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Sunday, 22 December, 2024
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‘हिजाब एक मौलिक अधिकार’—उर्दू प्रेस ने बंटे हुए फैसले में जस्टिस धूलिया की राय को सराहा

दिप्रिंट अपने राउंड-अप में बता रहा है कि उर्दू मीडिया ने इस हफ्ते विभिन्न घटनाओं को कैसे कवर किया और उनमें कुछ पर उनका संपादकीय रुख क्या रहा.

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नई दिल्ली: पूजा स्थल अधिनियम, 1991 और 2016 की नोटबंदी की वैधता पर सवाल उठाने वाली एक याचिका पर सुनवाई करने के निर्णय के अलावा कर्नाटक हिजाब विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का बंटा हुआ फैसला इस सप्ताह उर्दू प्रेस की सुर्खियों में रहा.

12 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूजा स्थल (विशेष प्रावधान अधिनियम) 1991 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था. गौरतलब है कि उक्त कानून पूजा स्थल में किसी बदलाव को प्रतिबंधित करता है और कहता है कि उसका स्वरूप वैसे ही बहाल रखा जाना चाहिए जैसा 15 अगस्त 1947 से पहले था.

13 अक्टूबर को शीर्ष कोर्ट ने भारत में 500 और 1,000 रुपये नोटों को अमान्य करार देने के मोदी सरकार के 2016 के फैसले की वैधता पर सवाल उठाने वाली एक याचिका को सुनवाई को स्वीकार कर लिया. उसी दिन, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की खंडपीठ ने कर्नाटक हिजाब विवाद में अलग-अलग राय वाला फैसला सुनाया, जिसका मतलब है कि इस मामले की सुनवाई अब एक बड़ी बेंच करेगी.

उर्दू अखबारों ने इन पर विभिन्न राजनेताओं की प्रतिक्रियाएं प्रकाशित कीं, वहीं संपादकीय में कहा गया कि हिजाब पहनना एक मौलिक अधिकार था और अब यह याचिकाकर्ताओं पर निर्भर है कि वे बड़ी बेंच को अपनी बात से सहमत कराएं.

सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों के अलावा 10 अक्टूबर को समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह के निधन की खबर को भी उर्दू अखबारों में व्यापक कवरेज मिली. इसी तरह शिवसेना के चुनाव चिन्ह विवाद की खबर को भी तरजीह मिली.

दिप्रिंट उर्दू प्रेस साप्ताहिक राउंड-अप में बता रहा है कि कौन-कौन सी खबरें सुर्खियों में रहीं.


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हिजाब ‘किसी भी महिला का लोकतांत्रिक अधिकार’

सियासत, इंकलाब, और रोजनामा राष्ट्रीय सहारा ने 14 अक्टूबर को कर्नाटक हिजाब विवाद में सुप्रीम कोर्ट के बंटे हुए फैसले को अपने फ्रंट पेज की लीड खबर बनाया.

उस दिन अपने प्रमुख शीर्षक में इंकलाब ने लिखा था कि जजों की अलग-अलग राय के कारण सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आ पाया.

अखबार ने तमाम राजनेताओं और संगठनों की प्रतिक्रियाओं को भी प्रकाशित किया है. इसमें ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी का एक बयान भी शामिल है, जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी पर इस मुद्दे को अनावश्यक तूल देने का आरोप लगाया.

इंकलाब और सहारा दोनों ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी की प्रतिक्रिया को प्रमुखता से छापा. अखबारों ने मदनी के हवाले से हिजाब को मौलिक अधिकार बताया और कहा कि फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट से उनकी उम्मीदें बढ़ गई हैं.

इंकलाब ने फैसले पर कर्नाटक के शिक्षा मंत्री बीसी नागेश की प्रतिक्रिया की छापी. नागेश ने अपने बयान में कहा कि दुनियाभर की महिलाएं हिजाब का विरोध कर रही हैं और उन्हें सुप्रीम कोर्ट से बेहतर फैसले की उम्मीद है.

सियासत ने प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेजों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने के कर्नाटक सरकार के फैसले को रद्द करने संबंधी जस्टिस धूलिया की राय पर अपने पहले पन्ने पर एक अलग रिपोर्ट प्रकाशित की. अखबार ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि भारतीय संविधान विश्वास का दस्तावेज है.

अखबार ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्ला रहमानी की तरफ से धूलिया की राय का स्वागत किए जाने संबंधी प्रतिक्रिया भी छापी.

उसी दिन सियासत ने अपनी प्रतिक्रिया में लिखा कि मामले को अब एक बड़ी बेंच के पास भेजा जा सकता है और यह केस में याचिकाकर्ताओं पर निर्भर करता है कि वे कोर्ट को अपनी दलील से कैसे सहमत कराते हैं, जिसमें वे लड़कियां भी शामिल हैं जिन्हें जनवरी में उडुपी स्थित सरकारी प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज में प्रवेश से रोक दिया गया था.

संपादकीय में यह भी कहा गया है कि फैसला और इसके बाद कर्नाटक सरकार का प्रतिबंध मौलिक अधिकारों का उल्लंघन था और केवल प्रभावी प्रतिनिधित्व के माध्यम से ही अदालत से किसी निश्चित फैसले की उम्मीद की जा सकती है.

सहारा ने अपने संपादकीय में लिखा कि भारतीय संविधान के तहत हिजाब को एक मौलिक अधिकार माना गया है और यह किसी महिला का लोकतांत्रिक अधिकार है, जैसा कि जस्टिस धूलिया ने अपने फैसले में उल्लेख भी किया है.

संपादकीय में आगे कहा गया है कि संविधान निजी अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है और हिजाब भी इसी श्रेणी में आता है. इसलिए, समाज इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता और न ही अदालतें अपनी इच्छा थोप सकती हैं.

मुलायम सिंह यादव का निधन

11 अक्टूबर को तीनों उर्दू अखबारों ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के निधन पर अपने पहले पन्ने पर रिपोर्ट छापी. अखबारों ने यह भी बताया कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तीन दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है.

इंकलाब ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि यूपी में शोक की लहर दौड़ गई है. इसने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी जैसे कई प्रमुख नेताओं की प्रतिक्रियाओं को भी प्रकाशित किया.

यादव के राजनीतिक सफर को याद करते हुए सहारा ने अपने संपादकीय में लिखा कि ऐसे नेता रोज-रोज पैदा नहीं होते.

12 अक्टूबर को तीनों अखबारों ने अपने पहले पन्ने पर यादव के अंतिम संस्कार की खबर प्रकाशित की. इंकलाब ने बताया कि उनके पुश्तैनी गांव सैफई में मेला ग्राउंड में उनके अंतिम दर्शनों के लिए जनसमूह उमड़ पड़ा, भीड़ इतनी ज्यादा थी कि ‘तिल रखने की भी जगह नहीं’ बची. रिपोर्ट में कहा गया है कि नेता के पैतृक घर और मेला ग्राउंड के बीच 500 मीटर की दूरी तय करने में एक घंटे से अधिक का समय लग गया.

उसी दिन इंकलाब ने अपने संपादकीय में लिखा कि राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य ने एक ऐसा नेता खो दिया है जो जमीनी स्तर से जुड़ा था और समानता और पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए समर्पित था.

संपादकीय में यह भी कहा गया कि कई बार संसद और उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने जाने वाले और न केवल राज्य के मुख्यमंत्री बल्कि भारत के रक्षामंत्री के तौर पर भी काम करने वाले मुलायम हमेशा लोगों से जुड़े रहे.

नोटबंदी और पूजा स्थल अधिनियम पर याचिकाएं

13 अक्टूबर को तीनों अखबारों ने सुप्रीम कोर्ट की तरफ से 2016 के नोटबंदी के फैसले की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मोदी सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से जवाब मांगे जाने संबंधी खबर को प्रमुखता से छापा.

सियासत ने 13 अक्टूबर को अपने पहले पन्ने पर एक रिपोर्ट में लिखा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह सरकारी नीतियों की न्यायिक समीक्षा पर अपनी सीमाओं से अच्छी तरह वाकिफ है, फिर भी यह जांच की जानी चाहिए कि क्या उचित प्रक्रिया का पालन किया गया था.

उसी दिन, इंकलाब और सहारा ने अपने पहले पन्ने पर बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा है.

अखबार ने लिखा कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी 1991 के अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में अपनी याचिका दायर की है. देश के सबसे बड़े मुस्लिम संगठनों में से एक जमीयत ने अपनी याचिका में कहा है कि अगर 1991 के कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार किया जाता है, तो देशभर में मस्जिदों के खिलाफ मामले दायर करने का रास्ता खुल सकता है.

शिवसेना की तकरार

शिवसेना के दोनों गुटों के बीच धनुष-बाण चिन्ह को लेकर जारी तकरार और भारतीय निर्वाचन आयोग की तरफ से इस पर रोक लगाने की खबर भी तीनों अखबारों के पहले पन्ने पर सुर्खियों में रही.

सहारा ने 10 अक्टूबर को अपने संपादकीय में लिखा कि शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे के बेटे और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने केवल पांच महीनों में बहुत कुछ खो दिया है. अखबार ने लिखा कि कहा कि उनकी पार्टी का चुनाव चिह्न दांव पर है, जिस पर चुनाव आयोग ने ठाकरे और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के गुटों के बीच विवाद के बाद फ्रीज कर दिया है.

संपादकीय में कहा गया कि अगर उद्धव चुनाव चिन्ह बचा नहीं पाते हैं तो पार्टी उनसे छिन सकती है और ठाकरे परिवार ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि उन्हें यह दिन देखना पड़ेगा.

11 अक्टूबर को इंकलाब ने बताया कि सेना के ‘धनुष-बाण’ चिह्न को फ्रीज करने के कुछ दिनों बाद चुनाव आयोग ने उद्धव के नेतृत्व वाले गुट को जलती मशाल का चुनाव चिह्न आवंटित किया है.

इस संदर्भ में यह भी बताया गया कि चुनाव आयोग ने उनकी पार्टी को शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नाम आवंटित किया है.

13 अक्टूबर को इंकलाब में एक संपादकीय लेख में सवाल उठाया कि शिंदे गुट को चुनाव चिन्ह की आवश्यकता ही क्यों है. संपादकीय में कहा गया है कि गुट भाजपा के साथ मिलकर महाराष्ट्र पर शासन कर रहा है. यही नहीं अगले महीने अंधेरी ईस्ट विधानसभा क्षेत्र के लिए भाजपा उम्मीदवार (मुरजी पटेल) का समर्थन भी कर रहा है. चूंकि यह गुट चुनाव में हिस्सा भी नहीं ले रहा है, इसलिए उसे किसी चुनाव चिह्न की जरूरत ही क्या है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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