चंडीगढ़: एक अहम फैसले में, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को निर्देश दिया है कि वे तीन महीने के भीतर ऐसे दिशा-निर्देश तैयार करें, जो पुलिस अधिकारियों द्वारा ड्यूटी के दौरान रिकॉर्ड किए गए वीडियो या तस्वीरों को सोशल मीडिया पर अपलोड करने को नियंत्रित करें.
29 मई को दिए गए आदेश में, जिसे शनिवार को हाईकोर्ट की वेबसाइट पर डाला गया, अदालत ने जोर दिया कि ऐसे दिशा-निर्देश जरूरी हैं ताकि जांच एजेंसी, पीड़ितों या आरोपियों के खिलाफ किसी तरह की पूर्वाग्रहपूर्ण धारणा बनने से रोका जा सके.
जस्टिस कुलदीप तिवारी ने वकील प्रकाश सिंह मारवाह की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया. उन्होंने कहा, “ऐसे निर्देश/निर्देश तीन महीने के भीतर इस आदेश के पारित होने की तारीख से जारी किए जाएं.” यह फैसला मारवाह की उस याचिका के जवाब में आया जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि उनके साथ हुई एक घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर डालने से उनके गोपनीयता और गरिमा के अधिकार (अनुच्छेद 21, भारतीय संविधान) का उल्लंघन हुआ है, साथ ही यह सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के नियम 3(1)(d) का भी उल्लंघन है.
मारवाह, जो चंडीगढ़ के सेक्टर 51-ए के निवासी हैं, ने ट्रैफिक पुलिस के साथ हुई बहस का वीडियो वायरल होने के बाद अदालत का रुख किया था.
यह घटना 19 मई 2024 को चंडीगढ़ के सेक्टर 49 थाने में दर्ज एफआईआर नंबर 26 से जुड़ी है, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धाराओं 170 (सरकारी कर्मचारी के रूप में स्वयं को प्रस्तुत करना), 186 (सरकारी कर्मचारी के कार्य में बाधा डालना), और 419 (धोखाधड़ी) के तहत मामला दर्ज किया गया था, बाद में धारा 201 (सबूत मिटाना) भी जोड़ी गई.
मारवाह ने अदालत से यह निर्देश देने की मांग की थी कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर मौजूद आपत्तिजनक वीडियो हटाए जाएं.
“रिट ऑफ मैनडेमस” एक न्यायिक आदेश होता है जिसमें किसी सरकारी अधिकारी या संस्था को कोई कानूनी रूप से अनिवार्य कार्य करने का आदेश दिया जाता है.
सुनवाई के दौरान, चंडीगढ़ पुलिस ने अदालत को बताया कि एक जांच चल रही है, जिसकी अगुवाई दक्षिण के सब-डिविजनल पुलिस अधिकारी (SDPO) कर रहे हैं, ताकि यह पता लगाया जा सके कि वीडियो किसने अपलोड किया.
पुलिस ने यह भी बताया कि सोशल मीडिया एजेंसियों से वीडियो हटाने के लिए अनुरोध भेजे गए हैं. 17 मई 2025 तक पांच यूआरएल हटाए जा चुके हैं और 19 मई 2025 तक गूगल एलएलसी द्वारा सात में से दो और यूआरएल हटाए जा चुके हैं.
इसके अलावा, जिस मोबाइल फोन से कांस्टेबल योगेश ने यह वीडियो रिकॉर्ड किया था, उसे फॉरेंसिक जांच के लिए जब्त किया जाएगा.
अदालत को यह भी बताया गया कि वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी), ट्रैफिक ने सख्त निर्देश जारी किए हैं कि चालान या अन्य प्रवर्तन गतिविधियों से जुड़ी कोई भी फोटो या वीडियो व्हाट्सऐप, फेसबुक, इंस्टाग्राम या एक्स जैसे प्लेटफॉर्म्स पर अपलोड न की जाए.
पुलिस द्वारा उठाए गए सक्रिय कदमों पर टिप्पणी करते हुए जस्टिस तिवारी ने कहा, “चूंकि पुलिस अधिकारी स्वयं ही सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से वीडियो हटाने के लिए कदम उठा रहे हैं, इसलिए इस समय इस मामले में किसी अन्य निर्देश की आवश्यकता नहीं है.” अदालत ने यह भी दर्ज किया कि एफआईआर की जांच पूरी हो चुकी है और अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर दी गई है.
याचिकाकर्ता की ओर से वकील प्रतम सेठी और कृतिमा सरीन ने पक्ष रखा. भारत सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल सत्य पाल जैन और वकील धीरेज जैन पेश हुए, जबकि चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश की ओर से वरिष्ठ वकील अमित झांजी, वरिष्ठ स्थायी अधिवक्ता हकीकत सिंह ग्रेवाल और साहिल शेरावत ने अदालत में पक्ष रखा.
एफआईआर क्या कहती है
यह एफआईआर ट्रैफिक विंग के असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर (एएसआई) अजीत सिंह द्वारा दर्ज कराई गई है, जिसमें 18 मई 2024 को शाम करीब 6.45 बजे चंडीगढ़ के सेक्टर 45/46/49/50 चौक के पास हुई एक घटना का ज़िक्र है.
एफआईआर के अनुसार, एएसआई सिंह और कांस्टेबल योगेश ने एक सफेद स्कॉर्पियो कार देखी, जिसकी आगे की नंबर प्लेट ढकी हुई थी.
जब कार को रुकने का इशारा किया गया, तो ड्राइवर, जिसकी पहचान प्रकाश सिंह मारवाह के रूप में हुई, तुरंत नहीं रुका और ज़ेब्रा क्रॉसिंग पार करने के बाद रुका.
कांस्टेबल योगेश ने घटना का वीडियो रिकॉर्ड करना शुरू किया। जब उससे ड्राइविंग लाइसेंस मांगा गया, तो मारवाह ने कथित तौर पर मना कर दिया और खुद को न्यायिक मजिस्ट्रेट फर्स्ट क्लास (JMIC) बताया। कार के आगे के शीशे पर “जज” का लोगो भी लगा हुआ था.
एफआईआर में आरोप है कि मारवाह ने पुलिस के साथ बदतमीजी की, उनके काम में बाधा डाली और तेज़ रफ्तार में गाड़ी भगाकर मौके से फरार हो गया, जिससे पुलिसकर्मियों की जान को खतरा हुआ. इस घटना की जानकारी पुलिस हेल्पलाइन को दी गई और जांच में सामने आया कि मारवाह कोई न्यायिक अधिकारी नहीं है. इसके बाद उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 170, 186 और 419 के तहत मामला दर्ज किया गया.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
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