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Friday, 22 November, 2024
होमदेश‘हिंदू सहनशील होते हैं, असहमति लोकतंत्र के लिए जरूरी’- दिल्ली कोर्ट ने क्यों दी ज़ुबैर को जमानत

‘हिंदू सहनशील होते हैं, असहमति लोकतंत्र के लिए जरूरी’- दिल्ली कोर्ट ने क्यों दी ज़ुबैर को जमानत

कोर्ट ने ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर को उस केस में ज़मानत दे दी, जिसे दिल्ली पुलिस ने ‘धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले’ ट्वीट पर दर्ज किया था. जज ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों की आलोचना की जा सकती है.

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नई दिल्ली: बिना किसी बंदिश के सूचना का प्रसार, मूल विचारों की घारणा और उसका आदान-प्रदान किसी भी मुक्त समाज के बुनियादी संकेतक होते हैं- अपने आदेश में ये कहना था दिल्ली की एक अदालत का जिसने शुक्रवार को ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर को जमानत दे दी.

50 हजार रुपए का मुचलका जमा करने और देश छोड़कर नहीं जाने की शर्त पर जमानत देते हुए पटियाला हाउस कोर्ट ने ये भी कहा कि हिंधू धर्म के मानने वाले ‘सहनशील’ होते हैं और भारत में राजनीतिक पार्टियों की ‘आलोचना की जा सकती है’.

हालांकि, उन्हें अभी सलाखों के पीछे ही रहना होगा क्योंकि उत्तर प्रदेश में उनके खिलाफ कई एफआईआर दर्ज हैं.

ज़ुबैर को मौजूदा केस में 27 जून को गिरफ्तार किया गया था, जब दिल्ली पुलिस साइबर सेल (आईएफएसओ) ने उन्हें 2020 के एक अलग मामले में पूछताछ के सिलसिले में बुलाया था जिसमें उन्हें पहले ही गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण मिला हुआ था.

नए केस का संबंध फेक्ट-चेकर के 2018 के एक ट्वीट से है जिसके बारे में एक ट्विटर यूजर- ‘हनुमान भक्त’ ने 19 जून को दिल्ली पुलिस से कहा था कि इससे ‘उसकी धार्मिक भावनाएं आहत हुईं हैं’.

ऋषिकेश मुखर्जी द्वारा निर्देशित 1983 की एक हिंदी फिल्म किसी से ना कहना से एक तस्वीर दिखाते हुए, उक्त ट्वीट में कहा गया था: ‘2014 से पहले हनीमून होटल, 2014 के बाद हनुमान होटल’.

ज़ुबैर पर शुरू में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं 153ए (विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य बढ़ाना), और 295ए (धार्मिक भावनाओं को आहत करने की मंशा से जानबूझकर दुर्भावनापूर्ण कार्य) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था. बाद में पुलिस ने उसमें आपराधिक षडयंत्र और सबूत मिटाने और विदेशी फंडिंग प्राप्त करने के आरोप भी जोड़ दिए, जो विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) के तहत एक दंडनीय है.


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‘फिल्म के पास CBFC प्रमाणपत्र था, हिंदू सहनशील होते हैं’

ज़ुबैर की जमानत याचिका के खिलाफ बहस करते हुए अभियोजन पक्ष ने कहा कि 1983 की फिल्म की उस तस्वीर ने हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत किया और ये हिंसा भड़काने के लिए काफी था. जो क्रमश: धारा 295ए और 153ए के तहत दंडनीय है.

अभियोजन ने ये भी दावा किया कि 2014 की ओर इशारा, स्थिति को ‘पूर्वाग्रह से ग्रसित’ ढंग से दिखाने के लिए ‘सत्तारूढ़ राजनीतिक पार्टी की ओर’ उंगली उठाता है.

पत्रकार को जमानत देते हुए कोर्ट ने कहा कि ज़ुबैर ने वो तस्वीर 1983 की एक मूवी से डाली थी जिसे केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) ने प्रमाणित किया था जो भारत सरकार की एक वैधानिक इकाई है. कोर्ट ने ये भी कहा कि कभी ऐसी कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई गई जिसमें दावा किया गया हो कि किसी एक खास सीन से धार्मिक भावनाएं आहत हुईं हैं.

अतिरिक्त सेशंस जज देवेंदर कुमार जंगाला ने कहा कि हालांकि ये ट्वीट 2018 में पोस्ट की गई थी लेकिन इससे पहले अभी तक कोई ऐसी शिकायत नहीं मिली है जिसमें आरोप लगाया गया हो कि ट्वीट हिंदू समुदाय का अपमान करता था, या उससे भगवान हनुमान का अनादर हुआ था.

जज ने कहा, ‘हिंदू धर्म सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है और सबसे अधिक सहनशील है. हिंदू धर्म के मानने वाले भी सहनशील हैं. हिंदू धर्म इतना सहनशील है कि इसके अनुयायी गर्व के साथ अपनी संस्था/संगठन/सुविधाओं का नाम अपने पवित्र ईश्वर या देवता के नाम पर रख लेते हैं’.

2014 के बारे में जिस साल नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री का पद संभाला था, अभियोजन के तर्क पर कोर्ट ने कहा कि ‘भारतीय लोकतंत्र में राजनीतिक पार्टियों की आलोचना होती है’.

कोर्ट ने आगे कहा कि ‘असहमति की आवाज स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक है’ और इसलिए महज किसी राजनीतिक दल की आलोचना पर 153ए और 295ए को लगाना न्याय हित में नहीं है.

पुलिस ‘आहत’ यूजर और विदेशी चंदे नहीं ढूंढ पाई

ये देखते हुए कि दिल्ली पुलिस उस ट्विटर यूजर की पहचान नहीं कर पाई है जो कथित रूप से ज़ुबैर के ट्वीट से आहत हुआ था जज ने कहा कि पुलिस सीआरपीसी की धारा 161 के अंतर्गत आहत व्यक्ति का बयान भी दर्ज नहीं करा सकी है, जबकि उसे आपराधिक प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के अनुसार ही अपनी जांच को आगे बढ़ाना था.

जज ने ज़ुबैर के खिलाफ एफसीआरए के आरोप पर कहा कि रिकॉर्ड में ऑल्टन्यूज की वेबसाइट पर एक बयान नजर आता है जिसमें कहा गया है कि केवल भारत के नागरिकों ही जिनके भारतीय बैंकों में खाते हैं इसमें योगदान देना चाहिए. जज ने कहा कि पहली नजर में इससे जाहिर होता है कि ज़ुबैर ने एफसीआरए की धारा 39 के तहत ड्यू डिलिजेंस की थी.

ऑल्टन्यूज चंदा हासिल करने के लिए जिस पेमेंट गेटवे- रेजरपे का इस्तेमाल करती है उसके सीईओ हर्शल माथुर ने पिछले हफ्ते एक ट्वीट में कहा था कि ऑल्टन्यूज़ के लिए प्लेटफॉर्म सिर्फ उन्हीं चंदों को लेता है जो भारतीय बैंक खातों से आते हैं और ये फिनटेक कंपनी की नीति के अनुरूप है कि वो एफसीआरए पंजीकरण के बिना अंतर्राष्ट्रीय लेनदेन की अनुमति नहीं देती.

दिल्ली पुलिस ने दावा किया था कि ऑल्टन्यूज की पेरेंट कंपनी प्रावदा मीडिया फाउंडेशन ने 2 लाख रुपए से अधिक की राशि बाहरी देशों से वसूल की थी जिनमें पाकिस्तान और सीरिया शामिल थे.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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