नयी दिल्ली, एक मई (भाषा) हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा जिले के प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर योल को अब छावनी कस्बा नहीं माना जाएगा। सैन्य सूत्रों ने सोमवार को यह जानकारी दी।
सूत्रों ने बताया कि छावनी के सैन्य इलाके को एक सैन्य अड्डे में बदला जाएगा, जबकि असैन्य क्षेत्र का स्थानीय नगर पालिका में विलय किया जाएगा।
छावनी का दर्जा बदलने के संबंध में मंत्रालय ने 27 अप्रैल को एक अधिसूचना जारी की थी।
सूत्रों ने बताया कि यह कदम सभी हितधारकों के लिए लाभकारी साबित होगा और जिन आम नागरिकों को अभी तक नगर पालिका के जरिए राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा था, वे अब उन्हें प्राप्त कर सकेंगे।
एक सूत्र ने कहा, ‘‘जहां तक सेना की बात है, वह भी अब सैन्य अड्डे के विकास पर ध्यान केंद्रित कर पाएगी।’’
उन्होंने बताया, ‘‘यह छावनी क्षेत्र से असैन्य क्षेत्र को अलग किए जाने की श्रृंखला में पहला कदम है, जिसका सभी ने स्वागत किया है।’’
स्वतंत्रता के समय 56 छावनी थीं और 1947 के बाद छह और छावनी अधिसूचित की गईं। अधिसूचित की गई अंतिम छावनी अजमेर थी, इसे 1962 में अधिसूचित किया गया था।
छावनी में रहने वाले आम नागरिकों को संबंधित राज्य सरकारों की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ आमतौर पर नहीं मिलता है क्योंकि सैन्य सुविधाएं, रक्षा मंत्रालय के रक्षा संपदा विभाग के माध्यम से छावनी बोर्ड द्वारा शासित होती हैं।
सूत्रों ने बताया कि असैन्य क्षेत्रों को छावनी इलाके से बाहर किए जाने की वहां रह रहे आम नागरिक और राज्य सरकार काफी लंबे समय से मांग कर रही थीं।
एक अधिकारी ने बताया कि रक्षा बजट का एक बड़ा हिस्सा छावनियों के असैन्य क्षेत्रों के विकास पर खर्च किया जाता है।
उन्होंने कहा कि छावनियों के असैन्य क्षेत्रों के लगातार बढ़ते विस्तार के कारण इन सुविधाओं में प्रमुख रक्षा भूमि पर दबाव बढ़ रहा है।
एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘‘छावनियां औपनिवेशिक संरचनाएं हैं और इस तरह के कदम उठाकर सैन्य अड्डों का बेहतर ढंग से प्रशासन किया जा सकता है।’’
भाषा सिम्मी रंजन
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