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Friday, 22 November, 2024
होमदेश'TDP को पैसे ट्रांसफर करने का कोई सबूत नहीं’, कौशल विकास घोटाला मामले में HC ने चंद्रबाबू को दी जमानत

‘TDP को पैसे ट्रांसफर करने का कोई सबूत नहीं’, कौशल विकास घोटाला मामले में HC ने चंद्रबाबू को दी जमानत

आंध्र उच्च न्यायालय का कहना है कि सबूतों की कमी 'जांच के निष्कर्ष में अंतर को दिखाती है कि कथित गलत तरीके से राशि TDP खाते में ट्रांसफर की गई थी.'

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नई दिल्ली: आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने सोमवार को कथित कौशल विकास निगम घोटाले की सुनवाई करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष ने तेलुगु देशम पार्टी (TDP) के खातों में गलत तरीके से पैसे ट्रांसफर करने के आरोपों को सही ठहराने के लिए कोई सबूत पेश नहीं किया है. साथ ही उच्च न्यायालय ने आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को जमानत भी दे दी.

यह मामला आंध्र प्रदेश कौशल विकास निगम (APSSDC) से धन के कथित दुरुपयोग से संबंधित है, जिससे राज्य सरकार को 300 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ.

न्यायाधीश टी. मल्लिकार्जुन राव ने कहा, “TDP के खाते में गलत तरीके से पैसे ट्रांसफर करने के आरोपों के बावजूद, इस दावे का समर्थन करने के लिए कोई सबूत नहीं दिया गया है. इसलिए अदालत का मानना ​​है कि याचिकाकर्ता की रिमांड मांगने से पहले ऐसे गंभीर आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत भी देनी चाहिए.”

अदालत ने सबूतों की इस कमी को “जांच के निष्कर्ष में एक अंतर के रूप में देखा कि कथित हेराफेरी की राशि TDP पार्टी के अकाउंट में ट्रांसफर कर दी गई थी”.

इसकी FIR 9 दिसंबर 2021 को दर्ज की गई थी. नायडू को 2014 से 2019 तक उनकी तेलुगु देशम पार्टी के शासन के दौरान घोटाले में कथित संलिप्तता के लिए बीते 9 सितंबर को आंध्र प्रदेश CID द्वारा गिरफ्तार किया था. 73 वर्षीय नेता को 31 अक्टूबर को चिकित्सा आधार पर चार सप्ताह की अंतरिम जमानत दे दी गई थी.

फैसले के अनुसार, नायडू की सरकार ने आंध्र प्रदेश राज्य कौशल विकास निगम के माध्यम से कौशल विकास केंद्र स्थापित करने के लिए SIEMENS के साथ करार किया. APSSDC और SIEMENS के बीच एक समझौता ड्रॉफ्ट पर हस्ताक्षर किए गए, इस समझ के साथ कि SIEMENS और डिज़ाइन टेक 90 प्रतिशत फंडिंग करेंगे और सरकार बाकी का योगदान देगी. SIEMENS को छह उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने का काम सौंपा गया था.

अन्य बातों के अलावा, अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि 370 करोड़ रुपये की राशि को विभिन्न शेल कंपनियों में धोखाधड़ी/ट्रांसफर किया गया था, जहां से नायडू सहित विभिन्न आरोपी व्यक्तियों ने नकद में राशि निकाल ली.

जमानत देते हुए, अदालत ने कहा कि इस तर्क को पुष्ट करने के लिए उसके सामने पर्याप्त सबूत नहीं रखी गई कि नायडू ने नकद में राशि निकाली.

उच्च न्यायालय ने TDP प्रमुख को अंतरिम जमानत देते समय उन पर लगाई गई शर्त में भी ढील दी कि वह सार्वजनिक रैलियां और बैठकें करने से दूर रहेंगे.

हालांकि, न्यायालय ने यह महसूस किया गया कि “ऐसी शर्तें रखने से याचिकाकर्ता के राजनीतिक दल के चुनावी प्रॉस्पेक्टस पर असर पड़ेगा”, हाई कोर्ट ने कहा कि 29 नवंबर से इस शर्त में ढील दी जाएगी.

‘पार्टियों के हस्ताक्षर सत्यापित करना सीएम का कर्तव्य नहीं’

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया है कि TDP सरकार ने SIEMENS के एक भी रुपये का निवेश किए बिना परियोजना के लॉन्च के तीन महीने के भीतर जल्दबाजी में 371 करोड़ रुपये जारी किए. साथ ही अभियोजन पक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि इस राशि में से 241 करोड़ रुपये कथित तौर पर शेल कंपनियों को भेज दिए गए, जो बिना कोई सेवा दिए बिना चालान देती थी. इसमें आगे कहा गया है कि इन कंपनियों का इस्तेमाल करोड़ों रुपये के सार्वजनिक धन को हड़पने के लिए किया गया था.

अदालत के समक्ष, अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया है कि नायडू ने कथित तौर पर बिचौलियों के माध्यम से निजी संस्थाओं को पर्याप्त नकद राशि जारी करने में सरकार को प्रभावित किया. इसके बाद, इन संस्थाओं ने कथित तौर पर विभिन्न व्यक्तियों के माध्यम से नायडू को नकद ट्रांसफर की, जिसमें नायडू के पूर्व निजी सचिव, उनके करीबी सहयोगी और उनके बेटे शामिल थे.

उल्लिखित खातों में नकद जमा का विश्लेषण से TDP खाते में पैसे जमा होने का पता चला. इसमें कहा गया है कि यह APSSDC फंड के कथित दुरुपयोग और विभिन्न आरोपी व्यक्तियों को उनके डायवर्जन की समयसीमा के अनुरूप है.


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हालांकि, उच्च न्यायालय ने कहा कि “केवल इन टिप्पणियों के आधार पर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि गलत तरीके से राशि तेलुगु देशम पार्टी के बैंक खातों में भेज दी गई थी.”

अपने फैसले में, अदालत ने बताया कि अभियोजन पक्ष ने यह दावा नहीं किया है कि APSSDC के साथ समझौता ज्ञापन (MOA) के पक्षकार SIEMENS और डिजाइन टेक, विभिन्न राज्य सरकारों के सहयोग से प्रशिक्षकों को उच्च-स्तरीय तकनीक देने में विफल रहे हैं.

अन्य बातों के अलावा, अभियोजन पक्ष ने इस बात पर भी प्रकाश डाला था कि MOA और लाइसेंस समझौते के अनुसार, SIEMENS के लिए वास्तविक हस्ताक्षरकर्ता श्री सौम्याद्रि शेखर बोस थे, लेकिन श्री सुमन बोस ने MOA पर हस्ताक्षर किए. हालांकि, अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष को यह स्पष्ट करने की आवश्यकता है कि नायडू को ऐसी गड़बड़ियों के लिए कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, “क्योंकि तत्कालीन मुख्यमंत्री के रूप में, पार्टियों के हस्ताक्षरों को सत्यापित और तुलना करना उनका कर्तव्य नहीं है”.

‘Z+ सुरक्षा, इसलिए भागने का खतरा नहीं’

अभियोजन पक्ष ने कहा था कि वित्त सचिव ने आपत्ति जताते हुए इस बात पर जोर दिया कि धन केवल बैंक गारंटी के रूप में आवश्यक सुरक्षा के साथ जारी किया जाना चाहिए. आपत्तियों के बावजूद, मुख्य सचिव ने सीएम के समर्थन से, धन जारी करने का आदेश दिया, जैसा कि अदालत को बताया गया.

हालांकि, अदालत ने कहा कि फंड साफ़ करने के प्रति नायडू की प्रवृत्ति का यह मतलब नहीं है कि उनके या उनकी पार्टी के खाते में फंड भेजे जाने के सबूत के बिना अपराध में उनकी संलिप्तता है.

यह नायडू के वकील से सहमत था कि उन्हें प्रत्येक उपठेकेदार की चोरी के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है. “प्रथम दृष्टया कोई संकेत नहीं है कि अधिकारियों ने याचिकाकर्ता को इसके बारे में सूचित किया.”

अपने फैसले में, अदालत ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष का दावा है कि नायडू ने अप्रत्यक्ष रूप से गवाहों, सह-अभियुक्तों और पार्टी के सदस्यों को प्रभावित किया, लेकिन कोर्ट ने इसपर भी यही कहा कि इसकी “पुष्टि करने वाले सबूतों का अभाव है”. हालांकि, साथ ही, अदालत नायडू के इस दावे से भी सहमत नहीं थी कि यह मामला वर्तमान सरकार द्वारा शासन के प्रतिशोध के रूप में राजनीति से प्रेरित था.

इसलिए, अदालत ने उन्हें यह कहते हुए जमानत दे दी कि मामले में शामिल अन्य सभी आरोपियों को जमानत दे दी गई है. इसमें यह भी कहा गया कि नायडू को केंद्र सरकार द्वारा एनएसजी की Z+ सुरक्षा प्रदान की गई है.

न्यायालय ने कहा, “उक्त तथ्य से पता चलता है कि भागने का कोई खतरा और सबूतों के साथ छेड़छाड़ या गवाहों को प्रभावित/धमकाने की कोई संभावना नहीं है. याचिकाकर्ता की उम्र करीब 73 साल है. याचिकाकर्ता की उम्र को ध्यान में रखते हुए, इस अदालत ने पाया कि उसे बुढ़ापे की बीमारियों से पीड़ित होने की काफी संभावना है.”

हालांकि, उच्च न्यायालय ने कहा कि उसके द्वारा की गई टिप्पणियों को मामले की योग्यता पर प्रतिबिंब नहीं माना जाएगा.

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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