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Friday, 3 May, 2024
होमदेशक्या मोदी सरकार ने सिर्फ ED को मजबूत किया है? कई एजेंसियों के साथ सूचना शेयर करना डर को बढ़ावा दे रहा

क्या मोदी सरकार ने सिर्फ ED को मजबूत किया है? कई एजेंसियों के साथ सूचना शेयर करना डर को बढ़ावा दे रहा

इस महीने की शुरुआत में केंद्र सरकार ने उन संस्थानों की सूची में 15 और नामों को जोड़ दिया है जिनके साथ ईडी मामले से संबंधित जानकारी साझा कर सकता है. इनमें NIA, MEA, CVC और नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड शामिल हैं.

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नई दिल्ली: प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग (PMLA) 2002 के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को 15 और एजेंसियों के साथ जानकारी साझा करने की अनुमति देने के कुछ दिन बाद ही मोदी सरकार की तरफ से जारी इस अधिसूचना के कुछ दिनों बाद ही कुछ विशेषज्ञों ने ईडी द्वारा कानून के दुरुपयोग की आशंका व्यक्त की है और इस कदम के पीछे दिए गए तर्क पर सवाल उठाया है.

कुछ लोगों का मानना है कि PMLA नोटिफिकेशन सरकार के कामकाज में अधिक जवाबदेही लेकर आएगा. लेकिन कानूनी विशेषज्ञों के एक वर्ग ने चेतावनी दी है कि यह महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दों या उनकी परेशानियों को हल नहीं करता है, और यह कोवर्ट सर्विसेस की भागीदारी के लिए दरवाजा खोल सकता है, जिनमें से कई को अतीत में उपयुक्त वैधानिक आधार के बिना संचालन के लिए चिह्नित किया जा चुका है.

हाल के महीनों में विपक्षी दल बार-बार ईडी पर सत्तारूढ़ भाजपा के हाथों की कठपुतली होने का आरोप लगाता रहा है. वरिष्ठ अधिवक्ता विकास पाहवा के अनुसार, अधिसूचना के जरिए सरकार ने ईडी के हाथ मजबूत कर दिए हैं.’

22 नवंबर की अधिसूचना ने 2006 की अधिसूचना में संशोधन करके उन संस्थानों की सूची में 15 और नाम जोड़ दिए जिनके साथ ईडी मामलों के संबंध में जानकारी साझा कर सकता है. सूची में राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (NTRO), राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA), भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI), सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस (SFIO), विदेश मंत्रालय, विदेश व्यापार महानिदेशक, राष्ट्रीय खुफिया ग्रिड, केंद्रीय सतर्कता आयोग, वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो और स्टेट पुलिस डिपार्टमेंट शामिल है.

अधिसूचना पीएमएलए की धारा 66(1)(ii) के तहत जारी की गई है. यह ईडी को ‘सार्वजनिक हित’ में केंद्र सरकार की तरफ से अधिसूचित किसी अन्य संस्थान के साथ सूचना साझा करने की अनुमति देती है.

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इससे पहले, ईडी जिन संगठनों के साथ मामले से संबंधित जानकारी साझा कर सकता था, उनमें केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की आर्थिक अपराध शाखा, आरबीआई, वित्तीय खुफिया इकाई, वित्त मंत्रालय का राजस्व विभाग, कंपनी मामलों का विभाग और भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) शामिल था.


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‘मजबूत ईडी’

एडवोकेट पाहवा ने समझाया कि हालिया अधिसूचना जुलाई के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को ध्यान में रखते हुए जारी की गई है. इसमें ईडी की व्यापक जांच शक्तियों और पीएमएलए के तहत प्रतिबंधात्मक जमानत की शर्तों को बरकरार रखा गया था और फैसला सुनाया गया कि मनी लॉन्ड्रिंग का मामला तब तक जारी नहीं रखा जा सकता जब तक कि वह एक अनुसूचित अपराध नहीं हो.

दूसरे शब्दों में कहें तो अदालत ने फैसला सुनाया कि अगर यह पता चलता है कि अनुसूचित अपराध नहीं हुआ है, तो उस अपराध से मिली संपत्ति या पैसे पर पीएमएलए के तहत कार्यवाही जारी नहीं रखी जा सकती है.

पीएमएलए अलग-अलग अपराधों और कानूनों को अपनी अनुसूची में सूचीबद्ध करता है और इन्हें अनुसूचित अपराध या विधेय अपराध (predicate offences) कहा जाता है. सरल शब्दों में मनी लॉन्ड्रिंग के लिए कम से कम दो मामले समानांतर रूप से चलते हैं, एक शिड्यूल्ड अफेंस सेक्शन के तहत और दूसरा पीएमएलए के तहत.

मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों की जांच के लिए ईडी की ओर से पीएमएलए के तहत शिकायत दर्ज की जाती हैं. पीएमएलए और अदालत में इसकी व्याख्याओं के अनुसार, मनी लॉन्ड्रिंग दरअसल अवैध गतिविधियों या ‘अपराधिक तरीके से अर्जित किए’ गए पैसे को स्वच्छ दिखाने की प्रक्रिया है. इस पैसे को कथित तौर पर व्यक्ति द्वारा किए गए एक अलग आपराधिक अपराध से जोड़ा जाता है, ताकि इसके आधार पर ईडी पीएमएलए के तहत अपनी स्वतंत्र शिकायत दर्ज करा सके.

पाहवा ने कहा, ‘इस फैसले से पहले ईडी अदालत में तर्क देता था कि मनी लॉन्ड्रिंग एक अकेला अपराध है. और यहां तक कि अगर वह एक अनुसूचित अपराध नहीं है, तब भी हम इस मामले में आगे बढ़ सकते थे. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वे ऐसा नहीं कर सकते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘अब ईडी जानता है कि वे अन्य एजेंसियों पर निर्भर हैं. पहले उन्हें लगता था कि वे मनी लॉन्ड्रिंग केस के बॉस हैं. अब इस केस के बने रहने के लिए वह अन्य अधिकारियों की जांच के अधीन हो गया है.

उन्होंने समझाया कि सरकार ने अब ईडी को इन अन्य संस्थानों के साथ जानकारी साझा करने का निर्देश दिया है, ताकि वे अधिकारी भी पूछताछ कर सकें और देख सकें कि क्या वाकई में कोई अनुसूचित अपराध हुआ है.

पाहवा ने कहा, ‘अब आपके पास यह सुनिश्चित करने के लिए सूचनाओं की जानकारी साझा करने का एक तंत्र है कि अगर X अपराध नहीं बनता है, तो Y बनता है, अगर Y नहीं बनता है, तो Z बनता है. कम से कम कुछ न कुछ अपराध तो बनेगा ही. यह जानते हुए कि पीएमएलए की कार्यवाही विधेय अपराध की कार्यवाही के अधीन है, सरकार ने इन अन्य एजेंसियों के साथ जानकारी साझा करने के लिए मजबूर करके ईडी के हाथों को मजबूत किया है.’

उच्च न्यायालय के एक पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि अधिसूचना एजेंसियों के बीच विवरण साझा करके ‘सहयोग के सिद्धांत’ का पालन किया गया है.

उनके अनुसार, अगर कोई शिकायत प्राप्त होती है, या अनुसूचित अपराध के लिए दंड प्रक्रिया संहिता (CrPc) की धारा 173 के तहत एक रिपोर्ट या आरोप पत्र दायर किया गया है, तो PMLA की धारा 2 और 5, PMLA मामले के पंजीकरण की अनुमति देती है. हालांकि, धारा-5 का दूसरा प्रावधान आपात स्थिति के मामलों में संपत्ति की कुर्की या किसी व्यक्ति की शिकायत या रिपोर्ट के बिना गिरफ्तारी के आदेश की अनुमति देता है. इसमें ऐसी स्थिति शामिल है जहां अधिकारियों को डर है कि व्यक्ति आपराधिक गतिविधियों से प्राप्त आय के साथ भाग सकता है.

उन्होंने कहा, ‘ऐसी परिस्थितियों में लिखित तर्कपूर्ण आदेश पारित किए जाने होते हैं. अक्सर देखा यही गया है कि इस कानून का दुरुपयोग किया जाता है. आपात स्थिति के बजाय नियमित रूप से इसे इस्तेमाल में लाया जाता रहा है.’

पूर्व न्यायाधीश ने साफ किया कि एजेंसियों के बीच सूचना साझा करने से इस प्रावधान का दुरुपयोग होना बंद नहीं होगा. क्योंकि एजेंसी के जरिए मिली जानकारी के आधार पर गिरफ्तारियां की जा सकती हैं या संपत्तियों को कुर्क किया जा सकता है.

उन्होंने कहा, ‘अगर कोई जानकारी या कोई दस्तावेज़ अन्य एजेंसियों के साथ साझा किया जाता है, तो वे एजेंसियां शिकायत दर्ज कर सकती हैं, यह अनदेखा करते हुए कि कोई मामला अनुसूचित अपराध के तहत लंबित है या नहीं. इसकी बड़ी वजह यह है कि (किसी को गिरफ्तार करने या संपत्ति कुर्क करने के लिए) एफआईआर या आरोपपत्र की जरूरत नहीं है.’

‘ तर्क पर उठाए सवाल’

कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद और वकील मनीष तिवारी ने भी अधिसूचना के पीछे के तर्क पर कई सवाल उठाए और कहा कि उन्होंने सरकार से इस अधिसूचना की व्याख्या करने के लिए एक संसद में एक सवाल किया है.

पिछले साल तिवारी ने एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया था, जिसका उद्देश्य ‘भारत के भीतर और बाहर खुफिया एजेंसियों की शक्तियों के कामकाज और अभ्यास के तरीके को रेगुलेट करना’ था. निगरानी उपायों पर ध्यान देने के साथ विधेयक में ऐसी एजेंसियों के बेहतर नियंत्रण और निरीक्षण के लिए और व्यक्तियों से निगरानी संबंधी शिकायतों को दूर करने के लिए अधिकरणों और समितियों की स्थापना की बात कही गई थी.

अन्य बातों के अलावा, बिल में रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ), इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) और एनटीआरओ सहित एजेंसियों के अधिकारियों को किसी नामित अधिकारी के वारंट के बिना किसी भी संपत्ति में प्रवेश करने या संचार के किसी भी रूप में हस्तक्षेप करने से रोकने की भी मांग की गई थी.

2011 में वह इंटेलिजेंस सर्विसेज (पॉवर्स एंड रेगुलेशन) बिल नामक एक अन्य प्राइवेट मेंबर विधेयक भी लेकर आए थे. इसमें खुफिया एजेंसियों के लिए ‘उचित वैधानिक आधार’ लेकर आने की मांग की गई थी. इस विधेयक ने इशारा किया था कि रॉ और एनटीआरओ जैसी खुफिया एजेंसियां ’अपने कामकाज और संचालन को परिभाषित करने वाले उचित वैधानिक आधार के बिना काम कर रही हैं.’


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‘जवाबदेही तय करेंगे’

कुछ विशेषज्ञों ने इस कदम का ‘सकारात्मक संकेत’ के रूप में स्वागत किया और इसे विभिन्न एजेंसियों के कामकाज में अधिक जवाबदेह बनाने के रूप में भी देखा.

वरिष्ठ अधिवक्ता विजय अग्रवाल ने इसे ‘सही दिशा में उठाया गया एक कदम’ बताते हुए कहा, ‘सभी महत्वपूर्ण एजेंसियों को मिलकर काम करना चाहिए, न कि सात अंधे आदमी और एक हाथी की तरह, जो पैर को छूते हैं और उसे खंभा बताते हैं या फिर पूंछ को छूते हैं तो उसे रस्सी कह देते हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘बेशक, उन्हें एक-दूसरे के साथ मजबूत आपसी मेल-जोल के साथ काम करना होगा. क्योंकि उनका काम सिर्फ पोस्टमार्टम करना नहीं है, बल्कि देश हित में किसी भी गलत काम को रोकना भी है. इसलिए जानकारी साझा करना बहुत महत्वपूर्ण है.’

एनआईए के पूर्व विशेष महानिदेशक और पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो के पूर्व महानिदेशक एन आर वासन का मानना है कि इस तरह की जानकारी पहले भी साझा की जा रही थी, लेकिन यह ‘ऑफ द रिकॉर्ड’ थी. उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि इसे आधिकारिक बनाना सही दिशा में उठाया गया एक कदम है. क्योंकि इंटेलिजेंस को राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में ऐसी जानकारी की जरूरत पड़ सकती है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘यह एक सकारात्मक संकेत है … अगर यह (सूचना साझा करना) ऑन रिकॉर्ड किया जा रहा है, तो कम से कम कुछ जवाबदेही की शुरुआत तो हो रही है. आशा है कि खुफिया एजेंसियों की जवाबदेही के लिए भी कुछ न कुछ कदम उठाए जाएंगे.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(अनुवादः संघप्रिया)


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