नयी दिल्ली, 12 अक्टूबर (भाषा) देशभर में लाखों लंबित आपराधिक मामलों को निपटाने के लिए तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति के विचार को उच्चतम न्यायालय की ओर से मंजूरी मिलने के करीब नौ महीने बाद भी, अब तक किसी भी उच्च न्यायालय ने इस पद के लिए किसी नाम की सिफारिश नहीं की है।
उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया से अवगत लोगों के अनुसार, 11 अक्टूबर तक 25 उच्च न्यायालयों में से किसी ने भी तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए किसी नाम की सिफारिश नहीं की।
उन्होंने बताया कि केंद्रीय विधि मंत्रालय को इस संबंध में किसी भी उच्च न्यायालय कॉलेजियम से कोई सिफारिश नहीं मिली है।
देशभर में 18 लाख से अधिक आपराधिक मामलों के लंबित रहने से चिंतित, शीर्ष अदालत ने 30 जनवरी को उच्च न्यायालयों को तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति की अनुमति दे दी, जो अदालत की कुल स्वीकृत संख्या के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती।
संविधान का अनुच्छेद 224ए लंबित मामलों के प्रबंधन में मदद के लिए उच्च न्यायालयों में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को तदर्थ न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की अनुमति देता है।
निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार, संबंधित उच्च न्यायालय कॉलेजियम, विधि मंत्रालय के न्याय विभाग को उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए उम्मीदवारों के नाम या सिफारिशें भेजते हैं।
इसके बाद, विभाग उम्मीदवारों के बारे में जानकारी और विवरण प्राप्त करता है और फिर उन्हें उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम को भेजता है।
इसके बाद, शीर्ष अदालत का कॉलेजियम अंतिम निर्णय करता है और सरकार को चयनित व्यक्तियों को न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश करता है।
राष्ट्रपति नवनियुक्त न्यायाधीश की ‘नियुक्ति के वारंट’ पर हस्ताक्षर करते हैं।
तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया वही रहेगी, सिवाय इसके कि राष्ट्रपति नियुक्ति के वारंट पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे। हालांकि, तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति की सहमति ली जाएगी।
अधिकारियों ने बताया कि एक मामले को छोड़कर, सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को तदर्थ उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने का कोई पूर्व उदाहरण नहीं है।
उच्च न्यायालयों में तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति पर 20 अप्रैल 2021 के एक फैसले में, शीर्ष न्यायालय ने कुछ शर्तें लगाईं।
हालांकि, बाद में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई (वर्तमान प्रधान न्यायाधीश) और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की एक विशेष पीठ ने कुछ शर्तों में ढील दी और कुछ को स्थगित रखा।
पूर्व प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे द्वारा लिखे गए फैसले में, लंबित मामलों को निपटाने के लिए उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को दो से तीन साल की अवधि के लिए तदर्थ न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने का निर्देश दिया गया था।
एक शर्त में कहा गया था कि यदि कोई उच्च न्यायालय अपनी स्वीकृत संख्या के 80 प्रतिशत के साथ काम कर रहा है, तो तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं की जा सकती, जबकि दूसरी शर्त में कहा गया था कि तदर्थ न्यायाधीश मामलों को निपटाने के लिए अलग से पीठों में बैठ सकते हैं।
शर्तों में ढील देते हुए, शीर्ष अदालत ने कहा कि रिक्तियां स्वीकृत संख्या के 20 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए, यह शर्त फिलहाल स्थगित रखी जाएगी। पीठ ने कहा कि प्रत्येक उच्च न्यायालय को दो से पांच तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति करनी चाहिए, और यह कुल स्वीकृत संख्या के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।
शीर्ष न्यायालय के आदेश में कहा गया है, “तदर्थ न्यायाधीश उच्च न्यायालय के एक कार्यरत न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ में बैठेंगे और लंबित आपराधिक अपीलों पर निर्णय देंगे।”
संविधान का अनुच्छेद 224 ए, जिसका प्रयोग बहुत कम होता है, उच्च न्यायालयों में तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित है।
इसमें कहा गया है, “किसी भी राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश किसी भी समय, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से, उस राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य करने के लिए उस राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध कर सकता है, जिसने उस राज्य के उच्च न्यायालय या किसी अन्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद संभाला हो।”
भाषा रंजन पारुल
पारुल
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.