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Tuesday, 5 November, 2024
होमदेशजांच प्रमुख जस्टिस लिब्राहन ने कहा- बाबरी विध्वंस की योजना बनाई गई थी, अभियुक्तों ने कभी सुबूत नहीं झुठलाये

जांच प्रमुख जस्टिस लिब्राहन ने कहा- बाबरी विध्वंस की योजना बनाई गई थी, अभियुक्तों ने कभी सुबूत नहीं झुठलाये

जस्टिस लिब्राहन, जिनके आयोग ने विध्वंस की जांच, और एलके आडवाणी समेत सभी अभियुक्तों से, जिरह करने में 17 साल लगाए, कहते हैं कि वो अपनी फाइनल रिपोर्ट पर क़ायम हैं.

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नई दिल्ली: जस्टिस एमएस लिब्राहन, जिन्होंने 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस के पूरे घटनाक्रम की जांच, और तब की राज्य सरकार की ग़लतियों की जांच के लिए, बनाए गए आयोग की अगुवाई की, अपनी बात पर क़ायम हैं कि मस्जिद को गिराने के लिए, ‘साज़िश’ रची गई थी.

उन्होंने कहा कि इस निष्कर्ष पर 100 से अधिक गवाहों, डायस पर मौजूद नेताओं- जिनमें एलके आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी शामिल थे- और अख़बारों की कतरनों की जांच के बाद पहुंचा गया था.

लेकिन जस्टिस लिब्राहन ने स्पेशल सीबीआई कोर्ट के 30 सितंबर के फैसले पर टिप्पणी करने से मना कर दिया, जिसमें सभी 32 अभियुक्तों को बरी कर दिया गया है.

दिप्रिंट से बात करते हुए जस्टिस लिब्राहन ने कहा, ‘मुझे ट्रायल कोर्ट के फैसले पर कोई टिप्पणी नहीं करनी है. हमारी दो अलग-अलग पहचान हैं. एक ही तथ्य पर हमारे नज़रिए अलग हो सकते हैं. लेकिन मैं अपनी रिपोर्ट पर क़ायम हूं कि मस्जिद को गिराने के लिए एक षडयंत्र रचा गया था’.

अपने फैसले में लखनऊ की निचली अदालत ने कहा कि मस्जिद ढहाने के लिए, अपराधिक साज़िश के आरोप साबित नहीं हो सके. कोर्ट ने मीडिया रिपोर्ट्स और वीडियो फुटेज को विश्वसनीय सबूत नहीं माना.

जहां तक पत्रकारों के बयानात का सवाल है, कोर्ट ने कहा कि वो बेतुके और परस्पर-विरोधी थे, और अपराध साबित करने के लिए, उन्हें निर्णायक सबूत नहीं माना जा सकता.


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लिब्राहन आयोग ने क्या पाया

उस समय पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट के सिटिंग जज, जस्टिस लिब्राहन को आयोग का प्रमुख नियुक्त किया गया, जिसका गठन नरसिम्हा राव सरकार ने, 1992 में विध्वंस के बाद किया था. 2009 में केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट पेश करने में, आयोग को 17 साल लग गए.

जांच आयोग का कहना था कि मस्जिद का विध्वंस, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व भारतीय जनता पार्टी के नेताओं, और संघ परिवार के कुछ दूसरे सदस्यों के, ‘सुनियोजित षडयंत्र’ का नतीजा था.

67 लोग- जिनमें आडवाणी, जोशी, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, कल्याण सिंह, कलराज मिश्रा, विनय कटियार और अशोक सिंघल शामिल थे- ‘सांप्रदायिक कलह को उकसाने’ के दोषी क़रार दिए गए, जिसकी परिणति विध्वंस में हुई.

रिपोर्ट में कहा गया था, ‘ये स्थापित हो गया है कि 6 दिसंबर 1992 तक के पूरे घटनाक्रम पर, एक साझा षडयंत्र का दाग़ था. कुछ मुठ्ठी भर द्वेषी नेताओं ने बिना किसी संकोच के, सहनशीलता के आदर्श का आह्वान करते हुए, शांतिपूर्ण समुदायों को असहनशील भीड़ में तब्दील कर दिया’.

‘मौक़े पर मौजूदगी से ज़ाहिर था कि विध्वंस नियोजित था’

हालांकि जस्टिस लिब्राहन ने फैसले पर कुछ कहने से परहेज़ किया, लेकिन कोर्ट में पेश सबूतों पर उन्होंने अपनी अलग राय ज़ाहिर की.

निचली अदालत के उलट, लिब्राहन कमीशन ने बीजेपी नेताओं के खिलाफ, पेश किए गए अख़बारों और वीडियो फुटेज को, सबूत के तौर पर मान लिया था.

उन्होंने कहा, इन रिपोर्ट्स का कभी खंडन नहीं हुआ, अभियुक्तों ने भी नहीं किया. कमीशन के सामने पेश किए अन्य सबूतों के अलावा, अख़बारों और वीडियो फुटेज की भी जांच की गई. और चूंकि उनका कोई खंडन नहीं हुआ था, इसलिए साज़िश के आरोप साबित करने के लिए, उस सब को सबूत के तौर पर मान लिया गया.

कमीशन ने गवाहों और अभियुक्तों के बयान भी दर्ज किए थे.

पूर्व जज ने कहा, ‘अभियुक्तों ने षडयंत्र और नियोजन का आरोप क़बूल नहीं किया. लेकिन उन्होंने ये ज़रूर माना कि जब विध्वंस चल रहा था, तो वो भीड़ का हिस्सा थे और वहां मौजूद थे. तथ्यों और परिस्थितियों और अभियुक्तों के उस जगह मौजूद होने की बात क़बूलने से, साफ ज़ाहिर हो जाता है कि वो सब पूर्व-नियोजित था’.

उन्होंने आगे कहा कि नेताओं द्वारा लगातार की जा रही नारेबाज़ी- जैसे कि एक धक्का और दो, बाबरी मस्जिद तोड़ दो- भी सुबूतों का हिस्सा थी, जिसका ध्यान रखते हुए इस नतीजे पर पहुंचा गया, कि वो एक सिविल षडयंत्र था, और विध्वंस पूर्व-नियोजित था.

‘दुर्भाग्यपूर्ण है कि ट्रायल कछुए की रफ्तार से चला’

जस्टिस लिब्राहन ने कहा, कि पेश किए गए सबूतों में, एक नई जानकारी जो सामने आई वो थी, पाकिस्तानी एजेंसियों की सहभागिता की ख़ुफिया जानकारी.

उन्होंने कहा, ‘मुझे इस बारे में सबसे पहले तब पता चला, जब ये फैसला आ चुका था. कमीशन के सामने ऐसी किसी ख़ुफिया जानकारी का ज़िक्र नहीं था ’.

उन्होंने इंडियन टेलीग्राफ में छपी एक रिपोर्ट को भी याद किया, जिन्होंने उन नेताओं की- जो मौक़े पर मौजूद थे- आरएसएस मुख्यालय पर हुई एक बैठक का ज़िक्र किया गया था. उन्होंने कहा, ‘वो वहां चाय पार्टी के लिए जमा नहीं थे. ये भी है, कि उनमें से किसी ने इस रिपोर्ट का खंडन नहीं किया था’.

जज ने आगे कहा कि ये एक दुर्भाग्य ही था, कि ट्रायल कछुए की रफ्तार से चला, हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक, हर किसी ने दख़ल दिया… जिससे ट्रायल में काफी देरी हुई’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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