रिंट को एक ऐसा ही मामला मिला.
मदुरा रानीगंज की निवासी सरिता पासी, एक दलित महिला, अपने टूटे फूटे घर में अपनी सिलाई मशीन पर काम कर रही थी, जब दिप्रिंट उनका घर पहुंचा.
टूट रही प्लास्टर और बिना पेंट की हुई ईंट की दीवारों पर पुलिस की वर्दी पहने पासी के दिवंगत ससुर की फ़्रेमयुक्त ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर टंगी हुई थी. पास ही बिस्तर पर उसकी बीमार सास सोई थी. उनके पति किसान हैं.
दो बच्चों की मां, पासी अपनी सास को उनके पति की मृत्यू के बाद मिलने वाले पेंशन और कपड़े सिलने से होने वाली कमाई तथा अपनी किसान पति से के द्वारा थोड़े बहुत कमाए गए पैसे से अपना घर चलाती है.
सीमित साधनों के बावजूद वह कहती हैं कि उनका समाज में एक सम्मान है और वह अपने बेटे अंकुर सरोज पर लगे आरोपों से इनकार करती हैं.
सरोज जब फरवरी 2019 में पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया था तब वह मात्र 18 वर्ष का था. उसपर आरोप थे कि उसने कथित रूप से रंगदारी के पैसे नहीं देने के कारण एक स्थानीय व्यवसायी को गोली मार दिया था.
जबकि पासी का मानना है कि अंकुर को स्थानीय पुजारी के बेटे ने “फंसाया” था. हालांकि उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि उसने अपने बेटे से आत्मसमर्पण करने का आग्रह किया क्योंकि उसे डर था कि कहीं वह मुठभेड़ में मारा न जाए.
वह पूछती हैं, “पंडित के बेटे के साथ उसके मतभेद थे और इसलिए आज वह सलाखों के पीछे हैं. हमारा अपराधियों का परिवार नहीं है. उसके दादा एक पुलिसकर्मी थे, उसके पिता एक किसान हैं. वह बंदूक क्यों उठाएगा?”
पासी ने कहा, “वह पढ़ रहा था और परदेस (विदेश) जाना चाहता था. लेकिन अब सब कुछ खत्म हो गया है.”
उन्होंने आगे कहा कि उनके पास सरोज का केस लड़ने के लिए कोई साधन नहीं है.
हुसैन और सरोज दोनों के मामले उत्तर प्रदेश में बहुत आम हैं, जहां आपराधिक गिरोह कथित तौर पर युवा “शूटरों” को 10,000 रुपये की मामूली राशि पर भर्ती कर लेते हैं.
यूपी पुलिस के एक सूत्र ने कहा कि गैंगस्टर से राजनेता बने अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ की पिछले महीने कथित तौर पर हत्या करने वाले तीन “शूटरों” के बारे में भी यही माना जाता है कि वे “छोटे अपराधी” थे, जिन्हें एक गिरोह ने भर्ती किया था और हत्याओं को अंजाम देने के लिए कहा था.
17 से 20 साल के बीच की उम्र के तीन आरोपियों – लवलेश तिवारी, अरुण मौर्य और सनी सिंह – को एक “बड़े गिरोह” द्वारा काम पर रखने का संदेह है, जिसे पुलिस अभी तक पहचान नहीं पाई है. तीन आरोपियों में से एक कथित तौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुख्यात गैंगस्टर सुंदर भाटी का पूर्व सहयोगी है, लेकिन अभी तक कुछ भी अंतिम निर्णय का पता नहीं चला है.
इन शूटरों की अलग-अलग जरूरतें और मजबूरियां होती है. पुलिस सूत्रों के मुताबिक, आर्थिक तंगी, बेरोजगारी और जाति आधारित भेदभाव जैसे कारक आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने में योगदान देते हैं. साथ ही ग्लैमरस, पावर जैसे फैक्टर में कई बार मायने रखते हैं.
यूपी स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजीपी) अमिताभ यश ने कहा, “सभी शूटर गरीब पृष्ठभूमि से नहीं आते हैं, लेकिन जल्दी से जल्दी पैसे कमाने और अमीर होने की जिज्ञासा उन्हें इसकी ओर आकर्षित करता है.” अमिताभ यश ने पिछले 25 वर्षों से गिरोह से संबंधित मामलों की जांच की है.
दिप्रिंट ने यूपी के दो जिलों – जौनपुर और प्रतापगढ़ – का दौरा किया ताकि यह पता लगाया जा सके कि कैसे गिरोह युवाओं को शूटर के रूप में चुनते हैं और उनकी भर्ती करते हैं. साथ ही दिप्रिंट ने यह भी पता लगाने की कोशिश की कि युवाओं को अपराध की दुनिया में शामिल होने के लिए क्या प्रेरित करता है.
पहचान, ग्लैमर, आर्थिक तंगी और जाति
दिप्रिंट से बात करने वाले पुलिस सूत्रों के कहा कि इसके लिए कोई ठोस डेटा नहीं है, लेकिन मौजूद सबूत बताते हैं कि शूटर की भर्ती के लिए प्रतापगढ़ और जौनपुर सबसे लोकप्रिय जगह है.
एक स्थानीय पुलिस अधिकारी ने आरोप लगाते हुए कहा, “हम जानते हैं कि इन जिलों के लड़कों को हत्याओं को अंजाम देने के लिए दूसरे राज्यों में भेजा जाता है क्योंकि अलग-अलग राज्यों की पुलिस उनकी तलाश में यहां आती रहती है. हुसैन और सरोज भी 2019 में अपनी गिरफ्तारी से ठीक पहले ऐसे ही एक काम के लिए दमन और दीव गए थे.”
नाम न छापने की शर्त पर एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दावा किया कि जब युवाओं के अपराध की दुनिया में शामिल होने की बात आती है तो जाति “एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है”.
उन्होंने कहा, “एक दलित, जिसे अक्सर इलाके के एक पंडित द्वारा नीची निगाह से देखा जाता है, अचानक बंदूक उठाने के बाद सशक्त महसूस करता है.”
अधिकारी ने कहा, “वे [कथित शूटर] एक ग्लैमरस जीवन शैली की संभावना और बन्दूक उठाने के बाद मिलने वाली पावर किक से मोहित हो जाते हैं. शूटर अक्सर रेस्तरां और शोरूम में जबरन घुसकर और बिना पैसे चुकाए चीजें उठाकर अपनी ताकत दिखाने की कोशिश करते हैं. यह “रंगबाज़ी” [एक अल्फ़ा पुरुष होने का प्रदर्शन] शक्ति के प्रदर्शन और उनके हलकों में सम्मान हासिल करने के साधन के रूप में काम करता है.”
एक दूसरे वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, अधिकांश युवा गैंगस्टरों को अपना आदर्श मानने लगते हैं, जिनके पास धन, हथियार और कुछ भी करने का पावर होता है.
दूसरे अधिकारी ने कहा, “हमने ज्यादातर मामलों में देखा है कि युवा गैंगस्टरों को अपना आदर्श मानते हैं. वे इन स्थानीय भैया के आस-पास रहना चाहते हैं. यह उनके लिए पावर और अधिकार का प्रतीक हैं. इनमें से अधिकांश युवा भी वह पावर पाना चाहते हैं, क्योंकि वे स्वयं अपने समुदायों के भीतर सम्मान पाने की आकांक्षा रखते हैं.”
हुसैन और सरोज के साथ-साथ और प्रतापगढ़ में कई अन्य लोगों को भी इन तमाम कारकों ने अपराध की ओर धकेलने में एक बड़ी भूमिका निभाई.
एक नाम जिसने क्षेत्र के कई युवाओं को प्रेरित किया, वह नाम यासिर है, जो केवल अपने पहले नाम से जाना जाता है – भुलियापुर, प्रतापगढ़ का एक शार्पशूटर.
अप्रैल 2017 में एक मुठभेड़ में मारे जाने से पहले यासिर 2014 और 2017 के बीच कथित तौर पर हत्या, जबरन वसूली और डकैती के कई मामलों में शामिल था. दूसरे पुलिस अधिकारी ने बताया कि युवाओं के अंदर उसके “निडर चरित्र” के कारण काफी क्रेज हैं.
उन्होंने कहा, “उसे भुलियापुर के शेर के रूप में जाना जाता था. हुसैन और सरोज सहित जिले के कई युवाओं ने “यासिर भाई अमर रहे” के नाम से एक व्हाट्सएप ग्रुप भी बनाया था, जिसमें कई युवा शामिल थे.”
वह कहते हैं, “लेकिन दिलचस्प बात यह है कि उसमें से ज्यादातर उससे कभी मिला भी नहीं था.”
उन्होंने आगे कहा, “भूलियापुर गांव में, एक पेड़ था जहां यासिर जब वह अपराध की दुनिया में सक्रिय था तो उसने उस पेड़ पर गोलियों से 1090 लिखा था. वह उसके गिरोह के लिए एक कोड वर्ड था और वह पेड़ गैंग के सभी सदस्यों का मीटिंग प्वाइंट था. उसका डर इतना था कि पुलिस भी कभी उस इलाके में कभी गश्त नहीं करती थी.”
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विश्वविद्यालय – अपराध के लिए सबसे उपजाऊ जमीन
स्थानीय लोगों के मुताबिक, प्रतापगढ़ में हर दूसरे घर में या तो कोई वकील है या कानून की पढ़ाई कर रहा है.
दूसरे वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार इसको देखते हुए जिले भर में कई विधि संस्थान भी खुल गए हैं.
उनके अनुसार, कुछ युवाओं के कानूनी अध्ययन की ओर आकर्षित होने का कारण यह है कि कानून की जानकारी होने के बाद उसे “पुलिस को दूर” रखने में मदद मिलती है. इसके अलावा, उनका मानना यह भी है कि पकड़े जाने पर वे अपने गिरोह के सदस्यों को कानूनी सहायता दे सकते हैं.
राज्य के एक तीसरे वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अधिकांश गिरोह बिचौलियों के माध्यम से काम करते हैं, जिन्हें “संभावित चेहरे की पहचान” करने का काम सौंपा जाता है.
एक तीसरे अधिकारी ने दावा किया कि वैसे युवा, जो गरीब परिवार से आते हैं, लेकिन पावर और पैसा पाने की इच्छा रखते हैं, वे सबसे पहले इनके शिकार बनते हैं. वे भोले होते हैं, और आसानी से प्रभाव में आ जाते हैं.
उनके अनुसार, इसमें भर्ती होने वालों में अधिकांश कॉलेज और विश्वविद्यालय के छात्र होते हैं. खासकर दोनों राज्य विश्वविद्यालय इसके लिए सबसे उपयुक्त जगह बन गया है. अधिकारी के अनुसार, फैजाबाद विश्वविद्यालय, जहां हुसैन छात्र था, गिरोह के संचालन के लिए सबसे उपजाऊ जमीन बन गया है.
अधिकारी ने कहा, “कई इच्छुक शूटर अपने कॉलेजों में साथियों से आसानी से पैसे मिलने के बाद और पावर देखने के बाद इन गिरोहों में आसानी से शामिल हो जाते हैं.”
उन्होंने कहा, “भर्ती की प्रक्रिया काफी आसान होती है. युवाओं को कॉलेज के दिनों में सबसे पहले एसयूवी जैसी चीजों का लालच दिया जाता है, एसयूवी मिलने के बाद युवा अपने साथियों के बीच काफी लोकप्रिय हो जाते हैं. फिर धीरे-धीरे उन्हें पिस्टल दी जाती है, जिसे ये युवा स्टेटस सिंबल समझने लगते हैं.”
उन्होंने कहा “वे पहले उन्हें पिस्तौल दिखाते हैं और फिर कहते हैं– अच्छी लग रही है तो रख लो. यह एक अपराधी के रूप में उसके जीवन की शुरुआत है.”
उन्होंने कहा: “आसानी से पैसा मिलने पर वह अच्छी शराब और ब्रांडेड कपड़ों आसानी से प्राप्त कर सकते हैं. और वे बाद में भैया (मध्यस्थ) के प्रति अपनी वफादारी साबित करने के लिए चोरी और फिरौती जैसी छोटी मोटी आपराधिक गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं.”
तीसरे अधिकारी ने कहा, अपनी योग्यता साबित करने के लिए, इन नए और छोटे अपराधों को अपनी वफादारी और क्षमता दिखाना पड़ता है. जब वह इसमें सफल हो जाते हैं फिर उसपर हत्या जैसी बड़ी चीज के लिए भरोसा किया जाता है.
गिरोहों के लिए, इन युवा को तैयार करने के कई आर्थिक लाभ भी हैं.
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि एक अनुभवी और प्रशिक्षित शूटर एक असाइनमेंट के लिए 2 से 3 लाख रुपये तक मांग कर सकता है जबकि इन नए युवाओं को अक्सर 10,000 रुपये से भी कम में काम पर रखा जाता है.
पुलिस सूत्रों के अनुसार, हुसैन और सरोज को उनकी कथित पहली नौकरी के लिए और भी कम भुगतान मिला था. दोनों को एक डकैती की घटना का अंजाम देना था जिसमें उसे 5,000-10,000 रुपये की मामूली राशि मिली थी.
कुशल हत्यारों को सस्ता श्रम
पुलिस सूत्रों ने कहा कि गैंग के सरगना अपने और अपने ऑपरेशन को सुरक्षित रखने के लिए किराए पर लिए गए शूटरों से दूरी बनाए रखना पसंद करता है.
एक तीसरे पुलिस अधिकारी ने कहा, “वह यह सुनिश्चित करने के लिए करता है कि अगर शूटर गिरफ्तार हो जाता है तो वह अपने आप को बचाने के लिए सक्षम हो. साथ ही वह सीधे तौर पर उससे नहीं जुड़ता है. नतीजतन, गिरोह आसानी से अपराध से खुद को दूर कर लेता है, जबकि शूटर अपनी जिंदगी के कई साल जेल में बिताता है.”
उन्होंने कहा, “ज्यादातर मामलों में, शूटर गिरोह के लीडर्स से नहीं मिलते हैं. वे केवल बिचौलियों के संपर्क में रहते हैं, जो गिरोह में निचले स्तर का व्यक्ति होता है. उन्हें सिर्फ टारगेट और उसकी लोकेशन की डिटेल दी जाती है. काम पूरा होने के बाद उन्हें पेमेंट किया जाता है. यदि वह पकड़ा जाता है तो जेल में बंद रहता है.”
उन्होंने कहा, “कई बार में बिचौलिए भी उस गैंगस्टर के बारे में नहीं जानते हैं जिसके लिए वे काम कर रहे हैं. अधिकांश ऑपरेशन में वन टू वन मुलाकात नहीं हो पाती है और यही कारण है कि इन हत्याओं में शामिल बड़े गिरोहों तक पहुंचाना बहुत मुश्किल हो जाता है.”
वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, “खासकर जब युवा अपराध करने के बाद पुलिस की गिरफ्त में आते हैं तो उसे उनके आकाओं द्वारा वैसे ही जेल में छोड़ दिया जाता है. बाद में उसमें से कई जमानत पर बाहर आते हैं. उसके बाद अपराध की एक नई दुनिया उभरती है क्योंकि वह जेल में जाकर और अपराधियों के संपर्क में आते हैं और अपना नेटवर्क मजबूत कर लेते हैं.”
उन्होंने कहा, “यह एक दलदल की तरह है. एक बार जब आप इसमें शामिल हो जाते हैं, तो इससे पूरी तरह बाहर आना मुश्किल हो जाता है. एक बार जब ये शूटर जेल पहुंच जाते हैं, तो वे बड़े अपराधियों के रूप में सामने आते हैं, फिर से काम करने के लिए तैयार रहते हैं. वे जेल के अंदर एक मजबूत नेटवर्क बनाते हैं और अधिकांश गिरोह उन पर नज़र रखते हैं.”
उन्होंने आगे कहा, “एक बार जब वे जमानत पर बाहर आ जाते हैं, तो उन्हें कोई रोक नहीं सकता. लड़के जो कभी अप्रशिक्षित सस्ते मजदूर थे, प्रशिक्षित हत्यारे बन जाते हैं और अपने राज्य के बाहर काम करना शुरू कर देते हैं.”
जौनपुर जिले के पचवार गांव के रहने वाले और स्नातक की पढ़ाई कर चुके शिवम पासी उत्तर प्रदेश पुलिस में सब-इंस्पेक्टर के प्रवेश परीक्षा देने की तैयारी कर रहे थे. साल 2022 में उसकी कथित तौर पर ग्राम प्रधान के भाई के साथ झगड़ा हो गया.
कहा जाता है कि मारपीट के दौरान पासी के पैरों में गंभीर चोटें आईं और उसके सिर में टांके लगाने पड़े. हालांकि, प्रधान द्वारा दायर एक शिकायत के आधार पर पासी पर हत्या के प्रयास का आरोप लगाया गया था. पुलिस सूत्रों ने कहा कि बाद में उसे अप्रैल में गिरफ्तार किया गया था और इस फरवरी में जमानत मिलने से पहले उसने लगभग एक साल सलाखों के पीछे बिताया था.
ठीक एक महीने बाद, मार्च में, पुलिस को सूचना मिली कि उसने एक व्यापारी को लूटा और गोली मार दी है. वह कथित तौर पर जौनपुर में सक्रिय “सुभाष गिरोह” के लिए काम करना शुरू कर दिया था. तब से लेकर अब तक वह फरार चल रहा है.
जौनपुर के एक पुलिस अधिकारी ने कहा, “यह एक क्लासिक मामला है कि कैसे ये युवा अपराध की दुनिया में खिंचे चले आते हैं. शिवम का कोई बड़ा आपराधिक इतिहास नहीं है. वह युवा, गुस्सैल और कमजोर समुदाय से ताल्लुक रखता था और इसलिए उसे सुभाष गिरोह ने मामूली रकम का लोभ देकर काम पर रख लिया था.”
जबकि पुलिस पासी की तलाश कर रही है, उसके माता-पिता ने इस बात से इनकार कर दिया कि उसका बेटा किसी गिरोह से जुड़ा था.
उसकी मां ने इस माह की शुरुआत में दिप्रिंट से कहा था, “उसे प्रधान के भाई ने फंसाया था. सिर्फ इसलिए कि हम गरीब और शक्तिहीन हैं, वे हमारे साथ ऐसा कर रहे हैं. उस दिन, शिवम ने लड़ाई रोकने के लिए बीच-बचाव किया ही था कि प्रधान के भाई ने उसकी पिटाई कर दी. उसके सिर पर टांके लगे. उसका कान भी कट गया और पुलिस ने उसे ही गिरफ्तार कर लिया और जेल भेज दिया.”
उन्होंने आगे कहा था, “जमानत पर बाहर आने के बाद, उसने मुझसे कहा कि वह कुछ पैसे कमाने के लिए बाहर जाएगा. मैंने उसे तब से नहीं देखा है. अगर वह इतने बड़े गिरोह का शूटर होता, तो मैं इस फूस की छत वाले घर में नहीं रहती
और भोजन के लिए भीख नहीं मांगती.”
(संपादन: ऋषभ राज)
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